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मेरी मोहब्बत: अधूरी होकर भी पूरी है !




लड़का:- "सर आप इतने अच्छे पेंटर है, सुख-दुःख,दर्द जैसी अनेकों भावनाओं को रंगों के माध्यम से सबके सामने प्रस्तुत करने की कला कोई आपसे सीखे..!!"
आदमी ने मुस्कुराते हुए कहा:- "तारीफों के लिए शुक्रिया"
लड़का:- "हमारे मन में एक सवाल कौंध रहा है, किसी काम के पीछे कोई ना कोई कारण या प्रेरणा जरूर होता है, चाहे वो एक लेखक हो या पेंटर..!! आपके इस अद्भुत कौशल के पीछे किसका हाथ है..?? आपकी प्रेरणा कौन है..??"
आदमी:- "जरूरी नही हर किसी के पीछे कोई प्रेरणा हो, परंतु मैं अपनी सफलता का श्रेय किसी को देना चाहूँगा, और वो हैं 'मेरी प्रेरणा'..!!"
लड़का:- "आपकी प्रेरणा..??"
आदमी अपने चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान लिए कहता है:- "हाँ, मेरी प्रेरणा, ये एक लंबी कहानी है..!!"
लड़का हँसते हुए:- "सर हमारे पास समय हीं समय है, जरूर सुनना चाहेंगे आपकी कहानी"
आदमी अपनी खिड़की की तरफ बढ़ गया और एक लंबी साँस लेकर सामने खिले फूलों को देखते हुए बोलना शुरू किया ।
आदमी:- "मेरी कहानी शुरू हुई 1975 में, फरवरी 28,1975 को मेरा जन्म राजस्थान के एक राजघराने में हुआ। हमारा देश आजाद हुआ, लोकतंत्र की स्थापना हुई लेकिन कई राजघराने अभी भी बरक़रार थे। बाबा के पास बेशुमार दौलत, कुछ मेहनत के बाकि काला धन। अगर मोदी जी उस समय में प्रधान मंत्री होते तो इतने सारे काले धन को देख इतना हीं कहते "इतना तो इटली वालों ने स्विस में भी नही रखा होगा"। (लड़का ठहाके मार हँस देता है) मैं अपने माता पिता की तीसरी और सबसे छोटी संतान था। बचपन से लाड प्यार में पला बढ़ा, माँ बाबा ने मेरी हर इच्छा पूरी की और शायद यही कारण है जो मैं गलत रास्ते पे चल पड़ा। गलत संगत में उठना बैठना होने लगा। बड़े भाई को पढ़ने लिखने का शौक था इसलिए वो विलायत चले गए पढ़ने और मैं यहां अपने दोस्तों के साथ समय बिताता। पढ़ने में कभी कोई रूचि नही दिखाई। मेरे दोस्त भी मेरी तरह बड़े घर से थे "एक हीं थाली के चट्टे बट्टे"मतलब सब के सब बिगड़े हुए। उनकी संगत में मैं भी वैसा ही हो गया। सिगरेट, शराब पिने लगा लेकिन अपनी हदें कभी नही भूली मैंने।
एक दिन कुछ दोस्तों ने पास के कोठे पर चलने की ज़िद की,वहीं मिला मैं "मेरी प्रेरणा से"।
आज से चौबीस साल पहले...
शाम सात बजे, पूर्णिमा की रात थी,चाँद अपने पुरे शबाब पर था। प्रशांत के कुछ दोस्तों ने कोठे पर नाच देखने का मन बनाया। प्रशांत ने मना किया लेकिन दोस्तों की ज़िद के आगे उसे झुकना पड़ा।
बृजेश:- "चलिए कुँवर सा, बहुत आनंद आने वाला है आपको"
लखन:- "आपके साथ साथ हम भी अपनी आँखों को थोडा ठंडक पहुँचा लेंगे, सुना है एक बार जो "चांदनी"का दीदार कर ले, सातों जन्म तक उनका चेहरा नही भूलता"
अनुज:- "सही कहा लखन भाई आपने, चांदनी के बारे में हमने भी बहुत सुना है"
प्रशांत सबकी बातें सुन रहा था, जोश में आकर उसने कहा:- "तो फिर देर किस बात की, चलिए। इस चांदनी रात में आपसब की चांदनी का दीदार हम भी कर लें"
प्रशांत, बृजेश, लखन और अनुज चारों "आएशा बेगम"के कोठे पर चले गए। वहां पहले से हीं कई राजघरानों के ऊँचे ऊँचे पद मौजूद थे, कुछ कुँवर प्रशांत को पहचानते थे इसलिए उनके लिए जगह बना दी गई। प्रशांत और उसके दोस्त आराम से जमीं पे बिछे गद्दे पर बैठ गए। कुछ हीं देर में एक लड़की ने आकर सबके सामने शराब से भरे गिलास रख दिए।
चारो तरफ शीशे के लैंप रखे हुए,मद्धम रौशनी में पूरा हॉल बेहद खूबसूरत लग रहा था। वहां मौजूद सभी शराब का लुफ्त उठा रहे थे तभी सामने से घुंघरुओं की आवाज आई। सबके साथ साथ प्रशांत की नज़र भी सामने जाकर टिक गयी। हरे रंग की अनारकली में एक बला की खूबसूरत लड़की, कानों में पहने झुमकों को ठीक करती हुई चली आ रही थी। प्रशांत जी नज़रें उसपर जम सी गई थी। बृजेश ने उसे कोहनी मारी तब जाकर प्रशांत ने अपनी नज़रे हटाई।
बृजेश:- "कहा था ना कुँवर सा, एक बार उनपर नज़र पड़ी, फिर हटा नही पाओगे। "
प्रशांत मुस्कुरा कर रह गया। चांदनी की खूबसूरती का वो कायल हो चूका था, रही सही कसर उसके नृत्य ने पूरी कर दी। पूरी अदाओं के साथ जब भी वो नाचती, सबका कलेजा मुँह को आ जाता। नाचते हुए जब चांदनी कुँवर के करीब आई, प्रशांत की धड़कने बढ़ गयी। चांदनी से नज़रे मिलते हीं वो सब कुछ भुला बैठा। नृत्य खत्म हुआ, चांदनी ने झुक कर सबको सलाम किया और पूरी अदाओं के साथ वापस अपने कमरे में चली गयी। वहां मौजूद कुछ लोग वापस चले गए तो कुछ लोग आएशा बेगम के पास कुछ पैसे जमा कर, कोठे के ऊपरी हिस्सों में जाने लगे। प्रशांत ने लखन से पूछा:- "ये सब ऊपर क्यों जा रहे हैं"
लखन बेशर्मी से हँसते हुए बोला:- "अपनी रातें रंगीन करने कुँवर सा"
ये सुनते हीं प्रशांत का दिल धक् से रह गया, मन में सिर्फ एक प्रश्न आया "क्या चांदनी भी?"
बृजेश और बाकि सबने मिलकर प्रशांत को अपने साथ बाहर ले गए। सबने खूब शराब पिया और वापस अपने घर चले गए। अपने लड़खड़ाते क़दमों के साथ कुँवर अपने घर पहुंचा, जहाँ उसकी माँ सा "कमलावती"हॉल में बैठी उसका इंतज़ार कर रहीं थी।
कमलावती:- "आज फिर पीकर आये हैं आप, आपके बाबा सा ने कितनी बार आपको समझाया है, ये आदतें आप छोड़ क्यों नही देते कुँवर??"
प्रशांत अपनी माँ सा के पास आया और उनके गले में अपनी बाहें डालकर बोला:- "जिस दिन वजह मिल जायेगी, छोड़ दूंगा माँ सा"
कमलावती ने उसके हाथों को हटाकर कहा:- "हमने और आपके बाबा सा ने आपको मना किया, क्या ये वजह काफी नही है..!! "
कमलावती प्रशांत के जवाब के लिए पलटीं लेकिन प्रशांत सोफे पे निढाल होकर सो चूका था। कमलावती ने दरबान को आवाज देकर बुलाया और कुँवर को कमरे में सुलाने को कहा। दरबान ने कुँवर को उनके कमरे में सुला दिया। कमलावती अपने कमरे में आयीं जहां महाराज "विश्वजीत"कुर्सी पर बैठे कुछ पढ़ रहे थे।
कमलावती को देख उन्होंने कहा:- "आ गएं आपके लाडले??"
कमलावती ने अपने चेहरे पे पल्लू कर सधी हुई आवाज में कहा:- "जी मालिक "
विश्वजीत आगे कुछ नही बोले और अपनी किताब बंद कर वो दीवान पर जाकर लेट गए। कमलावती उनके पास आई और उनके पैर दबाने लगी।
अगले दिन सात बजे कुँवर अपने दोस्तों के साथ एक बार फिर कोठे में मौजूद थे। चांदनी अपने कमरे में तैयार हो रही थी तभी बेगम आएशा उसके पास आई और कानों में झुमके पहनाते हुए कहा:- "अपनी खूबसूरती के जलवों को थोडा और दिखाओ। ताकि सामने बैठे कुँवर आपके हुस्न पे अपनी सारी दौलत लूटा सकें"
चांदनी कुछ नही बोली बस उदास सी अपने सर को निचे कर बैठी रही। आएशा बेगम ने उसके चेहरे को अपनी हाथों में मजबूती से पकड़ा और कहा:- "ऐसी शक्ल लेकर बाहर मत आना वर्ना ऐसा दर्द दूंगी जो जिसे सह नही पाओगी"
चांदनी गुस्से से बेगम की तरफ देखने लगी और उनकी आँखों में देखते हुए कहा:- "सब कुछ तो छीन चुकी हैं आप मेरा, अब कितना दर्द देंगी मुझे??"
आएशा बेगम ने उसके चेहरे को झटक दिया और उसे गुस्से से घूरते हुए बोली:- "ऐ लड़की, भूलो मत तुम इस कोठे की एक मामूली नचनिया हो जिसका काम है मर्दों के जिस्म को भड़काना"
चांदनी:- "मैं इस मामूली से कोठे की वो रौनक हूँ जिसके बिना आपके इस कोठे में एक दिया तक ना जले"
आएशा चांदनी को घूरते हुए शबनम से बोली:- "इसे तैयार कर जल्दी बाहर लेकर आओ"
शबनम अपना सर झुकाये:- "जी बेगम"
आएशा बेगम के जाते ही शबनम चांदनी से बोली:- "क्यों ज़ुबान लड़ाती है उनसे, जानती है ना कितनी खतरनाक औरत हैं वो..!!"
चांदनी:- "जानती हूँ, लेकिन ये भी जानती हूँ कि वो मेरा अब कुछ नही बिगाड़ सकतीं, सोने के अंडे देने वाली मुर्गी बन चुकी हूँ मैं अब उनकी"
चांदनी उसी अदा से एक बार फिर सबके सामने उपस्थित थी, सब उसे देख आहें भर रहे थे वहीं प्रशांत चांदनी को देखता हुआ शराब की गिलास मुँह में लगाये बैठा था। चांदनी ने नाचना शुरू किया लेकिन आज उसमे वो बात, वो खनक नही थी जो हर रोज रहती थी। वजह थी "आएशा बेगम"। सब चांदनी के दीदार मात्र से खुश थे, किसी को कुछ बदलाव नज़र नही आया सिवाए कुँवर के। एक ही दिन में चांदनी को समझने लगा था वो।
नृत्य पूरा कर चांदनी अपने कमरे में चली गई, और कल की तरह ही कुछ बाहर तो ऊपर की तरफ चल दिए। प्रशांत ने अपने दोस्तों को वहीं रुकने का बोल आएशा बेगम के पास गया और चांदनी से मिलने की बात कही।
बेगम आएशा:- "क्षमा करें कुँवर सा, लेकिन चांदनी को हमने इस पेशे में नही उतारा है अबतक, वो अपने नृत्य से ही सबको घायल करने का हुनर रखती है"
बेगम की बात सुन कुँवर को अजीब सा सुकून महसूस हुआ अपने अंदर। मुस्कुराते हुए उसने अपनी जेब से नोटों की गड्डी निकाली और बेगम को देते हुए वहां से निकल गया।
बेगम नोटों की गड्डी हाथ में लिए मुस्कुरा रही थी "कुँवर की नब्ज आखिर मिल ही गई उसे"।
अगली सुबह हर रोज की तरह कमलावती कुँवर के कमरे में गयीं जहाँ वो निश्चिंत से सो रहा था। ना दुनिया जहाँ की खबर ना ही महल में होती रोज रोज की घटनाएं। लेकिन आज कुछ खास था, और वो था कुँवर के बड़े भाई दिग्विजय की विलायत से भारत वापसी।
कमलावती कुँवर को प्यार से जगाती हैं और उसे निम्बू पानी देती है। अपना सर पकडे प्रशांत निम्बू पानी पिने लगता है। रानी कमलावती उनसे कहती हैं:- "तैयार हो जाइये प्रशांत, आपके बड़े भाई आज राजमहल आ रहे हैं"।
दिग्विजय के वापस आने की कोई ख़ुशी नही दिखी प्रशांत के चेहरे पर। वो चुपचाप बैठा रहा तो रानी ने कहा:- "आपको कोई ख़ुशी नही हुई? आपके भाई इतने दिनों बाद वापस लौट रहे हैं"
प्रशांत:- "आपको पता है माँ सा, हमे उनसे कोई फर्क नही पड़ता। उन्हें अपने पढ़े लिखे होने का बहुत घमंड है और वही घमंड वो हमारे और हमारे दोस्तों के सामने दिखाते हैं"
कमलावती:- "लेकिन वो आपसे बहुत प्रेम करते हैं और आपको गलत रास्ते पर चलता वो नही देखना चाहते थे"
प्रशांत अपने बिस्तर से उठकर खडा हो गया और टहलते हुए कहा:- "कुछ दिनों में हम 21 वर्ष के हो जायेंगे। हममे इतनी समझ है माँ सा, हमारे लिए क्या गलत है, क्या सही है, सब समझते हैं हम। बच्चे नही रहे अब लेकिन वो, वो हमेशा एक बच्चे की भांति समझते हैं, हमारी भी इज्जत है अपने दोस्तों के सामने लेकिन वो हमारी बेइज्जती करने में कोई कसर नही छोड़ते"
कमलावती:- "आप गलत समझ रहे हैं कुँवर, उन्हें आपकी चिंता है इसलिए वो ऐसे करते हैं।"
कुँवर मुस्कुराकर कहते हैं:- "अगर ये चिंता है माँ सा, तो कोई जरूरत नही है उन्हें हमारी चिंता करने की"
दोपहर में बड़े कुँवर दिग्विजय का भव्य स्वागत हुआ, चारो तरफ बड़े बड़े हाथी, ऊँट, ढोल नगाड़े के बिच दिग्विजय शाही सवारी से उतरे। मुस्कुराता चेहरा, कोट पैंट पहने वो माँ सा की तरफ बढे। पाँच सालों बाद अपने बेटे को सामने देख उनकी आँखों से आंसू छलक आये। अपनी घूँघट के अंदर बड़ी सफाई से उन्होंने अपने आंसू पोछ लिए।
महाराज विश्वजीत के पाओं छूकर वो अपनी माँ सा की तरफ बढे, कमलावती ने उनकी आरती उतारी। दिग्विजय ने उनके पैर छुए और सबके साथ महल में आ गए। उनकी नज़र चारो ओर किसी को ढूंढ रही थी। प्रशांत जब कहीं नज़र नही आये तो उन्होंने माँ सा से पूछा:- "माँ सा, प्रशांत कहाँ हैं?"
