इस कहानी में, लेखक सुशील यादव ने भारत में टेलीविजन चैनलों की आलोचना की है, जो चुनावी मुद्दों पर सही जानकारी नहीं देते हैं। पाटलीपुत्र के चुनावी दंगल की चर्चा करते हुए, उन्होंने चुनावी संभावनाओं और राजनीतिक पार्टियों के बीच हो रहे गठबंधन और चुनावी रणनीतियों का मजाक उड़ाया है। कहानी में 'महा' शब्द के बढ़ते उपयोग पर भी ध्यान दिया गया है, जो विभिन्न पार्टियों द्वारा अपने नामों के साथ जोड़ा जा रहा है। राजनीतिक पार्टियों ने छोटे-छोटे दान देकर राज्य को 'महादान' देने का ऐलान किया है। इसके अलावा, 'महागठी' की स्थिति का वर्णन करते हुए, लेखक ने बताया है कि कैसे पार्टियाँ एक दूसरे के साथ मिलकर चुनावी मैदान में कमजोर उम्मीदवारों को उतारने का प्रयास कर रही हैं। अंत में, उन्होंने एक उपमा दी है जिसमें राजनीतिक गठबंधनों को मेढकों की तरह किसी टोकरे में रखकर तौलने के प्रयास की तुलना की है, जो अंततः असफल रहा। इस प्रकार, कहानी चुनावी राजनीति की विडंबनाओं और मीडिया की भूमिका पर एक तंज कसती है।
अथ महाभारतम…
sushil yadav द्वारा हिंदी पत्रिका
Three Stars
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विवरण
इधर अपने, ई सी ने आम चुनाव का आगाज कर दिया है, उधर लोग जीत हार के फर्जी आंकड़े जुटाने में लग गए हैं इसे आम जनता तक चुनावी संभावना के नाम पर इलेक्शन पोल के ग्राफिक बना कर जीतने वाली ‘प्रायोजित पार्टी’ के बारे में ढिढोरा पीटना है
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