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सफर का संघर्ष



मुसई सुबह सुबह काली मंदिर जा रहे थे तभी आशीष स्कूल जाने के लिए निकल रहा था मुसई ने पूछा बेटा रोज तो तुम मेरे मंदिर से लौटने के बाद स्कूल जाते थे आज इतनी जल्दी क्यो आशीष बोला बापू आज स्कूल में सिनेमा दिखाई जाने वाली है जिसके कारण हम स्कूल से थोड़ा देर से लौटेंगे और जल्दी जा रहे है।
मुसई ने सवाल किया कि कौन सा सिनेमा दिखाया जाएगा आशीष बोला बापू भगवान श्री कृष्ण के जीवन पर आधारित कौनो सिनेमा है मुसई बोले तब तो जरूर देखना बेटवा और जो अच्छी बातें श्री कृष्ण जी के बताये मार्ग अपने जीवन मे अवश्य उतारने कि कोशिश करना ।

बाप बेटे में सदैव छत्तीस का आंकड़ा रहता था मगर आज पिता पुत्र के संवाद राम दशरथ जैसा था आशीष पिता मुसई का आशीर्वाद लेकर स्कूल के लिए चल दिया और मुसई काली मंदिर दोनों अपने अपने प्रतिदिन कि राह पकड़ लिए ।

मुसई काली मंदिर अपनी नित्य के पूजन आराधना में तल्लीन हो गए उधर आशीष स्कूल पहुंचा और दिन भर कक्षा में पठन पाठन करने के बाद स्कूल द्वारा श्री कृष्ण जीवन पर आधारित सिनेमा देखने के लिये स्कूल के सभी बच्चों के साथ सिनेमा दिखाए जाने की प्रतीक्षा करने लगा ।

स्कूल के प्रांगण में प्रोजेक्टर से सिनेमा दिखाया जाने वाला था सिनेमा और पर्दा लग कर तैयार था तभी प्राचार्य राम निवास जी ने आकर सभी छात्रों को संबोधित करते हुए कहा आप सभी लोग शांति से सिनेमा देखिए सिनेमा समाप्त होने के बाद यदि किसी को कोई सवाल पूछना हो तो अवश्य पूछना ।

सिनेमा शुरू हुआ सिनेमा लगभग दो घण्टे बाद समाप्त हो गया कुछ बच्चों ने अपनी जिज्ञासा अनुसार प्रश्न पूछे जिसका उत्तर एक एक कर प्रधानाध्यापक रामनिवास जी दे रहे थे आशीष ने प्रधानाध्यापक से प्रश्न किया भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि अन्याय करने वाले से कम दोषी अन्याय बर्दास्त करने वाला नही होता है इसका अर्थ यह हुआ कि अन्याय यानी अधर्म से लड़ना ही धर्म कि स्थापना का प्रथम संकल्प है?

प्रधानाध्यपक राम निवास जी का माथा ठनका कि कक्षा आठ के छात्र कि सोच इतनी बड़ी है तो निश्चित ही आशीष के मन बुद्धि पर अन्याय एव न्याय कि बड़ी किसी त्रदासी का प्रभाव है।

प्रधानाध्यापक राम निवास बोले बेटे आशीष देखा नही तुमने सिनेमा में भगवान श्री कृष्ण किस प्रकार धर्म की स्थापना के लिए क्रूर अन्यायी समाज से लड़ते है और स्वयं कहते है कि जब भी पृथ्वी पर धर्म कि हानि होती है तब तब मैं अन्याय अत्याचार को समाप्त करने सृष्टि युग मे पृथ्वी पर मानव शरीर धारण करता हूँ एवं अन्याय अत्यचार से पृथ्वी को मुक्त कर धर्म की स्थापना करता हूँ ।

आशीष के मन मस्तिष्क पर प्रधानाध्यापक कि शिक्षा एव सिनेमा का प्रभाव पत्थर कि लकीर बन गया वह घर को लौटने लगा सभी बच्चे भी अपने अपने घरों को चल दिये आशीष रास्ते भर सिनेमा के कुरुक्षेत्र में भगवान गीता के उपदेश के दृश्य एवं प्रधानाध्यापक कि शिक्षा के विषय मे सोचता रहा कब वह घर पहुंच गया पता नही ।

रात के नौ बज चुके थे पिता मुसई एव माँ सुलोचना प्रतीक्षा कर रहे थे घर पहुंचते ही पिता ने पूछा की बेटे आशीष सिनेमा शिक्षाप्रद रही होगी इसीलिए स्कूल के बच्चों को उनमें सांस्कारिक चरित्र निर्माण के लिए दिखाया गया होगा।

आशीष बोला हा बापू बहुत अच्छा था श्रीकृष्ण जीवन एव लीलाओं पर आधारित सिनेमा स्कूल द्वारा दिखाया गया मुसई बोले बेटे रात बहुत हो गयी है भोजन करके सो जा ।

आशीष भी थक गया था माँ सुलोचना ने भोजन परोसा आशीष भोजन ग्रहण करने के बाद सोने चला गया बहुत देर करवट इधर उधर बदलता रहा उंसे नींद नही आ रही थी जब भी वह आंख बंद करने की कोशिश करता उंसे सिनेमा में भगवान श्री कृष्ण के धर्म अधर्म कि शिक्षा के दृश्य दृष्टव्य होने लगते ।

करवट बदलते बदलते उंसे नींद आयी लेकिन नीद में भी सिनेमा के वही दृश्य श्री कृष्ण के द्वारा धर्म अधर्म कि शिक्षा दिखने लगे जैसे उसके कानों में कोई आवाज आई पूछो अपने पिता से की उन्होंने अपने पिता मंगल के साथ हुए छल एव अपमान के अधर्म अन्याय के विरुद्ध युद्ध क्यो नही लड़ा क्या अन्याय को सहन करना अधर्म नही है ?

कृष्ण कर्म ज्ञान के धर्म युद्ध से कपट के द्युत छल को पराजित किया क्या यह कार्य तुम्हारे पिता नही कर सकते थे ? क्या मृत्यु के भय से भयाक्रांत है? मनुष्य कोई भी इतना बलवान नही होता कि अधर्म कि सत्ता को सृष्टि युग का मार्गदर्शन बना डाले जागो आशीष यह कार्य तुम्हे करना होगा अपने पुरुखों कि धर्म की पगड़ी अपमान के बाज़ार से उठा कर पुनः उनके सर पर सम्मान के साथ स्थापित करना होगा ।

एका एक आशीष कि आंखे खुली जैसे वह अब भी भगवान श्री कृष्ण का उपदेश सुन रहा हो सुबह के छः बजे चूके थे आशीष उठा नित्य कर्म से निबृत्त होकर कुछ अध्ययन सम्बंधित कार्यो को पूरा किया मुसई को आशीष के हाव भाव व्यवहार में एक अजीब परिवर्तन दिखाई दे रहा था वह प्रतिदिन कि अपेक्षा अधिक गम्भीर और चिंतित प्रतीत हो रहा एव अंतर्मुखी हो गया था यह आशीष का मूल स्वभाव नही था मुसई ने आशीष से सवाल किया बेटे कल विद्यालय में दिखाए गए श्री कृष्ण जीवन आधारित सिनेमा में कौन सी ऐसी खास बात थी जिसने तुम्हारे मूल स्वभाव को ही एक ही रात में बदल दिया तुम तो हंसमुख एव वाचाल हो लेकिन शाम से ही बहुत गम्भीर एव अंतर्मुखी हो गए हो क्या बात है?

तुम्हारा बहिर्मुखी व्यक्तित्व इतनी जल्दी कैसे समाप्त हो सकता है आशीष बोला कुछ नही बापू कोई बात नही है मुसई को भी लगा जैसे आशीष कल विद्यालय से लौटने में अधिक रात होने के कारण थका हो इसीलिए उन्हें आशीष के व्यक्तित्व में परिवर्तन दिख रहा हो।

आशीष विद्यालय पहुंचा प्रतिदिन कि भाँति विद्यालय में भी वह नित्य से अलग कुछ गम्भीर अंतर्मुखी सभी सहपाठियों एव शिक्षकों को प्रतीत हुआ किसी ने कोई प्रश्न आशीष से उसके स्वाभाविक परिवर्तन के विषय मे नही पूछा ।

आशीष विद्यालय से छूटने के बाद घर आया कुछ सामान्य खेल कूद विद्यालय के कार्य पूरा करने के बाद सोने चला गया जब सोने गया फिर वही सिनेमा के दृश्य भगवान श्री कृष्ण के उपदेश उसकी निद्रा को दूर भगाते और जब निद्रा आती तो वही दृश्य उंसे स्वप्न में भी आते आशीष पुनः सुबह उसी अंदाज में उठा जैसे पिछले दिन उठा था लेकिन आज उसके पिता ने उससे कोई प्रश्न नही किया वह विद्यालय के लिए निकल पड़ा ।

अब यही दिन चर्या आशीष की बन गई रात स्वप्न सिनेमा के दृश्य श्री कृष्ण के उपदेश और दिन में विद्यालय दिन बीतते गए लगभग छः माह बीत गए विद्यालय में वार्षिक परीक्षा का अंतिम दिन था आशीष प्रति दिन की दिनचर्या से ऊब चुका था विद्यालय दस दिनों के लिए बंद होने वाला था और उसके बाद परीक्षा परिणाम के बाद गर्मियों की छुट्टी होने वाली थी आशीष प्रधानांध्यापक राम निवास के पास गया बोला सर क्या मैं भगवान श्री कृष्ण कि तरह अन्यंय से लड़ सकता हूँ प्रधानांध्यापक ने कहा क्यो नही? इसीलिए तो विद्यालय कि तरफ से भगवान श्री कृष्ण के जीवन एव लीलाओं पर आधारित फिल्म दिखाई गई थी ।

आशीष ने प्रधानांध्यापक के पैर छूकर आशीर्वाद लिये और बिना कुछ बोले वहां से चल दिया प्रधानांध्यापक के साथ कुछ और भी अध्यपक वहां बैठे हुए थे आशीष के जाने के बाद प्रधानांध्यापक बोले आशीष कुछ विशेष उपलब्धियों को हासिल करेगा और दुनियां में अपने कुल एव देश का नाम रोशन करेगा ।

इधर आशीष घर आया और अपने मित्रों के साथ खेलने कूदने के बाद भोजन करने बैठा आज सौभगय कहे या दुर्भाग्य उसके साथ उसके तीनो भाई एवं पिता मुसई भी बैठे थे भोजन के दौरान आशीष ने पिता से एक बड़ा बेढंगा सवाल कर दिया आशीष ने पूछा बापू ये बताओ आप भी दादा मंगल के औलाद हो चुरामन के अन्याय का प्रतिकार दादा जी के बाद आपने करने की क्यो नही कोशिश किया ?क्या भगवान श्री कृष्ण के आदर्शों का अपमान नही है चुरामन के साथ तो हमारे दादा ने कोई अन्याय नही किया था कर्ज लेकर न लौटाने पर उसके नियमो का ही पालन किया और इसके बाद चुरामन जैसे दुष्टात्मा को बराबर का सम्मान दिया तो क्या आपका फर्ज नही बनता है कि आप अपने खानदान के अपमान एवं साथ हुए अन्याय अधर्म का प्रतिकार करे ।

मुसई के पैरों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई उनको तो कोई उत्तर ही नही सूझ रहा था अतः उन्होंने क्रोधित होते हुए कहा तू तो बहुत ज्ञानी हो गया है जा सो जा लेकिन आशीष अपने प्रश्न के उत्तर के लिए पिता मुसई के सामने अडिग चट्टान कि तरह खड़ा हो गया मुसई अब आबे से बाहर हो गए बेटे कि जिद्द को देख और एक तेज तमाचा आशीष के गाल पर मारा आशीष ने कहा बापू मैं समझ गया कमजोर व्यक्ति स्वयं भयाक्रांत रहता है आपका यह तमाचा मेरे लिये आशीर्वाद की शक्ति है जो आपके कमजोर भाव एव हाथो से प्राप्त हुई है ।

अब इसे शक्ति मैं दूंगा इतना कहते हुए आशीष सोने के लिए चल दिया एक ही छोपडी में तीन हिस्से थे एक हिस्से में भोजन एव भंडार व्यवस्था दूसरे में मुसई एवं सुलोचना के सोने की व्यवस्था तीसरे में चारो बेटे पढ़ते एवं सोते आशीष अपने तीनो भाईयों के साथ सोने चला गया ।

मुसई भी सोने चले गए सुलोचना ने मुसई से कहा आशीष को आपने कुछ ज्यादा सजा दे दी सही ही तो कह रहा था मुसई बोले अरे भाग्यवान मैं भी जानता हूँ वह सही ही कह रहा है मगर ना तो मैं भगवान श्री कृष्ण हूँ ना ही यह द्वापर है चलो सो जाओ जो ईश्वर करेंगे भगवान श्री कृष्ण करेंगे अच्छा ही करेंगे।

इधर आशीष सोने का बहाना करने लगा और इंतजार करने लगा कि भाईयों को कब गहरी नींद आ जाय मध्य रात्रि को जब सब भाई एव माता पिता सो गए तो आशीष उठा एवं सोते माता पिता के पैर छुआ और छोपडी से बाहर निकला उंसे सिर्फ अपने विद्यालय का ही रास्ता मालूम था वहाँ तक वह बेफिक्र चला गया उसके बाद उसने आंख बंद कर सिनेमा के श्री कृष्ण के विग्रह का ध्यान कर चल पड़ा चलता गया चलता गया अब सुबह होने लगी थी और लोग नित्य कर्म शौच आदि के लिए बाहर निकलना शुरू कर चुके थे इधर आशीष चलता ही जा रहा था सुबह पौ फटने से पूर्व वह कप्तान गंज रेलवे स्टेशन पहुंचा वहां पहले से ही गोरखपुर के लिये रेलगाड़ी खड़ी थी सवार हो गया ।

उधर जब मुसई एवं सुलोचना कि नीद खुली और बच्चों को जगाने के लिए गए तो देखा कि आशीष वहाँ नही है भाईयों आनंद अभिषेख से पूछा तो बताया कि भईया हमी लांगो के साथ सोये थे रात उठकर कब चले गए पता नही ।

सुलोचना मुसई को ताने मारते रोने लगी आप ही ने उसे रात को मारा वह मासूम नही समझ सका कि माँ बाप की मार भी आशीर्वाद ही होती है पूरे गांव में बात आग कि तरह फैल गयी कि आशीष कही चला गया ।

चुरामन का बेटा हिरामन था हिरामन के दो बेटे थे कर्मा और धर्मा कहते है कि बबूल में फूल नही शूल ही उगते है वही बात कर्मा धर्मा के साथ भी लागू थी थे तो दोनों आशीष के ही हम उम्र लेकिन पूरे गांव को परेशान करते रहते धन दौलत मंगल को धोखा देकर उनके दादा ने पहले ही कर दिया था जिसके कारण उनकी हेकड़ी का गांव में कोई सानी नही था जब हिरामन को पता लगा कि मुसई का बेटा कही लापता हो गया है तो बहुत खुश हुआ गांव में हवा फैला दिया चार में एक गया तीन बाकी ।

इधर मुसई परेशान हाल आशीष को खोजने के लिए आशीष के दोस्तो के घर गए रिश्तेदारों के यहां गए हर उस जगह आशीष के तलाश की कोशिश की जहां उसके जाने की संभावना थी मगर उसका कही पता नही चला थक हार कर परतावल थाने में आशीष के लापता होने की प्राथमिकी दर्ज कराई किसी अनहोनी आशंका से मुसई एव सुलोचना का मन शसंकित होने लगा करते भी तो क्या करते समझ नही पा रहे थे ।

आशीष के लापता होने की सूचना जब राम निवास जी को मिली स्वंय आशीष के वार्षिक परीक्षा परिणाम लेकर आये उनको देखकर मुसई सुलोचना फफक कर रोने लगे प्रधानांध्यापक रामनिवास ने पति पत्नी को ढांढस बधाते हुये कहा कि आप लोग विल्कुल चिंता ना करे कोई अपशगुन होगा ऐसा संभव नही है आशीष बहुत मजबूत इरादों का बच्चा है भगवान श्री कृष्ण के गीता के कर्म एव ज्ञान की वास्तविकता का वर्तमान है।

इधर मुसाई एवं सुलोचना कलेजे पर पत्थर रख बेटे आशीष के लौटने का इंतजार करने लगे मुसई प्रति दिन मां काली के मन्दिर जाते और आशीष कि कुशलता का आशीर्वाद मांगते मनौती मानते दिन महीने साल बीतने लगे।।

नन्दलाल मणि त्रिपठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

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