आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

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यह अफ़गानिस्तान का गज़नी शहर था। उस दिन वर्ष 2008 के जुलाई महीने की 17 तारीख़ थी। दिन भर बेइंतहा गरमी पड़ती रही थी। दिन ढलने लगा तो गरमी की तपिश भी कम होने लगी। आखि़र लंबा दिन गुज़र गया और थाने की दीवारों के साये अहाते के दूसरे सिरे पर जा पहुँचे। सूरज छिपने ही वाला था जब थानेदार गनी खां शहर का चक्कर लगाने के लिए उठा। आज उसका सारा दिन बाहर ही गुज़र गया था। सुबह से ही वह अमेरिकन फ़ौज़ की उस टुकड़ी के साथ घूम रहा था जो कि गाँवों की तरफ़ चक्कर लगाने गई थी। आजकल इस इलाके में तालिबानों का ज़ोर था। अमेरिकी फ़ौज़, इलाके की पुलिस को संग लेकर गाँवों की छानबीन के काम में लगी हुई थी।

Full Novel

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 1

यह अफ़गानिस्तान का गज़नी शहर था। उस दिन वर्ष 2008 के जुलाई महीने की 17 तारीख़ थी। दिन भर गरमी पड़ती रही थी। दिन ढलने लगा तो गरमी की तपिश भी कम होने लगी। आखि़र लंबा दिन गुज़र गया और थाने की दीवारों के साये अहाते के दूसरे सिरे पर जा पहुँचे। सूरज छिपने ही वाला था जब थानेदार गनी खां शहर का चक्कर लगाने के लिए उठा। आज उसका सारा दिन बाहर ही गुज़र गया था। सुबह से ही वह अमेरिकन फ़ौज़ की उस टुकड़ी के साथ घूम रहा था जो कि गाँवों की तरफ़ चक्कर लगाने गई थी। आजकल इस इलाके में तालिबानों का ज़ोर था। अमेरिकी फ़ौज़, इलाके की पुलिस को संग लेकर गाँवों की छानबीन के काम में लगी हुई थी। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 2

इस्मत जेहान का जन्म 1939 में बुलंद शहर में हुआ। यहीं उसने बचपन बिताया। इस्मत ने स्कूल अभी पूरा नहीं किया था कि हिंदुस्तान का बंटवारा हो गया। वह परिवार के साथ पाकिस्तान चली आई। यहीं उसका विवाह मुहम्मद सुलेह सद्दीकी के साथ हुआ। सुलेह सद्दीकी पेशे से डॉक्टर था। विवाह के कुछ समय बाद वह इंग्लैंड चले गए। वहाँ वे कई वर्ष रहे। उनके परिवार में पहले बेटे का जन्म हुआ जिसका नाम उन्होंने मुहम्मद अली रखा। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 3

डेल्टा एअरलाइन्ज़ का जहाज़ नीचे होने लगा तो आफिया ने नीचे धरती की ओर गौर से देखा। उसको कुछ नज़र न आया। नीचे धुंध की चादर-सी बिछी हुई थी। जहाज़ नीचे होता गया, पर नीचे अभी कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। आफिया ने महसूस किया जहाज़ काफ़ी नीचे पहुँच गया है। फिर उसको मद्धम-सी रोशनियाँ दिखाई देने लगी और तभी जहाज़ लैंड कर गया। एक झटका-सा लगा और जहाज़ रन-वे पर दौड़ने लगा। जहाज़ की गति धीमी हुई तो आफिया ने बाहर की तरफ देखा। बाहर रात का अँधेरा पसरा हुआ था और हर तरफ गहरी धुंध छाई हुई थी। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 4

आफिया, मैसाचूसस स्टेट के लोगन इंटरनेशनल एअरपोर्ट बॉस्टन पर उतरी। वहाँ से वह टैक्सी लेकर मैसाचूसस इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एम.आई.टी. की ओर चल पड़ी। टैक्सी बॉस्टन शहर की सड़कों पर दौड़े जा रही थी और आफिया अपने ही ध्यान में गहरी डूबी हुई थी। उसको पहली नज़र में ही बॉस्टन शहर भा गया। उसको बॉस्टन शहर बहुत सुंदर लगा। पता ही नही लगा कि टैक्सी कब यूनिवर्सिटी के नज़दीकी होटल में जा रुकी। टैक्सी ड्राइवर के बुलाने पर आफिया विचारों की गुंजल से बाहर निकली। किराया चुकता करके उसने सामान उठा लिया। होटल में कमरा लेकर सामान वगैरह वहाँ टिकाकर वह यूनिवर्सिटी की ओर चल पड़ी। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 5

अल कीफा की मीटिंग में हिस्सा लेने मार्लेन और आफिया एकसाथ पहुँचीं। यह मीटिंग किसी के घर पर हो थी। मीटिंग शुरू होने से पहले आफिया और मार्लेन एक तरफ़ खड़ी होकर बातें कर रही थीं कि तभी आफिया के कानों में आवाज़ पड़ी। “सलाम वालेकम, हमशीरा।“ आफिया ने पीछे मुड़कर देखा। सामने रम्जी यूसफ खड़ा था। वह बड़े उत्साह के साथ बोली, “अरे ! वालेकम सलाम! मेरा ख़याल है, हम उस दिन इकट्ठे एक ही फ्लाइट पर आए थे।“ ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 6

1993 में आफिया ने पहला सेमेस्टर खत्म होने के बाद, छुट्टियों में परिवार को मिलने जाने का मन बना ग्रीष्म अवकाश प्रारंभ हुआ तो उसने टिकट खरीदी और अगले ही दिन पाकिस्तान पहुँच गई। उसके कराची पहुँचने के दो दिन बाद उसका मामा एस.एच. फारूकी अपनी पत्नी सहित उसको मिलने आ पहुँचा। दोपहर के भोजन के बाद पूरा परिवार ड्राइंग रूम में बैठा बातों में मशगूल हुआ पड़ा था। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 7

वर्ष 1994 को आरंभ हुए तीन सप्ताह हो चुके थे। उस दिन रातभर बर्फ़बारी होती रही थी। आफिया गहरी सोई हुई थी जब उसके सैल फोन की घंटी बजी। उसने अलसाते हुए ‘हैलो’ कहा। दूसरी ओर मार्लेन बोल रही थी। उसने इतना कहकर फोन काट दिया कि वह उसको एक घंटे बाद लेने आ रही है। वह तैयार रहे। आफिया ने धीरे-धीरे बिस्तर छोड़ा और उठकर कमरे में से बाहर आ गई। उसने खिड़की का पर्दा उठाकर बाहर देखा। सूरज की तेज किरणों ने उसकी आँखें चुंधिया दीं। रात यद्यपि बर्फ़ गिरती रही थी, पर इस समय सूरज निकला हुआ था। स्नो पर पड़ती धूप आँखों में चुभ रही थी। वह पर्दा गिराकर वापस कमरे में आ गई। फिर तैयार होने लगी। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 8

अक्तूबर 1995 में अमजद अमेरिका पहुँचा। उसी नई-नवेली दुल्हन आफिया चिकागो एअरपोर्ट पर उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। वहाँ वह अमजद को लेकर फौज़िया के अपार्टमेंट में आ गई। फिर, वे होटल चले गए। लगभग दो हफ़्तों का वक़्त उन्होंने होटल में गुज़ारा। अगले करीब दो महीने फौज़िया के घर रहे। फिर वो बॉस्टन, मैसाचूसस चले आए। यहाँ आकर उन्होंने किसी बड़ी इमारत के निचले हिस्से का छोटा-सा अपार्टमेंट ले लिया और अपनी ज़िन्दगी शुरू कर दी। अमजद को यह छोटा-सा अपार्टमेंट बिल्कुल भी नहीं भाया। वह एक बड़े परिवार और अच्छे खाते-पीते घर से आया था। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 9

आफिया ने पढ़ाई और लैब का सारा काम समाप्त कर लिया था। अब वह पी.एच.डी. के लिए अपना थीसिस रही थी। अमजद ने भी अपनी रेज़ीडैंसी खत्म कर ली थी। उसने सेंट विन्सेंट होस्पीटल में इंटर्नशिप शुरू कर ली थी। वे दोनों बॉस्टन से पैंतीस-चालीस मील दूर पड़ने वाले शहर वोरैस्टर में मूव हो गए। वोरैस्टर में केयरब्रदर्स के बहुत सारे सदस्य रहते थे। यहाँ की स्थानीय मस्जिद का इमाम मुहम्मद मासूद था। यह पुराना एम.एस.ए. का सदस्य रह चुका था। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 10

आज की घटना ने आफिया को इतना डरा दिया कि वह चीख चीखकर रोने लगी। अमजद उसकी हालत देखकर पर नहीं गया। आफिया निरंतर मित्रों को फोन कर रही थी और नई उपज रही स्थिति के विषय में जानकारी ले रही थी। मगर उसका भय वैसे ही कायम था। दोपहर ढलने से पहले ही समाचार आने लग पड़े कि आधे से अधिक आतंकवादी जिन्होंने आज के इन क्रूर कारनामों को अंजाम दिया है, उनकी पहचान हो चुकी है। पहचाने जाने वालों में सबसे पहला मुहम्मद अट्टा था जो कि बॉस्टन का रहने वाला था। पुलिस ने छापामारी तेज़ कर दी। ...और पढ़े

11

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 11

अमजद दुविधा में फंस गया। उसके घरवाले उसको आने को कह रहे थे। उधर आफिया भी दिन रात उसको जाने के लिए फोन किए जा रही थी। आखि़र ऊबकर उसने यूनिवर्सिटी से अनुमति ली और पाकिस्तान के लिए चल पड़ा। जब अमजद घर पहुँचा तो बाकी परिवार उसके आने पर खुश तो हुआ, साथ ही उनको अफ़सोस भी था कि उसकी पढ़ाई का नुकसान हो गया। पर आफिया इतनी खुश थी कि धरती पर उसके पैर नहीं लग रहे थे। उस रात वह अमजद के करीब बैठते हुए बोली, “अमजद, तू बड़े सही मौके पर आया है।“ ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 12

अमजद अमेरिका आ तो गया, पर उसका आफिया और बच्चों के बग़ैर ज़रा भी दिल नहीं लगता था। दिन समय तो काम पर होने के कारण जैसे तैसे समय बीत जाता था, परंतु रात के समय उसको घर काटने को दौड़ता था। कभी उसको बच्चों की किलकारियाँ सुनाई देने लगतीं और कभी आफिया इधर-उधर चलती-फिरती दिखाई देती। एक दिन रात के समय फोन आया। फोन उसकी अम्मी का था। अमजद के फोन उठाते ही जाहिरा खां बोली, “बेटे, मैं जानती हूँ कि तू इस वक़्त किन हालातों में से गुज़र रहा होगा। पर इस सब की मैं ही जिम्मेदारी हूँ।“ ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 13

अमजद ने अपनी आखि़री परीक्षा पास कर ली और उसने डॉक्टरी की सारी पढ़ाई मुकम्मल कर ली जो कि लक्ष्य था। उसके लिए बड़े गर्व की बात थी कि वह अपनी कक्षा में अव्वल आया था। उसकी पार्ट टाइम टीचर की जॉब भी उसके लिए अच्छी साबित हुई। यह परीक्षा पास करते ही उसको असिसटेंट प्रोफेसर बना दिया गया। वह अब खुश था। उसकी पढ़ाई की जिम्मेदारियाँ पूरी हो चुकी थीं। उसने आफिया को खुश रखने का एक और ढंग निकाला। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 14

अगले दिन वह निश्चित समय पर वकील के दफ़्तर पहुँच गए। तभी एफ.बी.आई. के वही दो अफ़सर जो कि को मिलकर गए थे, वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने कुछ काग़ज़ों पर दोनों के दस्तख़्त करवाकर वकील की सहमति से इंटरव्यू शुरू कर दिया। प्रारंभ में वह कोई अधिक कठिन प्रश्न नहीं कर रहे थे। बल्कि वे बीच बीच में अमजद को ऐसे मजाक भी कर रहे थे जो कि आम लोग डॉक्टरों के बारे में करते रहते हैं। इस बात ने अमजद को निश्चिंत कर दिया कि कोई ख़तरे वाली बात नहीं है। फिर एक अफ़सर बोला, “मिस्टर और मिसेज अमजद, अब हम आफिशियल मीटिंग शुरू कर रहे हैं।“ ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 15

26 जून 2002 को अमजद और आफिया बच्चों सहित कराची एअरपोर्ट पर आ उतरे। वे घर पहुँचे तो घरवाले आने पर काफ़ी ख़फा थे। रात के समय नईम खां ने अमजद के साथ बात शुरू की, “तू नहीं टला फिर ? अपने मन की करके ही हटा न। तुझे मैंने कितना कहा कि इस वक़्त करियर बीच में छोड़कर आना तेरे लिए ठीक नहीं है। पर तेरे दिमाग में कोई बात आए, तभी न।“ ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 16

बचपन से लेकर आज तक आफिया ने बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी थीं। क्या पढ़ाई का क्षेत्र, क्या मज़हब या फिर सेवा का क्षेत्र। आफिया ने हर तरफ अपना लोहा मनवाया था। सबको पता था कि आफिया एक बहुत ही बुद्धिमान शख़्सियत है। मगर इस सबके बावजूद आज वह इकतीस वर्ष की उम्र में अकेली रह गई थी। गुमनामी की ज़िन्दगी उसके सामने खड़ी थी। उस पर तलाकशुदा का धब्बा लग चुका था जिसको पाकिस्तान समाज में कोई पूछता नहीं। तलाक के बाद कई सप्ताह तक वह बड़े ही मानसिक तनाव में गुज़री। फिर धीरे-धीरे वह संभलने लगी। एक सुबह वह पंछियों को दाना डाल रही थी कि उसकी माँ ने दूर से आवाज़ लगाई, “आफिया, तेरा फोन है।” ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 17

“जी मुझे इजाज़त दो।“ इतना कहते हुए वह बाहर निकल गया और फराखान मार्किट पहुँच गया। वहाँ पहुँचकर वह भीड़ वाली जगह पर खड़ा हो गया ताकि अधिक से अधिक लोगों को शिकार बना सके। एक बज गया, पर उसके पेट से बंधा बम न फटा। कोई आधा घंटा वह वहाँ खड़ा रहा, पर उसको बताये गए समय के अनुसार बम नहीं फटा और न कोई धमाका हुआ। आखि़र वह वापस लौट आया तो वहाँ कोई नहीं था। वहाँ से वह घर चला गया। अगले दिन वह उसी मज़हबी हस्ती के पास गया तो उसने कहा, “बधाई हो।“ ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 18

मगर इसी बीच 1 मार्च 2003 के अख़बार ने तहलका मचा दिया। मुख्य ख़बर थी कि के.एस.एम. को पाकिस्तानी ने पकड़ लिया है। साथ ही, यह भी ख़बर थी कि के.एस.एम. जिसका पूरा नाम खालिद शेख मुहम्मद है, अलकायदा का आपरेशन चीफ़ है। वह ओसामा बिन लादेन के मुकाबले का अलकायदा का लीडर और नाइन एलेवन का मास्टर माइंडिड है। पुलिस के अनुसर के.एस.एम. रावलपिंडी फौज़ी छावनी के करीब किसी के बड़े घर में से गिरफ्तार किया गया था। किसी मुख़बिर ने अमेरिका द्वारा घोषित पच्चीस मिलियन डॉलर के इनाम को लेने की खातिर उसको पकड़वाया था। के.एस.एम. को जिसके घर में से पकड़ा गया था, वह खुद एक साइंसटिस्ट था। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 19

आफिया का नाम यद्यपि हर तरफ से गायब हो चुका था, परंतु एक ऐसा इन्सान भी था जो हर उसके बारे में सोचता था। वह था उसका पहला पति अमजद। जब भी कहीं ख़बर आती कि आफिया गिरफ्तार हो गई है तो वह रात रातभर सो न पाता। आफिया का चेहरा उसकी आँखों के आगे घूमता रहता। वह यह सोचकर तड़पता रहता कि इस समय पता नहीं उस पर क्या बीत रही होगी। मगर जब ख़बर आ जाती कि नहीं वह अभी तक किसी की हिरासत में नहीं आई है तो उसको कुछ शांति मिलती। आफिया के साथ गहरा जुड़ा होने के अलावा उसको बच्चों की बड़ी चिंता रहती थी। ...और पढ़े

