राजाराम की आत्मा पिछले चार चुनावों तक पार्टी की सेवा में सक्रिय रही। वे पार्टी के लिए महत्वपूर्ण थे और हर चुनाव के घोषणा-पत्र के रचयिता थे। उनकी तबीयत बिगड़ने पर पार्टी में हड़कंप मच जाता था। उम्र बढ़ने के साथ, जब पार्टी वालों को उनके अस्सी बसंत पार करने का एहसास हुआ, कानाफूसी शुरू हो गई कि क्या ऐसे उम्रदराज लोगों को राजनीति में बने रहना चाहिए। राजाराम, जो एक अनुभवी और चतुर राजनीतिक व्यक्ति थे, इन बातों को अनदेखा नहीं कर सकते थे। पार्टी में उनकी अहमियत के बावजूद, उनकी उम्र को लेकर चिंताएँ बढ़ने लगी थीं।
आत्मा-राम की सलाह .....
sushil yadav द्वारा हिंदी पत्रिका
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विवरण
ज़रा सी उनकी छींक –जुकाम में,पार्टी के दफ्तर में ताला जड जाता था पार्टी के लोग व्याकुल हो जाते थे मन्दिरों में प्रार्थनाएँ ,घरों में दुआओं का दौर शुरू हो जाता था
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