"दोहरा दर्द" एक आत्मकथा है जिसमें लेखक अपने जीवन के कष्टों और अनुभवों को साझा करता है। वह बताता है कि जीवन में कई बार ऐसा लगता है कि सब व्यर्थ है, और लोग अपनी सच्चाई के साथ धोखा खाते हैं। स्कूल में सिखाई गई नैतिकताओं के विपरीत, वास्तविक जीवन में झूठ, धोखा और अपमान का सामना करना पड़ता है। लेखक ने अपने दर्द को समझाने की कोशिश की, लेकिन उसे कोई ऐसा नहीं मिला जो उसकी वेदना को समझ सके। उसके पिता ने भगवान पर भरोसा रखा, लेकिन वे भी इस दर्द से हार गए। लेखक का मानना है कि दर्द सभी को होता है और इसका कारण पहचानने से ही उसे खत्म किया जा सकता है। वह इस बात पर जोर देता है कि दुःख के कई प्रकार होते हैं, और कुछ दुःख तो और भी गंभीर होते हैं, जैसे सम्मान की कमी या प्यार का अभाव। वह इस कड़वे सच को उजागर करता है कि बहुत से लोग अपने दर्द को साझा करने की हिम्मत नहीं करते, क्योंकि उन्हें डर होता है कि लोग उनका मजाक उड़ाएंगे। इस प्रकार, यह आत्मकथा जीवन के वास्तविक संघर्षों और मानसिक पीड़ा को दर्शाती है। दोहरा दर्द Lakshmi Narayan Panna द्वारा हिंदी जीवनी 5.4k 2.7k Downloads 10.1k Views Writen by Lakshmi Narayan Panna Category जीवनी पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण ( हम अक्सर ही लोग जीवन में बहुत से कष्टों का सामना करते हैं । कभी कभी तो लगता है जिंदगी ही व्यर्थ है । हर व्यक्ति अपने जीवन के कुछ पहलुओं में फिल्मों के नायक की तरह होता है । हमें स्कूल के दिनों में पढ़ाया जाता था किसी का अपमान नही करना चाहिए किसी को दुःख नही पहुंचना चाहिए , झूठ नही बोलना चाहिए और चोरी करना , किसी को धोखा देना पाप है । अच्छे कर्म करने चाहिए इससे एक अच्छे समाज का निर्माण होगा । माता पिता भगवान का रूप होते हैं , उनकी सेवा से बढ़कर कोई पूजा नही , उनके आशीर्वाद से बड़ा कोई प्रसाद नही । कुछ बच्चे हैं जो अपने गुरु की बातों को अपने जीवन का मूल समझ लेते हैं । लेकिन असल जिंदगी में कुछ और ही चल रहा होता है । कदम कदम पर झूठ , धोखा , चोरी , घमण्ड , और अपमान है । मैं भी स्कूल में सिखाई गई बातों को ही आधार मानता था । इसलिए जीवन की सच्चाई से अनजान धोखा खाता गया । यह पुस्तक मेरे जीवन की एक अनमोल कृति है क्योंकि इस पुस्तक के माध्यम से आज मैं उस दर्द की व्याख्या करने जा रहा हूँ जिसे वर्षों से मैंने सहा है । कई बार यह दर्द मैंने उन्हें बताना चाहा जिन्हें समझता था कि शायद मेरी मदद कर सकें लेकिन सत्य को समझना तब कठिन हो जाता है जब असत्य धनी हो । धन का अभाव सत्य को कमजोर कर देता है । यही कारण रहा कि मेरा दर्द समझने के लिए कोई अपना नही मिला । कोई नही मिला जो मेरे दर्द के कारण को समझ सके । मेरे पिता जी कहते थे बेटा भगवान पर भरोसा रखो । वे तो भगवान पर बहुत भरोसा रखते थे पर क्या हुआ उनको भी तो यह वेदना सहनी पड़ी , महज मेरे लिए । आखिरकार इस दर्द से हारकर पिता जी ने तो आंखें बंद कर लीं और न जाने किस जहान में गए । मैं तो उन्हें बहुत प्रेम करता था फिर क्यों अन्त समय ओ मुझसे कुछ नही कह पाए , किसका डर था …..) More Likes This यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (2) द्वारा Ramesh Desai नकल से कहीं क्रान्ति नहीं हुई - 1 द्वारा Dr. Suryapal Singh अवसान विहीन अरुणेश द्वारा नंदलाल मणि त्रिपाठी प्रेमानंद जी : राधा-कृष्ण लीला के रसिक साधक - 1 द्वारा mood Writer जगमोहन शर्मा (अविस्मरणीय) द्वारा नंदलाल मणि त्रिपाठी Narendra Modi Biography - 1 द्वारा mood Writer मीरा बाई : कृष्ण भक्ति की अमर साधिका - 1 द्वारा mood Writer अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी