चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 38 Jayshankar Prasad द्वारा उपन्यास प्रकरण में हिंदी पीडीएफ होम किताबें हिंदी किताबें उपन्यास प्रकरण किताबें चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 38 चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 38 Jayshankar Prasad द्वारा हिंदी उपन्यास प्रकरण 613 2.3k चन्द्रगुप्त ने कहा की सिंहरण इस प्रतीक्षा में है की कोई ब्लाधिकृत जाय तो वे अपना अधिकार सोंप दें नायक! तुम खड्ग पकड़ सकते हो, और उसे हाथ में लिए सत्य से विचलित तो नहीं हो सकते? बोलो ...और पढ़ेके नाम से प्राण दे सकते हो? मैंने प्राण देनेवाले वीरों को देखा है चन्द्रगुप्त युद्द करना जानता है और विश्वास रखो, उसके नाम का जयघोष विजयलक्ष्मी का मंगल गान है आज से मैं ही ब्लाधिकृत हूँ, मैं आज सम्राट नहीं, सैनिक हूँ चिन्ता क्या? सिंहरण और गुरुदेव न साथ दें, डर क्या? सैनिको! सुन लो, आज से मैं केवल सेनापति हूँ, और कुछ नहीं जाओ, यह लो मुद्रा और सिंहरण को छुट्टी दो.... कम पढ़ें पढ़ें पूरी कहानी सुनो मोबाईल पर डाऊनलोड करें चंद्रगुप्त - उपन्यास Jayshankar Prasad द्वारा हिंदी - उपन्यास प्रकरण (398) 36.3k 95.7k Free Novels by Jayshankar Prasad अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी उपन्यास प्रकरण हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी કંઈપણ Jayshankar Prasad फॉलो