यादों की अशर्फियाँ

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में अकसर सोचती थी की अगर हम कोई अच्छा काम करे तो हमारे माता पिता एवम् परिवार वालो की कीर्ति तो बढ़ेंगी ही पर उन शिक्षको और दोस्तो का क्या जिसने भी हमारी सफलता में अमूल्य योगदान दिया है। यह कहानी उन्ही पर, उन्ही से और उन्ही के लिए है। यह उन खास शिक्षको जिसने मुझे इस काबिल बनाया की में यह लिख सकू और मेरे सहारे उन दोस्तो को समर्पित है।

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यादों की अशर्फियाँ - पूर्वभूमिका

समर्पण में अकसर सोचती थी की अगर हम कोई अच्छा काम करे तो हमारे माता पिता एवम् परिवार वालो कीर्ति तो बढ़ेंगी ही पर उन शिक्षको और दोस्तो का क्या जिसने भी हमारी सफलता में अमूल्य योगदान दिया है। यह कहानी उन्ही पर, उन्ही से और उन्ही के लिए है। यह उन खास शिक्षको जिसने मुझे इस काबिल बनाया की में यह लिख सकू और मेरे सहारे उन दोस्तो को समर्पित है। * पूर्वभूमिका गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवों महेश्वर गुरू साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः यह श्लोक से हमारी यूं कहे तो जिंदगी ...और पढ़े

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यादों की अशर्फियाँ - 1 - वेलकम टू किशोर विद्यालय

1. वेलकम टू किशोर विद्यालय किशोर विद्यालय, याद करते ही आंखो के सामने खड़ी हो जाती है वह खूबसूरत इमारत, जिसके सामने न जाने कब से खड़ा हुआ नीम का घना पेड़। उस पेड़ पर लगा वह घंट जो छूटी होने पर हमे अवर्णनीय खुशी देता पर जब वह आखरी बार बजा तो जेसे कान सुन रह गए। उस घंट ने जेसे हमारी स्कूल से हररोज मिलने की आदत,चाह और आनंद को छीन लिया। उस पेड़ के नीचे पार्क की हुई टीचर-सर के वाहन, घर तक पहुंचाती मस्ती की वह पीली दो स्कूल बस और सामने लगी हुई, आर्मी ...और पढ़े

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यादों की अशर्फियाँ - 2. डेमो लेक्चर्स

2. डेमो लेक्चर्स सुबह यूं तो सबको प्यारी लगती है पर बचपन की वह सुबह को हमने सबसे ज्यादा है जब छुट्टियों के बाद सुबह 6 बजे न चाहते हुए मम्मी की लगातार आवाज या उस कमबख्त अलार्म की आवाज से उठना पड़ता है। बाहर बारिश का मौसम है। अकसर बारिश का मौसम सुहाना होता है पर उन बच्चो से पूछो जिसको बारिश किसी दुश्मन के राजनीति की तरह परेशान करती है। मानो की बारिश की सोची समझी साजिस हो की जब स्कूल जाने का वक्त हुआ नही की बारिश शुरू। सुबह का माहोल काफी अच्छा होता है लेकिन ...और पढ़े

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यादों की अशर्फियाँ - 3.मॉनिटर का चुनाव

3. मॉनिटर का चुनाव क्लासरूम में शोर करना तो जैसे स्टूडेंट्स का जन्मसिद्ध अधिकार था। और को इसे रोकना उसका मिशन था। टीचर तो हर वक्त क्लास में नही रह सकते इस लिए क्लास में से ही एक विद्यार्थी को चुनकर उसे क्लास की रखवाली करने का काम सोपते थे। मॉनिटर बनना मेरा सपना था पर वह अब तक पूरा नहीं हो पाया था। मॉनिटर का चुनाव होशियार बच्चो में से होता था। इस साल मेरे क्लास के होशियार स्टूडेंट्स स्कूल छोड़ कर चले गए थे। वह लोग कह कर भी गए थे अगले साल तुम ...और पढ़े

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यादों की अशर्फियाँ - 4. गुरुपूर्णिमा

4. गुरुपूर्णिमा आकाश में अंधकार छाया हुआ था। सब और छाता और रेनकोट दिखाई दे रहे थे। खड्डे गंदे से भर गए थे और इसी गंदे पानी की वजह से हमारा यूनिफॉर्म, जूते खराब हो जाते थे फिर भी स्कूल जाने का एक उत्साह था। स्कूल पहुंचते ही प्रार्थना के लिए हमारा ठिकाना होता है क्लासरूम क्योंकि जो बॉयज पहले कंपाउंड में खुले आसमान के नीचे बैठते थे उसे बारिश से बचने के लिए लॉबी में बिठाते थे और लॉबी में बैठने वाली हम गर्ल्स क्लासरूम में बैठते थे जहां प्रार्थना काम मस्ती ज्यादा होती थी। बारिश के छोटे ...और पढ़े

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यादों की अशर्फियाँ - 5. पीरियड्स से पढ़ाई तक-1

5. पीरियड्स से पढ़ाई तक-1 स्कूल की प्रार्थना में वो भक्ति कहा? स्कूल की प्रार्थना में सिर्फ आंखे बंद है लेकिन मन कहीं और भटकता है। जब आपको कोई ऐसा काम करना हो जिससे डर लगता हो तो मन विचलित ही रहता है। हमारी भी एसी ही हालत थी। प्रार्थना के बाद हमे गीत गाना था। सुनने में तो काफी आसान लगता है पर जब हमारी टांगे धीरेन सर के पास खड़ी होती है तो ऐसी कांपती है मानो भूकंप आया हो और दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। हर बार तो हमारी क्लास की गायिका को हम ...और पढ़े

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यादों की अशर्फियाँ - 5. पीरियड्स से पढ़ाई तक-2

पीरियड्स से पढ़ाई तक - 2 रिसेस का घंट बजाता की हम सब क्लासरूम की और धीरे धीरे बचपन में प्राईमरी में सब या तो लाईन में या तो दौड़ कर जाते थे। मगर अभी जैसे पढ़ाई से कोई नाता ही न हो ऐसे जा रहे थे हम। पर जैसे ही क्लास में पहुंचते फिर से धींगामस्ती शुरू फिर भी सभी टीचर्स 9th को अच्छी क्लास कहते थे चाहे कोई भी बेच हो। अब पीरियड था ऐसे टीचर का को स्टूडेंट के प्रश्न से ही बेहाल हो गए थे। नीरज सर जो सामाजिक विज्ञान लेते थे। ...और पढ़े

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यादों की अशर्फियाँ - 6. स्वतंत्रता दिन

6. स्वतंत्रता दिन देशभक्ति को जगाने का उत्तम साधन बचपन का स्वतंत्रता दिन ही होता है जो स्कूल में जाता है। वह अनुभव ही कुछ रोमांचक होता है क्योंकि बड़े हो कर हम ही स्वतंत्रता दिन को सिर्फ एक छूटी की तरह ही देखते है। स्कूल में टीचर्स का वह भाषण ही था जो हमे उत्साहित करता था की इस दिन हम छूटी न माने। मेरे अनुसार तो बचपन के स्कूल के दिनों में ही हम देश को सच्चा प्यार कर सकते है क्योंकि हम तब राजनीति के ज्ञाता नहीं होते, सरकार के उज्जवल कामों की लिस्ट नहीं होती ...और पढ़े

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यादों की अशर्फियाँ - 7. शिक्षक दिन

7. शिक्षक दिन रिसेस का वक्त था। सभी अपने अपने चहीते मित्र के साथ राउंड बनाकर नाश्ता कर रहे हमारे ग्रुप का नाश्ता खत्म गया था। और अब ध्रुवी की मस्ती और मौज का पिटारा खुल गया था। धुलु और में उसकी बनाई हुई कागज़ की 'लुडो' खेल रहे थे। कुकरी की जगह पर हमारे नाम लिखी हुई चिट्ठी थी। और पासा वह खुद लेकर आई थी। दूसरे मित्र बाते कर रहे थे। कनक टीचर नीम के घने पेड़ की छांव में बैठ कर किसी का लिस्ट बना रहे थे। उसके चारो और इतने स्टूडेंट्स जमा हो गए थे ...और पढ़े

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यादों की अशर्फियाँ - 8. सबसे अदभुत नवरात्रि

8. सबसे अदभूत नवरात्रि गाना और नाचना सबका स्वभाव होता है और अनिवार्य भी। माना कि सबको अपने रुचि गाना पसंद होता है पर गाने के बिना हमारा अस्तित्व ही अधूरा है। गुजरात में तो इसका त्यौहार मनाया जाता है इसीलिए हमारे यहां इस के पर पूरा नौ दिन का त्योंहार मनाया जाता है - नवरात्रि। गली गली इस त्योहार का मनाया जाता है और जहां से हमने सीखा वह स्कूल कैसे बाकी रह सकता है इस लिए हर स्कूल में नौ दिन तो मुमकिन नहीं है किंतु एक दिन पूरा नवरात्रि ही बना दिया जाता है फर्क सिर्फ ...और पढ़े

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यादों की अशर्फियाँ - 9. दिवाली की छुट्टियां

9. दिवाली की छुट्टियां नवरात्रि में खूब मज़ा करने के बाद परीक्षा हमारा इंतजार कर रही थी। मुझे मौखिक के बाद नसरीन टीचर की बहुत याद आई थी। उसकी जगह गौरव सर को संस्कृत विषय को सोंप दिया गया। सभी विषय के सिलेबस खत्म हो चुके थे। सामाजिक विज्ञान के विषय में भी ऐसा ही था। नीरज सर भी अपनी हंसी मजाक और ज्ञान अपने साथ लेकर स्कूल छोड़कर चले गए थे और उनकी जगह हेता टीचर यानी भूरी टीचर जिसकी हाईट लगभग गौरव सर की लंबाई से आधी होंगी। गौरव सर जितना जल्दी स्टाफ रूम से क्लास पहुंच ...और पढ़े

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यादों की अशर्फियाँ - 10. टाईम टेबल की लड़ाई

वेकेशन के बाद 10. टाईम टेबल की लड़ाई दिवाली की छुट्टियों के बाद फुलगुलाबी ठंडी में स्कूल फिर शुरू दिवाली के पहले हमारे लिए टीचर्स नए थे क्योंकि हम सेंकेडरी में आ गए थे पर अब हम उनके साथ घुलमिल गए थे। धीरेन सर की मुताबिक कुछ दिनों तक स्टूडेंट्स कम होते है पर धीरे धीरे शिक्षा की रेलगाड़ी पट्टरी पर चढ़ जायेगी। कुछ दिनों बाद हमारा पीरियड का टाईम टेबल आ गया। बार बार किसका पीरियड होगा वह बुक में देखने की दिक्कत होती थी। इसकी जरूरत सबको पड़ती थी स्टूडेंट्स और टीचर्स दोनो को। इस लिए कोई ...और पढ़े

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