यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम

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छोटे-छोटे बल्बों की झालरों से घर और दरवाज़े झिलमिला रहे थे ।जैसे हर नन्हा बल्ब दुल्हन की ख़ुशी का इज़हार कर रहा हो।मैं उन्हें निहारकर उनमें अपनी मॉं के हंसते मुस्कुराते चेहरे को महसूस कर रही थी,जैसे वह खिलखिला कर आशीर्वाद दे रहीं हो-तुम्हारा जीवन सदा ख़ुशियों से भरा रहे ऐसा मुझे आभास हुआ ।मेरी भाभी और सखियों ने गहने पहनाकर साज -श्रृंगार कर साड़ी पहनाकर मुझे तैयार किया था ।मैं अपने आने वाले समय को लेकर चिंतित थी,तभी भैया आये मेरे सिर पर हाथ फिराकर बोले -तुमने खाना खाया? मैंने नहीं में सिर हिलाते हुए उत्तर दिया ।दीदी भी

Full Novel

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यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम

छोटे-छोटे बल्बों की झालरों से घर और दरवाज़े झिलमिला रहे थे ।जैसे हर नन्हा बल्ब दुल्हन की ख़ुशी का कर रहा हो।मैं उन्हें निहारकर उनमें अपनी मॉं के हंसते मुस्कुराते चेहरे को महसूस कर रही थी,जैसे वह खिलखिला कर आशीर्वाद दे रहीं हो-तुम्हारा जीवन सदा ख़ुशियों से भरा रहे ऐसा मुझे आभास हुआ ।मेरी भाभी और सखियों ने गहने पहनाकर साज -श्रृंगार कर साड़ी पहनाकर मुझे तैयार किया था ।मैं अपने आने वाले समय को लेकर चिंतित थी,तभी भैया आये मेरे सिर पर हाथ फिराकर बोले -तुमने खाना खाया? मैंने नहीं में सिर हिलाते हुए उत्तर दिया ।दीदी भी ...और पढ़े

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यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम - (2)

जैसे ही मैं नहाकर आई तभी मेरे ही मोहल्ले की लड़की मुझे बुलाने के लिए मेरे घर पर आई कहने लगी बड़ी ताईजी ने तुम्हें बुलाया है दीदी ।मैंने कहा ठीक है मेरे बाल गीले है ,सूख जायें तो चलेंगे और कपड़े घर के पहने हैं बदल लेती हूँ ।भाईसाहब की जो पेंट छोटी होगई थी वह मैंने पहन रखी थी उसके ऊपर ढीला कुर्ता पहना था ।उसने कहा नहीं दीदी देर हो जाएगी जल्दी चलना है वरना ताईजी डॉंटेंगी।ताईजी मोहल्ले में ही अगली गली में रहतीं थी और श्रृंगार का सामान अपनी दुकान पर बेचा करतीं थीं ।हमारी ...और पढ़े

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यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (3)

यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (1)और(2)आपके लिए प्रस्तुत है । जीवन में बहुत से लोगों से हम सब का होता है ।उनमें कुछ लोग नकारात्मक सोच के होते है,कुछ सकारात्मक सोच के साथ हमारे जीवन में ख़ुशियाँ बिखेरने के लिए तत्पर रहते है।(यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम में)नायिका की मुलाक़ात जिन लोगों से होती है ,वह आपके लिए प्रस्तुत है ।आपको अच्छा लगे तो अवश्य बतायें ??बात उन दिनों की है जब हम बहुत छोटे ,प्राइमरी स्कूल के विद्यार्थी थे ।प्रतिदिन अपनी तख्ती को सुंदर बनाने की कोशिश किया करते थे,जिस सहपाठी की तख्ती सुंदर नहीं हुआ करती उसको कक्षा में ...और पढ़े

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यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (4)

वर्तमान समय में नारी सशक्तिकरण की बातें चारों ओर सुनाई दे रहीं है।बात बहुत पुरानी है उस समय कोई तरह की बातें नहीं करता था।लेकिन हमारे आस-पास बहुत सी नारियाँ ऐसी थीं जिन्होने हमारे बाल मन पर गहरी छाप छोड़ी।बात उन दिनों की है जब हम जूनियर कक्षा में थे ।स्कूल से घर आने पर अल्पाहार लेने के बाद अपना गृहकार्य पूरा कर लेते थे, फिर अपने मित्रों के साथ खूब मस्ती करते हुए खेलते थे।हमारे घर के नज़दीक एक परिवार रहता था।उस परिवार की महिला बहुत मृदुभाषी,सरल स्वभाव की थीं ।हमारी माता जी को वह सासू मॉं की ...और पढ़े

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यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (5)

शादी के बाद मुझे ससुराल में रहने का अवसर तो मिला लेकिन जहॉं पैत्रिक घर था , सासू मॉं थीं वहाँ रहने का अवसर मुझे नहीं मिला था।शादी के समय में परीक्षा थी,परीक्षा अच्छी नहीं हुई।नंबर बहुत कम आये तो ,उसी कक्षा में दोबारा परीक्षा देने का निर्णय लिया गया और फार्म भी गृह जनपद से ही भरा ।अब सासू मॉं के पास रहकर पढ़ाई करनी थी ,मन में बहुत से प्रश्न उठ रहे थे कैसे हो पायेगा ।हमारी मॉं बहुत ही साहसी और कर्मठ महिला थीं लेकिन मेरी दो जेठानी जो मुझसे पहले परिवार में आई थी उनकी ...और पढ़े

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यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (6)

मातृभारती के सभी सदस्यों और पाठकों को मेरा नमस्कार ? यादों के झरोखों से —निश्छल प्रेम (1),(2),(3),(4),(5)आपने पढ़ी कैसी रेटिंग करके अवश्य बताइएगा।जिन्होंने पढ़ी,पसंद की उनका हृदयतल से आभार ? यादों के झरोखों से—निश्छल प्रेम (6)प्रस्तुत है।एक दिन मैं बहुत ही उदास अपनी लाइब्रेरी में बैठी थी तभी पीछे से आकर किसी ने मेरी दोनों आँखें हाथों से बंद कर दी,मैंने हाथों से टटोलने के बाद जाना यह तो मेरी प्रिय सहेली नीति है।मैं आज कॉलेज तो आई थी लेकिन कक्षा में नहीं गई थी।नीति मेरी कक्षा में नहीं पढ़तीं थी ...और पढ़े

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यादों के झरोखों से—निश्छल प्रेम (7)

संसार में कुछ लोगों का सानिध्य ठंडी फुआर की तरह जीवन में ठंडक दे जाता है ।महाराज जी ऐसे व्यक्ति थे।वह कोई पीले ,नारंगी या केसरिया कपड़े नहीं पहनते थे।साधारण सफ़ेद धोती और कुर्ता पहनते लेकिन उनका व्यवहार और आचरण ऐसा था कि उन्हें सब आदर से महाराज जी ही कहते थे।महाराज जी का भरा-पूरा परिवार था।बड़ी तीन बेटियों की उन्होंने शादी कर दी थी ।बड़े बेटे की शादी हो चुकी थी ,वह बाहर रहते अपने परिवार के साथ ।बेटियों की शादियाँ उन्होंने बड़े ही धूमधाम से की।उसके बाद सब कुछ अच्छा ...और पढ़े

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यादों के झरोखों से—निश्छल प्रेम (8)

यादों के झरोखों से—निश्छल प्रेम (8) आपके सामने प्रस्तुत है।मातृभारती के सम्मानित पाठकों को,सम्मानित रचनाकारों को नमस्कार । मैं भोजन बनाने के लिए रसोईघर में जा रही थी तभी मेरी मित्र ने मुझे दरवाज़े से पुकारा—- सुबह के समय मेरी मित्र शारदा का मेरे घर आना मुझे अचंभित सा लगा ।अपनी चिंता प्रकट करते हुए मैंने पूँछ ही लिया,क्यों क्या हुआ सब ठीक तो है। शारदा मेरी घनिष्ठ मित्रों में से एक थी मेरी चिंता को भाँपते हुए बोली— अरे सब ठीक है बैठने तो ...और पढ़े

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यादों के झरोखों से —निश्छल प्रेम (9)

यादों के झरोखों से निश्छल प्रेम (9)प्रस्तुत है जब भी मोहल्ले में दुखद घटना होती अम्मा को हमने हमेशा दुखी परिवार के साथ देखा था । पूरे मोहल्ले के बच्चे उन्हें अम्मा ही कहते थे। एक दिन हम बच्चे स्कूल से आ रहे थे,तभी मोहल्ले की भीड़ के साथ अम्मा भागी हुई जा रही थी उस समय कुछ समझ नहीं आया । घर जाकर हमने अपने बस्ते को पटका और मॉं को बताया ।जिस को भी यह बात पता थी वहीं अम्मा ...और पढ़े

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यादों के झरोखों से—निश्छल प्रेम (10) - अन्तिम भाग

बात उन दिनों की है जब स्कूटर,मोटरसाइकिल,कार महिलाएँ बहुत ही कम चलाया करती थी । इंटरमीडिएट करने के बाद जब हमारा दाख़िला डिग्री कॉलेज में हुआ था ,तब हम सहेलियों के साथ पैदल जाते ।कभी साइकिल से जाते तो कभी-कभी एक ही साइकिल से दो सहेलियाँ एक साथ चले जाते थे। हमारी सहपाठी दो सहेलियाँ कॉलेज से पॉंच किलोमीटर दूर रहती थी,वह प्रतिदिन साइकिल से ही कॉलेज आती थी।स्कूटर या स्कूटी की कोई व्यवस्था नहीं थी न ही किसी का ध्यान इस ओर आकर्षित होता था।एक ...और पढ़े

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