Prathnarat battakhe book and story is written by Bharatiya Jnanpith in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Prathnarat battakhe is also popular in Poems in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story. प्रार्थनारत बत्तखें Bharatiya Jnanpith द्वारा हिंदी कविता 1.5k Downloads 7.9k Views Writen by Bharatiya Jnanpith Category कविता पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण किसी भी दौर की समकालीनता एकायामी नहीं होती. उसके पाश्र्व में कई राग-रंग, धुँधले पड़ चुके कई ह र्फ झिलमिलाते रहते हैं। युवा कवि तिथि दानी ढोबले के संग्रह प्रार्थनारत बत्तखेंÓ को पढ़ते हुए हम इसी तरह की बहुआयामी समकालीनता से बावस्ता होते हैं। ऐसे समय में जब डर ही चेतना का केन्द्र होने लगे और डरे हुए लोगÓ ही समाज की धुरी, इस डर को निकाल देना आसान नहीं होता, परन्तु एक युवा कवि ताज़गी और अनुकूलन से मुक्त आवाज़ से इस डर को चुनौती देता है। उसका यह कहना प्रेम भरी नज़रें कभी विस्मृत नहीं करतीं सौन्दर्यबोधÓ हमारे भीतर उत्साह और प्रेम का संचार करता है। इधर की हिन्दी कविता विशेषकर युवा कविता के सन्दर्भ में ये शिकायत की जाती है कि उसमें मनुष्य और प्रकृति का आदिम राग सुनाई नहीं देता। तिथि की कविताओं में प्रकृति और मनुष्य के सम्बन्धों को वर्तमान के धरातल पर पहचानने की कोशिश नज़र आती है। प्रकृति और मनुष्य के आदिम राग को गाते हुए वह अपने समय और समाज को नहीं भूलती। वह अपने भीतर यह उम्मीदÓ बचाए रखती हैं कि स्त्रियाँ जुगनू बन जाएँÓ। उम्मीद का यह उत्कर्ष हमें सुकून से भर देता है। ये कविताएँ प्रेम और सौन्दर्य को अलगाती नहीं। वे दोनों के बीच मौजूद बारीक से बारीक भेद को भी मिटा देना चाहती है। दुनिया के शोर, भागदौड़, छीना झपटी के बीच प्रार्थनारत बत्तखेंÓ का रूपक हमें हर तरह की नृशंसता और दमन के प्रति प्रेम और सौन्दर्य के वैकल्पिक रास्ते की ओर मोड़ देता है। एक ऐसे रास्ते पर जहाँ लोग अपने भीतर और बाहर के दर्द को विस्मृत कर प्रार्थनारत बत्तखोंÓ के संगीत में खो जाते हैं। तिथि दानी की कविताएँ रूमानियत और कल्पना की एक ऐसी भाव-भूमि पर खड़ी नज़र आती हैं जो प्रति-यथार्थ का सौन्दर्यबोध हमारे भीतर जगाती हैं। इसी अलहदा जमीन पर खड़ी होकर वे कहती हैं मैं शिद््दत से ढूँढ रही हूँ रोटी के जैसी गोलाईÓ। इन कविताओं से गुजरना अपने भीतर के असुन्दर से संघर्ष करना है। ये प्रार्थनाएँ हमारे भीतर सुन्दर दुनिया का विवेक जगाती हैं। —अच्युतानन्द मिश्र More Likes This मी आणि माझे अहसास - 98 द्वारा Darshita Babubhai Shah लड़के कभी रोते नहीं द्वारा Dev Srivastava Divyam जीवन सरिता नोंन - १ द्वारा बेदराम प्रजापति "मनमस्त" कोई नहीं आप-सा द्वारा उषा जरवाल कविता संग्रह द्वारा Kaushik Dave मेरे शब्दों का संगम द्वारा DINESH KUMAR KEER हाल ए दिल द्वारा DINESH KUMAR KEER अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी