यमुना नदी के किनारें बसा - वृन्दावन नाम लेते ही ऐसा लगता जैसे जिव्हा पर शहद घुल गया हों। मिश्री सी मीठी यादें और उन यादों में माखन से नरम ह्रदय वालें प्यारे बृजवासी , फुलों सी कोमल राधा , नदियों सी निश्छल गोपियां , सागर से शांत नन्द बाबा , वात्सल्यमूर्ति माँ यशोदा औऱ कलकल बहती कालिंदी.... संध्या के समय अस्ताचल की ओर बढ़ते सूर्य को निहारते श्रीकृष्ण महल की छत पर उदास खड़े हुए हैं उनके मुख की दिशा वृदांवन की औऱ हैं । बृज की यादें श्रीकृष्ण को विकल कर देतीं हैं अपनों से बिछड़ने का स्मरण उन्हें विचलित कर देता हैं। श्रीकृष्ण झटके से ब्रज की स्मृतियों से निकलकर वर्तमान में आ गए। उनके कमल सदृश नयनों में अश्रु बूंदे झिलमिला रहीं थीं । उनके सामने उनके शिष्य औऱ चचेरे भाई उद्धव खड़े थें । उद्धव हूबहू श्रीकृष्ण के जैसे दिखतें थे , एक सी कदकाठी , एक से बाल , एक सी चाल औऱ एक सा रंगरूप । दोंनो ऐसे जान पड़ते मानों जुड़वा भाई हों । उद्धव ने श्रीकृष्ण की औऱ देखा औऱ चौंकते हुए कहा - माधव ! क्या हुआ..? कृष्ण चुप रहें । ब्रज की बेतरतीब यादों को अपने मन में सहेजे हुए कृष्ण ब्रज का भ्रमण कर रहें थें।उद्धव के आने की उन्हें खबर ही न थीं। न ही एक बार में उन्हें उद्धव के शब्द सुनाई दिए ।
Full Novel
प्रेमशास्त्र - (भाग-१)
यमुना नदी के किनारें बसा - वृन्दावन नाम लेते ही ऐसा लगता जैसे जिव्हा पर शहद घुल गया हों। सी मीठी यादें और उन यादों में माखन से नरम ह्रदय वालें प्यारे बृजवासी , फुलों सी कोमल राधा , नदियों सी निश्छल गोपियां , सागर से शांत नन्द बाबा , वात्सल्यमूर्ति माँ यशोदा औऱ कलकल बहती कालिंदी.... संध्या के समय अस्ताचल की ओर बढ़ते सूर्य को निहारते श्रीकृष्ण महल की छत पर उदास खड़े हुए हैं उनके मुख की दिशा वृदांवन की औऱ हैं । बृज की यादें श्रीकृष्ण को विकल कर देतीं हैं अपनों से बिछड़ने का स्मरण ...और पढ़े
प्रेमशास्त्र - (भाग-२)
शाम का सूरज श्रीकृष्ण की आँखों में दहक रहा था । श्रीकृष्ण के नेत्रों में आँसू ठहरे हुए जल तरह थे । जब उनके कमल रूपी नेत्रों पर ढलते सूरज की मद्धम किरणें पड़ती तो ऐसा जान पड़ता जैसे कमल के पत्तो पर जल की बूंदे मोतियों की तरह झिलमिला रहीं हैं । शाम ख़त्म होने की कगार पर थीं । रात गहरा रहीं थीं , अंधकार के साथ ही श्रीकृष्ण का दुःख भी बढ़ता जा रहा था। आसमान ऐसा जान पड़ता था मानो धरती ने अब सितारों जड़ी धानी चुनरी ओढ़ ली हैं । टिमटिमाते तारे औऱ उनके ...और पढ़े
प्रेमशास्त्र - (भाग-३)
वैद्य आ गए औऱ उपचार शुरू हुआ। तरह-तरह की जड़ीबूटियां दी गई फ़िर भी श्रीकृष्ण पर कोई असर नहीं वो तो ऐसे लग रहें थे मानों गहरी निद्रा में सो रहें हो। मथुरावासी के तो मानो प्राण ही सुख गए। मथुरा की प्रजा जिन्हें भगवान मानकर पूजती थीं आज उन्हीं के लिए भगवान से प्राथर्ना कर रहीं थीं। वसुदेव जी ने उद्धव से कहा - तुम तो कृष्ण के सखा व शिष्य भी हो , सदैव कृष्ण के साथ रहतें हों । तुम ही बताओं कृष्ण को क्या हुआ हैं ? ऊद्धव को खुद कुछ समझ नहीं आ रहा ...और पढ़े
प्रेमशास्त्र - (भाग-४)
अब तक आपने पढ़ा श्रीकृष्ण मूर्छित हो जाते है और विशेषज्ञ वैध भी उनका उपचार नहीं कर पाते हैं लीलाधर भगवान कृष्ण एक नई लीला रचते है।भगवान उद्धव से कहते हैं यदि किसी अथाह प्रेम करने वाले की चरण रज उनके मस्तक पर लगा दी जाए तो वह स्वस्थ हो जाएंगे ।अब आगें...मैं अपनी हाल ख़बर लिख देता हूँ तुम मेरी चिट्ठी लेकर चले जाओ। श्रीकृष्ण चिट्टी लिखने के लिए जैसे ही खड़े हुए उनके पैर लड़खड़ा गए , ऊद्धव ने उन्हें सम्भाला औऱ चौकी तक ले गए। श्रीकृष्ण ने दो चिट्ठियां लिखी औऱ ऊद्धव को देतें हुए कहा ...और पढ़े
प्रेमशास्त्र - (भाग-५)
ऊद्धव जी का रथ नन्दभवन के सामने रुका । रथ के पीछे ग्वालबालों का हुजूम था। ऊद्धव नन्दभवन में कर गए । नन्दबाबा ने ऊद्धव को ठीक वैसे ही गले से लगाया जैसे वो अपने कन्हैया को लगाया करतें थें। ऊद्धव की सारी थकान मिट गई। माता यशोदा ने भी प्रेम से ऊद्धव के सर पर हाथ फेरते हुए नन्द जी की ओर देखते हुए कहा - ये अपने कान्हा जैसा दिखता हैं न ? ऊद्धव व नन्द जी मुस्कुरा दिए । नंद जी ऊद्धव से बतियाने लगें माता यशोदा रसोईघर चलीं गई। ब्रज में अफवाह फैल गईं कि ...और पढ़े
प्रेमशास्त्र - (भाग-६)
उद्धव के गुरु बृहस्पति ने उन्हें बताया था कि कृष्ण रूप में तुम्हारे छोटे भाई भगवान विष्णु का अवतार यह जानते हुए भी कि श्रीकृष्ण भगवान के पूर्णवातर है फिर भी उद्धवजी को श्रीकृष्ण के शारीरिक रूप से उन्हें कोई मोह नहीं था। उनके अंतरमन में भी कहीं न कहीं ज्ञान का अहंकार छिपा हुआ था और वे निराकर परब्रह्म की उपासना को ही सच्चा मार्ग मानते थे। उनकी दृष्टि में ज्ञान ही महत्वपूर्ण था। यह बात श्रीकृष्ण अच्छे से जानते थे इसीलिए उन्होंने उद्धवजी को ही अपना संदेशवाहक चुना। गोपियों के प्रश्न सुनकर उद्धवजी ने कहा - हे ...और पढ़े
प्रेमशास्त्र - (भाग-७) - अंतिम भाग
उद्धवजी राधाजी से कहने लगे - पूरे ब्रजमंडल को दुःख में क्यो डूबो रखा है आपने ? अब माधव लौटकर नहीं आएंगे ... राधाजी धीमे स्वर में किंतु आत्मविश्वास से बोली - "लौटकर तो वह आते है उद्धवजी जो कही जाते है। कृष्ण तो कही गए ही नहीं। क्या आपको यहाँ कृष्ण दिखाई नही देतें ?" उद्धवजी यहाँ-वहाँ देखने लगते हैं तो क्या देखते है - हर जगह सिर्फ़ कृष्ण ही है । कृष्ण के सिवा कुछ है ही नहीं। कही पेड़ पर बंशी बजाते हुए , कही गाये चराते हुए , कही गोप ग्वालों के साथ हँसी-ठिठोली करते ...और पढ़े