काल अभिमान नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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काल अभिमान



मुरलीधरन उम्र के साठ वसंत व्यतीत कर चुके थे उनके पास भरा पूरा
खुशहाल परिवार एव पर्याप्त धन दौलत रुतबा रसूख था किसी चीज की कोई कमी नही थी नौकर चाकर कीमती गाड़ियां महल जैसी हवेली मुरलीधर के दो बेटे थे मुरुगन और देवन दोनों माँ बाप के आज्ञाकारी और सांस्कारिक थे कुल मिलाकर
मुरलीधरन का जीवन सफलता के शिखर की जीवन यात्रा का
अनुकरणीय उदाहरण था।मैसूर में विजय दशमी का त्यौहार बहुत मशहूर है दशहरा का दिन था सुबह सूरज की लालिमा के साथ दिन की पहली किरण नए शुभ दिवस का दस्तक दे रही थी मुरलीधर की नींद खुली अपनी आदत के अनुसार घरेलू खानसामे को उन्होंने सुबह का चाय बनाने के लिये कहा और खुद अपने महल के बरामदे में कुर्सी पर बैठ गए जहां से दशहरे के उत्साह का शहर पूरी तरह अपने शुरुर में नज़र आ रहा था तभी एक छोटा सा आठ दस वर्ष का बच्चा कंधे पर बोरा लादे सड़क पर पड़े कूड़ा में से रद्दी सामानों को छांटता आगे बढ़ता जा रहा था धीरे धीरे वह बच्चा मुरलीधरन के महल के सामने आया और एका एक महल के बारामदे के सामने आकर रुका और बोला साहब कुछ खाने के लिये दे दो पिछले तीन दिनों से कुछ खाया नही है। मुरलीधरन ने पूछा कि तुम तो कूड़े से रद्दी सामान बीनते हो और बेचते होंगे इतने पैसे तो आ ही जाते होंगे कि तुम्हे पेट भर खाना मील जाय वैसे तुम्हारा नाम क्या है बच्चा बोला साहब मेरा नाम भेमो है मुरलीधरन ने पूछा क्या मतलव यह तो कोई नाम नही हो सकता बच्चा बोला जी बाबु जी मेरा नाम अन्ना भद्रन मोकासी है। साहब एक तो जब भी हम कंधे पर बोरा लेकर शहर के मोहल्लों में रद्दी बटोरने जाते है लोग मुझे चोर समझते हैं कोई मेरी मजबूरी को नही पूछता और बहुत मुश्किल से अगर कहीं किसी मोहल्ले में कोई नही भी पूछताछ करता तो गली के कुत्ते दौड़ाते है साहब शहर में दशहरे की रौनक है कही रद्दी बटोरने कोई अपने मोहल्ले में घुसने ही नही देता ज्यो जाते है भगाओ भगाओ की चारो तरफ से आवाज़ आती है मुरलीधरन ने पुनः सवाल किया कि तुम्हारे साथ ऐसा क्यों होता है भद्रन ने बताया कि उसके पिता ने जब वह पांच वर्ष का था तब मां को मार डाला और
माओवादी बन गया मैँ उसका एकलौता बेटा हूँ मेरे पिता नारगुंडी स्वामी ने माओवादी बनने के बाद चाचा और परिवार के अन्य लोंगो को भी मार डाला माँ के मरने के बाद मैं चाचा के पास रहता था चाचा के मरने के बाद पड़ोसियों के रहम पर जीने लगा कोई दया कर खाना खिला देता कोई अपने यहाँ कुछ छोटे छोटे काम करवाता और रोटी दे देता मगर मुझे जानवरों की तरह ही जीना पड़ता बहुत कष्ट होने पर मैंने ही कचड़े से रद्दी इकठ्ठा करके पेट पालने का फैसला कर लिया कम से कम किसी के सामने हाथ तो नही फैलाना पड़ता है मेरे ऊपर पिता के कर्मो का साया है कोई मुझे अपने यहॉ काम तक करवाने को तैयार नही क्योंकि बाप के माओवादी होने का ठप्पा लगा हुआ है मेरे मोहल्ले वाले मुझे मेरे पैदाईस से जानते है इसलिए वह कुछ काम करा कर खाना खिला देते थे मगर अन्य लोग तो यह कहकर काम नही देते की घर की जानकारियां माओवादियों को उपलब्ध करा कर अनर्थ कर सकते हो साहब जी हमे तो यह भी नही मालूम कि मेरा बाप कहा है जिंदा भी है या नही मुरलीधरन ने बड़े ध्यान से भद्रन की बात सुनी और बोले बेटे तुम अपने निर्णय खुद करो और उस पर