प्रेम क्या है अमरता की निशानी या फिर सिर्फ एक जवानी जिसको हम जीना चाहते हैं या जिसको हम पाना चाहते हैं अथक प्रयास करने के बाद भी वह नहीं मिलता है फिर सोचते हैं कि कितना बड़ा है जो कि हमें नहीं मिलता है क्योंकि मनुष्य यह बात तो सर्वथा जानता है कि अगर वे चाहें कुछ भी नहीं सकता प्रेम कैसी चीज है जिसे कूटनीति के द्वारा जीता नहीं जा सकता है सदैव यही बात मन में बनी रहती है एक आशंका की तरह और एक आशा की तरह अगर मैं कहूं की प्रेम जिम्मेदारी का काम है। तोह गलत होगा क्योंकि सर्वदा मैंने यह देखा है और पाया है की प्रेम केवल और केवल भाव प्रधान ही होता है जबकि इसके विपरीत आज के समय में लोगों ने इसको एक जिम्मेदारी का कार्य माना है यहीं कही हद तक सही है क्योंकि आज का समय भी शायद कुछ ऐसा ही है जिसको मनुष्य ने अपने हिसाब से बनाया है
Full Novel
प्रेम निबंध - भाग 1
प्रेम क्या है अमरता की निशानी या फिर सिर्फ एक जवानी जिसको हम जीना चाहते हैं या जिसको हम चाहते हैं अथक प्रयास करने के बाद भी वह नहीं मिलता है फिर सोचते हैं कि कितना बड़ा है जो कि हमें नहीं मिलता है क्योंकि मनुष्य यह बात तो सर्वथा जानता है कि अगर वे चाहें कुछ भी नहीं सकता प्रेम कैसी चीज है जिसे कूटनीति के द्वारा जीता नहीं जा सकता है सदैव यही बात मन में बनी रहती है एक आशंका की तरह और एक आशा की तरह अगर मैं कहूं की प्रेम जिम्मेदारी का काम है। ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 2
मैं सन 2012 में दिल्ली आया। एक बड़ा शहर बड़ी ख्वाहिश बड़े सपने और बड़ी मंजिलों को पाने के हर एक व्यक्ति ऐसे बड़े शहरों की ओर एक न एक बार जरूर रुक करता है मैं भी उनमें से एक था ऐसा लगता था मानो दिल्ली के लिए मन सतह प्रेमा कुल होता है जैसे कि जोधा अकबर की कहानी को भी दिल्ली ने ही कभी सजाया हो। मैं दिल्ली आ तो गया था जैसे तैसे करके हम लोग अपनी पेट पूजा भी कर लेते थे लेकिन बात सपनों की थी तरक्की की थी और किसी चीज को पाने ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 3
यह उन दिनों की बात है जब लोग कहा करते हैं कि संभल के चलो वरना जवानी में पैर जाएंगे। बस कुछ उनको ही फॉलो कर रहा था मैं। लेकिन मेरे साथ कुछ अजीब घटने वाला था यह मुझे खुद नहीं पता था। उस दिन मैं सुबह नहा धोकर आराम से स्कूल गया वहां पढ़ाई किया गपशप मारा और बहुत से दोस्तो के साथ बात चीत भी हुई। टीचर से शाबाशी भी मिली लेकिन मन अशांत था मेरे अंदर कुछ ना कुछ तो चल रहा था जो कि मुझे ही नहीं पता था इतना जरूर पता था। की आज मेरे बगल ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 4
ऐसी उम्र में जब बहुत संभल कर चलना चाहिए तब अगर कोई भी गलती से भी फिसल जाए तो उसकी जिंदगी का भविष्य कैसा होगा। खैर मैं इन सब बातो से अनजान एक मदिरा की एक बूंद जैसे मेरे सूखे होठों के अंदर बैठी जिव्हा ने जैसे ही अस्वादन किया हो और मैं किसी शराबी की तरह नाच रहा हू। ऐसा लग रहा था जब मैं पहली बार उनसे मिल रहा था। अब सिर्फ दिन रात उनका इंतजार और उनकी ही बाते होती थी। प्रेम केवल दो जिस्म का एक होना नही बल्कि उसका प्रथम अहसास और आभाष होना की ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 5
उनके अपने ही परिवार की संख्या अधिक थी। कोई यहां तो कोई वहा रहता था। अब वो तो पहली आई थी। तो घर के लोग कभी इनके यहां तो कभी उनके यहाँ पर उनको ले जाते थे। और मुझे डर लगता था कि मैं स्कूल से घर जाऊं और वो कही दूसरी जगह न हो। इस मरे कभी स्कूल में मन ही नही लगता था। अब तो सब वही है। ऐसा लगता था। हृदय बहुत कमाल की चीज है। जिसमे आपके और हमारे कई राज छुपे है। जिनको बयान करना इतना आसान नहीं है। इसलिए उनको छुपाते फिरते है। ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 6
हां,कुछ पल के लिए मैं सब कुछ भूल कर उसे निहारता रहा। सब कुछ इतना आसान नहीं होता। अर्थात को पाना या किसी को अपना बनाना। कोई ऐसी चीज जिसका मुझे आभास भी नही। कभी आप एक शांत जगह पर जाए। और सोचिए कि यह जो भी हो रहा है। यह करने का उचित समय है या नही। क्योंकि यह एक ऐसा नशा है जिसका पान करने के बाद आपको अहसास भी नही होगा की आप कहा है। दारू पीकर ड्राईवर संभल सकता है। मगर कभी इसका पान किया तो फिर आपका फिसलना संभव हो जायेगा। अगर प्रेम सच्चा ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 7
एक दिन की बात थी ये और मैं अकेले पड़ गए। और मै अपने कमरे में और ये अपने में। यह बात मुझे पता थी की ये उस वक्त अकेली है। खबर थी की नीचे का में गेट किसी ने बंद नहीं किया है। मैं सोचा की मौका अच्छा है। बहाने से उनसे मिलने का। मैं झट उठकर और बहाने से उनसे मिलने के लिए गेट को बंद करने के लिए गया। गेट बंद करके मैं वापस आ रहा था। की पीछे से कोई कहता है। की हेलो मैने मौके की तलाश को समझा और कहा जी बोलिए उन्होंने ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 8
इतना कहकर मैंने फोन का पिछला भाग उनको देकर और निकल गया। और छत की दहलीज पर जाकर कपड़े लगा। फिर उन्होंने काफी देर तक बात की उनसे और बाद में दादी जी ने आवाज लगाई और वो चली गई। फिर उस दिन से मैंने कभी चाची को फोन नही दिया और जब भी आता मैं फोन उठा लेता और शुरू होता बात करने के लिए बस बात करते करते एकान्त की ओर चला जाता था।घर से निकल कर कब फुलवाड़ी की ओर चला गया पता ही नही। कब खेत का रुख हो जाए पता ही नही कब मैं ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 9
अब समय वो नही था जब हमने साथ अपनी कहानी शुरू की थी। अब समय वो था की जब मिलकर निभाना था एक दूसरे का साथ और एक दूसरे का वादा जिस पर दोनो ही कायम थे। की छोड़ेंगे न हम तेरा साथ ओ साथी मरते दम तक मरते दम तक अगले जन्म तक। ये गाना बहुत सुना हुआ लागत है। प्यार का जो रूट या नेचर होता है वो बड़ा ही इलास्टिक होता है जीवन भर साथ निबाऊंगी। आपकी होकर रहूंगी। आपके शिवा किसी की भी नही। जिंदगी में आपके विचार का पालन करूंगी अपनी भी बात रखूंगी। ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 10
उनकी कॉल का इंतजार करके थक जाने के बाद मैं जाकर सो जाता हूं। और सोचता हूं। की क्या है और क्या गलत हे इसका निर्णय कौन कर सकता है। फिर कुछ दिन उनकी कॉल का इंतजार और जैसे तैसे फिर दिन बीते। एक दिन मैंने कॉल किया। लेकिन उन्होंने उठाया ही नही। मैसेज उसका भी कोई उत्तर नही। कभी कभी उनका रूठना और हमारा मनाना भी रहना चाहिए नही तो कली को सूखने में देर नहीं लगेगा। इसलिए उनका ख्याल रखो जो कभी आपको देखकर मुस्कुराते हो। बस यही प्यार है। आज कल वक्त कुछ देर से अपनी ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 11
तुम बता क्यों नही देते की तुम्हे मुझसे प्यार तो था ही नही बस कह दो ना और चले मेरा पीछा छुड़ा के मेरे पास से यार तुम मैं क्या कहूं तुम्हे। मतलब तुम किस मिट्टी के बने तुम्हे मेरी बात समझ नही आती क्या कुछ बोलो अब बोलते क्यों नही। मैं न सच्ची बता रही हूं। दुखी हों गई हूं। सारा दिन ऐसा क्या करते हो जो मुझसे बात नही कर पाते हो। शिवू यार तुम से दिन में तीन से चार बार तो बात करता हूं। अब इससे ज्यादा टाइम कहा से लाऊं। जो तुम्हे खुश कर सकू तुम्हे समझ ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 12
जब आपकी किसी से बात सही ढंग से न हो तब आपको बड़ा अजीब महसूस होने लगता है। की साथ क्या चल रहा है ? मुझे कई दफा बहुत चिंता भी होती थी। लेकिन इनके अंदर मैने हिम्मत तो देखी थी। जो की सच में कमाल की थी। थोड़े सघन वनों की तरह इनका मन हमेशा उलझा पाया। बस पहले जब यहां आई तो मम्मी की याद और अब मेरी याद। दोनो से रूबरू होना तो मुश्किल ही था लेकिन बहुत अनंत बार प्रयास करने पर हम कई दफा एक साथ हो जाते थे जहां कोई हमे परेशान करने ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 13
कहते हैं जब आप किसी से और कोई आपसे नित्य प्रति प्रेम भावना में होता है। तो साल दो चार साल कभी न कभी कही न कही वो आपके सम्मुख आ ही जायेगा। बस कुछ यूं ही कहानी को एक नया मोड़ मिलता गया। मैं अपने कार्यलय के काम में व्यस्त हो गया था। और एक दिन इनका फोन आता है। मुझे लगा की कोई ऑफिस से होगा। परन्तु जब मैंने देखा कि ये तो वहीं हैं। जिनका साल भर से इंतजार हो रहा था। पर ऑफिस के काम में व्यस्त होने से बस मैंने फोन नही उठाया। लेकिन ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 14
समय यात्रा करते करते कुछ और दिन यू ही बीते जैसे बीती रात बिना किसी चांद के फिर भी रात भी बीती। और दिन निकला बादलों की आड़ में। जैसे कुछ कुकर्म किए हो उसने। हम सब जानते है हीर रांझा और पतंग से मांझा तक का संबंध। फिर भी पता नही क्यों हम नही समझ पाते हैं। कुछ और हम बह जाते है। अभी कुछ वक्त हो चला था। कि मैं स्वप्न से जागा और देखा तो सामने थी मेरे अपने इतिहास से परे विश्व इतिहास की एक किताब जो की दुनिया के इतिहास बताती थी। बस मेरा ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 15
अब सब बताया है तो ये भी बता ही दो कब कर रही हो निकाह कुबूल उससे। जिसके जिस्म अमीरियत की बू सूंघ कर उसके पास चली गई। और इल्जाम मां बाप पर लगा रही हो। की सब उनकी मर्जी के हिसाब से है। एक आवाज़ आई : की जब भी हो तुमसे आखिर मतलब ही क्या है ? जो होना था वो तो हो ही गया न ,हिचके से स्वर में बोली : एक बात कहूं मैं आप को बहुत चाहती हूं। लेकिन आप मुझसे न जाने कितना दूर जाते जा रहे हो। क्या मुझसे कोई दुर्गंध आती ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 16
उस रात को मुझे भी कहीं न कहीं नींद नहीं आ रही थी। जिस कारण देर रात पढ़ाई करता लेकिन पढ़ाई के इलावा सब कुछ करता रहा। कुर्सी पर बैठे बैठे करवट लेना और उबासियां लेना। सोच रहा था। बीती बातें जो की कभी लोगों से सुना करता था। *प्रेम नगर मत जाना मुसाफिर प्रेम नगर मत जाना।*और कब सुबह हो गई कुछ पता ही न चला। मेरे हिस्से में फिर वही नियमवाली आई। और रोज की तरह मुझे लाइब्रेरी जाना हुआ।जो की कोई नई बात नही थी। जब मैं लाइब्रेरी पहुंचा तो फिर तय शुदा समय पर उनका ...और पढ़े
प्रेम निबंध - भाग 17
कहानी उससे आगे बढ़ती लेकिन उन्होंने कहानी में नया कथानक जोड़ दिया था इसलिए अब महता और मालवी को प्रकार से न चाहकर अलग होना ही था। कही न कही दोनो की गलती थी भी और नहीं भी। परंतु नियति को प्राथमिकता देते हुए मेहता मर्यादित पेश आना चाहते थे। जो की हुआ। उन्होंने अब मालवी को मिलने से मना कर दिया। और बहुत सारी बाते जो की मर्यादा में आती है। उनका पालन करने को कहा। बताया की अब मालवी का विवाह होना है। और वह किसी और से प्रेम में बंधेगी। इसलिए उसको अब मेहता से दूरी ...और पढ़े