(ऐक अकेली अबला, बेसहारा, बेबस ऐवम गरीब महिला का पाखंउी, जातिवादि, घोर साम्प्रदायिक संकीर्णतावाद से ग्रस्त समाज से संघर्ष की रोमाचक दास्तान । गरीबों के दुःख दर्द को अनसुना करने वाले समाज द्वारा एवं अपनी सुविधा के लिए बनाऐ गए भगवान के कभी भूलकर भी किसी गरीब कि सहायता न करने पर प्रश्न चिन्ह I गांवों की प्रष्ठभूमि में खेले जाने वाले नाटक, ह्रदयस्पर्शी कविताएं तथा 70 वर्ष पूर्व इ्रदौर के दुर्लभ द्रष्य I एक पागल की मनःस्थिति, बच्चो के मनोरंजक खेल, १९५० के दशक में तब के शहर में पहलवानों का वर्चस्व, हिन्दू मुस्लिम दंगे, जाति निष्कासन के घोर अपमान को झेलते समाज के सबसे गरीब तबकों की आवाज जिन्हें हिन्दू समाज के रुढिवादियो ने अन्य धर्म अपनाने को मजबूर कर दिया I रामायण व् वेदांत के सर्वश्रेष्ठ प्रसंग आदि)
Full Novel
विद्रोहिणी - 1
(ऐक अकेली अबला, बेसहारा, बेबस ऐवम गरीब महिला का पाखंउी, जातिवादि, घोर साम्प्रदायिक संकीर्णतावाद से ग्रस्त समाज से संघर्ष रोमाचक दास्तान । गरीबों के दुःख दर्द को अनसुना करने वाले समाज द्वारा एवं अपनी सुविधा के लिए बनाऐ गए भगवान के कभी भूलकर भी किसी गरीब कि सहायता न करने पर प्रश्न चिन्ह I गांवों की प्रष्ठभूमि में खेले जाने वाले नाटक, ह्रदयस्पर्शी कविताएं तथा 70 वर्ष पूर्व इ्रदौर के दुर्लभ द्रष्य I एक पागल की मनःस्थिति, बच्चो के मनोरंजक खेल, १९५० के दशक में तब के शहर में पहलवानों का वर्चस्व, हिन्दू मुस्लिम दंगे, जाति निष्कासन के घोर अपमान को झेलते समाज के सबसे गरीब तबकों की आवाज जिन्हें हिन्दू समाज के रुढिवादियो ने अन्य धर्म अपनाने को मजबूर कर दिया I रामायण व् वेदांत के सर्वश्रेष्ठ प्रसंग आदि) ...और पढ़े
विद्रोहिणी - 2
श्यामा अपने बच्चों के साथ अपने पति के घर लौट गई। उसका पति किशन महाराष्ट्र के एक छोटे गांव रहता था। वह ब्रम्हाजी के मंदिर में पुजारी था। किशन औसत उंचाई का, दुबला पतला व गोरा लगभग 20 वर्षीय युवक था। वह धोती कुर्ता पहनता था व कहीं विशेष कार्य से बाहर जाने पर सिर पर काली टोपी पहनता था। वह बडे क्रोधी स्वभाव का था व श्यामा पर अपना रौब गांठता रहता था । वह वक्त बेवक्त उसे पीट देता था। मंदिर में प्रायः साधूगण आकर रूका करते थे। किशन मंदिर से होने वाली सारी आय साधुओं की खातिरदारी, तम्बाखू व नशा सेवन में उड़ा देता था। ...और पढ़े
विद्रोहिणी - 5
नाटक शुरू हुए एक सप्ताह से अधिक समय हो चुका था । श्यामा के लिए निकल भागने का समय था। आधी रात का समय था। चारों ओर श्याह अंधेरा था। कौशल्या व श्यामा की आंखों में नींद नहीं थी। उन्होने उस स्थान से पलायन की पूरी तैयारी कर रखी थी। पहले कौशल्या उठी। उसने चुपके से बिना आवाज किए बाहर आँगन में झांका। किशन गहरी नींद में सो रहा था। उसने धीरे से सामान की गठरी उठाई व एक बच्चे को पीठ पर लादकर नंगे पैर मंदिर के बाहर निकल आई। उसके पीछे पीछे दूसरे बच्चे को पीठ पर लादे श्यामा भी बाहर आ गई। बाहर घुप्प अंधेरा था। ...और पढ़े
विद्रोहिणी - 8
उन दिनों लोगों को अखाडें का बड़ा शौक था। शहर में जगह जगह अखाड़े खुले हुए थे जहां उस्ताद तरह तरह के दाव व कुश्तियां सिखाया करते थे। शहर के प्रमुख चौराहे पर स्थित पान की दुकान पर एक पहलवान बैठा करता था। वह दुकानदार से थोड़ी थोड़ी देर में पण मांगकर अनेक पान चबाया करता व जब दुकानदार उससे पैसे मांगता तो वह हिसाब में उधार लिखने को कह देता। दुकानदार की हिम्मत नहीं थी कि उससे हिसाब चूकता करने का कहे। न ही पहलवान कभी पैसे देने की तोहमत उठाता। ...और पढ़े
विद्रोहिणी - 9
’दो तीन दिन से घायल कन्हैया बिस्तर पर दर्द से कराह रहा था। चौथे दिन कुछ स्वस्थ अनुभव करने वह सवेरे अपने काम पर निकल गया। उसके बाद श्यामा अपने काम पर निकल रही थी। उसने देखा कि रास्ते के बीच चंद्रा खडा था। चंद्रा ने अपने दोनों हाथ फैलाकर उसे रोकना चाहा । चंद्रा एक अत्यंत दुष्ट व्यक्ति था। वह लंबा चौड़ा विशालकाय पहलवाननुमा व्यक्ति था। वह श्यामा पर कुदृष्टि रखता था। अचानक उसने झपटते हुए श्यामा का हाथ पकड़ लिया। कुछ समय के लिए तो श्यामा हक्की बक्की रह गई I वह अपना हाथ छुड़ाने की कोशिस करते हुए बोली ‘ मेरे हाथ छोड़ दे वरना बहुत बुरा होगा। ’ ...और पढ़े
विद्रोहिणी - 10
कुछ दिनों से श्यामा पर ताने तो मारे ही जा रहे थे फिर ऐक दिन अचानक उनके बंद दरवाजे कभी पत्थर तो कभी गोबर फेंके जाने लगा । मोहन व श्यामा बाहर निकलते तो कोई दिखाई नहीं देता । कुछ बदमाश लड़के हंसते हुऐ दिखाई देते । हद तो तब हो गई जब एक दिन प्रातः थोडा अँधेरा था तो उनके दरवाजे पर कोई मल मूत्र फेंक गया I किसी को रंगे हाथों पकड़ना मुश्किल था । तब ऐक दिन श्यामा तेजी से भनभनाती हुई नजदीक के थाने जा पहुंची। उसने थाने पर रिपोर्ट लिखाना चाहा किन्तु उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई। ...और पढ़े
विद्रोहिणी - 11
1 - फ्रीस्टाइल कुश्ति 2 - हिंदु मुस्लिम दंगे 3 - ब्लेकमार्केट 4 - ओपन ऐअर थियेटर ...और पढ़े
विद्रोहिणी - 12
1 - विवेकानंद का आत्मज्ञान 2 - राम हनुमान प्रथम मिलन 3 - सुतीक्ष्ण प्रसंग 4 - फिर झगड़ा ...और पढ़े
विद्रोहिणी - 13
कोर्ट में केस हारने के बाद पड़ौसी बुरी तरह डर गए थे। जज ने उन्हें फिर से मुकदमा दायर की स्थिति में जेल में डालने की धमकी दी थी । वे अब श्यामा से बचकर निकलते थे। बाजी पलट चुकी थी । उन्हे देखकर श्यामा खरीखोटी सुनाने लगती । वे उससे मुंह छुपाकर बच निकलते। किन्तु वे मन ही मन इर्ष्या की आग में जल रहे थे I वे श्यामा से किसी तरह बदले की ताक में थे। ऐक दिन चंद्रा ने श्यामा के छोटे भाई सत्या से कहा, ‘ सत्या तुम्हारी बहिन खुलेआम गैर मर्द के साथ रह रही है। तुम्हारे लिए ये बात बड़े शर्म की है। मेरी बहिन एसा करती तो मै उसे जान से मर डालता I ’ सत्या को यह ताना दिल में चुभ गया। वह पहली मंजिल पर रहता था। उसने श्यामा को आवाज लगाई, ...और पढ़े
विद्रोहिणी - 14 - अंतिम भाग
श्यामा का परिवार बड़े लंबे समय से जाति से निष्कासित था। मोहन ने अपने परिवार का नाम फिर से में जुड़वाने के लिए अनेक प्रयत्न किए लेकिन उन्हे सफलता नहीं मिली। बाद में उसे मालूम पड़ा कि इस कार्य में सबसे अधिक रूकावट बंसीलाल डाल रहा था जो जाति का अध्यक्ष था व श्यामा का दूर का रिश्तेदार था । वह ऐक मंदिर में पुजारी था। एक दिन श्यामा बंसीलाल के मंदिर में पहुंची। बंशीलाल लम्बे कद, गौर वर्ण व घनी दाढी मूंछ का व्यक्ति था । उस समय वह लोगों को धर्म का उपदेश दे रहा था । श्यामा ने कहा, ‘ बंसीलालजी हमारे परिवार का नाम जाति में जोड़ने की कृपा करें। ’ ...और पढ़े