आँच अठारह सौ सत्तावन के संघर्ष की पृष्ठभूमि को उकेरता उपन्यास यह उपन्यास ? इक्कीसवीं सदीं का दूसरा दशक। उदारीकरण के बढ़ते क़दम। भारतीय ही नहीं सम्पूर्ण एशियाई बाज़ारों को आच्छादित करने की पूरी कोशिश। खुदरा बाज़ार बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए खोलने का दबाव। भारत की केन्द्रीय सरकार असमंजस में। अमीरी और गरीबी की बढ़ती खाई। आर्थिक विकास दर का बढ़ाव रुका। विकास के पाश्चात्य माडल पर प्रश्न उठे। गठबन्धन सरकारें अपने को बचाने में ही व्यस्त, कड़े फैसले लेने में असमर्थ। ‘माल’ उच्च और मध्यमवर्ग को अपने कब्जे़ में करते हुए। अलग अलग वर्गों के लिए अलग अलग बाज़ारें।

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आँच - 1- अथ जिज्ञासा !

आँच अठारह सौ सत्तावन के संघर्ष की पृष्ठभूमि को उकेरता उपन्यास यह उपन्यास ? इक्कीसवीं सदीं का दूसरा दशक। के बढ़ते क़दम। भारतीय ही नहीं सम्पूर्ण एशियाई बाज़ारों को आच्छादित करने की पूरी कोशिश। खुदरा बाज़ार बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए खोलने का दबाव। भारत की केन्द्रीय सरकार असमंजस में। अमीरी और गरीबी की बढ़ती खाई। आर्थिक विकास दर का बढ़ाव रुका। विकास के पाश्चात्य माडल पर प्रश्न उठे। गठबन्धन सरकारें अपने को बचाने में ही व्यस्त, कड़े फैसले लेने में असमर्थ। ‘माल’ उच्च और मध्यमवर्ग को अपने कब्जे़ में करते हुए। अलग अलग वर्गों के लिए अलग अलग बाज़ारें। ...और पढ़े

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आँच - 2 - यह कोठा भी नख़्ख़ास है !

अध्याय दोयह कोठा भी नख़्ख़ास है ! तालियों की गड़गड़ाहट, सिक्कों की बौछार के बीच लचकभरी बेधक आवाज़ । झूम उठी जब उसने छेड़ा- मोरा सैयां बुलावे आधी राति, नदिया बैरन भई।थिरकते पाँवों के बीच घुँघअओं की रुनझुन। हर एक की आँखें उसी पर गड़ी हुई। तेरह साल की उम्र। कसकती आम के फाँक सी आँखें। शरीर पर जैसे सुनहला पानी चढ़ा हुआ। सौन्दर्य की प्रतिमा सी। थिरकती तो लगता लास्य की नेत्री लोगों को भाव, लय और ताल सिखा रही है। यह आयशा थी। नदिया बैरन भई... नदिया बैरन भई... नदिया बैरन भई… उतारती हुई। उसी के साथ ...और पढ़े

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आँच - 3 - यहि ठइयाँ टिकुली हेराइ गई गोइयाँ! (भाग-1)

अध्याय तीनयहि ठइयाँ टिकुली हेराइ गई गोइयाँ! आयशा अब महकपरी बन गई। पर उसकी महक परीख़ाने से बाहर नहीं सकती। परीख़ाने में परियाँ हैं, पर उनके पंख कटे हुए। ‘क्या तेरे जीने का मक़सद यही था?’ आयशा ने अपने से पूछा। ‘तेरी हैसियत क्या है? माता-पिता ने क्या नाम रखा था? इसका भी तो पता नहीं। जिसने जन्म दिया उसने किसी दूसरे को दे दिया। उसने नाम रख दिया-राधा। अम्मी के कोठे पर आई तो नाम हो गया आयशा। आयशा से अब महकपरी। साथ की और परियों को देखती हूँ तो मन उदास हो जाता है। परीख़ाने क़ैदख़ाने में ...और पढ़े

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आँच - 3 - यहि ठइयाँ टिकुली हेराइ गई गोइयाँ! (भाग-2)

हिन्दू मुस्लिम दोनों समुदायों में तनाव बढ़ रहा था। नवाब ने हज़रत अब्बास की दरगाह देखते हुए उस स्थान भी जाने का मन बनाया जहाँ हिन्दुओं ने प्रतिरोध में अपनी दुकानें बन्द कर रखी थीं। शरफ़ुद्दौला ग़ुलाम रज़ा खाँ को प्रधान वज़ीर से निर्देश मिला कि बाज़ार को सजाया जाए। पर दूकानें बन्द होने के कारण रज़ा खाँ को बाजार को सजाने में कठिनाइयाँ आईं। दोपहर में जब बादशाह हाथी पर सवार होकर बाजार से गुज़रे, उनकी हीरे की अँगूठी गिर गई। एक महिला को मिली। उसने बादशाह तक अँगूठी पहुँचा दी। बादशाह ख़ुश हुए। उस महिला को दस ...और पढ़े

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आँच - 4 - मुश्किल समय है?(भाग -1)

अध्याय चार मुश्किल समय है? अली नक़ी खाँ को महाउल महाम (वज़ीरे आज़म) बनाकर वाजिद अली शाह चुप नहीं उन्होंने न्याय, प्रशासन, सेना, पुलिस सभी में सुधार करने की कोशिश की। सामान्य जन को न्याय उपलब्ध कराने के लिए चाँदी के छोटे बक्से उनके साथ चलते थे जिसमें कोई भी आदमी अपनी शिकायत डाल सकता था। इन बक्सों की चाभी शाह के पास रहती। हर सुबह दर्बार के समय ये बक्से खोले जाते और शिकायतकर्त्ता को न्याय मिलता। अक़्सर यात्राओं में लोग अपनी शिकायतें शाह तक खुद पहुँचाते। वे धैर्य से सुनते और तुरन्त कार्यवाही करते। न्याय करते समय ...और पढ़े

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आँच - 4- मुश्किल समय है?(भाग -2)

एक ओर अवध के भाग्य का फ़ैसला होना था दूसरी ओर मुसलमानों ने हनुमानगढ़ी के पास की एक ज़मीन नमाज़ पढ़ने पर ज़ोर दिया। औरंगजेब के समय में हनुमानगढ़ी को ध्वस्त कर दिया गया था और उसी के मलबे से बगल में एक मस्जिद का निर्माण करा दिया गया था, किन्तु हिन्दुओं ने उस स्थान को छोड़ा नहीं। जब शुजाउद्दौला बक्सर जाने के लिए उधर से गुज़रे तो उन्होंने हिन्दुओं के लिए मन्दिर बनवा दिया जिस पर बैरागियों ने पूजा अर्चना शुरू कर दिया। औरंगजेब ने जो ढाँचा खड़ा किया था, वह धीरे धीरे गिर गया। बाद में राजा ...और पढ़े

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आँच - 4 - मुश्किल समय है?(भाग -3)

नवाब की इस कार्यवाही से भी अमीर अली पर बहुत प्रभाव नहीं पड़ा। वह सुहाली में था। उसने आसपास गाँवों के मन्दिरों के घंटां और मूर्तियों को तोड़ दिया तथा ब्राह्मणों को गाँव से बाहर भगा दिया। अन्य अनेक जगहों पर भी जेहादी घटनाएँ घटीं। अमीर अली के कारनामों से हिन्दू-मुसलमान दोनों में तनाव बढ़ता जा रहा था। लखनऊ ही नहीं पूरे अवध में हिन्दू-मुस्लिम के बीच अक़्सर वारदातें होने लगीं। लोग अकेले निकलने से घबड़ाने लगे। अनेक धन्धों में हिन्दू मुस्लिम दोनों मिलकर काम करते थे। लोग डर के मारे घर बैठ जाते। पर कब तक ऐसा कर ...और पढ़े

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आँच - 5 - यह बाज़ार है मियाँ !

अध्याय पाँच यह बाज़ार है मियाँ ! सन् 1837 में बहादूर शाह ‘ज़फ़र’ सत्तासीन हुए थे। तीन वर्ष बाद ज़ीनत महल से शादी की। उस समय वे चौंसठ वर्ष के थे और ज़ीनत उन्नीस की। अनेक लोगों ने इस शादी का मज़ाक उड़ाया था। शाह के कई पत्नियाँ और बेटे थे। शादी के वक़्त तक ज़ीनत भी असमंजस में थीं। पर शाही इच्छा की अनदेखी नहीं की जा सकती थी। कहावत है मुई हाथी भी सवा लाख की। भले ही सल्तनत न रही पर अब भी एक लाख महीने की पेंशन। नज़राना, ज़मीन-ज़ायदाद, बाग़ों की आमदनी अलग से। ज़ीनत ...और पढ़े

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आँच - 6 - हैरान हूँ मैं !

अध्याय छह हैरान हूँ मैं !अवध की ज़मीन ज़रखेज़ है। अवध हुकूमत की आय का ज्यादातर हिस्सा भूमि से प्राप्त होता। भूमि से आमदनी चार प्रकार से प्राप्त होती-खालसा, हुजूर तहसील, इज़ारा(ठेका) और अमानी। खालसा रियासतों पर अवध हुकूमत का प्रत्यक्ष अधिकार होता। इसकी वसूली नाज़िम या चकलेदार स्वयं करता। नाज़िम सरकार द्वारा नियुक्त राजस्व अधिकारी होते। चकलेदार निजी नौकर होते जो समझौते की अवधि में राजस्व की वसूली करते। चकलेदार नाज़िम के नीचे होते। हर निज़ामत में तीन-चार चकले होते। चकलों को बाद में परगनों में बदल दिया गया। परगनाधिकारी को आमिल कहा जाने लगा। नाज़िम और चकलेदार ...और पढ़े

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आँच - 7 - ग़ज़ब किया तेरे वादे पे ऐतबार किया !

अध्याय सात ग़ज़ब किया तेरे वादे पे ऐतबार किया ! जनवरी की तेईस तारीख, कलकत्ता में गुलाबी ठंडक। आज बहुत ही खुश दिखाई पड़ रहे हैं। समय से अपने दफ़्तर में आकर बैठ गए। थोडी देर डाक देखते रहे। फिर उठे और सामने के लान में टहलने लगे। लखनऊ के रेजीडेन्ट कर्नल ओट्रम बुलाए गए हैं। वे कलकत्ता पहुँच चुके हैं। डलहौजी के दिमाग़ में अवध घूम रहा है। अपनी यात्राओं में उन्होंने अवध को खूब हरा भरा देखा है। कम्पनी का ख़ज़ाना भर जाएगा अवध की आमदनी से। वे सोचते रहे। इसी बीच ओट्रम आ गए। उन्हें लेकर ...और पढ़े

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आँच - 8 - खुश रहो अहले वतन !

अध्याय आठ खुश रहो अहले वतन ! लखनऊ की हर गली में जाने आलम की ही चर्चा। अँग्रेज बहादुर बर्ताव की भी आलोचना होती लेकिन दबी ज़बान से। अवाम वाजिद अली शाह की नेकनीयती, दरियादिली की कायल थी। तीतर-बटेर बाज़ से लेकर बड़े-बड़े व्यापारी संभ्रान्त भी दुखी थे। ऐसा बादशाह कहाँ मिलेगा? जब भी हिन्दू या मुस्लिम का कोई तबका कुछ गड़बड़ करता जाने आलम दानिशमंदी और हिम्मत से उसका सामना करते। उन्हें लड़ाई झगडे़ से नफ़रत थी। अमन पसन्द करते थे और चाहते थे कि अवाम भी अमन-चैन से रहे। संगीत में रुचि थी। खुद ‘अख़्तर’ उपनाम से ...और पढ़े

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आँच - 9 - घायल पंछी की जुम्बिश !

अध्याय नौ घायल पंछी की जुम्बिश ! नवाब वाजिद अली शाह शायरों, संगीतज्ञों, हुनरमंदों की क़द्र करते थे। वे खाँ ‘ग़ालिब’ को भी पाँच सौ रुपये भिजवाते रहे। उनकी महफ़िल में शायर अपना कलाम पेश करते, इज़्ज़त पाते। दाग़ देहलवी भी मुशायरों में शिरकत कर रहे थे। उनकी कुछ ग़ज़लें जाने आलम को पसन्द थीं। अवध के विलय की ख़बर दिल्ली पहुँची। बादशाह ज़फ़र भी दुखी हुए। उनके सब्र का बाँध टूट गया। अवध ने हमेशा अँग्रेजों का साथ दिया था। रुपये-पैसे से मदद की थी। उनके साथ ऐसा सुलूक? बादशाह की आँखों के आगे धुंधलका छा गया। उनकी ...और पढ़े

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आँच - 10 - माँ के दूध की लाज तो रखो !

अध्याय दस माँ के दूध की लाज तो रखो !सन 1852 में कम्पनी ने एक नए तरह का कारतूस सेना में प्रसारित किया। पहले के कारतूसों को हाथ से तोड़ना पड़ता था पर नए कारतूसों को दाँत से काटना पड़ता था। इन कारतूसों में चर्बी का उपयोग होता था जो प्रायः सुअर और गाय की हुआ करती थी। जब तक भारतीय सैनिकों को इसका पता नहीं चला वे दांत से काटकर कारतूसों का प्रयोग करते रहे। अँग्रेज अधिकारी धीरे धीरे इन कारतूसों का प्रचलन बढ़ाते रहे।बैरकपुर के पास कारतूस बनाने का एक कारखाना खोला गया। वहाँ छावनी थी ही। ...और पढ़े

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आँच - 11 - चिनगी से आग लहकी !

अध्याय ग्यारह चिनगी से आग लहकी ! लखनऊ कम सरगर्म नहीं था। अभी मेरठ और दिल्ली की ख़बरें यहाँ पहुँची थीं। पर दो और तीन की मूसाबाग की घटना ने सभी में दहशत भर दी थी। सात नम्बर की पलटन ने अपने बडे़ भाइयों मड़ियाँव की अड़तालीसवीं पलटन के नाम पत्र लिखा जिसमें स्वधर्म रक्षा के लिए अरदास की थी। यह पत्र जिस सिपाही को मिला उसने अपने साथी के साथ जाकर सूबेदार को दिखाया। तीनों वह पत्र लेकर कमिश्नर हेनरी लारेन्स के बँगले पर पहुँचे, प्रहरी से कहा,‘बड़े साहब से मिलना है।’‘काम ?’‘काम बहुत ज़रूरी है। साहब से ...और पढ़े

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आँच - 12 - हिन्दुस्तान हमारा है !

अध्याय बारह हिन्दुस्तान हमारा है ! किसी भी कीमत पर अँग्रेज दिल्ली पर कब्ज़ा करना चाहते थे। लार्ड कैनिंग कमांडर इन चीफ़ ऐनसन को आदेश दिया कि दिल्ली पर आक्रमण करो। वह शिमला से चला। रास्ते में उसे जनता का सहयोग नहीं मिला। पटियाला, नाभा और जींद की रियासतों ने अँग्रेजों का साथ दिया। ऐनसन पच्चीस मई को अम्बाला से दिल्ली की ओर चला। 27 मई को करनाल में हैज़े से उसकी मौत हो गई। सर हेनरी बर्नार्ड ने उसका स्थान लिया। बर्नार्ड की सेना आगे बढ़ी और मेरठ की गोरी सेना जो दस मई को कुछ नहीं कर ...और पढ़े

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आँच - 13 - हिन्दुस्तान की लाज रखो !

अध्याय तेरह हिन्दुस्तान की लाज रखो ! अवध में विद्रोह की आग गाँव-गाँव फैल चुकी थी पर सब की दिल्ली पर थीं। दिल्ली में बख़्त खाँ के नेतृत्व में विद्रोही सेनाएँ भयंकर युद्ध कर रहीं थीं। बख़्त खाँ सामान्य परिवार से था, अपनी कर्मठता और योग्यता से उसने दिल्ली की विद्रोही सेना का नेतृत्व अर्जित किया था पर उसका विरोध भी कम नहीं था। शाही परिवार से सम्बद्ध लोग उसकी श्रेष्ठता स्वीकार नहीं कर पाते। कभी-कभी उसके निर्देशों की अवहेलना कर जाते। बादशाह का समधी इलाही बख़्श, बख़्त खाँ से बहुत चिढ़ा हुआ था। अँग्रेजों ने उसे पटा लिया। ...और पढ़े

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आँच - 14 - यह है वतन हमारा ! (भाग-1)

अध्याय चौदह यह है वतन हमारा ! इस साल भयंकर गर्मी थी। लू चली। गाँव-हर सभी जगह हैज़ा फैल प्याज और पुदीने के रस की माँग बढ़ गई। हकीम-वैद्य दौड़ते रहे पर गाँव के गाँव खाली होते रहे। एक लाश को लोग जला या दफ़्न कर आते दूसरी तैयार। सभी परेशान थे। वर्षा हुई ताल-तलैया भर गए पर हैज़ा का उफ़ान कम नहीं हुआ। हैज़ा के प्रकोप से हम्ज़ा के अब्बू शौक़त अली हम्ज़ा भी चल बसे। वही कमाने वाले थे घर में कुहराम मच गया। नसरीन और उसकी अम्मी को तो जैसे होश ही नहीं रहा। जनाज़ा उठा। ...और पढ़े

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आँच - 14 - यह है वतन हमारा !(भाग-2)

कैम्पबेल की योजना के अनुसार कम्पनी सेना ने लखनऊ को घेर लिया। आज कम्पनी की सेना जैसे ही कैसर की ओर बढ़ी, विद्रोही सैनिकों ने डटकर सामना करने की कोशिश की। तोपों और बन्दूकों के सामने विद्रोहियों की फुर्ती भी काम नहीं आ रही थी। हम्ज़ा, ईमान और बद्री अपने साथियों सहित वहीं पहुँच गए थे। सभी के हाथों में तलवारें , कटारें थीं। सभी विद्रोही सेना को उत्साहित करते रहे। लखनऊ का जन समूह भी सामने आ गया। बन्दूकों से तो वे निपट लेते थे पर तोपों का सामना करना मुश्किल था। अनेक महिला सैनिक भी इधर-उधर दौड़ ...और पढ़े

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आँच - 15 - तमन्ना थी आज़ाद वतन हो जाए !

अध्याय पन्द्रह तमन्ना थी आज़ाद वतन हो जाए ! लखनऊ से निकल कर बेगम हज़रत महल, मम्मू खाँ, बिर्जीस तथा विश्वास पात्र सैनिकों के साथ आकर बौंड़ी में मुकीम हुईं। राजा हरदत्त सिंह ने उनका स्वागत किया और सुरक्षा की व्यवस्था की। राजा बौंड़ी की सेना में ऊँट सवार और सत्रह तोपें भी थीं जिनमें तेरह किले के बाहर लगी थीं। बेगम ने यहीं से विद्रोहियों का नेतृत्व किया। उन्होंने अपने विश्वस्त राजाओं को बौंड़ी बुलाकर परामर्श किया। राजा हरदत्त ने चहलारी नरेश बलभद्र की प्रशंसा कर विद्रोही सेना की कमान उसे सौंपने की बात की। बेगम प्रभावित हुईं। ...और पढ़े

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आँच - 16 - दो गज़ ज़मीं न मिल सकी !(भाग-1)

अध्याय सोलह दो गज़ ज़मीं न मिल सकी !लखनऊ में काबिज़ हो जाने के बाद अँग्रेजों ने पूरे अवध अभियान चला कर विद्रोह को समाप्त करने की कोशिश की। नाना साहब पर एक लाख का इनाम घोषित था। तात्या अपने कौशल से जगह जगह अब भी विद्रोह की लौ जलाए हुए थे। कौन सा गुण उनमें था जिससे वे अनेक सेनाओं को अपने पक्ष में करते चले गए। नाना साहब भी एक जगह नहीं रह सके पर जहाँ भी रहे, अलख जगाते ही रहे। बैसवाडे़ में राणा वेणीमाधव, रामबख्श सभी अँग्रेजों से लड़ते ही रहे। बौंड़ी में रहते हुए ...और पढ़े

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आँच - 16 - दो गज़ ज़मीं न मिल सकी !(भाग-2)

अध्याय सोलह दो गज़ ज़मीं न मिल सकी !बेगम हज़रत महल, नाना साहब, मम्मू खाँ, बालाराव, राणा वेणीमाधव सिंह, देवीबख़्श सिंह बैठे नेपाल के राजा जंग बहादुर द्वारा पेश की जा रही दिक्क़तों पर चर्चा कर रहे थे। राण की फ़ौजें अँग्रेजों के साथ थीं। पर यहाँ शिवालिक में विद्रोहियों को भी राणा तंग करेंगे, ऐसी उम्मीद नहीं थी।नाना ने बात शुरू की ‘राणा की सेनाएँ हमारे विपक्ष में थीं। उन्होंने अवध की सभी लड़ाइयों में अँग्रेजों का साथ दिया। राणा हम लोगों को हिमालय से भी निकालना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि हम अँग्रेजों के सामने आत्म ...और पढ़े

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