दृढ़ता से अमल करो मैं तुम्हे खाने के लिये कुछ नही दूँगा लेकिन मैं तुम्हें पांच सौ रुपये देता हूँ तुम्हे नीर्णय करना होगा कि इस पांच सौ रुपये का क्या करोगे और मुरलीधरन ने भद्रन को पांच सौ रुपये सौ सौ के पांच नोट दिया और बोले देखो इस नोटो को ध्यान से इन नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीरे है तुम्हे मालूम है कि महात्मा गांधी जी को लोग इतनी इज़्ज़त सम्मान क्यो देते है भद्रन बोला बाबा गांधी ने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी और आजाद कराया मुरलीधरन को नन्हे से बालक में नेक पुरुषार्थ का भावी भविष्य स्प्ष्ट दिखने लगा बोले तुम इन नोटों से अपनी आजादी के संघर्ष की शुरुआत करो कही भी कमजोर मत पड़ना कोई तुम्हारे पिता के विषय मे पूछे या बताये तो ध्यान मत देना सिर्फ तुम्हारे सामने तुम्हारे जीवन की आजादी मकसद है ।भद्रन ने मुरलीधरन पांच सौ रुपये लिये पैर छूकर आर्शीवाद लिया और आंखों से ओझल हो गया तब तक खानसामा सुबह की चाय लेकर आया बोला बाबूजी चाय मुरलीधरन ने चाय का प्याला उठाया तो खानसामा अच्युतन ने पूछा बाबूजी आप जिस रद्दी बीनने वाले से बात कर रहे थे उसमें क्या खास बात आपको दिखी की आपने उंसे पांच सौ रुपये दे दिए बाबूजी ऐसे जाने कितने लोग भोले भाले लोंगो को अपनी दुखभरी कहानी सुना कर ठगते है ।मुरलीधरन ने कहा अच्युतन देखना यह बच्चा एक दिन समय को चुनौती देगा और समय को स्वय के अनुसार चलने को विवस कर देगा यह बच्चा समय की यात्रा को खुद की यात्रा की परिभाषा देने को मजबूर कर देगा अब तुम जाओ और अपना कार्य करो। ज्यो ही अच्युतन चाय देकर गया मुरलीधरन के सामने उनके बचपन से लेकर अब तक का सारा दृश्य एक साथ घूम गया और वो अपने बीते जिंदगी के समय के सफर की याद में खो गए कर्नाटक बेल्लारी के पास एक छोटा सा गांव उनके पिता नरसिम्हन इलाके के प्रतिष्ठित एव सम्पन्न व्यक्तियों में थे मुरलीधरन उनकी एकलौती संतान थे बड़े लाड़ प्यार में इनका लालन पोषण हो हुआ था बेल्लारी में खनिज संपदा का भंडार है और ग्रेनाइड की खाने।।
ज्यो ही अच्युतन चाय देकर गया मुरलीधरन के सामने उनके बचपन से लेकर अब तक का सारा दृश्य एक साथ घूम गया और वो अपने बीते जिंदगी के समय के सफर की याद में खो गए कर्नाटक बेल्लारी के पास एक छोटा सा गांव रामागुंडम मुरलीधरन माँ बाप की अकेली संतान बड़े लाड़ प्यार लालन पोषण बेल्लारी में खनिज संपदा का भंडार और ग्रेनाइट की खाने जिसके कारण यहाँ खनन से जुड़े उद्योग धंधों की भरमार।।परिवार में कोई परेशानी नही थी और सब कुछ सामान्य चल रहा था। एक दिन पिता जी ने मां से कहा चलो कुछ दिन देव स्थान घूम फिर आते है माँ भी खुशी खुशी राजी हो गयी हम लोग एक टूरिस्ट बस से पहले तमिल नाड फिर केरल लगभग सभी महत्त्वपूर्ण देव स्थलों पर गये बस के सभी यात्री प्रसन्न थे लगभग पंद्रह दिन के भ्रमण के बाद हम लोग लौट रहे थे अचानक बस ड्राइवर ने अपना संतुलन खो दिया जिसके कारण बस हज़ारों फुट खाई में गिर गयी हमे कुछ भी याद नही उस समय मेरी उम्र लगभग सात वर्ष थी बस के चीथड़े उड़ गये और सभी यात्री मर चुके थे पता नही भगवान को मुझे और कितने दुख देने थे मैं बस के नीचे एक खड्डे में बेसुध बेहोश था ।सरकारी लोग आए सभी शव बाहर निकाल कर जब बस का मलबा हटाया तब उनकी नज़र मुझ पर पड़ी मुझे निकाल कर कुछ दिन चिकित्सा के उपरांत मेरे गांव पुलिस लेकर गयी जब मैं गांव गया तो मेरा पड़ोसी बड़ी खुशी से मेरी परवरिश और शिक्षा दीक्षा का पुलिस सरकारी अधिकारियों को आश्वासन देकर अपने पास रख लिया मुझे भी लगा एक सहारा मिल गया जिंदगी कट जाएगी एक माह सब कुछ ठीक चला चूंकि मेरे पिता जी बहुत पैतृक संपत्ति छोड़ गए थे जिसे मुझे मिलना था उसका लालच हरिनारायण पड़ोसी जिसने मेरे लालन पालन की जिम्मेदारी ली थी के मन मे घर कर लिया और उसकी नियत बदल गयी अचानक एक दिन रात में जब मैं गहरी नींद में सोया था उसी समय उसने मुझे बेहोश कर एक बोरे में मुझे भर कर पहाड़ से नीचे फेंक दिया जब मेरे ऊपर से बेहोशी दवा का असर कम हुआ और नींद टूटी तब मैं बोरे में फड़फड़ा रहा था चिल्लाने की कोशिश करने लगा रोता चिल्लाता थक कर चुप हो जाता फिर रोता आधा दिन बीतने के बाद उधर से कुछ जंगली जाती के लोग गुजर रहे थे उन्होंने जब मेरी आवाज सुनी उनको शायद दया आ गयी उन्होंने जिस बोरे में कैद था उंसे बड़े सावधानी से उतारा फिर मुझे बोरे से बाहर निकाल कर मुझसे मेरे विषय मे जानकारी चाही जितना भय दहशत के साये में बता सकता था बता सका फिर वे लोग मुझे साथ लेकर अपने झोपड़ी में पहुंचे मेरा सम्भव इलाज किया दो तीन बाद स्वस्थ हो गया वो लोग स्वय बहुत गरीब मगर मानवता ईश्वर मूल्यों के मानने वाले लोग थे उनके बीच मुझे जीवन प्यार मानवीय मुल्यों का एहसास हुआ धीरे धीरे उनके बीच ही बड़ा होने लगा समय इस कदर तेजी से आगे निकलता जा रहा था पता ही नही चला मेरी उम्र लगभग सत्रह वर्ष हो चुकी थी उन गरीबो पर बोझ बने लगभग बारह वर्ष बीत चुके थे अब मेरे मन मे कुछ करने की दृढ़ इच्छा जागी हमने उन जंगली परिवरों से हम उम्र दस बारह लोंगो का एक समूह बनाया और ग्रेनाइड की खानों में काम करना शुरू कर दिया सभी की मजदूरी मेरे ही पास रहती सिर्फ खाने की व्यवस्था के लिये ही पैसे खर्च करते लगभग पांच वर्ष में इतना पैसा एकत्र हो गया कि हम लोग ग्रेनाइड की स्वय खरीदारी कर लोंगो को बेचे। यही कार्य हम लोंगो ने शुरू किया और अच्छा मुनाफा होने लगा धीरे धीरे हम बारह लोंगो की उम्र तीस पैंतीस वर्ष हो चुकी थी और एक विश्वास पात्र समूह बन चुका था इस बीच समय निकाल कर हम सभी पढ़ने लिखने का भी कार्य करते समूह का हर व्यक्ति स्नातक हो चुका था और इतना धन भी आचुका था कि अब स्वय ग्रेनाइड खानों का पट्टा लेकर बड़े स्तर पर व्यवसाय किया जाय हिम्मत साहस और समूहिक एकता विश्वास ने सम्भव कर दिया हमने एक कम्पनी बनाई और ग्रेनाइड खदानो का पट्टा लेकर खुदाई कराना एव ग्रेनाइड की पूरे देश मे आपूर्ति शुरू कर दी सात आठ ही वर्ष में हमारे समूह का नाम राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय स्तर पर विश्वनीयता प्राप्त ब्रांड हो गया और अपार सफलता और धन दौलत मिलने लगी मेरे साथ मेरे सभी साथी मेरी ही तरह सम्मानित एव शिक्षित संपन्न है जिस जंगल मे मेरे साथी जन जातीय पिछड़ेपन गरीबी में जीवन यापन करते थे अब बहुत बदलाव आ गया था सभी के पास मेरी ही तरह महल एव सुख सुविधाएं प्राप्त है और सभी मुरलीधरन एंड कम्पनी के बोर्ड के सदस्य एव कम्पनी के कर्ता धर्ता है।मैं एक दिन अपने साथियों के साथ अपने गांव रामागुण्डम गया तो पता चला कि हरिनारायण के दो बेटों को किसी जुर्म में आजीवन कारावास हो चुका था एव पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी और उसे अनेको बीमारियों ने जकड़ रखा था वह मुझे देखकर अपने कर्मों का बहुत पछतावा हो रहा था मगर अब उसके सामने कोई विकल्प या रास्ता नही था उसकी दशा देखकर मुझे उस पीड़ा का एहसास हुआ जब बोरे में कैद जीवन मृत्यु को तड़फ रहा था और जनजातियों ने जीवनदान दिया। मुरलीधरन अपने अतीत में खोए ही हुये थे कि अचानक खानसामा अच्च्युतन ने एका एक आकर कहा साहब कहा खो गए आज स्नान ध्यान पूजा भोजन नही करना है आज तो खास पर्व है एका एक मुरलीधरन का ध्यान टूटा और बोले आज मैं अपने अतीत के समय की यात्रा में विचरने लगा था आज का दिन ही कुछ खास है एक तो सुबह सुबह भद्रन का आना और मुझे स्वय की आतीत की यात्रा में खो जाना कुछ विशेष संदेश दे रहे है। इतना कहते हुये मुरलीधरन उठे और दैनिक कार्य मे व्यस्त हो गए ।भद्रन मुरलीधरन से मिले पांच सौ रूपये से कुछ कांपिया पेंसिल रबर कटर स्लेट खरीदा और नजदीक ही बच्चों के स्कूल के सामने बैठ गया शाम तक उसके सभी सामान बिक गए और पांच सौ की धनराशि छः सौ पचास रुपये हो गए जिसमें से भद्रन ने पच्चीस रुपये का खाना खाया एव छ सौ पच्चीस रुपये से उसने फिर बच्चों के पढ़ने लिखने की सामग्री खरीदी और दूसरे दिन दूसरे स्कूल के सामने बैठ गया उस दिन भी उसके सारे सामान बिक गए और लगभग आठ सौ रुपये मीले इसी प्रकार एक माह में पांच सौ की पूंजी बढ़कर तीन हज़ार हो गयी अब भद्रन ने एक ठेला खरीदा एव उसपर बच्चों के लिखने पढ़ने की सामग्री सुबह शाम मोहल्लों में एव दिन पर बच्चों के स्कूल के सामने बेचता धीरे धीरे उसकी साख स्टेशनरी बाज़ार में विश्वसनीय हो गयी और उसे साक पर भी समान बेचने को मिलने लगा लगभग सात वर्षों में भद्रन की उम्र अठ्ठारह वर्ष हो चुकी थी और उसने अपनी स्वय स्टेशनरी की दुकान खोल ली स्कूलों के सामने स्टेशनरी बेचते बेचते उंसे अच्छी पहचान मिल चुकी थी उसने अपने दुकान का नाम रखा सामने वाली दुकान मुरलीधरन एव स्कूल के सामने वली उसकी दुकान चल नकली और लगभग बीस वर्षों में उसने स्वयं का प्रिंटिंग प्रेस ,काँपी बनाने की छोटी इकाई ,एव पेंसिल बनाने की इकाई स्थापित कर ली ,अब वह शहर का मानिंद व्यवसायी था लेकिन वह मुरलीधरन से मिलने कभी नही गया लेकिन अपने घर मे ही उनके फ़ोटो की पूजा करता अब भद्रन की उम्र चालीस और मुरलीधरन की उम्र लगभग नब्बे वर्ष हो चुकी थी एक दिन भद्रन को पता चला कि मुरलीधरन की तबीयत बहुत खराब है उन्हें खून की आवश्यकता है उनका ब्लड ग्रुप बी निगेटिव मिलना मुश्किल था भद्रन सीधे अस्पताल पहुंचा और अपने खून की जांच कराई पता चला कि उसका ब्लड ग्रुप भी बी नेगेटिव है डॉक्टर से बोला आप मेरे शरीर का एक एक बूंद खून ले लीजिये लेकिन मेरे भगवान मुरलीधरन को बचा लीजिए डा बोला ठीक है आप आओ एक तरफ से भद्रन का खून निकल रहा था और दूसरी तरफ मुरलीधरन के शरीर मे जा रहा था लगभग तीन घंटे बाद मुरलीधरन को होश आया उन्होंने बगल की शय्या पर लेटे व्यक्ति को बड़े गौर से देखा और खानसामा जो बूढ़ा हो चुका था को बुलाया और बोले देखो अच्युतन यह वही बच्चा है जो कंधे पर बोरी लिये दशहरे वाले दिन आज से लगभग तीस वर्ष पूर्व आया था यह आज शहर का बड़ा व्यवसायी और सम्मानित दौलत मंद
है यह भद्रन है आज समय की जीवन यात्रा में मेरे जीवन का वर्तमान और मैं इसका अतीत हम दोनों ही आतीत और वर्तमान समय की यात्रा के जीवंत
जाग्रत है और अपने सभी परिवार के सदस्यों का भद्रन से परिचय करवाया।।

कहानीकार --नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश