गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन में

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Your life partner will be beautiful But not easy to live with her ऐसा नही है कि हरेक के साथ इत्तफाक हो।पर किसी के साथ हो भी सकता है। कहानी तो शुरू से ही कहनी पड़ेगी। सनातन में या हमारे धर्म मे जीवन को चार भाग में बांटागया है। ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ और सन्यास परन्तु इसके अलावा आदमी के जीवन के दो भाग होते है।एक शादी से पहले,दूसरा शादी के बाद। जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही हर लड़की ही नही हर लड़का भी अपने भविष्य का सपना देखने लगता है।पहले औरते घर की चारदीवारी में कैद रहती थी।पर अब समय बदल गया है।अब औरतों के कदम घर से बाहर निकल चुके है।वे पुरुषओ के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में काम कर रही है। लेकिन फिर भी।आज भी।हमारे यहां औरत चाहे कितनी ही शिक्षित हो जाये,वह ग्रहणी बनकर गृहस्थी सम्भालना ही ज्यादा पसंद करती है।इसलिए आज की युवती का सपना होता है-शिक्षित,कमाऊ पति।

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन में - 1

Your life partner will be beautifulBut not easy to live with herऐसा नही है कि हरेक के साथ इत्तफाक किसी के साथ हो भी सकता है।कहानी तो शुरू से ही कहनी पड़ेगी।सनातन में या हमारे धर्म मे जीवन को चार भाग में बांटागया है।ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ और सन्यासपरन्तु इसके अलावा आदमी के जीवन के दो भाग होते है।एक शादी से पहले,दूसरा शादी के बाद।जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही हर लड़की ही नही हर लड़का भी अपने भविष्य का सपना देखने लगता है।पहले औरते घर की चारदीवारी में कैद रहती थी।पर अब समय बदल गया है।अब औरतों के कदम घर ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 2

उस टिकट पर हिंदी और अंग्रेजीमें जो वाक्य लिखे थे,वो ऊपर बता चुका हूँ।क्या ऐसा ही होगा?यह प्रश्न तो मे आना लाजमी था।बापू की म्रत्यु के बाद मेरी अनुकम्पा पर रेलवे में नौकरी लग गयी और ट्रेनिग के बाद पहली पोस्टिंग पर मै आगरा आ गया।हमारे यहाँ आज भी लड़का लड़की की शादी करना माँ बाप की जिम्मेदारी माना जाता है।मेरी माँ तो थी पर पितां नही।परिवार पितां की मृत्यु के बाद गांव आ गया था और मै आगरा आ गया।मेरे तीन ताऊजी थे।बीच वाले अनपढ़ होने के साथ कुंवारे भी थे।और बड़े ताऊजी इन सब से दूर।तीसरे ताऊजी ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 3

होता था तब यही सपना देखता।उन दिनों में लेखक नही बना था।इसलिए ड्यूटी से आने के बाद अपने कमरे ही रहता।पढ़ने का शौक जरूर था।उपन्यास,पत्रिकाएं पढ़ता या पिक्चर देखने चला जाता।सन 1971 महीनों तो अब मुझे याद नही लेकिन श्राद्ध से पहले की बात है।बापू का श्राद्ध पड़वा के दिन पड़ता है।मैने दस दिन की छुट्टी ली थी। उन दिनों आगरा से अहमदाबाद के बीच छोटी लाइन थी।आगरा से बांदीकुई के लिए सिर्फ 3 ट्रेनें थी।आगरा से बांदीकुई पैसेंजरआगरा से अहमदाबाद एक्सप्रेसआगरा से बाड़मेरउन दिनों बांदीकुई पैसेंजर शाम को पांच बजे चलती थी।मैं इस ट्रेन से बांदीकुई गया था।मेरा ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 4

और लड़की देखने जाने की बात पक्की हो गयी।भाई बांदीकुई चला गया।मुझसे कह गया,"कल आ जाना।"अगले दिन में जाने लिए तैयार हो गया।ताऊजी ने एक पत्र मुझे लिखकर दिया।पत्र क्या था?एक कॉपी का पेज जिस पर चार लाइन लिखी थी--मैं लड़के को भेज रहा हूँ।मैं चाहता हूँ रिश्ते से पहले लड़का लड़की एक दूसरे को देख ले।आप लड़की दिखा देना।यह खुला पत्र था।किसी लिफाफे में नही रखा था,न बन्द था।मैं बसवा से बांदीकुई गया।उन दिनों रेवाड़ी से बांदीकुई तक 11 बजे पैसेंजर ट्रेन आती थी।इस ट्रेन से मुझे बांदीकुई जाना था।मैं उस दिन उस ट्रेन से ताऊजी की चिट्ठी ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 5

और शाम हो गयी थी।वहां से वापस लौटने के लिए रात में ही ट्रेन थी।हम लोग बाते करते रहे।फिर बना था।पूड़ी सब्जी हलवा।खाना स्वादिष्ट था जिसे लड़की ने ही बनाया था।शाम को मतलब रात को एक मालगाड़ी रुकी उससे हम लोग बांदीकुई वापस आ गए।रास्ते मे भाई मुझसे बोला,"लड़की तो सुंदर है।"मैने कोई जवाब नही दिया था।"खाना भी बहुत बढ़िया बनाया था।""यार मुझे शादी नही करनी।""क्या लड़की सुंदर नही है।""यह मैने कब कहा?""तो कोई कमी है?""नही।""तो फिर कैसे मना करेगा?"मैं कुछ नही बोला।"लड़की सुंदर है और खाना भी बहुत अच्छा बनाती है।मुझे तो पसन्द है।मैं हा कर देता हूँ।""तो ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 6

लेकिन हमारे समय मे न टेलीफोन थे,न ही मोबाइल और सामाजिक प्रतिबंध भी तब ज्यादा थे।कई बार मन मे कि रिश्ता हो गया है तो अब एक बार मंगेतर को देखा जाए पर कैसे?ऐसे अवसर आये भीएक बार मे गांव गया।आगरा से बांदीकुई ट्रेन करीब एक बजे पहुच जाती थी।फिर वहा से बसवा के लिए ट्रेन साढ़े तीन बजे चलती थी।जैसा मैं पहले कह चुका हूँ।मेरी कजन का क्वाटर वही था।मैं उतरकर वहां चला जाता था।मैं जब सिस्टर के पास पहुंचा वह बोली,"आज तो तुम्हारी मंगेतर आयी है।"असल मे खान भांकरी तो बहुत छोटा स्टेशन था।वहां तो बस रेलवे ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 7

और फिर कोई अवसर नही आया।रिश्ता होने और शादी होने के बीच 18 महीने का अंतराल था।इन 18 महीनों बहुत उतार चढ़ाव आये।जिनका उल्लेख कोई विशेष महत्त्व नही रखता।समय धीरे धीरे सरक रहा था।मेरा परिवार बिखरा हुआ था।परिवार से मतलब माँ, भाई बहन इसकी वजह थी।पितां का न होना।असमय और कम उम्र में पितां का साया सिर से उठ जाए तो जीवन आसान नही होता।ऐसे समय मे बाहर वाले मदद करते है।पर अपने नही।लेकिन मेरे साथ ऐसा तो नही हुआ।अब शादी आजकल की तरह तब नही होती थी।काफी पहले ही शादी की तैयारी शुरू हो जाती थी।मा मेरी शादी ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 8

और आखिर बरात। 24 जून 1973 को खान भांकरी पहुंच गई थी।यह स्टेशन दौसा से पहले आता था जब सेक्शन मीटर गेज था।आमान परिवर्तन यानी बड़ी लाइन हो जाने पर इस स्टेशन को खत्म कर दिया गया।अब खण्डर शेष है उस क्वाटर के भी जिससे शादी हुई थी और शादी के बाद पत्नी के साथ कई बार गया था।खण्डर भी न जाने कब तक शेष रहेंगे।लेकिन यह स्टेशन चाहे भौतिक रूप से न रहे।मेरी यादों में तो हमेशा बसा रहेगा।भूल भी कैसे सकता हूँ।उस स्टेशन पर बिजली नही थी।लेकिन जेनरेटर की व्यस्था की गई थी।बरात को क्वाटरों में ठहराया ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 9

और मेरे बहनोई,साले सब कुंवर कलेवे में बैठे थे।रिश्ता 21 महीने पहले हुआ था।मेरा गांव और ससुराल ज्यादा दूर थी। मेरे श्वसुर भी बांदीकुई आते रहते थे।हमारे गांव के कई लोग भी उनसे मिलते रहते थे।न जाने कैसे यह बात वहाँ तक पहुंच गई थी कि मैं बहुत गुस्से बाज हूँ।और यह बात मेरी मंगेतर और अब पत्नी जिसके साथ फेरे ले चुका था।के कानों तक भी पहुंच चुकी थी।इसलिय रिश्ता होने पर मेरे श्वसुर आगे के बेटी के जीवन को लेकर आशंकित भी थे।उन दिनों में दहेज में मोटर साईकल या कार का चलन नही था।मिडिल क्लास की ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 10

और जीप गांव के लिए चल दी।यादगार क्षण-------------------हर आदमी की जिंदगी में ऐसे क्षण आते है,जिन्हें वह नही भूलता।इन्हें क्षण कहते है।मै तो अपने जीवन के यादगार क्षणों की ही बात करूंगा।हमारा मकान गांव में अंदर चलकर है।बाजार के एक मोड़ से आगे जीप नही जा सकती लेकिन उस दिन ड्राइवर अपने कौशल से जीप को घर के दरवाजे तक लेकर आया था।बहु के घर आने का इनतजार कर रहे थे।और आखिर मे मै दुल्हन के साथ दरवाजे पर पहुंच गया था।दरवाजे पर बहने व खानदान परिवार की औरते तैयार थी।पोली में औरतों की भीड़ में मुझे माँ नही ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 11

और पहली बार एक खूबसूरत नवयुवती के पास बैठना सुखद एहसास था।वह नवयुवती मेरी पत्नी बन चुकी थी।लेकिन अभी एक दूसरे से अपरिचित ही थे।पति पत्नी बन चुके थे लेकिन औपचारिक परिचय नही हुआ था।और पहली बार ही उसने बैठने का आदेश सुना दिया था।और कुछ ना नुकर के बाद मैं बैठ गया और बाहर औरते गीत गा रही थी।उसके बदन से उठ रही भीनी भीनी सुगंध मेरी नाक के जरिये मेरी सांसों में घुल रही थी।। और रात को बारह बजे बाद तक यह कार्यक्रम चलता रहा।बाद में उसे औरते छत पर ले गयी थी।उन दिनों हमारे गांव ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 12

ताऊजी ने तीन बैल पाल रखे थे।उन दिनों खेती बैल और हल से ही होती थी।ताऊजी खुद खेत को एक हाली रख रखा था।जिसे हम साहयक कह सकते है।बाद में उन्हीने घर पर रहना छोड़ दिया और खेत पर ही एक कमरा बनवा लिया था।एक बकरी पाल ली।खेत पर ही वह अपने हाथों से खाना बनाते थे।त्यौहार होता और पक्का खाना बनता तब उनके लिए घर से खाना जाता।बांदीकुई से बड़ी ताईजी भी खाना भेजती थी।वह दिन में जब भी समय मिलता बाजार और घर जरूर आते।खेत पर ताऊजी ने नाश्ते व चाय का प्रबंध कर रखा था।और कई ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 13

"लालाजी उस कमरे में चले जाओ।चौबारा उस कमरे को चौबारा कहते थे।उसके सामने जो छत थी,वह खाली थी।उस पर नही सोया था।जब मैं चौबारे में आया तो देखा वह थक गई है और बाहर चौबारे के सामने छत पर डरी बिछाकर सो रही है।मै कुछ देर तक चौबारे में खड़ा सोचता रहा क्या करूँ?उसे सोने दु या जगाऊँ।सुहागरात की उत्सुकता और उससे मिलने की उत्कंठा भी मन मे थी। और फिर मै बाहर गया और उसके पास जाकर खड़ा हो गया।और मैं उसका धीरे से हाथ पकड़कर बोला,"सो गई क्या?और मेरी आवाज सुनते ही वह उठ गई और मेरे ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 14

लड़की के मैके से ससुराल आते ही कर्तव्यबोध आ जाता है।वह नीचे चली गयी थीमाँ मुझसे बोली थी,"बहू के साड़ी ला दे।'"साड़ी,"मैं बोला," साड़ी तो इतनी सारी आयी है।फिर साड़ी क्यो?""वो सब भारी साड़ी है।रोज पहिनने के लिए हल्की साड़ी चाहिएऔर माँ के साथ जाकर मैं दो साड़ी खरीद लाया था।हमारे यहां कोई भी शुभ काम देव सोने पर नही होता।इसलिय करीब चार महीनों के लिए शुभ कार्य जैसे शादी आदि रुक जात है।देव सोने वाले थे।इसलिए पहली बार पत्नी को सिर्फ दो दिन के लिए ही ससुराल में रुकना था।28 जून को मेरे सभी साले आ गए थे ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 15

मै शादी के लिए एक महीने की छुट्टी लेकर गया था और पता ही नही चला कब एक महीना गया।उन दिनों टेलीफोन थे लेकिन हर घर मे नही।और मोबाइल तो हमारे देश मे था ही नही।बस डाक का ही सहारा था।मैं जाने से एक दो दिन पहले बोला पत्र लिखती रहना।और सुनोक्यापत्र पुरानी औरतों की तरह मत लिखनामतलब"मेरे प्राण प्यारे,पति परमेश्वर ऐसे मत लिखना"तो"पढ़ी लिखी हो।पति पत्नी बराबर होते है।मेरा नाम लिखनाउसने ऐसा तो नही किया और पत्र की शुरुआत प्रिय से करती थी।उन दिनों बांदीकुई से आगरा के लिए सिर्फ 3 ट्रेन ही चलती थी।एक सुबह,एक दोपहर में ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 16

सन1974 में पत्नी गर्भवती हो गयी थी।मैने उसे लेडी लॉयल अस्पताल में दिखाया था।आगरा में औरतों के लिए वो अस्पताल माना जाता था।फिर जैसा अस्पताल समय देते हम दिखाने के लिए जाते थे।उन दिनों मेरे ससुराल के साल में चार या पांच चक्कर हो जाते थे।पत्नी मझले कद की लेकिन छरहरे शरीर की थी।वह साड़ी इस तरह पहनती थी कि उसके गर्भवती होने का पता नही चलता था।दो बार मै उसके साथ गया।लौटते समय मैंने पूछा,"तुमने अपनी मम्मी को प्रेगनेंसी के बारे में बताया"नही,'"तो कब बताओगी?"मेरे श्वसुर पहले खान भांकरी स्टेशन पर स्टेशन मास्टर थे।फिर उनका ट्रांसफर आसलपुर जोबनेर ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 17

घण्टे पर घण्टे बीत रहे थे।लेकिन पत्नी की डिलीवरी नही हुई।बाहर मैं और माँ परेशान थे।अंदर कोई जा नही था।दर्द और पीड़ा से औरते कराह रही थी।लेकिन पत्नी दर्द को सहन करके पड़ी थी।जब तक चीखो चिल्लाओ मत कोई सुनने वाला नही था।और मैं और माँ पूरी रात ठंड में बाहर बरामदे में खड़े रहे।खड़े खड़े सुबह हो गयी लेकिन पत्नी की डिलीवरी की खबर नही मिली।सुबह होते ही मैं घर चला गया था।नहा धोकर तैयार होकर बाबू लालजी के घर गया था।बाबू लाल झा मझले कद के पतले दुबले शरीर के थे।उनका रंग काला था।वह मेरे से काफी ...और पढ़े

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 18

वह गगन यानी मेरी पत्नी को बहु के नाम से ही बुलाते थे।उनसे मधुर सम्बन्ध हो गए थे।उन्होंने कभी किरायेदार नही समझा।उनके जितने भी रिश्तेदार आते या हमारे एक दूसरे से घुल जाते थे। इस मकान में आने पर पत्नी फिर गर्भवती हो गयी थी।पहली डिलीवरी ऑपरेशन से हुई थी।और उस समय बड़े झंझट और तकलीफ झेलनी पड़ी थी।मेने उसी समय नही उससे पहले ही सोच रखा था कि हम दो हमारे दो।और वह नई मुसीबत या बीमारी से घबरा गई थी।मैं भी लेकिन समस्या गम्भीर नही निकली।मैने निश्चय किया कि दूसरी डिलीवरी आगरा में नही करूँगा।मैने पत्नी को ...और पढ़े

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