बिखरते सपने उपन्यास के बारे में बिखरते सपने, एक ऐसी लड़की स्नेहा की कहानी है, जिसके पापा आधुनिक युग में भी निहायत ही रूढंीवादी और संकुचित विचारों के थे। वह स्नेहा को सिर्फ एक लड़की ही मानते थे। वह यह विश्वास नहीं करते थे कि एक लड़की भी लड़कों की बराबरी कर सकती है। उन्होंने स्नेहा को सख्त हिदायत दे रखी थी कि वह कोई भी ऐसा काम न करे, जो लड़के करते हैं, विशेषकर उन्हें लड़कियों के खेलने-कूदने से बेहद चिढ़ थी। वह नहीं चाहते थे कि उनकी स्नेहा कोई खेल, खेले, जबकि स्नेहा को बचपन से ही बैडमिन्टन

Full Novel

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बिखरते सपने - 1

बिखरते सपने उपन्यास के बारे में बिखरते सपने, एक ऐसी लड़की स्नेहा की कहानी है, जिसके पापा आधुनिक युग भी निहायत ही रूढंीवादी और संकुचित विचारों के थे। वह स्नेहा को सिर्फ एक लड़की ही मानते थे। वह यह विश्वास नहीं करते थे कि एक लड़की भी लड़कों की बराबरी कर सकती है। उन्होंने स्नेहा को सख्त हिदायत दे रखी थी कि वह कोई भी ऐसा काम न करे, जो लड़के करते हैं, विशेषकर उन्हें लड़कियों के खेलने-कूदने से बेहद चिढ़ थी। वह नहीं चाहते थे कि उनकी स्नेहा कोई खेल, खेले, जबकि स्नेहा को बचपन से ही बैडमिन्टन ...और पढ़े

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बिखरते सपने - 2

बिखरते सपने (2) मुन्ना को उसके पापा ने प्यार से समझाया तो मुन्ना डेªेस चेंज करने चला गया और उसके लिए खाना परोसने लगी। खाना परोसते समय सपना ने मिस्टर गुप्ता से कहा, ‘‘तुम्हारे लिये भी निकाल दूं...?’’ ‘‘नहीं, मुन्ना को खा लेने दो, हम लोग स्नेहा के साथ खा लेंगे।’’ मिस्टर गुप्ता ने कहा। ‘‘ठीक है, स्नेहा डेªस चेंज करके आ जायेगी तो हम लोग उसी के साथ खा लेंगे। कहकर वह और मिस्टर गुप्ता स्नेहा के आने का इन्तजार करने लगे। मुन्ना को बहुत तेज भूख लगी थी, इसलिए वह हमेशा की तरह खाना खाने बैठ गया। ...और पढ़े

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बिखरते सपने - 3

बिखरते सपने (3) उस दिन मुन्ना अपने ट्यूशन वाले सर से ट्यूशन पढ़ रहा था। स्नेहा ने कमरे में करते ही देखा कि मुन्ना का रैकिट और चिड़िया अलमारी में रखा हुआ है। चिड़िया और रैकिट देखकर स्नेहा का चेहरा खुशी से ताजे फूल की तरह खिल उठा। उसका खिलाड़ी मन हिचकोले लेने लगा और वह खुद को रोक नहीं पायी। वह मन में बोली,‘‘अरे वाह, मुन्ना का रैकिट और चिड़िया.....बहुत बनता है अपने आपको। कहता है मुझे अपना रैकिट खेलने को नहीं देगा। अब देखती हूं कि मुझे कौन रोकता है। बच्चू जब तक तुम ट्यूशन पढ़ोगे, तब ...और पढ़े

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बिखरते सपने - 4

बिखरते सपने (4) ‘‘मम्मी!....पापा.....कहां हो आप...?’’ घर में घुसते ही स्नेहा ने खुशी से चीखते हुए अपने मम्मी-पापा को ‘‘क्या हुआ स्नेहा, क्यों पागलों की तरह चीख रही हो...हयं...? उसके पापा ने उसके पास आकर कहा। ‘‘पापा, देखिए मुझे स्कूल से यह मिला है। उसने खुशी से अपने पापा को स्कूल से मिला प्रमाण-पत्र और ट्राॅफी दिखाते हुए कहा।’’ ‘‘क्या है यह...?’’ पापा ने पूछा। आज हमारे स्कूल में डिबेट काॅम्पिटिशन था। मैंने उसमें हिस्सा लिया और फस्र्ट आ गयी। यह उसी का प्रमाण-पत्र और ट्राॅफी है।’’ ‘‘...तो मैं इसका क्या करु...हयं...? मैंने तुमसे कितनी बार कहा है, कि ...और पढ़े

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बिखरते सपने - 5

बिखरते सपने (5) ‘‘ओ के, बाय मम्मी, बाय पापा...’’ दोनों ने एक साथ कहा। ‘‘बाय बेटा, बेटा ठीक से हां, स्नेहा भईया का ध्यान रखना...बस में ठीक से चढ़ाना और ठीक से उतारना।’’ ‘‘ठीक है पापा।’’ कहकर दोनों चले जाते हैं। मिस्टर गुप्ता ध्यान से उन्हें जाता हुआ देखते हैं तो सपना कहती है, ‘‘क्या हुआ, इतने ध्यान से क्या देख रहे हैं...? ‘‘तुम्हें क्या लगता है सपना, बड़े होकर हमारा मुन्ना बैडमिन्टन का बड़ा खिलाड़ी बनेगा न...?’’ ‘‘मुन्ना जब बड़ा होगा, तब-की-तब देखी जायेगी। अभी उसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।’’ ‘‘तुम नहीं समझोगी सपना, मुन्ना ...और पढ़े

