तुलसी पत्नी का ताना सुनकर घर छोड़कर निकल पड़े। घर में उनकी पत्नी रत्नावली सारी रात दरवाजे पर खड़ी-खड़ी उनके लौटने की प्रतीक्षा करती रही। वे सोच रही थीं-अब मैं उनका मुस्कराकर हर दिन की तरह स्वागत करुँगी। यह सोचकर वे मुस्कराकर देखती हैं पर उनकी मुस्कराहट शंका के ऑँगन में विलीन हो जाती है। सुबह होने को है। वे वापस नहीं लौटे। पति-पत्नी के बीच तानों का लेन-देन तो चलता ही रहता है। तुम भी तो अपनी साहित्यिक भाषा में मुझसे क्या-क्या नहीं कहते थे। मैंने बात कुछ इसी तरह कह दी तो रूठ कर चले गये। तुम्हें पता नहीं है, भौजी बड़ी वो हैं। मजाक-मजाक में ऐसीं-ऐसीं बातें कह जाती हैं कि मन आहत हुये बिना नहीं रहता।

Full Novel

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रत्नावली 1

एक तुलसी पत्नी का ताना सुनकर घर छोड़कर निकल पड़े। घर में उनकी पत्नी रत्नावली सारी रात पर खड़ी-खड़ी उनके लौटने की प्रतीक्षा करती रही। वे सोच रही थीं-अब मैं उनका मुस्कराकर हर दिन की तरह स्वागत करुँगी। यह सोचकर वे मुस्कराकर देखती हैं पर उनकी मुस्कराहट शंका के ऑँगन में विलीन हो जाती है। सुबह होने को है। वे वापस नहीं लौटे। पति-पत्नी के बीच तानों का लेन-देन तो चलता ही रहता है। तुम भी तो अपनी साहित्यिक भाषा में मुझसे क्या-क्या नहीं कहते थे। मैंने बात कुछ इसी तरह कह दी तो रूठ कर ...और पढ़े

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रत्नावली 2

रत्नावली रामगोपाल भावुक दो आज स्वामी को गये कितने दिन हो गये! उन्होंने मेरी तो मेरी, मुन्ना की भी सुध नहीं ली। ऐसा भी निर्मोही कोई होता है। सोचते होंगे, आप मेरे पास नहीं हैं तो क्या हुआ ? मुन्ना तो है। नारी एक ऐसी लता है जो दरख्त के सहारे ही ऊपर चढती है, नहीं तो धरती पर ही लोटती रहती है। हम नारियों को इस तरह निर्बल नहीं बनना चाहिए कि बिना सहारे के पग भी न चल सकें। बचपन में मॉँ बाप के सहारे ,युवावस्था में पति के सहारे और वृद्धावस्था में पुत्र ...और पढ़े

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रत्नावली 3

रत्नावली रामगोपाल भावुक तीन दीनबंधु पाठक की पत्नी बहुत पहले ही चल बसी थी। भाई विंदेश्वर की पत्नी केशर और उसका लड़का गंगेश्वर, उसकी पत्नी शान्ती घर के सदस्यों में थे। इसके अतिरिक्त रत्नावली एवं उसका पुत्र तारापति का भार और अधिक बढ़ गया था। जब से पण्डित दीनबन्धु पाठक ने यह सुना कि दामाद ने वैराग्य ले लिया है तब से वे भी मन से पूरे बैरागी बन गये। घर गृहस्थी में मोह न रह गया था। घर चलाने की दृष्टि से मन से बैरागी होने के बाद भी वे पाँण्डित्य वृति से नाता ...और पढ़े

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रत्नावली 4

रत्नावली रामगोपाल भावुक चार पण्डित सीताराम चतुर्वेदी धोती वाले पण्डित जी के नाम से प्रसिद्ध थे। लोग धोती वाले पण्डित जी के नाम से ही उन्हें जानते थे। वैसे तो सभी पण्डित धोती पहनते थे पर वे आधी धोती पहने और आधी ओढ़े रहते थे। पण्डित जी ने धोती पहनने का औरों की अपेक्षा नया तरीका अपना रखा था। भगवान शंकर के नाम पर शिष्यों से दक्षिणा लेने निकल पड़ते थे। आसपास के बीस कोस क्षेत्र के गाँवों में पण्डित जी के शिष्य बसते थे। काछी जाति के पुरोहित के रूप में वे प्रसिद्ध हो चुके ...और पढ़े

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रत्नावली 5

पाँच सोच जागरण से मनुष्य में सहनशक्ति बढ़ जाती है। हर दर्द का प्रारम्भ असहनीय होता है। धीरे-धीरे वह दर्द सहनीय बनता जाता है। दर्द से सहनशक्ति तो बढ़़ती ही है इसके साथ आदमी में अनन्त आत्मविश्वास भी बढ़़़ता जाता है। जीवन के प्रति आस्थायें गहरी हो जाती हैं। यों सोचकर पण्डित दीनबन्धु पाठक कुछ दिनों से निश्चिंत रहने लगे थे। शनैःशनैः चिन्तन ने असहनीय पीड़ा को सहनीय बना दिया था। रत्ना इन परिस्थतियों में मुस्कराना सीख रही थी। वह जान गयी थी, अब उसकी मुस्कराहट ही समाज के सामने शान से जीने का काम ...और पढ़े

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रत्नावली 6

रत्नावली रामगोपाल भावुक छह रत्नावली का तारापति के कारण ही कुछ मन लग गया था। वह कुछ न कुछ बोलने लगा था। घर के सभी लोग उसे खिलाने का आनन्द लिया करते। नानाजी उसे गाँव में लिए फिरते। अब रत्ना ने अपने जीवन की सारी आशायें पुत्र पर टिका दी थीं। और वह सोचने लगी थी कि उसका समुचित विकास मामा के घर में नहीं, अपने ही घर में हो सकता है। आज यह छोटा है, कल बड़ा होगा। भैया-भाभी अभी अपनापन दिखा रहें हैं, कल के बारे में कौन जाने किसका व्यवहार कैसा ...और पढ़े

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रत्नावली 7

रत्नावली रामगोपाल भावुक सात नाव राजापुर के घाट लगी। घाट पर कुछ लड़के खड़े थे। रत्ना मैया को देखकर चिल्लाने लगे-‘मैया आ गयीं। मैया आ गयीं।‘ मैया नाव से उतर आयीं। एक लड़के ने आगे बढ़कर तारापति को ले लिया। गणपति मैया का सामान लिए था। घर यमुना के किनारे पर ही था। घाट से ऊपर चढ़कर ऊॅंचे पर घर बना था, जिससे बाढ़ के वेग से बचा रह सके। सभी घर आ गये। शास्त्री जी के समय से ही घर के कामकाज में मदद एक महिला करती थी। उसका नाम था हरको। हरको के ...और पढ़े

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रत्नावली 8

रत्नावली रामगोपाल भावु आठ महेबा की तरह रत्नावली यहाँ भी जल्दी सोकर उठ जाती। उसने अपनी दिनचर्या गोस्वामी जी की तरह बना ली थी। स्नान-ध्यान में कोई विध्न नहीं पड़ता था। वाल्मीकि रामायण का पाठ, रामनाम की माला, यही दैनिक जीवन के क्रम में आ गया था। कार्य से निवृत्त हो पाती कि तारापति उठ जाता। फिर उसे निपटाने में समय निकल जाता। धनिया आ गयी थी जो बर्तन लेकर नदी पर चली गयी। गंगेश्वर रोज महेबा जाने की कहता, बहन बुरा मन बना लेती तो रह जाता था। उसने पिछले दिन चेतावनी दे दी ...और पढ़े

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रत्नावली 9

रत्नावली रामगोपाल भावुक नौ कब से हरको भी वहाँ आकर खड़ी हो गयी थी! पर वह रत्ना की सोच में व्यवधान नहीं बनना चाहती थी। सो, जब वे अपने सोच से बाहर आ गयी तो वह धीरे से बोली-‘भौजी, किताबें देख-देखकर आप मुझे देती जायें, मैं जमाती जाती हूँ।‘ रत्नावली ने एक हस्तलिखित पुस्तक उसके हाथ में दे दी। पुस्तक लेते हुये हरको बोली-‘भौजी मुझे भी पढना-लिखना सिखा दो ना।‘ यह सुनकर रत्नावली बोली-‘यह तुम्हारा अच्छा विचार है। लेकिन डॉँट खाना पड़ेगी। फिर कहोगी भौजी डॉँटती हैं।‘ हरको गम्भीर हो कर बोली-‘भौजी, गुरु को ...और पढ़े

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रत्नावली 10

रत्नावली रामगोपाल भावुक दस संसार अपनी तरह ही दूसरों का मूल्याँकन करता है। मानवीय कमजोरियों को भी अपनी तरह ही दूसरों पर आरोपित करने में उसे जरा भी संकोच नहीं होता। हरको यही सोच रही थी कि उसे महावीर प्रसाद जैन के यहाँॅ से बुलाना आया। उनके लड़के को मियादी बुखार बन गया है। रात भर किसी न किसी को जागना पड़ता है। सो किसे बुलाया जावे ? गाँव भर में एक ही नाम था हरको। हरको रत्नावली से आज्ञा लेकर उसके यहाँॅ चली गयी। जब दो दिन बाद वह लौट कर आयी। आते ही रत्नावली ...और पढ़े

