इस कहानी में एक व्यक्ति अपने गुस्से और निराशा को व्यक्त करता है। वह ईद के दिन नमाज़ नहीं पढ़ने का निर्णय लेता है क्योंकि वह उस खुदा से नाराज है जिसने दुनिया बनाई है लेकिन अब उसकी परवाह नहीं करता। वह महसूस करता है कि खुदा कहीं खो गया है या सो गया है, और उसकी बनाई हुई दुनिया में हो रहे अन्याय और दुखों को नहीं देख रहा है। वह यह भी कहता है कि जब तक कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ, जैसे कि आयलन कुर्दी का पुनर्जन्म या दिल्ली की दो लड़कियों का सही-सलामत वापस आना नहीं होता, तब तक वह मस्जिद में नहीं जाएगा। इस तरह, कहानी एक गहरी सामाजिक और धार्मिक टिप्पणी करती है, जो व्यक्ति के आंतरिक संघर्ष और सामाजिक मुद्दों के प्रति उसकी संवेदनशीलता को उजागर करती है। मैं नमाज़ नहीं पढ़ूँगा Qais Jaunpuri द्वारा हिंदी कविता 8 2.1k Downloads 10.9k Views Writen by Qais Jaunpuri Category कविता पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण मैं नाराज़ हूँ उस ख़ुदा से जो ये दुनिया बना के भूल गया है जो कहीं खो गया है या शायद सो गया है या जिसकी आँखें फूट गई हैं जिसे कुछ दिखाई नहीं देता कि उसकी बनाई हुई इस दुनिया में क्या क्या हो रहा है More Likes This सफ़र-ए-दिल द्वारा Kridha Raguvanshi Shyari form Guri Baba - 4 द्वारा Guri baba मन की गूंज - भाग 1 द्वारा Rajani Technical Lead मी आणि माझे अहसास - 98 द्वारा Darshita Babubhai Shah लड़के कभी रोते नहीं द्वारा Dev Srivastava Divyam जीवन सरिता नोंन - १ द्वारा बेदराम प्रजापति "मनमस्त" कोई नहीं आप-सा द्वारा उषा जरवाल अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी