ये दिल पगला कहीं का

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ये दिल पगला कहीं का उपन्यास सारांश- ‘ये दिल पगला कहीं का’ उपन्यास कहानी है अभय और डिम्पल की। जो बचपन के प्रेमी है। अभय जब अपनी बेरोजगारी के कारण डिम्पल को अपनाने से मना कर देता है तब डिम्पल गल़त रास्ते का चयन कर लेती है। वह बार गर्ल बन जाती है। एक बड़े स्कैण्डल में फंस जाने पर अभय डिम्पल को बचाने आगे आता है। तब तक वह स्वयं भी एक माफियां डाॅन बन चूका था। अभय और डिम्पल को गिरफ्तार कर लिया जाता है। दोनों की लव स्टोरी जेल में परवान चढ़ती है। जेलर इन दोनों को

Full Novel

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ये दिल पगला कहीं का - 1

ये दिल पगला कहीं का उपन्यास सारांश- ‘ये दिल पगला कहीं का’ उपन्यास कहानी है अभय और डिम्पल की। बचपन के प्रेमी है। अभय जब अपनी बेरोजगारी के कारण डिम्पल को अपनाने से मना कर देता है तब डिम्पल गल़त रास्ते का चयन कर लेती है। वह बार गर्ल बन जाती है। एक बड़े स्कैण्डल में फंस जाने पर अभय डिम्पल को बचाने आगे आता है। तब तक वह स्वयं भी एक माफियां डाॅन बन चूका था। अभय और डिम्पल को गिरफ्तार कर लिया जाता है। दोनों की लव स्टोरी जेल में परवान चढ़ती है। जेलर इन दोनों को ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 2

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-2 "हां। वो दोनों जेल में है और सरकार उन दोनों की शादी के इंकार कर चूकी है।" शर्मिष्ठा ने बताया। "कुछ भी हो दोस्तों! उन दोनों का प्यार निर्दोष है। हजारों युथ कपल के लिये वो लोग आइडियल है।" विवान बोला। "और फ्रेंड्स! ये मत भूलो की ह्यूमन राइट्स वाले हमारे साथ है। मीडीयां वाले भी उन दोनों के लिये कोशिश कर रहे है।" सुखवंत ने कहा। "तो फिर ठीक है फ्रेंड्स! हमें इस मुद्दे को राष्ट्रीय बनाना होगा। हम केन्द्रीय सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करने पर विवश कर देंगे।" विवान ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 3

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-3 दिल्ली स्थित मेडीकल कॉलेज आबंटित हुआ था। सभी के मनाने पर वह दिल्ली एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए तैयार हो गयी। दिल्ली में जाकर आर्या व्यस्त हो गई। पढ़ाई की लगन में वह अथर्व को भी कम ही याद करती। तीन वर्ष व्यतीत हो चूके थे। एक दिन आर्या की चिठ्ठी अथर्व को मिली। जिसमें उसने अथर्व से अपने अबोध प्रेम के लिए क्षमा मांगी। उसने यह भी उल्लेख किया कि डॉ. आशुतोष ने उसे विवाह का प्रस्ताव दिया है। सक्सेना दम्पति इस विवाह के लिए सहमत थे। अतएव अथर्व, आर्या को ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 4

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-4 कुछ क्षण के मौन उपरांत सुनंदा बोल-" चन्द्रशेखर की प्रताड़ना और शोषण में कोई मेरे साथ खड़ा रहा तो आनंद वो आप थे। आपने ही मेरे दोनों बच्चों को कभी पिता की कमी होने नहीं दी। आपके लिए मेरे हृदय में बहुत सम्मान है। मगर•••।" सुनंदा कहते-कहते चुप हो गयी। "मगर क्या? बोलो सुनंदा!" आनंद ने जोर देकर कहा। "बच्चें बड़े हो रहे है और समझदार भी। चन्द्रशेखर से भले ही उन्हें पिता समान दुलार कभी नहीं मिला! मगर अपने पिता का स्थान वो आपको भी नहीं देना चाहते।" सुनंदा बोलकर जा चूकी ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 5

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-5 मैट्रीमोनी वेबसाइट पर वैजयंती के लिए शिरीष को पसंद किया गया। वैजयंती के चाहते थे कि उनकी बेटी वैजयंती बैंक में क्लर्क शिरीष से विवाह के गठबंधन में बंध जाये। वैजयंती स्वयं बैंक में उच्च अधिकारी के पद पर कार्यरत थी। वैजयंती सुन्दर और सुशील होकर शालीनता के समस्त गुणों को धारण कर भारतीय नारीत्व का प्रतिनिधित्व करती थी। शिरीष की प्रोफाइल अत्यंत साधारण थी। शिरीष की कद काठी भी सामान्य पुरूष से कम थी। यदि वैजयंती ऊंची हील की सेन्डील पहनकर शिरीष के साथ खड़ी हो जाये तो उसकी ऊंचाई शिरीष से ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 6

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-6 देवी को सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। आदित्य और उसके खेमचन्द निर्दोष सिध्द होकर सकुशल घर लौट आये। तब राजकुमार एक वर्ष का था। तभी से दोनों पिता-पुत्र मिलकर राजकुमार की परवरिश कर रहे थे। यह सब जानते हुये भी कविता राजकुमार की मां बनने को तैयार थी। शनिवार को अर्ध अवकाश के दिन निर्धारित समय से आदित्य घर आ पहूंचा। घर पर पुर्व से कविता उपस्थित थी। आज कविता का अवकाश था सो वह राजकुमार से मिलने आदित्य के घर आ गयी। खेमचन्द ने आदित्य के मुंह से कविता ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 7

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-7 बबली के पैर एक बार फिसले तो फिर फिसलते चले गये। उसके चरित्र उंगलियां उठने लगी थी। एक समय वह भी आया जब बबली के पिता को ग्राम पंचायत के सम्मुख बबली के होने वाले अनचाहे बच्चे के पिता की खोज के लिए पंचायत बुलानी पड़ी। बबली की मां ने ही यह साहस अपने पति रामभरोसे को दिया। उसने यह भी कहा- 'बबली के माता-पिता होकर गल़त हम नहीं है। इस भूल में बबली के साथ वह पुरूष भी जिम्मेदार है जिसने उसे गर्भवती किया है।' बबली की मां नारंगी ने अपनी बेटी ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 8

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-8 दोनों व्यवसायी सहभागिता रखते थे। पांच वर्ष पूर्व ऑफिस के कर्मचारी वंश कुमार हत्या में संग्राम सिंह को संदिग्ध अपराधी के रूप जेल जाना पड़ा। वह प्रकरण न्यायालय में लम्बीत था। हत्या के सभी प्रमाण संग्राम सिंह के विरूद्ध थे। लोग आश्चर्यचकित थे कि कृष्ण देव आनंद ने अपने मित्र संग्राम सिंह को बचाने में कोई प्रयास क्यों नहीं किये? रचना इसी बात से आहत थी। उसे अपने पिता पर पुर्ण विश्वास था कि वे किसी का खून नहीं कर सकते। कृष्ण देव आनंद के प्रति रचना के मन में बहुत क्रोध था। ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 9

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-9 धीरज को एक लम्बा मेडीकल इलाज कराने की सलाह दी गई। डाॅक्टर ने परहेज बताये वह भी धीरज की आनंदमय जीवन को रसहीन बनाने के लिए पर्याप्त थे। इन सब के बाद भी धीरज पिता बन सकेगा इस बात की कोई ग्यारंटी नहीं थी। धीरज! यह सत्य है कि विवाह के बाद परिवार बढ़ाने की आवश्यकता होती है। तुम्हारे पौरूष में कमी के कारण यह एक कठिन कार्य है। शादी के बाद हम दोनों में इस विषय को लेकर मनमुटाव होना स्वाभाविक है। कैटरीना बोल रही थी। धीरज कैटरीना की बातें कुछ-कुछ समझ ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 10

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-10 जी हां। आपकी अस्वीकृति मुझे मिल चूकी है। फिर भी मुझे यह हुआ है की अपने हृदय की बात आप तक पहूंचाना मेरे लिए परम आवश्यक है। इसके पीछे आपके निर्णय को बदलने की मेरी कोई योजना नहीं है। हां मगर यह अवश्य चाहता हूं कि अपने इस प्रयास से हमारे भावि रिश्ते की कोई भी संभावना बनती है तो यह मेरी उपलब्धि होगी। निर्मल बोला। मगर मैं एक बार निर्णय ले चूकी हूं। इससे पलटना मेरे लिए असंभव है। शिखा बोली। मेरी आपसे यह भेंट किसी दबाव अथवा आपको परेशान करने के ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 11

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-11 मोहल्ले में यही एक अनोखा परिवार नहीं था बल्कि विनय और उसका परिवार आकर्षण का केंद्र बना हुआ था। विनय जिस स्त्री को अपनी विवाहिता पत्नी बताता था वह सुनिता स्वयं एक जवान विवाह योग्य बेटी नीतू की मां थी। सुनिता परित्यक्तगता थी अथवा विधवा, ये बात उसने कभी विनय को नहीं बताई। विनय ने भी ज्यादा पुछ-परख किये बगैर सुनिता को अपना लिया था। विनय ने अपना घर तो बसा लिया किन्तु वह अपने छोटे भाई नीरज के लिये चिंतित था। वह जानता था कि नीरज उसी की तरह कम पढ़ा-लिखा है। ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 12

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-12 "आप दोनों यह अवश्य समझ चूके होंगे कि मुझे आपके अफेयर की पुर्ण है।" अनन्या बोली। सुहानी सहम गयी। अंकित भी सकते में था। "मैं चाहती तो इस समस्या को बीच सड़क पर भी हल कर सकती थी। मगर इससे पहले मुझे लगा सिर्फ एक बार आप दोनों से बैठकर बात करूं।" "अनन्या बात को यहीं खत्म करते है। मुझसे गलती हुई है आई नो। आई एम साॅरी।" बात को संभालते हुये अंकित बोला। "देखा सुहानी। अभी तो मैंने कुछ किया भी नहीं और अंकित ने अपनी भूल स्वीकार कर ली। तुम ऐसे ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 13

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-13 करेगें। (प्रश्न) लेकिन किसे क्या पता चलेगा? (उत्तर) सुगंध और दुर्गन्ध अधिक समय छिपाई नहीं जा सकती।' "कृति-कृति!" सहकर्मी स्वरा ने कृति को झकझोरा। वह ऑफिस के द्वार पर आकर मौन खड़ी थी। "क्या हुआ कृति?" स्वरा पुनः बोली। "कुछ नहीं! चल।" कृति बोली। दोनों ऑफिस में प्रवेश कर गये। "ये आप क्या कह रही है? आरव आपके साथ ऑफिस में यह सब कर रहा है?" रागिनी आश्चर्यचकित थी। "हां रागिनी! मुझे लगा कि सबसे पहले तुम्हें यह बताऊं। क्योंकि तुम आरव की पत्नी हो।" कृति आत्मविश्वास से भरी थी। उसने अंतर्मन की ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 14

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-14 किन्तु आशा के व्यवहार में आये आश्चर्यचकित परिवर्तन देखकर सभी हतप्रद थे। सपना बेटी के उपचार में दिन-रात एक देने वाला आनंद अब भी सपना को स्वीकार करने को तैयार था। यह सपना भी भलि-भांति जानती थी कि आनंद उसे अब तक नहीं भुला है। वह अपने उस निर्णय पर शर्मिंदा थी जिसने उसे आनंद जैसे सुयोग्य वर से दूर कर दिया। वह आशा से भी मिली, जो आनंद से असीम प्रेम करती थी। आनंद सर्वाथा आशा के योग्य था। वह दोनों के बीच आना नहीं चाहती थी। इसलिए उसने जो निर्णय लिया ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 15

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-15 कोई बात नहीं दीपक। आपकी असहमती मुझे स्वीकार है। मैंने अपने हृदय बात आपसे कह दी। मेरे लिए यही बहुत बड़ी बात है। अवन्तिका कहकर जाने लगी। रूको अवन्तिका! दिपक ने कहा। अवन्तिका पुनः पलट गयी। अन्य शिक्षक अब दीपक के अगले कदम पर अपनी पैनी नज़र गढ़ाये हुये थे। तुमसे पहले अगर मैं अपने दिल की बात कहता तब शायद हो सकता था अन्य लोग तुम पर इसे मेरी मेहरबानी समझते। दीपक बोला। अवन्तिका हैरत में थी। हां अवन्तिका! मैं भी तुमसे प्रेम करता हूं। बस पहले तुम्हारे मुख से सुनना चाहता ...और पढ़े

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ये दिल पगला कहीं का - 16 - अंतिम भाग

ये दिल पगला कहीं का अध्याय-16 इन्ही विचारों मे मग्न निधि की आंखों से नींद गायब थी। वह करवट रही थी। रात बितने का नाम ही नहीं ले रही थी। फोन की घंटी ने उसे झंझोड़ा। "हॅलो मेम! दरवाजा खोलिये। मैं बाहर खड़ी हूं।" फोन पर तमन्ना थी। "ओह! तुम हो। मुझे लगा•••।" कहते हुये निधि रूक गयी। "आपको क्या लगा! आप पुनित के फोन का इंतजार कर रही थी न!" तमन्ना ने मसखरी की। " अरे नहीं! आ गई तुम। रूको मैं अभी आती हूं।" निधि की चोरी पकड़ी गयी थी। "इतनी देर कहां लगा दी तुमने?" गेट ...और पढ़े

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