हज़ार चौरासी की माँ

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उनके बहुचर्चित उपन्यास ‘हज़ार चौरासी की माँ’ में एक ‘माँ’ सुजाता की मर्मस्पर्शी कहानी के साथ-साथ साथ 1970 के दशक के बंगाल मे नक्सलवाद आंदोलन मे हो रहे हिंसक संघर्ष की कहानी भी समान रूप से चलती है। उस समय छात्रों, गरीबों और आम जनता में अपनी सरकार को लेकर भयंकर असंतोष फैला हुआ था। उच्च मध्यमवर्गी परिवार की बहू सुजाता चेटर्जी का बेटा व्रती भी एक नक्सलवादी गिरोह का सदस्य बन जाता है। माँ सुजाता चेटर्जी एक पढ़ी-लिखी, कामकाजी महिला है, अपने जीवन में रिश्ते निभाने में ही उलझी रहती है। वे अपने बेटे व्रती से बहुत प्यार करती है, लेकिन उस के लिए यह गुत्थी बनकर रह जाती है कि बेटे ने जो किया वो क्यों किया ? एक दिन व्रती पुलिस के हाथों मारा जाता है। जब उसके मृत्यु की खबर उसके परिवार तक पहँचायी जाती है तो उनके परिवार के लिए यह बात बड़ी शर्मनाक बन जाती है। व्रती के पिताजी श्री दिव्य नाथ चेटर्जी अपनी सारी पहुँच लगाकर इस बात को दबा देते हैं कि व्रती एक नक्सलवादी गिरोह का सदस्य था। वे व्रती से जुड़े लोगों से मिलती हैं। सुजाता को असहनीय दु:ख होता है कि एक माँ होकर भी वह अपने लाड़ले बेटे को पहचान न सकी। ‘खून के रिश्ते की व्यर्थता’ और ‘खून के रिश्ते की तीव्रता’ वे एक साथ महसूस करती हैं। उसी क्षण व्रती के साथ सुजाता का रिश्ता गहरा हो जाता है, और दिव्यनाथ के साथ उनका रिश्ता खत्म हो जाता है।

Full Novel

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हज़ार चौरासी की माँ - भाग 1

“हज़ार चौरासी की माँ”- एक माँ की मर्मस्पर्शी कहानी अपने जीवनकाल में साहित्य अकादमी (1979), पद्मश्री (1986), ज्ञानपीठ (1996), मैग्सेसे (1997), पद्मविभूषण (2006) जैसे सम्माननीय पुरस्कार से सम्मानित महाश्वेता देवी (14 जनवरी 1926 – 28 जुलाई 2016) ने कई अलग-अलग लेकिन महत्वपूर्ण किरदार निभाए। उन्होंने पत्रकारिता से लेकर लेखन, साहित्य, समाज सेवा एवं अन्य कई समाज हित से जुड़े किरदारों को बखूबी निभाया। उन्होंने आदिवासियों के हित में भी अपना अमूल्य सहयोग दिया। अपने जीवन में न केवल बेहतरीन साहित्य का सृजन किया बल्कि समाज सेवा के विभिन्न पहलुओं को भी समर्पण के साथ जिया। उनके बहुचर्चित उपन्यास ‘हजार ...और पढ़े

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हज़ार चौरासी की माँ - भाग 2

नाटक ‘हज़ार चौरासी की माँ’ मूल बांग्ला उपन्यास - महाश्वेता देवी बांग्ला नाट्य - शांति चट्टोपाध्याय हिन्दी नाट्य अनुवाद - मल्लिका मुखर्जी चरित्र : सूत्रधार, दिव्यनाथ, सुजाता, व्रती, सरोज, सोमू की माँ, नन्दिनी दृश्य – 2 सुजाता: ओह! आप? इतनी रात को नशे में धूत होकर घर लौटते हुए शर्म नहीं आती आपको? बाकी की रात भी बाहर ही बिता देते। दिव्यनाथ: (लड़खड़ाते क़दमों से...) थोड़ी-सी देर क्या हो गई, इतना गुस्सा? बात क्या है आखिर? इतनी रात को तुम जाग रही हो? नाथू कहाँ मर ...और पढ़े

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हज़ार चौरासी की माँ - भाग 3

नाटक ‘हज़ार चौरासी की माँ’ मूल बांग्ला उपन्यास - महाश्वेता देवी बांग्ला नाट्य रूपांतर - शांति चट्टोपाध्याय हिन्दी नाट्य - मल्लिका मुखर्जी दृश्य 2 सोमू की माँ: सोमू....मेरे बेटे.... मेरे सोमू को वापस लाओ साहब...वापस लाओ... मैं यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगी। सोमू ने तो कुछ भी नही किया था फिर उस पर गोली कयों चलाई गई? क्यों चलाई? सरोज: चिल्लाइए मत, कोई भी दूध का धुला नही है। इन समाजविरोधी, लुच्चे, लफ़ंगों ने पूरे शहर की नींद हराम कर रखी है। उनके लिए इतना दरद? निकलो यहाँ से, चलो-चलो हमारा समय नष्ट मत करो, जाओ यहाँ से...( ...और पढ़े

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हज़ार चौरासी की माँ - भाग 4

नाटक ‘हज़ार चौरासी की माँ’ मूल बांग्ला उपन्यास - महाश्वेता देवी बांग्ला नाट्य रूपांतर - शांति चट्टोपाध्याय हिन्दी नाट्य - मल्लिका मुखर्जी दृश्य 4 सोमू की माँ: (दरवाज़ा खोलते हुए) ओह! आप! मेरा सोमू....(कहकर रोने लगती है।) सोमू कहाँ खो गया दीदी? (सुजाता को सोफ़े पर बिठाती है। दूसरे सोफ़े पर सोमू की माँ बैठती है।) सुजाता: रोकर क्या करोगी बहन? सोमू की माँ: मेरी बेटी भी यही कहती है, माँ रोना नहीं। सोचती हूँ तो दिमाग काम नही करता। सुजाता: ज्यादा मत सोचिए, सिर्फ़ दु:ख बढ़ता जाएगा। सोमू की माँ: आप के बेटे ने ...और पढ़े

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हज़ार चौरासी की माँ - भाग 5 - अंतिम भाग

नाटक ‘हज़ार चौरासी की माँ’ मूल बांग्ला उपन्यास - महाश्वेता देवी बांग्ला नाट्य रूपांतर - शांति चट्टोपाध्याय हिन्दी नाट्य - मल्लिका मुखर्जी दृश्य 5 नन्दिनी: (दरवाज़ा खोलते हुए) आप? सुजाता: मैं व्रती की माँ हूँ। नन्दिनी: आइए... आइए...बैठिए। सुजाता: थोड़ा पानी मिलेगा? सिर में असहय दर्द हो रहा है.... एक टेब्लेट लेनी पड़ेगी। नन्दिनी: (ग्लास में पानी भरकर उन्हें देती है।) लीजिए। (सुजाता पर्स में से दवाई निकालकर पानी के साथ लेती है।) सुजाता : बताओ नन्दिनी, तुमने मुझे कैसे याद किया? नन्दिनी: क्योंकि आप व्रती माँ हैं। मेरे लिए आपसे परिचित होना ज़रूरी है। क्या ...और पढ़े

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