यह कहानी बाजार की ठगी और उपभोक्तावाद के प्रभाव पर केंद्रित है। लेखक बताता है कि कैसे समाज और बाजार हमें यह महसूस कराते हैं कि हमें नए उत्पादों की आवश्यकता है। लोग अक्सर अपने पुराने सामान को अनावश्यक समझते हैं और नई चीजें खरीदने के लिए लोन लेने को मजबूर होते हैं। कहानी में बताया गया है कि पहले लोग छोटे घरों में कई परिवार एक साथ रहते थे, लेकिन अब लोग बड़े और महंगे घरों की चाह में जीवन भर की बचत खर्च कर देते हैं। बाजार और पड़ोसी हमेशा बड़ी कार या स्मार्ट टीवी जैसी चीजों की आवश्यकता का दबाव बनाते हैं, जिससे लोग तनाव में रहते हैं। इस प्रकार, बाजार ने हमारी जरूरतों को इस तरह से आकार दिया है कि हम अपने पुराने सामान को छोड़कर नए सामान की तलाश में निकल पड़ते हैं, जिसके परिणामस्वरूप हम आर्थिक तनाव में आ जाते हैं। बाजार बड़ ठगनी हम जानि kaushlendra prapanna द्वारा हिंदी पत्रिका 2.6k 2.5k Downloads 8.8k Views Writen by kaushlendra prapanna Category पत्रिका पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण बाजार ने ख़ासकर महिलाओं के सौदर्य आकर्षण को अपना शिकार बनाया है। महिलाओं में सुंदर दिखने की सहज प्रवृत्ति को विभिन्न प्रोडक्ट से लुभाते हैं। इसकी का परिणाम है कि रेज दिन नई नई प्रोडक्ट बाजार में उतारी जाती हैं। More Likes This इतना तो चलता है - 3 द्वारा Komal Mehta जब पहाड़ रो पड़े - 1 द्वारा DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR कल्पतरु - ज्ञान की छाया - 1 द्वारा संदीप सिंह (ईशू) नव कलेंडर वर्ष-2025 - भाग 1 द्वारा nand lal mani tripathi कुछ तो मिलेगा? द्वारा Ashish आओ कुछ पाए हम द्वारा Ashish जरूरी था - 2 द्वारा Komal Mehta अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी