उन सभी लड़कियों के नाम जो पहले नहीं मिलीं! ज़िंदगी से यूं भी तमाम शिकायतें हैं मुझे. लेकिन उन तमाम शिकवों में से एक ये भी है कि ज़िंदगी मुझे तुमसे पहले नहीं मिलवा सकती थी. हालांकि ऐसे सोचो कि तुम अगर पहले मिल जाती तो क्या हो जाता, क्या कुछ बदल जाता? हां शायद या नहीं शायद. यार, प्यार में ‘शायद’ से ज्यादा Certain कोई verb ही नहीं होती.
Full Novel
वीकेंड चिट्ठियाँ - 1
उन सभी लड़कियों के नाम जो पहले नहीं मिलीं! ज़िंदगी से यूं भी तमाम शिकायतें हैं मुझे. लेकिन उन शिकवों में से एक ये भी है कि ज़िंदगी मुझे तुमसे पहले नहीं मिलवा सकती थी. हालांकि ऐसे सोचो कि तुम अगर पहले मिल जाती तो क्या हो जाता, क्या कुछ बदल जाता? हां शायद या नहीं शायद. यार, प्यार में ‘शायद’ से ज्यादा Certain कोई verb ही नहीं होती. ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 2
सविनय निवेदन है कि मैं आपके यहाँ नौकरी के आवेदन हेतु सम्पर्क करना चाहता हूँ। मैं पहले ही बता कि मैं वो हूँ जो एक प्राइवेट इंजीन्यरिंग कॉलेज से इंजीन्यरिंग कर चुका हूँ । नहीं ऐसा नहीं है कि मेरे कॉलेज में कंपनी प्लेसमेंट के लिए नहीं आयी थी। कंपनी का कट ऑफ मार्क्स 75 के ऊपर था और आपको तो पता ही है प्राइवेट कॉलेज से इंजीन्यरिंग करके अगर कोई 75 के ऊपर नंबर ल पा रहा है तो ये कहीं न कहीं लड़के का नहीं सिस्टम का दोष है। ऐसे लोगों को डिग्री मिलनी ही नहीं चाहिए। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 3
प्रिय बेटी, तुम्हें चिट्ठी लिखते हुए एक अजीब सी घबराहट हो रही है। लग रहा है तुमसे पहली बार बात करने जा रहा हूँ। नहीं नहीं इसलिए नहीं कि मेरे पास लिखने के लिए बातें नहीं है । बल्कि इसलिए कि इतनी बातें हैं कि समझ नहीं आ रहा कि आखिर शुरू कहाँ से करूँ। सबकुछ माँ पर छोड़कर हम शायद भूल ही गए हैं कि एक बाप और बेटी सीधे भी बात कर सकते हैं। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 4
संडे वाली चिट्ठी ------------------ डीयर T, ऑफिस में हमारे डिपार्टमेंट से लेकर फ्लोर तक सब कुछ अलग है। कोई भी एक ऐसी न है कि मैं तुमसे बात शुरू कर पाऊँ। अब मेरे अंदर का वो कॉलेज का आवारा टाइप लड़का भी सुबह ऑफिस की लिफ्ट में सिमट कर खड़े-खड़े खो गया है। अब पहले दूसरे या फिर फाइनली तीसरे प्यार वाली गलतियाँ खुशी से दोहरने की हिम्मत भी नहीं बची है। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 5
डियर टी, मैं सबकुछ लिख के कुछ भी आसान नहीं करना चाहता न तुम्हारे लिए न अपने लिए। कभी सामने दिखती खूबसूरत सड़कों के किनारे पड़ने वाली टुच्ची सी पगडंडियाँ हमें उन पहाड़ों पर लेकर जाती हैं जिसके बारे में हम लाख सोच के भी सोच नहीं सकते। वैसे भी सड़कों और पगडंडियों में बस इतना सा फर्क होता है। सड़कें जहां भी ले जाएँ वो हमेशा जल्दी में रहती हैं और पगडंडियों अलसाई हुई सी ठहरी हुई। वो ठहर कर हम सुस्ता सकते हैं, सादा पानी पी सकते हैं, बातें कर सकते हैं। प्यार और सुस्ताने में मुझे कोई फर्क नहीं लगता है। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 6
संडे वाली चिट्ठी ------------------------------- प्रिय बेटा, चिट्ठी इसीलिए लिख रहा हूँ क्यूँकि हर बात फ़ोन पर नहीं बोल सकते। हम कुछ बातें बस लिख के ही बोल सकते हैं। फ़ोन पे जब तुमसे रोज़ पूछता हूँ कि पढ़ाई सही से हो रही है न और तुम एक ही टोन में रोज़ बताते हो कि हाँ पापा अच्छे से हो रही है । तब मन करता है कि बोलूँ तुमको कि हफ़्ते में एक दो दिन कोर्स वाली किताब को हाथ मत लगाया करो। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 7
