यह कहानी एक बेटे के दृष्टिकोण से है, जो अपने पिता की मृत्यु के बाद की घटनाओं का वर्णन करता है। पिता की शवयात्रा की तैयारी हो रही है और माँ के प्रति लोगों के उलाहने दिए जा रहे हैं। माँ हमेशा अपने कर्तव्यों में व्यस्त रहती हैं, लेकिन उनकी आंखों में दर्द और संघर्ष की छाया है। पिता के जीवन में परिवार की जिम्मेदारियाँ और कर्ज़ का बोझ था, जिससे माँ और बच्चे हमेशा उनकी छाया में सूखते रहे। बेटे और बेटी को यह महसूस होता है कि पिता की सफलता के पीछे माँ का त्याग और संघर्ष छिपा है। जब बेटे ने माँ के लिए चूड़ियाँ लाने की बात की, तो माँ को यह बात दुख देती है। कहानी में यह दिखाया गया है कि पिता की भूमिका परिवार में महत्वपूर्ण थी, लेकिन उनकी यह जिम्मेदारी उनकी पत्नी और बच्चों से उन्हें अलग करती गई। माँ हमेशा चुप रही और अपने कर्तव्यों का निर्वाह करती रही, जबकि परिवार में झगड़ों और संघर्षों के बीच पिता की भूमिका परिवार को जोड़ने में असफल रही। यह कहानी पारिवारिक रिश्तों, त्याग और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच संतुलन की खोज को दर्शाती है। इमारत मेरी है Shobha Rastogi द्वारा हिंदी सामाजिक कहानियां 4 1.5k Downloads 7.4k Views Writen by Shobha Rastogi Category सामाजिक कहानियां पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण माँ बेटी का दर्द More Likes This अहम की कैद - भाग 1 द्वारा simran bhargav भूलभुलैया का सच द्वारा Lokesh Dangi बदलाव ज़रूरी है भाग -1 द्वारा Pallavi Saxena आशा की किरण - भाग 1 द्वारा Lokesh Dangi मंजिले - भाग 12 द्वारा Neeraj Sharma रिश्तों की कहानी ( पार्ट -१) द्वारा Kaushik Dave बेजुबान - 1 द्वारा Kishanlal Sharma अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी