जीवन बड़ा कठिन है एक एक सांस के लिए संघर्ष कभी जंगली जानवरों का भय कभी मौसम कि मार कभी कुदरत का कहर कभी भूख भय पल प्रहर हांफती कांपती जिंदगी माई तू तो कहती है कि अपने कबीले के देवता बड़े दयावान है जीवन एव वन की खुशहाली और हिफाज़त के लिए आशीर्वाद देते है यह कैसे भगवान है कैसा इनका आशीर्वाद है ? भक्तों पर की भक्त जिंदगी के लिए ही लड़ता है वह भी जानवरो कि तरह कुदरत ने हर जानवर को जीने के लिए कोई न कोई हुनर दे रखा है जिससे वह अपनी हिफाज़त करता है हम इंसानों के लिए कहने के लिए उसने सब कुछ दिया है फिर भी हम जनवरों से बदतर है । बेटी सौभाग्य कि बातों को लगभग प्रतिदिन माई तीखा और बापू जुझारू सुनते और उसे समझाने की कोशिश करते बिटिया हम लोग की जिंदगी वन में शुरू होती है वन में ही समाप्त हो जाती है हम लोगो को वन देवता और वन देवी ने सिर्फ संघर्ष के लिए ही सक्षम बनाया है जिससे कि हम लोग अपनी धड़कन साँसों को जारी रख सके लेकिन बिटिया सौभाग्य कभी भी माई बापू की बातों से सहमत नही होती वह सदैव यही कहती बापू वन जीवन से भी कभी बाहर निकल कर देखो शायद कोई नई किरण जीवन को मिल जाय ।
एहिवात - भाग 1
जीवन बड़ा कठिन है एक एक सांस के लिए संघर्ष कभी जंगली जानवरों का भय कभी मौसम कि मार कुदरत का कहर कभी भूख भय पल प्रहर हांफती कांपती जिंदगी माई तू तो कहती है कि अपने कबीले के देवता बड़े दयावान है जीवन एव वन की खुशहाली और हिफाज़त के लिए आशीर्वाद देते है यह कैसे भगवान है कैसा इनका आशीर्वाद है ? भक्तों पर की भक्त जिंदगी के लिए ही लड़ता है वह भी जानवरो कि तरह कुदरत ने हर जानवर को जीने के लिए कोई न कोई हुनर दे रखा है जिससे वह अपनी हिफाज़त करता है हम इंसानों के लिए कहने के लिए उसने सब कुछ दिया है फिर भी हम जनवरों से बदतर है । ...और पढ़े
एहिवात - भाग 2
उधर पूरी रात तीखा आदिवासी कुनबों के पास जाकर बिटिया सौभाग्य एव पति जुझारू का पता लगाने कि गुहार रही कुनबे के आदिवासी नौवजावन लुकार लेकर तैयार ही हुए की बारिश शुरू हो गयी उधर सौभाग्य ने कहा बापू लगत है तुमहू कही गिर पड़े रहो तुम्हरे कनपटी के ऊपर घाव के निशान बा जुझारू ने कहा हा बिटिया तुम अचेत पड़ी रहूं तोहे होश में लावे खातिर सोता से पानी लावे जात रहिन पता नही कैसे ठोकर लग गवा गदका पड़ गवा कि हम गिर गईनी पता नाही चलल जब बरसात भईल तब हमें होश आइल और हम ...और पढ़े
एहिवात - भाग 3
आदिवासी नौजवानों एव जंगा के अथक प्रयास से विल्सन स्वस्थ होने लगा वह आदिवासी भाषा नही समझ पा रहा टूटी फूटी हिंदी बोल पा रहा था लेकिन वह भोले भाले आदिवासियों कि भावनाओं प्यार सेवा को अंतर्मन कि गहराई से समझ रहा था ।दुख था तो अपनी संवेदनाओ कि अभिव्यक्ति न हो पाने का उसे पता था कि हिंदुस्तान में हाथ जोड़ कर किसी को सम्मान दिया जाता है और पैर छूकर बुजुर्ग बड़ो का और गले लगा कर बराबरी वालो का वह यही करता आदि वासी समाज का भोजन था बड़े चाव से खाता तीखा जुझारू सौभाग्य बड़े ...और पढ़े
एहिवात - भाग 4
विल्सन के लौटने के बाद सबसे अधिक सौभाग्य पर प्रभाव पड़ा उसके व्यवहार में बहुत परिवर्तन हो चुका था पहले कि अपेक्षा गम्भीर रहने लगी और माई तीखा बापू जुझारू को बहुत नही परेशान करती ।अपनी नित्य जिम्मेदारियों को बिना कहे पूरा करती लकड़ी के लिए वन प्रदेशो में जाने के लिए पहले माई तीख कितनी बार निहोरा करती तब वह निकलती विल्सन के जाने के बाद वह अपने आप चली जाती उसकी नादानियां शरारते चुलबुलापन जाने कहा गायब हो चुके थे। वह कभी कभी माई तीखा से अवश्य प्रश्न पूछती माई का लोग ऐसे ही जाए खातिर आवत ...और पढ़े
एहिवात - भाग 5
माई तीखा ने बेटी सौभाग्य के मन में करुणा भाव को महसूस कर बहुत गर्व से बोली शाबाश बेटी के दुःख पीढ़ा कि खातिर कूछो कर सको तो जरूर करो ऐसे अपने बन देवता प्रसन्न होहिए और बरक्कत होई ।सौभाग्य माई तीखा कि बाते सुनकर बोली माई तोरे सिखावल है जेके कारण शेर के बच्चा के ले आए ई जानत है माई कि ई जब बलवान होई तब कबों घात कर देई ई ठहरल जंगल के राजा लेकिन ई समय एकर हालत बहुत खराब बा एके जीआवे के बा सौभाग्य ने शेर के बच्चे को जो सिर्फ सांस ही ...और पढ़े
एहिवात - भाग 6
कोल समुदाय मूलरूप से आदिवासी जनजाति है रहन सहन तीज त्योहार अमूमन भारत के अन्य समुदायों कि तरह ही है रहन सहन भी कुछ विशिष्ट पहचान के साथ मिलता जुलता ही होता है। कोल जन जाती को कहीं आदिवासी जनजाती तो कही अनुसूचित जाती का दर्जा प्राप्त है तीज त्योहारो में होली, दिवाली, संक्रांति ,आखा तीज, दिवासा रक्षाबन्धन, नागपंचमी आदि है कोल जनजाती का मुख्य कार्य कृषि एव वन उपज ही है । कोल जन जाती के लोग अपनी बस्तियां बना कर रहते है मकान में कोई खिड़की नही होती मिट्टी बांस फुश के संयोग से घर ...और पढ़े
एहिवात - भाग 7
और चिन्मय कि तरफ मुखातिब होकर बोला बाबू बुरा जिन मानें बिटिया नादान है हा सुगा बेचे खातिर लाए । चिन्मय बोला एक सुगा क दाम केतना पैसा लेब जूझारू बोला दस रुपया चिन्मय ने कहा दस रुपये त बहुत अधिक है हम तीन चार रुपया अधिक से अधिक दे सकित है। चिन्मय के पास मात्र चार रुपये ही था वह इसलिये कि कही सायकिल पंचर हो गई तो बनावे खातिर जीतना चिन्मय के पाकेट में था उतना ही दाम बोला सुगा का इतना सुनत सौभाग्य के पारा चौथे आसमान पर बोली का समझे ह सुगा फ्री ...और पढ़े
एहिवात - भाग 8
चिन्मय अपने गांव बल्लीपुर लौट गया पिता शोभराज तिवारी ने बेटे चिन्मय से पूछा बेटा गांव के जो लड़के साथ पढ़ते है बहुत पहले स्कूल से घर लौट आए तुम्हे लौटने में क्यो विलंब हुआ? शोभराज तिवारी ने बहुत साधारण प्रश्न किया जो किसी भी पिता द्वारा पूछा जाना स्वभाविक है चिन्मय बोला पिता जी स्कूल के प्रिंसिपल साहब की माता जी का देहावसान होने के कारण स्कूल बारह बजे बंद हो गया और कल भी बंद रहेगा स्कूल से निकलने के बाद बाज़ार के घूमने लगा बाज़ार में सुगा के सुंदर सुंदर बच्चे बिक रहे थे मुझे ...और पढ़े
एहिवात - भाग 9
जुझारु के बहुत समझाने के बाद तीखा ने सौभाग्य को बाज़ार जाने कि अनुमति दी । जुझारू बेटी सौभाग्य साथ नियमित बाजारों कि तरह ही बाज़ार पहुंचे चिन्मय को तो बेकरारी से बाजार के दिन का इंतज़ार था ही । वह भी स्कूल से छुट्टी होने से पहले अपने क्लास टीचर से छुट्टी लेकर स्कूल से निकला जुझारू सड़क किनारे बेटी सौभाग्य के साथ अपने दुकान पर बैठे ग्राहकों का इंतज़ार कर रहे थे चिन्मय वहाँ पहुंचा और बोला चाचा पहचाने पिछले बाजार के सुगा ले गए रहे चार रुपया दिए रहा छः रुपया बाकी रहा देबे आए है ...और पढ़े
एहिवात - भाग 10
चिन्मय ने हाई स्कूल कि परीक्षा में पूरे राज्य में प्रथम स्थान अर्जित किया । बल्लीपुर गांव समेत जवार में चिन्मय कि सफलता पर खुशी की खास लहर थी प्रत्येक व्यक्ति चिन्मय कि सफलता कि चर्चा करता फुले नही समाता कहता कि पंडित शोभ राज जी के का भाग्य बा एके लड़िका उहो दुनियां के नाज़ बा एक तरह से जुमला आम हो चुका था। बेटे कि सफलता पर चिन्मय कि माँ स्वाति ने गांव की देवी जी को कड़ाही चढ़ाया (कढ़ाही चढ़ाना देवी पूजा कि विशेष पध्दति है जिसके अंतर्गत देवी जी को वस्त्र मिष्ठान और ...और पढ़े
एहिवात - भाग 11
सौभाग्य पिता और चिन्मय कि वार्ता के बीच मे बोली माफ करना बापू महल अटारी के भोज में हम और माई कैसे जाब ना त इनके लोगन जैसे कपड़ा रही ना रुतबा जुझारू बेटी सौभाग्य से बोले बात त बेटी पते क कहत हऊ और चिन्मय कि तरफ मुखतिब होते बोला बाबू हमार हैसियत नाही कि तोहरे समाज मे जाई सकी हम लोग ठहरे बन जंगल मे रहे वाले लोग तोहन लोगन कि बराबरी कैसे करी सकित है ना हमरे पास ढंग के कपड़ा बा ना पैर में पहिने खातिर जूता चप्पल तोहरे भोज में हम पचन भंगी जईसन ...और पढ़े
एहिवात - भाग 12
जब पंडित शोभराज घर पहुंचे उस वक्त चिन्मय घर पर नही था उन्होंने पत्नी स्वाति से चिन्मय द्वारा बाज़ार किसी आदिवासी परिवार के लिए कपड़े आदि खरीदने की बात बताई और पूछा की उनको बेटे कि इस कार्य का पता है माँ होने के नाते स्वाति ने पति शोभराज से बताया चिन्मय उनसे सिर्फ किसी कोल आदिवासी परिवार को भोज में आमंत्रित करने के लिए आपकी अनुमति चाह रहा था जिसे मैंने आपको बताया ही था । पति पत्नी कि बार्ता चल ही रही थी कि चिन्मय आ धमका पंडित शोभराज ने बेटे से बड़े सहज भाव से ...और पढ़े
एहिवात - भाग 13
उत्सव में सम्मिलित होने आए सभी रिश्तेदार वापस लौट चुके थे परिवार अपने नियमित दिनचर्या पर लौट आया। शोभराज तिवारी ने पत्नी स्वाति को बुलाया फिर चिन्मय को और चिन्मय से पूछा- तुमने आदिवासी जुझारू औऱ तीखा का चरण स्पर्श क्यो किया? सभी नातेदार रिश्तेदार गांव जवार वालो के सामने पिता द्वारा ऐसा प्रश्न सुनते ही चिन्मय भौचक्का हो गया वह थर थर कांपने लगा क्योकि पिता ने कभी भी चिन्मय से कोई सवाल इतनी कठोरता से नही किया था । चिन्मय ने स्वंय को संयमित करते बोला पिता जी बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना तो ...और पढ़े
एहिवात - भाग 14
चिन्मय आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का होनहार छात्र तो था ही विद्यालय का गर्व था । विद्यालय के प्राचार्य वदन चतुर्भुज कठोर अनुशासन एव नियम के सख्त व्यक्ति थे दस बजे विद्यालय का मुख्य द्वार बंद कर दिया जाता था किसी को भी एक मिनट बिलंब से आने की अनुमति नही थी फिर चाहे वह छात्र हो या अध्यापक फिर चार बजे शाम को ही खुलता इस दौरान कोई छात्र या अध्यापक विद्यालय कि बाउंड्री पार नही कर सकता था । आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रवेश मिलना ही बहुत बड़ी बात थी चिन्मय को अध्ययन के लिए ...और पढ़े
एहिवात - भाग 15
जुझारू सौभाग्य के विवाह के लिए उचित वर के लिए सोच विचार करने लगे पत्नी तीखा से परामर्श लेकर निकाल कर सौभाग्य के लिए वर कि तलाश करते लेकिन उन्हें अपनी बिटिया सौभाग्य के अनुरूप वर मिलता ही नही थक हार घर लौट आते यही क्रम चलता रहा । एक दिन तीखा से बताकर जुझारू सौभाग्य के लिए उचित वर कि तलाश हेतु निकल ही रहे थे ज्यो घर से बाहर निकले देखा सौभाग्य शेरू के पीठ पर सवार थी और शेरू उसे बड़े प्यार से चहल कदमी करते घुमा रहा था जुझारू शेरू और बिटिया सौभाग्य को ...और पढ़े
एहिवात - भाग 16
जुझारू को संतोष था की बेटी अच्छे घर जाएगी शेरू घर की खुशियों में शामिल था जुझारू शेरू के पर हाथ फेरते बोले इहे हमे राह दिखाएस । सौभाग्य के रिश्ता खातीर अनबोलता शेरू घरे क सदस्य लड़िका जईसन बा शेरू जैसे अपनी तारीफ को समझ रहा हो अपनी दुम हिलाते हुए जुझारू के भवो कि जैसे स्वीकृति दे रहा था पति पत्नी और शेरू के बीच अपनी चिर परिचित अंदाज़ में खिलखिलाती सौभाग्य कही से आई और बाबू जुझारू से शिकायती लहजे में बोली कहां रहिगे रहे पूरी रात माई तोहार राह देखत रही ? जुझारू बोले ...और पढ़े
एहिवात - भाग 17
चिन्मय एवम नाटक में भाग लेने वाले सभी छात्रों ने अपने शिक्षक के आदेश को शिरोधार्य करते कोल आदिवासी के रहन सहन एव संस्कृति को जानने सीखने की गम्भीरता से कोशिश करना शुरू कर दिया साथ ही साथ इस बात का विशेष ख्याल रखते की उनके किसी आचरण से कोल समुदाय का कोई सदस्य आहत ना हो । सुबह विद्यालय के छात्र कोल बस्तीयों में पहुंच जाते और शाम होते ही लौट आते पंद्रह दिन का सीमित समय इसी दौरान बोली भाषा खान पान आदि के विषय मे जानकारी प्राप्त करना एव उंसे आचरण में उतारना मुश्किल कार्य था ...और पढ़े
एहिवात - भाग 18
रमणीक दुबे ने कमेटी के अन्य सदस्यों समर्थ गुप्ता,सुकान्त श्रीवास्तव, जोगिंदर सिंह को चिन्मय से हुई वार्ता एव नाटक नारी पात्र के चयन के संदर्भ में बताया और प्राचार्य हृदयशंकर सिंह जी को पूरी जानकारी देने के लिए सबको साथ चलने के लिए कहा कमेटी के सारे सदस्य रमणीक दुबे के साथ हृदयशंकर सिंह के पास पहुंचे । नारी पात्र के रूप में सौभाग्य के चयन कि जानकारी दी हृदयशंकर सिंह चौक गए और कमेटी के सदस्यों पर झिझकते हुये बोले आप लोगो ने यह जानते हुए कि सौभाग्य केवल प्राइमरी शिक्षा तक वह भी बिना पाठशाला के ...और पढ़े
एहिवात - भाग 19
प्राचार्य का दूसरा निर्देश अगले दिन नाटक का विद्यलय में रिहर्सल के लिये था जिसके लिये सौभाग्य को लाने जिम्मेदारी चिन्मय को देते हुए समय से रिहर्सल सम्पन्न कराने कि जिम्मेदारी जोगिन्दर सिंह कि थी। दूसरे दिन जोगिंदर सिंह ने नाटक के पूर्वाभ्यास सत्र का आयोजन किया को बेहद सफल रहा सबने नारी पात्र के रूप में सौभाग्य को सराहा और उसके चयन को सही ठहराया। अस्मत नामक आदिवासी संस्कृति आधारित नाटक का मंचन शुरू हुआ सारा विद्यालय बड़े धैर्य शांति से नाटक का रिहर्सल देखने के लिए एकत्र था चिन्मय सौभाग्य आदि ने अपने अपने पात्रों के ...और पढ़े
एहिवात - भाग 20
सौभाग्य को चिन्मय के प्रति भाव कि अनुभूति में प्यार का समन्वय हो चुका था जब भी चिन्मय को उसके मन मे भविष्य के लिए अनेको भवनाओं के ज्वार उठने लगते उसे लगता कि चिन्मय ही उसके अंतिम सांस का जीवन साथी है जिसे भगवान ने स्वंय सुगा के बहाने मिलाया है लेकिन उसे मालूम था कि उसका लगन राखु से तय हो चुका है और चिन्मय का उसके जीवन मे आना सामाजिक तौर पर सम्भव है । नही फिर भी सौभाग्य को विश्वास था कि शायद कोई चमत्कार हो जाय और चिन्मय उसके जीवन का खेवनहार बन ...और पढ़े
एहिवात - भाग 21
जुझारू ने पत्नी तीखा से कहा कि अब सौभाग्य के बियाहे में देर कईले के जरूरत नाही बा राखु वियाहे खातिर एक से बढ़कर एक रिश्ता आवत रहे ऊ त राखु वियाहे खातिर राजी होते नाही रहेंन पाता नाही सौभाग्य के भागी भगवान के कृपा राखु सौभाग्य से वियाहे खातिर राजी होई गइलन। जब भगवान एतना मेहरबान है त हमहू के उनकी कृपा के बेजा ना करके चाही अब जेतना जल्दी होई सके ओतना जल्दी सौभाग्य के वियाहे के दिन बार तय करीके वियाह कर देबे के चाही तीखा बोली ठीके कहत हव अब देर जिन कर जा ...और पढ़े
एहिवात - भाग 22
जुझारू ने गांव के सभी लोंगो को अपने घर बुलाया और बिटिया सौभाग्य के लगन कि तिथि से अवगत । गांव के सभी लोंगों ने आश्वासन दिया सौभाग्य के लगन के दिन गांव में कोई भी अपने घर कोई आयोजन नही करेगा और सभी अपनी शक्ति के अनुसार सौभाग्य के लगन में जो भी बन पड़ेगा अपना सहयोग करेगा । जुझारू ने पुरुषों का तीखा ने गांव के महिलाओं का आभार व्यक्त किया और सहयोग आमंत्रण करते सबके सम्मिलित होने के लिए विनम्र आग्रह किया । सौभाग्य के लगन में अभी चार माह का समय बाकी ...और पढ़े
एहिवात - भाग 23
कहते है समय स्वंय में ईश्वरीय स्वरूप है ईश्वर कि तरह समय काल वक्त भी अदृश्य है ना जलता ना मरता है ना समाप्त होता है समय आदि अनंत है जैसा कि ईश्वर है ।समस्याएं भी देता है समय और निराकरण भी यही सत्य जुझारू और तीखा के परिवार का था सौभाग्य के विवाह हेतु प्रथम शुभ आयोजन वर का वरण(गोड़ धोइया ) कि निर्धारित तिथि 9 मार्च भी आ गयी जुझारू नेवाड़ी और मंझारी के कोल परिवारों के साथ पुत्री सौभाग्य के लिए राखु के वरण हेतु निकले अपनी शक्ति के अनुसार जो दे सकने में समर्थ थे ...और पढ़े
एहिवात - भाग 24
विल्सन आस्ट्रेलिया में अपने थीसिस गाइड थॉमस रीड से सौभाग्य के विषय मे बताया कि सौभाग्य में दृढ़ इच्छा साहस अकल्पनीय उपलब्धियों को हासिल करने कि क्षमताओं को भारत प्रवास के दौरान सौभाग्य के परिवार में साथ रहने के दौरान देखी परखी थी ।थॉमस रीड विल्सन कि बातों को ध्यान से सुना विल्सन ने थॉमस रीड के समक्ष प्रस्ताव रखा की क्यो न सौभाग्य को ऑस्ट्रेलिया में बुलाकर शिक्षित किया जाए थॉमस रीड बोले मिस्टर विल्सन तुम कुछ ज्यादा भाऊक हो रहे हो तुम्हारे साथ जो घटना घटी वह एक अनियोजित दुर्घटना एव सौभाग्य से तुम्हारा मिलना एक संयोग ...और पढ़े
एहिवात - भाग 25
सौभाग्य ने कहा माई हम कुछो एसन नाही करब जैसे हमरे माइ बाबू के इज़्ज़त जाए और उन्हें मुंह के पड़े कहती खिलखिलाती अपने मोहक अंदाज़ में झोपड़ी से बाहर निकली उसके पीछे पीछे शेरू जो सुबहे से उसके साथ मुंह बनाये बैठा था ।सौभाग्य के बाहर आते ही चिन्मय ने उसे रंग गुलाल से सराबोर कर दिया और फिर उसने शेरू के माथे अबीर का तिलक लगायाचिन्मय और सौभाग्य ने आपस मे जमकर होली खेली और शेरू जैसे दोनों कि होली खेलना देखकर ही खुश हो रहा हो अपने अंदाज में नाचता और कूदता घण्टो खुशनुमा माहौल सिर्फ ...और पढ़े
एहिवात - भाग 26
पूरे गांव के लोग कुछ दूरी पर खड़े सारा नजारा देख रहे थे क्योंकि यदि शेरू बिगड़े मिज़ाज़ में हो भी तो बचा जा सके।तीखा जुझारू भी भीड़ का ही हिस्सा किस्सा बनकर सारा नज़ारा देख रहे थे लेकिन जब शेरू शांत होकर सौभाग्य के पैर के पास बैठा तब जुझारू से गुस्से में तीखा बोली जब सौभाग्यवा मरी जाय तब जाब जानत ह कि शेरू सौभाग्यवा से केतना घुलल मिलल ह ऊ कौनो ऐसन बात जरूर जाने ह जेसे सौभग्यवा के लेना देना ह एहि लिए बिगड़ा ह चल हमन के कुछ नाही करी शेरू आखिर सौभग्यवा के ...और पढ़े
एहिवात - भाग 27
इंस्पेक्टर जागीर सिंह जोगट ने जगबीर सिंह से कहा ठीक है आपका लड़का मिल गया ईश्वर ने चाहा तो स्वस्थ हो जाएगा अच्छा अब मुझे चलने की इजाज़त दिजिए सम्भव है कोई और माँ बाप अपने बच्चे के लिए परेशान हो।जगबीर सिंह ने इंस्पेक्टर जागीर सिंह जोगट के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किया वार्ड में लौटने पर देखा कि पत्नी सुमंगला ने सिस्टर मांडवी कि नाक में दम कर रखा है अपने सवालों के बौछार से सिस्टर मांडवी ने ज्यो ही जगबीर सिंह को देखा सुमंगला को बाहर ले जाने का इशारा किया जगबीर सिंह ने सिस्टर मांडवी से घायल ...और पढ़े
एहिवात - भाग 28
बुझारत मन ही मन डॉ सौगात शर्मा का सामना करने एव उन्हें सौभाग्य कि चिकित्सा के लिए चलने को करने हेतु सभी सम्भावनाओ पर आत्म मंथन करते हुए डॉ सौगात शर्मा के अस्पताल पहुंचा ईश्वर का ही चमत्कार था कि बिलंब होने के बाद भी डा सौगात शर्मा ने कुछ नही कहा।बुझारत मन ही मन निश्चय कर चुका था कि चाहे डॉ सौगात शर्मा उंसे नौकरी से ही निकाल दे फिर भी वह उन्हें सौभाग्य कि चिकित्सा के लिए मनाने के लिए हर सम्भव प्रायास करेगा अस्पताल पहुचने के बाद नियमित औपचारिकताओ के बाद बुझारत् ने डॉ सौगात शर्मा ...और पढ़े