संडे वाली चिट्ठी ------------------ प्यारे बेटा, मैंने अपने दादा जी की शक्ल कभी नहीं देखी थी. वो मेरे इस दुनिया में आने बहुत पहले चले गए थे. मैं जब बचपन में अपने दोस्तों को अपने दादा जी के साथ खेलते, कहानी सुनते की ज़िद्द करते देखता था तो लगता था कि मेरे बचपन का कुछ हिस्सा अधूरा रह गया. घर पे दादा जी की एक ही तस्वीर थी जो बहुत धुंधली हो चुकी थी. तब एक तस्वीर सैकड़ों यादें सहेज लेती थी. अब सैकड़ों तस्वीरें मिलकर भी उतनी यादें नहीं सहेज पातीं. ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 8
कोटा में IIT की तैयारी कर रहे सैकड़ों लड़के लड़कियों के नाम, यार सुनो, माना तुम लोग अपने माँ बाप नज़र में दुनिया का सबसे बड़ा काम कर रहे हो। माना तुम लोग जब रोज़ कोचिंग के लिए जाते हो तो दूर बैठे तुम्हारे माँ बाप को लगता है जंग पे जा रहे हो। माना IIT से पास होने के बाद जिन्दगियाँ बदल जाती है। माना कि ये इम्तिहान पास करने लायक है। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 9
दुनिया के नाम एक चिट्ठी, जब ये चिट्ठी तुम्हें मिलेगी तब तक शायद मैं न रहूँ। कम से कम मैं तो नहीं रहूँगा जैसा अभी इस वक़्त हूँ। बहुत दिनों से मैं कोई बड़ी उदास चिट्ठी लिखना चाहता था। ऐसी चिट्ठी जिसको लिखने के बाद मुझे सूइसाइड नोट की खुशबू आए। ऐसी चिट्ठी जिसमें कोई उम्मीद न हो, कोई ऐसा भरोसा न हो कि कोई बात नहीं एक दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 10
Dear फलाने अंकल-ढिमकाना आंटी, जब मैं class 10th का बोर्ड एग्जाम देने वाला था तब आप दोनों घर आते और घर वालों से कहते देखिये अगर बच्चे के 90 से कम आए तो समझिए लड़का पढ़ने में कमजोर है । बोर्ड एग्जाम हुआ मेरे 90 से बहुत कम नंबर आए । मेरे घर वालों को इतना बुरा नहीं लगा लेकिन आप पूरे मुहल्ले में लोगों को बताने लगे ‘देखा हमने पहले ही कहा था, लड़का कमजोर है कुछ नहीं करेगा आवारा निकलेगा’। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 11
डीयर ए जी, आपको अभी चिट्ठी से पहले कभी ए.जी. नहीं बोले लेकिन मम्मी पापा को जब ए.जी. बोलती थीं बड़ा ही क्यूट लगता था। आपने कभी सोचा है हम लोग प्यार करने में बोलने में अपने मम्मी पापा की नकल करना चाहते हैं। जैसे मम्मी पापा से जिद्द करती थीं वैसे ही हम आपसे जिद्द करना चाहते हैं। जैसे मम्मी गुस्सा होने का नाटक करती थी पापा के साथ वैसे ही हम भी नाटक करना चाहते हैं। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 12
संडे वाली चिट्ठी ------------------ डीयर आदित्य धीमन, और उन तमाम लोगों के नाम जो सोशल नेटवर्क पर लड़कियों ‘पब्लिकली’ को माँ बहन गाली देते हैं। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 13
चिट्ठियाँ लिखने का एक फ़ायदा ये है कि आपको लौट कर बहुत सी चिट्ठियाँ वापिस मिल जाती हैं। इधर चिट्ठी ऐसी आई जिसमें किसी ने मुझसे पूछा कि मान लीजिये आज आपका इस दुनिया में आखिरी दिन है और आपके पास कोई 20 साल का लड़का कहानी लिखना सीखने के लिए आए। आपकी हालत ऐसी नहीं हैं आप बोल पाएँ। तब आप उसको अपनी आखिरी चिट्ठी में क्या लिखकर देंगे। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 14
सुनो यार पागल आदमी, तुमसे ही बात कर रहा हूँ, तुम जो सड़क के किनारे फटे कपड़े, बढ़ी हुई उलझे बालों के साथ हर मौसम में पड़े रहते हो। ज़ाहिर है तुम ऐसे पैदा तो नहीं हुए होगे। मुझे मालूम है ये चिट्ठी तुम तक कभी नहीं पहुँचेगी । इसीलिये वो सारी चिट्ठियाँ लिखना सबसे ज़रूरी होता है जो कभी अपने सही पते पर नहीं पहुँचती। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 15
बाक़ी सब में कितना कुछ समा जाता है न, मौसम, तबीयत, नुक्कड़, शहर, घरवाले, पति, ससुराल सबकुछ । तो यही है कि शादी के बाद बदल गयी होगी। नहीं शादी से कुछ भी नहीं बदलता, घर से बदलता है। शादी के बाद घर बदलता है न इसलिए बदलना पड़ता है। नहीं घबराओ मत तुम्हारी याद में पागल नहीं हुआ जा रहा । दारू पहले जितनी ही पीता हूँ। । एक लड़की से दोस्ती भी कर ली है उसकी शक्ल तुमसे नहीं मिलती है । ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 16
डियर J, मुझे ये बिलकुल सही से पता है कि मैं अपने हर रिश्ते से चाहता क्या हूँ। मुझे क्या सभी को शायद ये बात हमेशा से सही से पता होती है।एक बना बनाया सा रस्ता होता है हमारे पास कि बाप वाला रिश्ता है भाई वाला वैसा बॉयफ्रेंड वाला ऐसा, पति वाला वैसा। दुख हमें तभी होता है जब रिश्ते अपने हिसाब से नहीं हमारे हिसाब से रस्ते नहीं पकड़ते। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 17
संडे वाली चिट्ठी ------------------ Dear पापा जी, कुछ दिन पहले आपकी चिट्ठी मिली थी। आपकी चिट्ठी मैं केवल एक बार पढ़ एक बार के बाद कई बार मन किया कि पढ़ूँ लेकिन हिम्मत नहीं हुई। मैंने आपकी चिट्ठी अटैची में अखबार के नीचे दबाकर रख दी है। अटैची में ताला लगा दिया है। मैं नहीं चाहता मेरे अलावा कभी कोई और आपकी चिट्ठी पढ़े। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 18
डीयर बीवी, मैं इंटरनेट पर हर हफ्ते में इतने ओपेन लेटर पढ़ता हूँ और ये देखकर बड़ा हैरान होता कि कभी किसी पति ने अपनी बीवी को कोई ओपेन लेटर क्यूँ नहीं लिखता। चिट्ठियों के नाम पर ऐसा मायाजाल फैला हुआ है कि ऐसा लगता है जैसे कोई अपनी बीवी को छोड़कर पूरी दुनिया में किसी को भी चिट्ठी लिख सकता है। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 19
संडे वाली चिट्ठी ------------------ पिछले हफ्ते पहली किताब( टर्म्स एंड कंडिशन्स अप्लाई) आए हुए 6 साल पूरे हुए। 6 साल पहले चिट्ठी सही में लिख कर अमिताभ बच्च्न को पोस्ट की थी। हाँ कभी जवाब नहीं आया बल्कि कूरियर वापिस आ गया था। कूरियर अभी भी के पड़ा हुआ है। कभी अमिताभ बच्चन से फुरसत में मुलाक़ात होगी तो वही बिन खुला कूरियर उनको दे दूँगा, उनके पास मेरे 100 रुपये उधार हैं। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 20
तुम्हें dear लिखूँ या dearest, ये सोचते हुए लेटर पैड के चार कागज़ और रात के 2 घंटे हो चुके हैं। तुम्हारी पिछली चिट्ठी का जवाब अभी तक नहीं मिला तो सोचा कि पिछले दिनों दिवाली की छुट्टी थी। डाकिये को मैंने दिवाली ‘का कुछ’ अलग से नहीं दिया था इस चक्कर में उसने चिट्ठी दबा ली होगी। ...और पढ़े
वीकेंड चिट्ठियाँ - 21
सेवा में, कुमारी डिम्पल, सविनय निवेदन है कि तुम हमें बहुत प्यारी लगती हो। हम ये चिट्ठी अपने ख़ून से लिखकर चाहते थे लेकिन क्या करें हम सोचे कहीं तुम हमारा ख़ून देखकर डर न जाओ इसलिये नहीं लिखे। ...और पढ़े