आज के अधिकांश लोग किसी न किसी संत या धर्म संस्थाओं से जुड़े हैं। यहाँ तक कि बहुत लोगों ने संतों से दीक्षा भी ले रखी है। परंतु देखने में आया है कि भजन करनेवालों की संख्या बहुत कम है। गुरु बनाने वाले तो बहुत मिल जायेंगे लेकिन नाम जप करनेवाले विरले ही मिलते हैं। नाम निष्ठा कहीं-कहीं देखने को मिलती है। नाम जप करनेवाले भी इतना जप नहीं करते जितना कर सकते हैं। लोग सत्संग प्रवचन भी खूब सुनते हैं, बड़े बड़े धार्मिक आयोजन भी करते हैं। लाखों रुपये खर्च करके संतों के प्रवचन व कथा करवाने वाले लोगों को भी देखा.. बहुत पास से देखा। अधिकांश लोग नाम जप साधना से शून्य ही मिले। कहाँ तक बतायें संतों के पास रहनेवाले भी अधिकतर साधना शून्य ही मिले। कई तो संत भेष में आकर भी नाम जप साधना में नहीं लग पाये। क्या कारण है कि इतनी सरल साधना होने पर भी क्यों इससे वंचित हैं? विशेषकर कलियुग में तो भवसागर पार जाने के लिये हरिनाम ही आधार है। ये पंक्ति किसने नहीं सुनी 'कलियुग केवल नाम आधारा'।
नाम जप साधना - भाग 1
आज के अधिकांश लोग किसी न किसी संत या धर्म संस्थाओं से जुड़े हैं। यहाँ तक कि बहुत लोगों संतों से दीक्षा भी ले रखी है। परंतु देखने में आया है कि भजन करनेवालों की संख्या बहुत कम है। गुरु बनाने वाले तो बहुत मिल जायेंगे लेकिन नाम जप करनेवाले विरले ही मिलते हैं। नाम निष्ठा कहीं-कहीं देखने को मिलती है। नाम जप करनेवाले भी इतना जप नहीं करते जितना कर सकते हैं। लोग सत्संग प्रवचन भी खूब सुनते हैं, बड़े बड़े धार्मिक आयोजन भी करते हैं। लाखों रुपये खर्च करके संतों के प्रवचन व कथा करवाने वाले लोगों ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 2
कलियुग में केवल नाम जप से कल्याणजीव के कल्याण के लिये शास्त्रों व संत महापुरुषों ने अनेक साधन बताये सभी साधन ठीक हैं। किसी भी साधन का आश्रय लेकर जीव कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है। कहा भी है—नरव से सिख तक रोये जेते। विधिना के मारग हैं तेते ॥ नाखून से लेकर शिखा पर्यन्त जितने मानव के शरीर में रोयें हैं, भगवान् को पाने के उतने ही मार्ग हैं। कहने का भाव यही है कि प्रभु प्राप्ति के अनेक मार्ग हैं। हर मार्ग पर चलने वाले संत भक्त हुए हैं और सभी को भगवत्प्राप्ति हुई है। ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 3
नाम जप कीर्तन से पापों का नाशगोविन्देति तथा प्रोक्तं भक्त्या वा भक्ति वर्जितैः । दहते सर्वपापानि युगान्ताग्निरिवोत्थितः।।मनुष्य भक्ति भाव या भक्ति रहित होकर यदि गोविन्द नाम का उच्चारण कर ले तो नाम सम्पूर्ण पापों को उसी प्रकार दग्ध कर देता है। जैसे युगान्तकाल में प्रज्ज्वलित हुई प्रलय अग्नि सारे जगत् को जला डालती है। अनिच्छयापि दहित स्पृष्टो हुतवहो यथा । तथा दहति गोविन्दनाम व्याजादपरितम् ।।जैसे अनिच्छा से भी स्पर्श कर लेने पर अग्नि शरीर को जला देती है उसी प्रकार किसी बहाने से लिया गया हरि नाम पाप को जला देता है ‘वृहदपुराण' में तो यहाँ तक लिखा है ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 4
कौन सा नाम जपेंयह जीवात्मा अनादि काल से इस अनादि माया में उस अनादि परमात्मा के बिना चौरासी लाख में जन्म लेती हुई भटक रही है। इस माया में इस जीव को अनादि काल से लेकर अब तक स्थायी रूप से कोई ठिकाना नहीं मिला। आज तक इसको जो भी कुछ मिला स्थायी रूप से नहीं मिला। यह जीवात्मा स्वयं में अविनाशी तत्त्व है और इसको मिलने वाली प्रत्येक वस्तु विनाशी होती है। इसलिये इसको इस माया में कुछ भी प्राप्त हो, इसकी भटकन समाप्त नहीं होती। इस अविनाशी आत्मा को जब तक अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 5
हम नाम कैसे जपें ये समझने से पहले नाम और मंत्र के अन्तर को समझना जरूरी है।नाम — मंत्रराम ॐ रां रामाय नमः कृष्ण — ॐ क्लीं कृष्णाय नमःनारायण — ॐ नमो नारायणाय शिव — ॐ नमः शिवायदुर्गा — ॐ श्री दुर्गायै नमः चामुण्डा — ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चेराधा — ॐ ह्रीं राधिकायै नमःराधाकृष्ण — ॐ श्री राधाकृष्णाभ्यां नमःजिस प्रकार प्रभु के अनेक रूप हैं उसी प्रकार प्रभु के अनेक नाम व अनेक मंत्र हैं। प्रभु के जिन नामों के साथ ॐ क्लीं, ऐं, हीं, रां आदि बीज मंत्र, चतुर्थ विभक्ति या नमः स्वाहा आदि लग जायें ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 6
माला जप का प्रचारहरिनाम जप का सर्वश्रेष्ठ आधार माला माना जाता है। भजन में सहायक दो ही हैं, नाम साधकों का संग एवं माला। विश्व के सभी प्रमुख धर्म सम्प्रदायों में माला का न्यूनाधिक प्रचार है। सभी जप माला का प्रयोग करते हैं। मुसलमानों में माला को 'तसबीह' कहा जाता है। इसमें निन्यानवे मनके होते हैं, तसवीह पर 'अल्लाह' का नाम जपते हैं। जैनों की माला में एक सौ ग्यारह मनके होते हैं। इसमें एक सौ आठ पर तो 'णमों अर्हिन्ताय' का जप करते हैं, शेष तीन पर 'सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित्रभ्यो नमः' का जप करते हैं। सिक्ख सम्प्रदाय में ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 7
नाम रूपी धन की संभाल कबिरा सब जग निर्धना, धनवन्ता नहीं कोय। धनवन्ता सोइ जानिये, जापे रामनाम धन होय नाम ही सच्चा धन है, ये धन लोक-परलोक दोनों में हमारा साथ देता है। मीरा मा ने भी नाम को धन बताया– ‘पायो री मैंने राम रतन धन पायो।’वास्तव में नाम ही सच्चा धन है। जैसे धन कमाना कठिन है। परन्तु धन को संभाल कर रखना इससे भी अधिक कठिन है। बहुत से लोगों को कहते सुना कि कमाई तो बहुत है लेकिन पैसा नहीं ठहरता। धन कमाने वाले लोग तो बहुत मिल जायेंगे पर धन को संभलने वाले बिरले ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 8
राम नाम सत् हैराम नाम सत् है, सत् बोलो गत हैये महावाक्य आप-हम कितनी बार बोल चुके हैं और भी चुके हैं। क्या कभी ध्यान दिया इस महावाक्य की ओर? ये हमको क्या उपदेश दे रहा है? सुन कर भी अनसुना कर देते हैं हम इस परम सच्चाई को। जीवन एक कल्पना है लेकिन मौत सच है। जीवन का भरोसा नहीं कब मौत के कदमों में कुचल जाए। आखिर कब तक अनसुना करते रहोगे? कब तक भागते रहोगे इस सच्चाई से ? एक दिन जब सफेद चादर ओढ़ के लेटे होगे, चार व्यक्ति अपने कन्धों पर उठाकर चलेंगे और ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 9
दस नामापराधहरि नाम की बहुत विलक्षण एवं अलौकिक महिमा है। स्वयं भगवान् भी अपने नाम की पूरी महिमा नहीं सकते, फिर ओर तो कोई कह ही कैसे सकता है। देखने में आया है कि भजन करने वाले भजन का पूरा लाभ नहीं ले पाते। कारण है नामापराध। भजन का पूरा लाभ लेने के लिए नामापराधों से बचना आवश्यक है।1. संत निन्दा – संतों व नाम निष्ठ भक्तों की निन्दा करने व सुनने से नाम महाराज रुष्ठ हो जाते हैं। वैसे तो निन्दा किसी की भी नहीं करनी चाहिए। उनमें भी संतों की तो भूल कर भी न करें। कई ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 10
नाम जप और चिंतनभाय कुभाय अनरव आलसहुँ। नाम जपत मंगलदिसि दसहूँ।। नाम किसी भी भाव से किसी भी प्रकार दसों दिशाओं में मंगल ही मंगल है। नाम जप करते समय अगर मन से भगवान् के रूप या लीलाओं का चिंतन किया जाए तो भजन बहुत जल्दी अपना असर दिखाने लगता है। चिंतन में सहज भाव से प्रवेश करें। मन से ज्यादा खींचा तानी ना करें। सबसे पहले अपने खान-पान को सात्विक करें। कुसंग का त्याग करें, वाणी पर संयम करें। प्रतिदिन धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करें, सत्संग करें। इस तरह थोड़ी सी सावधानी से मन में अपने आप सत्वगुण ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 11
संकीर्तन महिमाभगवान् के नाम, रूप, लीला व गुणों का संकीर्तन किया जाता है। इन सभी प्रकार के संकीर्तनों में अधिक महिमा संतों व शास्त्रों ने हरि नाम संकीर्तन की गाई है। यहाँ तक कि जप से भी ज्यादा नाम संकीर्तन की महिमा गाई है। नाम का गायन ही कलियुग की सर्वश्रेष्ठ साधना है। इसलिए संकीर्तन करो-संकीर्तन करो।श्रीमद्भागवत् जी ने मुक्त कण्ठ से संकीर्तन महिमा का गायन किया।क्लेर्दोषनिधेराजन्नस्ति ह्योको महान्गुणः ।कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसंगः परं ब्रजेत् ॥ परमहंस श्री शुकदेवजी राजा परिक्षित को कहते हैं– राजन् ! कलियुग दोषों का भण्डार है, तथापि इसमें यही एक महान् गुण है कि इस ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 12
नाम जप से स्वभाव सुधारगदे स्वभाव वाला व्यक्ति स्वयं भी जलता रहता है और दूसरों को भी जलाता रहता कुसंग वश या पूर्व जन्म के संस्कार वश व्यक्ति कई प्रकार के व्यसनों में ऐसा फँस जाता है कि वह इन गंदी आदतों से छूट सकता है, यह सोचना भी उसके लिए कठिन हो जाता है। कोई शराब, भांग, बीड़ी, सिगरेट या अन्य नशीले पदार्थों के सेवन का आदि बन चुका है तो कोई जुआ, सट्टा आदि का शिकार है। कितने ही लोग अपने जीवन का अधिकांश भाग फिल्में देखने व फिल्मी पत्रिकाओं तथा अश्लील पुस्तकों को पढ़ने में ही ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 13
नाम जप का नियमनाम जप साधना तो बहुत लोग करते हैं लेकिन नियम से नहीं करते। नियम से जो मिलती है, वह अनियम से नहीं मिलती। अनियमित अधिक साधना की अपेक्षा नियमित थोड़ी साधना श्रेष्ठ होती है। बिना नियम से की गई साधना अधिक दिन नहीं चलती, न ही उसमें कोई उत्साह होता है। अनियमित साधना जीवन में आये उतार-चढ़ाव की भूल भलैया में खो जाती है। साधना भले ही कम हो लेकिन हो नियम से। नियम से की गई साधना से दिन-प्रतिदिन उत्साह बढ़ता जाता है। जितना समय बीतता जाता है, भजन में उतनी ही निष्ठा बढ़ती जाती ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 14
नाम जप पर रसिक संत पूज्य श्री भाईजी के विचारगीताप्रेस गोरखपुर के आदिसम्पादक रससिद्ध संत पूज्य श्रीभाईजी (श्रीहनुमान प्रसाद जी) के नाम को कौन नहीं जानता। अगर इन महापुरुष के बारे में कुछ जानना चाहते हो तो गीतावाटिका गोरखपुर से प्रकाशित पुस्तक 'भाईजी एक अलौकिक विभूति' जरूर पढ़नी चाहिये। यहाँ तो केवल भाईजी के नाम जप के प्रति विचारों को ही दिया जा रहा है।–1. जिस प्रकार अग्नि में दाहिका शक्ति स्वाभाविक है, उसी प्रकार भगवन्नाम में पाप को, विषय-प्रपंचमय जगत के मोह को जला डालने की शक्ति स्वाभाविक है। इसमें भाव की आवश्यकता नहीं है।2. किसी प्रकार भी ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 15
नाम जप पर पूज्य श्रीजयदयाल गोयन्दका जी के विचारभगवान् के नाम की महिमा अनन्त है और बड़ी ही रहस्यमयी शेष, महेश, गणेश की तो बात ही क्या, जब स्वयं भगवान् भी अपने नाम की महिमा नहीं गा सकते – 'राम न सकहि नाम गुन गाई' तब मुझ सरीखा साधारण मनुष्य नाम-महिमा पर क्या कह सकता है? परन्तु महापुरूषों ने किसी भी निमित्त से भगवान् के गुण गाकर काल बिताने की बड़ी प्रशंसा की है। इसी हेतु से नाम महिमा पर यत्किञ्चित् लिखने की चेष्टा की जाती है। भगवन्नाम की महिमा सभी युगों में सदा ही सभी साधनों से अधिक ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 16
नाम जप का प्रभाव एवं रहस्यनाम का तत्त्व, रहस्य, गुण, प्रभाव समझना चाहिये। उससे नाम में स्वाभाविक रुचि होती रुचि होने से नाम का जप अधिक होता है। रुचि नाम का तत्व रहस्य समझने से होती है। नाम में गुण क्या है? गीता में दैवी सम्पदा के 26 गुण बताये गये हैं। वे सब के सब भजन करने वालों में आ जाते हैं ओर भी गुण आ जाते हैं। नाम जप से नामी याद आ जाता है। जिसका स्मरण किया जाता है, उसका अक्स ( बिम्ब ) पड़ता है। नीच के दर्शन, स्पर्श, भाषण से नीच का असर पड़ता ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 17
नाम जप सम्बन्धी शंका समाधानजिज्ञासा- कौन सा नाम जपें ?समाधान- भगवद्भाव से अपनी रुचि के अनुसार किसी भी नाम जप कर सकते हैं।जिज्ञासा- किस समय जप करना चाहिए?समाधान - जगने से लेकर सोने तक हर समय जप करना चाहिए।जिज्ञासा- कितना जप करना चाहिए ?समाधान - जितना हो सके अधिक से अधिक जप करना चाहिए।जिज्ञासा - कैसे जप करें? कोई विधि बताओ?समाधान - जैसे कर सकें वैसे करें। कोई विशेष विधि नहीं है।जिज्ञासा - अगर कोई विधि नहीं है तो फिर शास्त्रों में जप की अनेक विधियाँ क्यों लिखी गई हैं ?समाधान – वो विधियाँ मन्त्रों व अनुष्ठानों की हैं। ...और पढ़े
नाम जप साधना - भाग 18
भगवन्नाम महिमाहरिनामपरा ये च घोरे कलियुगे नराः ।त एव कृतकृत्याप्चश्न कलिर्बाधिते हि तान् ॥ “घोर कलियुग में जो मनुष्य परायण हैं वे ही कृतकृत्य हैं। कलियुग उन्हें बाधा नहीं पहुँचा सकता।”अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायक परात्पर परब्रह्म परमात्मा के अनन्त अवतार भक्तों के कारणार्थ हुआ करते हैं। उन्हीं अनन्त अवतारों में हरि नाम भी प्रभु का पतित पावन अवतार है। भगवान् और भगवान् का नाम अभिन्न है। नाम नामी का अभिन्न स्वरूप है। जिनके जीवन में हरि नाम आ गया, समझो हरि आ गए। नाम आश्रय ही भगवान् का आश्रय है। गोस्वामी तुलसीदास जी तो यहाँ तक कहते हैं–कहाँ कहौं ...और पढ़े