इस कहानी में टोपी की महत्वपूर्णता और उसके पीछे के संस्कारों का वर्णन किया गया है। बचपन में, लेखक के पिता टोपी पहनते थे, जो गांधी जी के अनुयायी थे। घर लौटते समय बच्चों के बीच टोपी को लेकर होड़ लग जाती थी। शादी के बाद, पत्नी की टिप्पणियों ने लेखक की शालीनता को प्रभावित किया, और वे सामाजिक दबाव में टोपी को छिपाने लगे। पिछले 15-20 सालों से टोपी का प्रचलन कम हो गया है, केवल कुछ विशेष अवसरों पर ही लोग टोपी पहनते हैं। एक मारवाड़ी व्यक्ति की टोपी पहनने की आदत ने उन्हें शहर में पहचान दिलाई और उन्होंने साधारण भोजनालय से चार मंजिला होटल तक का सफर तय किया। उनके निधन पर कोई विशेष मातम नहीं था, लेकिन उनकी टोपी और व्यक्तित्व की छाप हमेशा जीवित रहेगी।
टोपी आम आदमी की....
sushil yadav द्वारा हिंदी पत्रिका
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विवरण
सदर बाजार के एक और मारवाड़ी जिनका सोने-चांदी का बिजनेस था,पुरोहित के नक्शे –कदम में टोपी पहना करते थे उनकी खासियत थी कि जब भी बड़ा ग्राहक आये, वे टोपी उतार के रख देते थे
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