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रत्नावली 11

रत्नावली रामगोपाल भावुक ग्यारह जीवन में कुछ काम खेल की तरह आनन्द देते हैं। यही सोचकर रत्नावली खेल जैसा आनन्द पठन-पाठन में लेने लगी थीं। शास्त्री जी के प्रथम शिष्य गणपति को पढ़ाने का दायित्व अपने हाथ में लेने से उन्हें आनन्द की अनुभूति हो रही थी। उसके पिता विधवत् अध्ययन जारी कराने के लिए चक्कर लगा रहे थे। कुछ दिनों से रत्नावली इस उधेड़बुन में रहने लगी कि अध्ययन किस प्रकार शुरू किया जाये ? पुरानी परम्परा और नये परिवेश में द्वन्द्व छिड़ गया था। लेकिन सबसे पहली बात थी, ...और पढ़े

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रत्नावली 12

रत्नावली रामगोपाल भावुक बारह राजापुर गॉँव यमुना की कछार में बसा है और रत्नावली का घर यमुना के किनारे पर। घर का मँह यमुना की तरफ खुलता है। घर से निकलते ही दिखता है, यमुना का प्रवाह। भरपूर फसलें देने वाली उपजाऊ मिट्टी।.... बसन्त के सुहावने मौसम की समाप्ति। मौसम का परिवर्तन। लोग बीमार पड़ने लगे। छूत के रोग की तरह बीमारियॉँ गाँव भर में फैल गयी। हरको व रामा भैया लोगों की सेवा में लग गये। रात तारापति खूब खीजा। उसे चुप कराने में रत्नावली रुऑँसी हो गयी। फिर भी वह चुप न ...और पढ़े

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रत्नावली 13

रत्नावली रामगोपाल भावुक तेरह आस्थाओं-अनास्थाओं में युगों-युगों से संघर्ष होता रहा है। विजयश्री कभी आस्थाओं को मिली है, कभी अनास्थाओं को। आस्थाहीन मानव को लोग भटका हुआ मानते हैं। वह जिस चिन्तन में अपने को आत्मसात् किये रहता है उसमें उसका आत्मविश्वास पर्वत की भॉँति अटल अविचल खड़ा होता है। आस्थाओं वाले धरातल के तथ्य को वह अपने तर्कों की अनुभूतियों से काट फेंकता है। इनमें उसका कोई न कोई दर्शन अवश्य होता है।... रामा भैया रात भर ऐसी ही बातें सोचते रहे। और रत्नावली रात भर सोचती रही - मैंने जाने ...और पढ़े

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रत्नावली 15

रत्नावलीरामगोपाल भावुक पदह रत्नावली जैसे ही चटाई डालकर लेटीं, सोमवती के बाद मिलने के काल्पनिक विम्ब मन ही मन लगीं। यों ही सोचते-सोचते थकावट के कारण पता नहीं कब नींद लग गयी ? सोमवती के दिन घाट पर बहुत अधिक भीड़ थी। ये लोग भी भीड़ के कारण दिन निकलने तक निवृत हो पाये। कामतानाथ के दर्शन करने जाना ही था। वे राम घाट से निकल कर नाले को पार करते हुये गाड़ी की गड़वात के रास्ते से चलते हुये कामदगिरि पर्वत के मुखारविन्द पर जा पहंचे। वहॉं भगवान कामतानाथ की मूर्ति के उन्होंने भक्ति भाव से दर्शन किये। ...और पढ़े

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रत्नावली 14

रत्नावली रामगोपाल भावुक चौदह भूतकाल की घटनायें वर्तमान के लिए प्रेरक का कार्य करती हैं, जब हम भविष्य के लिए योजनायें बुनने लगते हैं। तब भूतकाल के अनुभवों के कारण भटकाव का भय नहीं रहता। मैंने तो ऐसे ही उनके पथ को पल्लवित करने का व्रत लिया है। अब उनसे मिलने तो जाना ही है। देखें, वे मेरे बारे में क्या हल निकालते हैं ? हे राम जी, जरा उनके मन में बैठ जाना। हे सीता मैया उनके मन को फेर देना। बस मुझे शरण दे दें। मैं कभी उनके पथ में रोडे़ बनने का किन्चित ...और पढ़े

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रत्नावली 16

रत्नावली रामगोपाल भावुक सोलह होली के पावन पर्व पर हम होली न खेलें। फिर भी उसके छींटे ऊपर पड़े बिना नहीं रह सकते। यह सोचते हुये हरको अपने पति की शिकायत करते हुये रत्नावली से बोली-‘देखो तो भौजी, आज वो होली में मेरा रास्ता रोककर खड़ा हो गया- बड़ी, छोटी से तो मेरा जी भर गया। ऐसा कर, छोटी को गुरुआन के यहॉं पहॅँचा दे और तू घर में आकर रहने लग। उसने मेरे कान भर-भर के तुझे घर से निकलवा दिया। अब हर घड़ी लड़ती रहती है।‘ भौजी मैंने तो उससे कह दिया-‘मैं अब ...और पढ़े

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रत्नावली 17

रत्नावली रामगोपाल भावुक सत्रह जब जब सोमवती का अवसर आता है। रत्नावली स्थूल शरीर से तो राजापुर में ही बनी रहतीं। लेकिन सूक्ष्म शरीर से वह चित्रकूट के दर्शन में रम जातीं। राजापुर में रहते हुये भी आंखों के सामने से चित्रकूट के दृश्य न हटते। यों सोमवती का पर्व निकल जाता। पठन-पाठन का क्रम बन्द नहीं हुआ था। बच्चे पढ़ने आते रहते थे। उससे गुरु दक्षिणा मिल जाती। जिससे गुजर चलती रहती थी। गणपति का अध्ययन पर्याप्त हो गया था। वे गाँवके प्रतिष्ठित व्यक्ति बन चुके थे। रमजान का अध्ययन छूट गया था उसके यहाँ ...और पढ़े

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रत्नावली 18

रत्नावली रामगोपाल भावुक अत्ठरह राजापुर के घाट से गोस्वामी जी को लोग विदा करके आये थे, उसी दिन से उनके मन में काशी की यात्रा करने की बात बारम्बार आती रहती थी। जब भी दो तीन बुजुर्ग मिलते, तीर्थ यात्रा पर जाने की योजना बनाने लगते। गणपति इस योजना में विशष् भूमिका निभाने लगे। कुछ लोगों को साथ चलने के लिए उकसाने लगे। धीरे-धीरे कुछ लोगों के मन यात्रा पर जाने के लिए बन गये। अब रत्ना मैया को तैयार करने का काम ही शेष रह गया। रत्नावली अब रत्ना मैया के नाम ...और पढ़े

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रत्नावली 19

रत्नावली रामगोपाल भावुक उन्नीस कभी-कभी जीवन में आनन्द की अनन्त सम्भावनायें दिखने लगती हैं। तब पिछले सारे घाव भर जाते हैं। युग-युग तक जीने की इच्छा होने लगती है। जो जीवन कोसा जाता था वही सराहा जाने लगता है। सिर पर रामचरित मानस की प्रति रखे सभी राहगीरों के साथ रत्नावली चलती जा रही थीं और इस तरह जाने क्या-क्या सोचती भी जा रही थीं। मानस की प्रति को राजापुर बासी क्रम से अपने-अपने सिर पर रखकर मंजिल तय कर रहे थे। रास्ते भर सभी इसी तुकतान में रहे, कब उन्हें वह पवित्र ग्रंथ सिर पर रखने ...और पढ़े

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रत्नावली 20

रत्नावली रामगोपाल भावुक बीस रामचरित मानस की कथायें जन चर्चा का विषय बन गयीं। कस्बे के लोग इन चर्चाओं में भाग लेने रत्नावली के पास आने लगे। सुबह से शाम तक आने-जाने वालों का ताँता लगा रहता। सुबह शाम मानस का पाठ। मध्यांतर में मानस के प्रसंगों पर चर्चा। भोजन पानी के समय भी लोग यही चर्चा करते रहते। लोगों के घरों में भी यही चर्चा का विषय बन गया था। घर के लोग जब बातें करते तो यही चर्चा और कहीं कोई मेहमान आ गया तो फिर इस चर्चा के अलावा दूसरी कोई बात ही ...और पढ़े

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रत्नावली 21 अन्त

रत्नावली रामगोपाल भावुक इक्कीस वृद्धावस्था आने पर ज्ञानी लोग महसूस करने लगते हैं कि वे मृत्यु के निकट पहॅुँच रहे हैं। इससे वे दुःखी नही होते। आखिर जर्जर शरीर से मुक्ति का अंतिम उपाय मृत्यु ही है। इस चिर सत्य को जानकर वे खिन्न नहीं होते बल्कि इससे उनका उत्साहवर्धन ही होता है। मृत्यु के बारे मे सोचने का क्रम रत्ना मैया का काफी दिनों से शुरू हो गया था। उनकी मृत्यु के लिए मानसिक तैयारी पूरी हो गयी थी। वे दिन पर दिन कमजोर होती जा रही थीं। समय ने सभी पात्रों की उम्र में ...और पढ़े

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