आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को तलासने में यह काव्य संकलन-वो भारत है कहाँ मेरा । इन्हीं आशाओं के लिए इस संकलन की रचनाऐं आप सभी के चिंतन को एक नए मुकाम की ओर ले जाऐंगी यही मेरा विश्वास है।

Full Novel

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वो भारत! है कहाँ मेरा? 1

वो भारत! है कहाँ मेरा? (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को ...और पढ़े

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वो भारत! है कहाँ मेरा? 2

वो भारत! है कहाँ मेरा? 2 vo bharat kahan hai mera 2 (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार ...और पढ़े

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वो भारत! है कहाँ मेरा? 3

वो भारत! है कहाँ मेरा? 3 (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को तलासने में यह काव्य संकलन-वो भारत है कहाँ ...और पढ़े

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वो भारत! है कहाँ मेरा? 4

वो भारत! है कहाँ मेरा? 4 (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश ...और पढ़े

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वो भारत ! है कहाँ मेरा? 5

वो भारत! है कहाँ मेरा? 5 (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को तलासने में यह काव्य संकलन-वो भारत ...और पढ़े

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वो भारत! है कहाँ मेरा? 6

वो भारत! है कहाँ मेरा? 6 (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश ...और पढ़े

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वो भारत! है कहाँ मेरा? 7

वो भारत! है कहाँ मेरा? 7 (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को तलासने में यह काव्य संकलन-वो ...और पढ़े

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वो भारत! है कहाँ मेरा? 8

वो भारत! है कहाँ मेरा? 8 (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश ...और पढ़े

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वो भारत! है कहाँ मेरा? 9

वो भारत! है कहाँ मेरा? 9 (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को तलासने ...और पढ़े

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वो भारत! है कहाँ मेरा? 10

वो भारत! है कहाँ मेरा? 10 (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश ...और पढ़े

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वो भारत! है कहाँ मेरा? 11

वो भारत! है कहाँ मेरा? 11 (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश ...और पढ़े

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वो भारत! है कहाँ मेरा? 12

वो भारत! है कहाँ मेरा? 12 (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश ...और पढ़े

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