इस कहानी में लेखक सुशील यादव ने "सन्मार्ग" के अर्थ और उसकी व्याख्या पर ध्यान केंद्रित किया है। वह बताते हैं कि बचपन में उन्होंने "सन्मार्ग में चलो" का अर्थ समझा नहीं था और केवल साफ-सुथरी गलियों में चलने को सन्मार्ग मान लेते थे। जैसे-जैसे वे बड़े हुए, उन्हें एहसास हुआ कि आसान रास्ते सन्मार्ग नहीं हो सकते। उन्होंने यह भी कहा कि कठिन रास्तों को सन्मार्ग माना जा सकता है, और जो लोग अपनी कठिनाइयों का सामना करते हैं, वे ही सच्चे सन्मार्गी होते हैं। लेखक ने यह भी बताया कि सन्मार्गी बनने का दावा करने वाले लोग अक्सर समाज में सम्मानित हो जाते हैं, लेकिन वे वास्तविकता से दूर होते हैं। उन्होंने सन्मार्ग की धारणा को चुनौती दी और बताया कि सच्चे सन्मार्गी वही होते हैं जो अपने रास्ते में कांटे और कठिनाइयों का सामना करते हैं। यह कहानी एक दार्शनिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, जिसमें लेखक ने अपने अनुभवों के माध्यम से सन्मार्ग की गहराई को समझाने का प्रयास किया है।
सन्मार्ग में चलने की सलाह
sushil yadav द्वारा हिंदी पत्रिका
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विवरण
जितनी मेरी उमर है लगभग उतने सालों से (चलिए ,दो एक कम कर लीजिए) मै चलने-चलाने के नाम पर एक ही रिकार्ड सुनते आया हूँ ,सन्मार्ग में चलो ,सन्मार्ग में चलो सन्मार्ग क्या होता है, शुरू-शुरू में मै समझा भी नहीं करता था
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