जीवन मरण के बारे में सोचते हुए हमेशा मन उलझ जाता है चारों ओर बस सवाल ही सवाल नज़र आते हैं मगर उत्तर कहीं नज़र नहीं आता। क्या है यह आत्मा, दिल दिमाग या फिर कुछ और क्या वाकई कुछ लोग मर कर भी इस मोह माया की ज़िंदगी से मुक्त नहीं हो पाते। क्या सच प्यार के बंधन में इतनी शक्ति होती है कि कोई एक दूजे के बिना मरकर भी खुद को उस बंधन से मुक्त महसूस नहीं कर पाता बस जीवन और मृत्यु के इसी ओह पोह से झूझते हुए बनी यह कहानी।

Full Novel

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अमर प्रेम - 1

जीवन मरण के बारे में सोचते हुए हमेशा मन उलझ जाता है चारों ओर बस सवाल ही सवाल नज़र हैं मगर उत्तर कहीं नज़र नहीं आता। क्या है यह आत्मा, दिल दिमाग या फिर कुछ और क्या वाकई कुछ लोग मर कर भी इस मोह माया की ज़िंदगी से मुक्त नहीं हो पाते। क्या सच प्यार के बंधन में इतनी शक्ति होती है कि कोई एक दूजे के बिना मरकर भी खुद को उस बंधन से मुक्त महसूस नहीं कर पाता बस जीवन और मृत्यु के इसी ओह पोह से झूझते हुए बनी यह कहानी। ...और पढ़े

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अमर प्रेम - 2

सुशीला बुआ की बातों को सुनने के बाद मुझे यह एहसास हुआ कि “शायद माँ भी अपनी जगह गलत है नकुल”, यह दुनिया है ही ऐसी “जो घर से बाहर नौकरी करने निकली हर औरत को अपने बाप की जागीर समझती है” और हर कोई उसका फायदा उठाने की कोशिश करता है। हो न हो, यही वजह रही होगी की माँ नहीं चाहती थी कि मैं नौकरी करुँ और मुझे भी वही सब झेलना पड़े जो उन्हें झेलना पड़ा था कभी....“जानते हो नकुल मैं उनकी बहुत इज्ज़त करती हूँ, मेरे मन में उनके लिए बहुत सम्मान है। इसलिए मुझे उनसे कोई शिकायत भी नहीं है। ...और पढ़े

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अमर प्रेम - 3

तभी सहसा काँच के टूटने की आवाज़ से नकुल की तंद्रा टूट जाती है और वह देखता है कि की वह तस्वीर जिस पर चंदन का हार टंगा हुआ था ज़मीन पर पड़ी है और उसका काँच टूटा हुआ है। जिसे देखकर नकुल के मन में विचार आता है कि शायद उसे यह एहसास दिलाने के लिए ही सुधा अब तक खुद अपनी ही तस्वीर में एक व्याकुल आत्मा के रूप में क़ैद थी और आज जब नकुल उसकी आत्मा की आवाज़ को सुन सका, महसूस कर सका, तो जैसे उसे मुक्ति मिल गयी। यह सब सोचते हुए नकुल अपने काँपते हाथों से उस तस्वीर को उठाते हुए देखता है, तो उसकी आँखों से बह रहे आंसुओं की दो बूंदें सुधा की उस तस्वीर पर भी टपक जाती है। टप टप और तब वह सुधा की उस तस्वीर से माफ़ी माँगते हुए उसे गले से लगा कर रो देता है। ...और पढ़े

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अमर प्रेम - 4

हाँ वो उस दिन जब अंजलि से मुलाक़ात हुई तब मेरी भी समझ में नहीं आया कि मुझे उससे पूछना चाहिए क्या नहीं तो मैंने भी बस यही पूछा था कि घर ग्रहस्थी के काम काज जानती हो या नहीं और तुम्हारे शौक क्या क्या है वगैरा –वगैरा जल्दी बाज़ी और खुशी के मारे मैं यह बिटिया से पूछना ही भूल गया कि तुम्हारे घर में कौन –कौन है। खैर कोई बात नहीं अब तो पता चल ही गया। असल में राहुल कि भी माँ नहीं है। इसलिए मुझे भी समझ नहीं आया कि बिटिया से क्या पूछना उचित होगा क्या नहीं। ...और पढ़े

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अमर प्रेम - 5

ताकि अंजलि गलती से भी वेदेश में बस जाने का न सोच ले। इधर नकुल राहुल के मन कि समझ रहा है। इसलिए वह दीना नाथ जी से रेकुएस्ट करता है कि आप कृपया अपनी बेटी से बात कीजिये और उसे भारत वापस लौट आने के लिए माना लीजिये क्यूंकि अपना देश अपना ही होता है। दीना नाथ जी बात कि गंभीरता को समझे हुए उन्हें इस बात का दिलासा देकर विदा करते हैं कि वह अपनी और से पूरी कोशिश करेंगे अंजलि को वापस लौटाने के लिए मनाने कि, ...और पढ़े

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अमर प्रेम - 6

उधर राहुल के मन की खुशी भी चौपाये नहीं चुप रही है। बहुत नसीब वाले होते हैं वो जीने प्यार मंजिल मिला करती है। वरमाला गले मैं पड़ते ही दोनों को एहसास होता की अब वो दो जिस्म एक जान हो गए। जबकि अभी तो बहुत सी रस्में बाकी हैं। अभी तो स्टेज पर आए लोग आशीर्वाद दे रहे हैं और नज़र उतार रहे हैं जोड़े की हर कोई खुश है। अब धीरे-धीरे फेरों का वक्त निकट आरहा है। दोनों के दिलों कि धड़कने धीरे-धीरे बढ़ रही है और दोनों के दिलों में इस वक्त एक ही गाना बज रहा है। ...और पढ़े

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अमर प्रेम - 7

आज मुझे ऐसा चुबन चाहिए की मैं तुम्हारे होंटो अपर अपने होंटो का रस घोलते हुए तुम्हारी रूह तक जाऊँ और वह अपने जलते हुए होंट अंजलि के नर्म रसेले होंटों पर रख देता है और फिर धीरे धीरे उसमें अपनी ज़ुबान से रस घोलते हुए सपनों में खोने ही वाला होता है की ठक –ठक ठक अरे अंजलि बिटिया तयार हुई के नहीं कशा का सामी हो गया है। और पंडित जी भी आगाए हैं सभी मेहमान तुम दोनों का इंतज़ार कर रहे हैं। ...और पढ़े

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अमर प्रेम - 8

देखा नाराज़ कर दिया न पापा को, मैंने नाराज़ किया पापा को ? अंजलि ने गुस्से से कहा हाँ नहीं और किसने किया? ना तुम वापस जाने कि बात करती न पापा कभी इतना गुस्सा होते। “एकस्कुएज मी”, वापस जाने कि बात मैंने नहीं खुद पापा जी ने शुरू कि थी। वैसे भी, क्या हुआ आज या कल में मैं तुम से इस विषय में बात करने ही वाली थी। हाँ हाँ क्यूँ नहीं जाओ चली जाओ यहाँ क्या रखा है। ...और पढ़े

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अमर प्रेम - 9

तुमने शादी की है राहुल मत भूलो की तुमने उसे खरीद नहीं लिया है की अपनी मर्ज़ी और अपनी से उसे चलने के लिए मजबूर करो। तुम आज अगर अपने पैरों पर खड़े हो तो वो भी खड़ी है वह कोई तुम्हारी दासी नहीं है की अपनी ज़िंदगी के फाइसे तुम से पुछ्पुच कर करे फिर भी वह तुम्हारा मान रखने के लिए तुमको अपना जीवन साथ समझते हुए साथ लेकर चलना चाहती है तुम अपना यह बेकार का अहम लिए बैठे हो। ...और पढ़े