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बिखरते सपने - 6

बिखरते सपने (6) ट्रिन.........ट्रिन......ट्रिन.... डोरबेल की आवाज सुनकर, ‘‘पता नहीं कौन है...? बार-बार बेल बजा रहा है...।’’ सपना जाकर खोलती है। सामने मिस्टर गुप्ता को देखकर,‘‘शिकायती लहजे में कहती है, ‘‘आपने भी हद कर दी, बार-बार घण्टी बजाये जा रहे हैं...आवाज नहीं दे सकते थे।’’ मिस्टर गुप्ता सपना की बात को अनसुना करते हुए खुशी से उछल कर कहते हैं, ‘‘सपना, आज मैं बहुत..बहुत...बहुत खुश हूं...।’’ ‘‘अच्छा, क्या आपका परमोशन हो गया, या कहीं कोई गड़ा हुआ खजाना मिल गया...?’’ ‘‘सपना, अगर खजाना मिल जाता या मेरा परमोशन हो जाता, तो मुझे इतनी खुशी नहीं होती।’’ ‘‘तो फिर क्या ...और पढ़े

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बिखरते सपने - 7

बिखरते सपने (7) उन्हें खामोश देखकर डॉक्टर चड्डा ने कहा, ‘‘क्या हुआ मिस्टर गुप्ता, मुन्ना के न खेलने की सुनकर आप इतने परेशान क्यों हो गये...?’’ ‘‘....क्योंकि मैं मुन्ना को बैडमिन्टन का खिलाड़ी बनाना चाहता हूं...और मुन्ना को खुद भी बैडमिन्टन खेलने का बहुत शौक है। उसका जूनियर बैडमिन्टन टूर्नामेंट में सेलेक्शन भी हो गया है, अगले हफ्ते से उसे खेलना है...और आप कह रहे हैं कि मुन्ना खेल नहीं सकता...?’’ ‘‘साॅरी मिस्टर गुप्ता। आपको दुःख तो जरूर होगा, लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते मैं आपको यह सलाह देना अपना फर्ज समझता हूं, कि मुन्ना को अब कभी ...और पढ़े

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बिखरते सपने - 8

बिखरते सपने (8) ‘‘हाँ ये तो है। पर तुम चिन्ता मत करो। स्नेहा का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।’’ बात है अंकल, जब स्नेहा दीदी को यह खबर मिलेगी, कि पापा ने उसे पिकनिक पर जाने के लिए हाँ कर दी है, तो खुशी से वह पागल हो जायेगी।’’ मुन्ना ने बीच में बोलते हुए कहा। ‘‘हाँ, यह तो है। अच्छा मिस्टर गुप्ता अब मैं चलता हूं। आप अपने घर फोन करके कह देना कि स्नेहा अपनी जाने की तैयारी कर ले।’’ ‘‘ठीक है, मैं उसे फोन कर दूंगा।’’ दोपहर का समय था। स्नेहा अपने कमरें में अकेली बैठी ...और पढ़े

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बिखरते सपने - 9

बिखरते सपने (9) ‘‘हाँ अंकल, आपको याद होगा, एक दिन आपने खुद ही कहा था कि स्नेहा दीदी मुझसे अच्छा बैडमिन्टन खेलती हैं, अगर पापा मान जायें तो स्नेहा दीदी आराम से इस टूर्नामेंट की महिला चैम्पियन बन सकती हैं।’’ ‘‘हां कहा तो था, और स्नेहा खेलती भी अच्छा है। लेकिन हम यह बात तुम्हारे पापा को कैसे बतायेंगे, कि स्नेहा उनकी मर्जी के खिलाफ रोज तुम्हारे साथ ही बैडमिन्टन की प्रेक्टिस करती है। क्योंकि उन्होंने मुझे सख्त हिदायत दे रखी है कि मैं स्नेहा को कभी भी बैडमिन्टन ग्राउण्ड पर न आने दूं। अगर उन्हें यह पता चल ...और पढ़े

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बिखरते सपने - 10 - अंतिम भाग

बिखरते सपने (10) ‘‘बेटा, तुम रोज छत पर खड़ी होकर मुन्ना का खेल देखती हो, तो क्या तुम्हें खेल अच्छा लगता है...?’’ ‘‘जी, जब मुन्ना को बैडमिन्टन खेलते हुए देखती हूं तो मेरा भी मन करता है कि मैं भी खेलूं, लेकिन....।’’ ‘‘लेकिन क्या...?’’ ‘‘अंकल, दीदी को बैडमिन्टन खेलना बहुत पसंद है, लेकिन पापा दीदी को खेलने के लिए मना करते हैं। उनका कहना है कि दीदी लड़की है, और लड़कियों को खेलने-कूदने की बजाय घर के कामों में ध्यान देना चाहिए। पापा ने मुझसे भी कह रखा है कि अगर दीदी कभी मेरे साथ खेले तो मैं पापा ...और पढ़े

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