20

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 20

इस्मत और फौज़िया अपने घर तक सीमित होकर रह गई थीं। वे भयभीत-सी किसी के साथ आफिया को लेकर भी नहीं करती थीं। इसके अलावा उनके घर की आई.एस.आई. निगरानी करती रहती थी। कभी उन्हें गुप्त फोन आते थे कि आफिया के बारे में बात नहीं करती, नहीं तो उनका हश्र भी आफिया जैसा ही होगा। ऐसे समय उन्हें लगता कि आफिया इस दुनिया में नहीं है। फिर अगले ही दिन कोई फोन आ जाता कि आफिया जहाँ कहीं भी है, वो ठीक है, तुम उसकी चिंता न करो। ऐसा फोन सुनकर उन्हें लगता कि आफिया जिन्दा है। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 21

वर्ष 2008 में जनवरी महीने के एक दिन एस.एच. फारूकी पाकिस्तान में अपने घर बैठा टी.वी. देख रहा था। के समय उसके घर की डोर बेल बजी तो उसकी बेगम ने दरवाज़े से बाहर झांका। किसी अज़नबी को बाहर खड़ा देख उसने इस बारे में पति को बताया। फारूकी टी.वी. की आवाज़ कम करते हुए बाहर आया। उसने दरवाज़ा खोला तो सामने टैक्सी ड्राइवर खड़ा था। टैक्सी ड्राइवर ने कहा कि उसकी टैक्सी में एक औरत बैठी है जो आपसे मिलना चाहती है। फारूकी हैरान होता हुआ टैक्सी के पास आया और अंदर देखने लगा। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 22

हालांकि अमेरिका ने आफिया की गिरफ्तारी के विषय में कुछ नहीं बताया था, पर फिर भी यह बात पाकिस्तान पहुँच गई। इतना ही नहीं, यह भी कि अमेरिकियों ने उसको गोली मारी है जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गई है। लोगों का सोचना था कि उसको जान से मारने के लिए ही गोली मारी गई होगी, पर वह संयोग से बच गई। परंतु इस बात के बारे में अमेरिकी फौज के अफ़सरों का कुछ और ही कहना था। उनके अनुसार जब उन्हें पता चला कि कोई आतंकवादी स्त्री पकड़ी गई है तो वे उसके साथ इंटरव्यू करने के लिए उस कमरे में पहुँचे जहाँ उसको रखा गया था। अंदर सामने कुछ अफगानी पुलिस वाले बैठे थे। सभी के पीछे आफिया पर्दे की ओट में बैठी थी। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 23

सबको लगता था कि यदि आफिया अपने वकीलों का कहा मान ले तो वह इस केस से बरी हो हे। पर वह तो केस को ठीक ढंग से चलने ही नहीं देती थी। उसके वकील उसको कुछ भी कहते रहते, पर वह उनकी बात पर कान ही नहीं रखती थी। आफिया को उसके अपनों ने भी समझाया कि वह वकीलों का कहा माने, पर उसने किसी की बात न सुनी। बड़ी बात यह भी थी कि उसके ऊपर आतंकवाद के चार्ज नहीं लगे थे। विद्वान वकील समझते थे कि यदि सरकार उस पर आतंकवाद के चार्ज़ लगा देती है तो गवाहों को कोर्ट में पेश करना पड़ेगा। ...और पढ़े

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आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 24

“मि. वकील, अपनी क्लाइंट को बोलने से रोको। क्योंकि तुमने इसको कोर्ट में चुप रहने का स्टेट्स प्राप्त किया है।“ जज ने प्रतिवादी वकील की ओर देखते हुए अपना गुस्सा प्रकट किया। “नहीं, मुझे बोलना है।“ आफिया फिर से बोली तो जज के माथे पर बल पड़ गए। प्रतिवादी वकीलों ने आफिया को चुप रहने का संकेत किया, पर उसने किसी की परवाह नहीं की और अपनी बात पर अड़ी रही। आखि़र जज उससे सम्बोधित हुआ - ...और पढ़े

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