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अमर प्रेम - 10

अरे अभी तो तुम दादा भी नहीं बने हो। और तुमने बुड़ापा ओढ़ लिया। अरे भी तो बच्चों कि बराबरी करनेकि है राहुल तुम्हारी वजह से विदेश जाने को तयार नहीं बेचार युगल जोड़ा सिर्फ एक बूढ़े बाप कि वजह से विरह कि अग्नि में जल रहा है क्या तुमको यह सब दिखाई नहीं देता। अरे अगर वो तुम्हें छोड़कर नहीं जाना चाहता तो तुम तो विदेश जाने कि उत्सुकता दर्शा सकते होना। मैं यदि जिंदा होती तो मैं तो कब का विदेश चली गयी होती अपने बच्चों के साथ भूल गए क्या माँ जी क्या कहा करती थी ...और पढ़े

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अमर प्रेम - 11

कहते कहते अंजलि हँसे जा रही है और राहुल भी उसकी हँसी देखकर खुद को रोक नहीं पाया। अपने पापा चुटकी लेते हुए राहुल ने कहा सच्ची पापा मैंने आपको इतना डरा हुआ पहले कभी नहीं देखा। बच्चों की हँसी देखकर नकुल भी हँस दिया। और मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देने लगा हेय ईश्वर मेरे बच्चों को सदा ऐसे ही खुश रखना। खैर हवाईअड्डे से निकल कर दोनों घर पहुंचे ना धोकर, खाना पीना खाकर नकुल ने एक दिन आराम करने की इच्छा प्रकट की जिसे राहुल और अंजलि दोनों ने मान लिया अगली सुबहा अंजलि को अपने ऑफिस में रिपोर्ट करना था ...और पढ़े

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अमर प्रेम - 12

तुम तो मेरी जान हो, मेरा ईमान हो मैं तो बस यह चाहता हूँ की तुम हमेशा खुश रहो रहो इसलिए जब तुम मुझसे दूर होती हो न तो मुझे हर पल तुम्हारी चिंता लगी रहती है। अब आगे का क्या सोचा है तुमने यहीं रहने का इरादा है या हम वापस जाएँगे सब एक साथ अभी कुछ ही दिनों मेन मेरी छुट्टियाँ समाप्त हो जाएंगी फिर मुझे पापा के साथ भारत वापस लौटना होगा। यह सुनकर अंजलि का चेहरा एक डैम से उदास हो जाता है और वह उसी उदास चेहरे से राहुल से कहती है मैंने तुम्हें बताया तो था की छह महीने तो मुझे यहाँ रहना है होगा। ...और पढ़े

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अमर प्रेम - 13

अमर प्रेम (13) इतने में अंजलि दूध का गिलास लिए कमरे में आती है और राहुल को देते हुए है क्या हुआ तुम अब भी वही सोच रहे हो ? चिंता मत करो राहुल मैं कोई बच्ची नहीं हूँ। मैं अपना खयाल खुद रख सकती हूँ, तुम्हें मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं इसलिए अब तुम दूध पियो और शांति से सो जाओ बहुत रात हो चुकी है फिर कल सुबह मुझे ऑफिस भी जाना है। कहते हुए वह सो जाती है। उस रात की घटना ने अंजलि के मन पर कोई असर नहीं डाला था। उसके के ...और पढ़े

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अमर प्रेम - 14 - अंतिम भाग

अमर प्रेम (14) कभी राहुल विदेश चला जाता है तो कभी अंजलि भारत आजती है बस इसी तरह गुज़र है दोनों कि ज़िंदगी और इसी तरह चलते हुए करीब करीब दो साल होने को आए अब तो नकुल भी दोनों को अलग –अलग जीते देखकर थक चुका है। इतना अकेला तो वह सुधा के जाने बाद भी महसूस नहीं करता जितना राहुल कभी-कभी अंजलि के होते भी खुद को अकेला महसूस करने लगता है। ऐसे में नकुल दोनों के लिए ऐसा करे कि दोनों फिर से एक होकर एक ही स्थान पर एक साथ रहने लगें। अभी नकुल ऐसा ...और पढ़े

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