सपनों को पूरा करने निकली वासंती अपने रिश्तों को ही खो बैठी। जब फिर से अतीत की गलियों ने उसे पुकारा तो वह अनिष्ट की आशंका से घबरा गई। मगर प्रतीक ने आश्वासन दिया कि कोई है वहां उसकी सुरक्षा के लिए। कौन था वो….
Full Novel
आखा तीज का ब्याह - 1
आखा तीज का ब्याह सारांश सपनों को पूरा करने निकली वासंती अपने रिश्तों को ही खो बैठी। जब फिर अतीत की गलियों ने उसे पुकारा तो वह अनिष्ट की आशंका से घबरा गई। मगर प्रतीक ने आश्वासन दिया कि कोई है वहां उसकी सुरक्षा के लिए। कौन था वो…. ***** आखा तीज का ब्याह (1) श्वेता ने तिलक राज के केबिन में प्रवेश किया| तिलक राज उस वक्त कुर्सी पर बैठा अपनी कनपटियाँ मसल रहा था| वह समझ गयी कि तिलक बहुत परेशान है| “आप परेशान लग रहे हैं?” “नहीं! बस थोड़ा सर दर्द हो रहा था|” तिलक ने ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 2
आखा तीज का ब्याह (2) वासंती कार से उतर कर धीरे धीरे सधे कदमों से यूनिवर्सिटी के हॉल की चल पड़ी जहाँ दीक्षांत समारोह चल रहा था| हॉल की सजावट देखते ही बनती थी| आज यूनिवर्सिटी का ज़र्रा ज़र्रा जैसे वासंती की ही राह देख रहा था| जैसे ही उसने हॉल में प्रवेश किया सभी लोगों की निगाहें उसकी ओर उठ गई| वासंती के दिल की ख़ुशी चेहरे पर चमक बिखेर रही थी| वह ख़ुशी होती भी क्यों नहीं आखिर आज उसकी ज़िन्दगी का वो ख़ास दिन जो था जिसका उसने वर्षों पहले सपना देखा था और जिसके लिए ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 3
आखा तीज का ब्याह (3) प्रतीक के हॉस्पिटल जाने के बाद वासंती ने अपनी सासुमां को फोन लगाया, "हैलो! मम्मा!" "खुश रहो बेटा! कैसे हो! हमारी परी वनू कैसी है?" "बहुत बदमाश हो गई है मम्मा। पूरा दिन शरारतें करती रहती है। आपको और पापा को याद भी बहुत करती है।" "हां तो कभी लेकर आओ न उसे। जोधपुर कौनसा दूर है।" "जी मम्मा! जल्दी ही आते हैं। अभी तो प्रतीक ने एक नयी मुश्किल खड़ी कर ली है। उन्होंने मेरे गांव के पास ही किसी एनजीओ का नया खुल रहा हॉस्पिटल ज्वॉइन करने का मन बनाया है। नेक्स्ट ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 4
आखा तीज का ब्याह (4) कैसा है ये प्रतीक भी! उसके मन की हर बात को भांप जाता है उनका हल भी निकल लेता है| इन दिनों उसे अपने माता-पिता की बहुत याद आ रही थी, और शायद प्रतीक समझ गया था, तभी उसने यह ऑफर स्वीकार किया था| प्रतीक ने हमेशा उसकी मदद की है| हालाँकि पहले उसे वह अधिक पसंद नहीं आया था| उनकी पहली मुलाकात हुई ही कुछ ऐसे हालात में थी कि वह प्रतीक के लिए अपने मन में गलत धारणा बना बैठी| वासंती को अपने मेडिकल कॉलेज का पहला दिन याद आ गया| और साथ ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 5
आखा तीज का ब्याह (5) अभी तो बसंती इस नए माहौल में खुदको ढालने की कोशिश कर ही रही कि फ्रेशर्स पार्टी नाम की एक नयी मुसीबत उसके सर पर आ पड़ी| जबसे क्लास में वीणा मैम ने इस पार्टी के बारे में बताया है सभी लड़के लड़कियाँ ख़ुशी से उछल रहे थे पर वह तनाव में थी| “सवीता, ये फरेसर पार्टी क्या होती है?” “पहली बात मेरा नाम सविता नहीं श्वेता है दूसरा फरेसर पार्टी नहीं फ्रेशर्स पार्टी| तुम ठीक से बोलना कब सीखोगी बसंती| तुम्हारे इस लहज़े के कारण ही सब तुम्हारा मज़ाक उड़ाते हैं और फिर ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 6
आखा तीज का ब्याह (6) ‘वासंती’, प्रतीक की आवाज से वासंती चौंक पड़ी, उसे अपनी विचार श्रंखला में यह पसंद नहीं आया, उस दिन वह दोहरा सफर कर रही थी, उसका शरीर भले ही कार में सबके साथ था पर उसका मन अतीत की गलियों घूम रहा था उसने सवालिया निगाहों से प्रतीक की ओर देखा, ‘चलो चाय पीते हैं, थोड़ा आराम भी हो जायेगा,’ प्रतीक ने गाड़ी एक ढाबे पर रुकवा ली थी ढाबे पर प्रतीक ने वन्या के साथ खूब मस्ती की, वन्या ने साथ तो वासंती का भी चाहा था पर उस दिन वासंती कहीं और ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 7
आखा तीज का ब्याह (7) जाने अनजाने प्रतीक और वासंती की दोस्ती कुछ अलग मोड़ लेने लगी थी| उन्हें दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा था| उनके दोस्त भी अब उन दोनों के बारे में बातें करने लगे थे| जिन्हें सुनकर प्रतीक खुश होता पर वासंती ग्लानी अनुभव करती| इन लोगों के लिए यह कोई बहुत बड़ी या गलत बात नहीं थी बल्कि वहाँ तो सभी का नाम किसी ना किसी के साथ जुड़ा था फिर चाहे रिया हो या रजत, या फिर शशांक, हर किसी का कोई ना कोई खास दोस्त था, जिसके साथ वह सिर्फ़ कॉलेज में ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 8
आखा तीज का ब्याह (8) इस बार जब वासंती गाँव गयी तो श्वेता भी उसके साथ ही थी| श्वेता पापा के किसी रिश्तेदार का निधन हो गया था और वे उसकी मम्मा को लेकर वहां चले गए थे और भाई भी ट्रेनिंग के सिलसिले में जर्मनी गया हुआ था तो वह अकेली अपने घर जाकर क्या करती इसलिए वासंती के साथ यहाँ चली आई| वासंती के घर पर श्वेता का स्वागत हुआ पर वह अपने परिधान के कारण कुछ असहज महसूस कर रही थी| पर उसकी समस्या यह थी कि वह जींस-टॉप और स्कर्ट्स के आलावा कुछ नहीं लाई ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 9
आखा तीज का ब्याह (9) “ओहो, अब तो हमारी डॉ. वासंती होटल की मालकिन बन गयी है| अगर कभी तुम्हारे यहां घूमने आये तो तिलकजी को कह कर डिस्काउंट तो दिला दोगी ना|” श्वेता ने कुछ शरारत भरे अंदाज़ में वासंती से पूछा| आज वह पूरी तरह से मस्ती के मूड में थी, होती भी क्यों नहीं आज उसकी मेहनत जो रंग लायी थी| वह अपने दोनों दोस्तों वासंती और तिलक को एक साथ खुश देखना चाहती थी और इसीलिए उसने तिलक को होटल खोलने का जो सुझाव दिया था वह तिलक के लिए लाभकारी सिद्ध हो रहा था| ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 10
आखा तीज का ब्याह (10) श्वेता का अंदाज़ा गलत नहीं था तिलक सच में बहुत परेशान था| उसने अवसादग्रस्त खुदको पूरी तरह शराब में डूबा दिया था| कोई काम नहीं होता था उसके पास बस पूरा दिन वह और उसकी बोतल| तिलक की इस मानसिक प्रताड़ना के उस दौर में वह खुद अपने साथ जाने क्या कर बैठता अगर श्वेता ना होती| उसने अपनी ज़िन्दगी मरुस्थल की तरह बना ली थी बिल्कुल उजाड़, पर एक दिन कहीं से सावन की बदली सी श्वेता आ गयी| श्वेता थी तो वासंती की दोस्त पर दोस्ती मगर वक्त ने उसे तिलक की ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 11
आखा तीज का ब्याह (11) आखिर श्वेता के वापस जाने के दिन पास आ गए थे। उसने काकाजी को का किराया देने की कोशिश की तो उन्होंने पैसे लेने से साफ़ मना कर दिया| उसने दोबारा कहा तो तिलक की माँ बोल पड़ी, “ना छोरी म्हें थारे सूं किरायो कोनी लेवां|” “क्यों काकीजी, ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 12
आखा तीज का ब्याह (12) वासंती के तलाक के बाद से ही उसके परिवार का कोई भी सदस्य उससे ही नहीं कर रहा था| यहाँ तक की उसने जब अपनी माँ को फ़ोन लगाया तो उन्होंने भी बिना बात किये ही फ़ोन काट दिया| जिस वासंती को अखबारों व सामाजिक संस्थाओं ने एक आदर्श की तरह पेश किया था, जो कन्या शिक्षा और समाज में फैली बाल विवाह जैसी कुरीती के ख़िलाफ़ अपने संघर्ष के चलते अखबारों की सुर्ख़ियों में छाई रहती थी उसी वासंती से उसके घर वालों ने रिश्ता ही तोड़ दिया था| वह अपने घरवालों की ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 13
आखा तीज का ब्याह (13) तिलक होटल के कमरे में कुर्सी पर बैठा सिगरेट के धूंए के छल्लों के अपने मन का गुबार निकाल रहा था, उसकी आँखें लाल सुर्ख हो रही थी| आज बहुत दिनों बाद उसने शराब पी और बेहिसाब पी| मानों उस रंगीन पानी की बोतल में ही उसकी हर समस्या का हल था| उसका मोबाईल बार बार बज रहा था और वह बार बार फोन काट देता, पर फोन बजाना बंद नहीं हुआ तो आखिर उसने खीज कर फोन उठा ही लिया| “हेलो”, नशे में तिलक की आवाज़ बहुत भारी हो गई थी “पापा”, फोन ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 14
आखा तीज का ब्याह (14) "मम्मा! मम्मा! देखो, देखो!” वन्या का आल्हादित स्वर कानों में पड़ा तो वासंती की टूटी| उसे लगा जैसे वह गहरी नींद से जागी| उसने चौंक कर वन्या की और देखा वह कार से बाहर के नज़ारे देख देख कर खुश हो रही थी| वो लोग रामपुर पहुँचने वाले थे| रामपुर! रामपुर तो वासंती की ननिहाल थी। यहीं पैदा हुई थी वह अपनी नानी के घर, कितनी ही यादें जुडी हैं यहाँ से उसकी| रामपुर से कुछ ही दूरी पर तो है उसका गाँव| वासंती के दिल में ख़ुशी और भय के मिले जुले से ...और पढ़े
आखा तीज का ब्याह - 15 - अंतिम भाग
आखा तीज का ब्याह (15) आज हॉस्पिटल का शुभारम्भ था| तिलक सुबह से तैयारियों में जुटा था, नीयत समय समारोह शुरू हो गया था| एक बड़े से शामियाने के तले मंच पर विशिष्ट अतिथियों के बैठने की व्यवस्था थी| राजनेता, सरकारी अधिकारी जैसे बड़े और खास लोग ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में आम ग्रामीण लोग भी इस समारोह में शिरकत करने आये थे| तिलक की लोकप्रियता देख कर प्रतीक और वासंती तो हैरान ही रह गये| लोगों का हुजूम उमड़ा था तिलक को सुनने के लिए| रिबन काट कर इलाके के एम.एल.ए. ने हॉस्पिटल का उदघाटन किया| जब ...और पढ़े