कमलावती अपने घूँघट को थामे धीरे से बोली:- "और कहाँ होगा, अपने कमरे में है"
दिग्विजय:- "हम मिलकर आते हैं उनसे"
दिग्विजय प्रशांत के कमरे की तरफ बढ़ने लगे तभी महाराज की आवाज आई और उन्होंने उन्हें अपने पास बुला लिया। अपने कुछ खास मेहमानों से मिलवाने लगे। दिग्विजय भी बड़ी नर्मदिली से सबसे मिला। कुछ समय बाद वो प्रशांत के कमरे में गए जहां प्रशांत अपने बिस्तर पे पेट के बल लेटे पेपर पे पेंसिल से स्केच बना रहे थे। ये स्केच चांदनी की थी।
दिग्विजय कमरे में दाखिल हुए और पीछे से जाकर उन्होंने स्केच देखने की कोशिश की,
दिग्विजय:- "ये कौन हैं कुँवर?"
अपने कमरे में किसी की आवाज सुन प्रशांत ने जल्दी से पेपर गद्दे के निचे छिपा दिया और खड़े होकर दिग्विजय के सामने खड़े हो गए।
दिग्विजय उम्र में बड़े थे इसलिए प्रशांत ने उनके पाँव छुए और बोला:- "आप कब आये?"
दिग्विजय मुस्कुराते हुए बिस्तर पे बैठ गए और बोले:- "जब आप यहां किसी की तस्वीर बना रहे है"
प्रशांत परेशान हो गया कि कहीं दिग्विजय ने तस्वीर देख तो नही ली। दिग्विजय उसके चेहरे पे चिंता की लकीरें देखते हुए कहा:- "चिंता मत करिये, हमने आपकी बनाई तस्वीर नही देखि। बस इतना समझ आया हमे कि किसी लड़की की तस्वीर थी।"
प्रशांत:- "ऐसा कुछ नही है भाई सा, किसी लड़की की तस्वीर नही थी।"
दिग्विजय उसे परेशान करते हुए कहा:- "अच्छा तो ठीक है हम अभी देख लेते हैं किसकी तस्वीर थी"
दिग्विजय अपना हाथ गद्दे की तरफ बढ़ाते हैं तभी प्रशांत जल्दी से उनका हाथ पकड़ लेता है और बोलता है:- "इतने लंबे सफर के बाद आप थक गए होंगे भाई सा, आप कुछ देर आराम कर लें"
दिग्विजय अभी भी प्रशांत को परेशान करना चाहते थे इसलिए उन्होंने एक बार फिर अपना हाथ गद्दे की तरफ बढ़ाया। प्रशांत ने उनका हाथ पकड़ा और उठाते हुए कहा:- "जाइये भाई सा, वर्ना तबियत ख़राब हो जायेगी आपकी"
प्रशांत ने उन्हें अपने कमरे से निकाल दिया। दिग्विजय हँसते हुए अपने कमरे में चले गए। प्रशांत ने गद्दे के निचे से चांदनी की स्केच निकाली और उसे देखते हुए कहा:- "आज तो आपने हमे मरवा हीं दिया था"
शाम में महाराज ने कुँवर दिग्विजय को अपने पास बुलाया। दोनों झरने के पास बैठे थे तो महाराज ने कहा:- "कुँवर, अब आपकी पढाई भी लगभग पूरी हो चुकी है इसलिए हमने आपका विवाह पड़ोसी राज्य के राजा भानुप्रताप की पुत्री से तय कर दी है।"
दिग्विजय हैरानी से उनकी तरफ देखने लगे और बोले:- "लेकिन बाबा सा, अभी हमारी पढ़ाई पूरी नही हुई ऐसे में शादी..??"
विश्वजीत:- "विवाह के पश्चात आप पढाई कर लीजियेगा।"
अपने पिता की बात दिग्विजय कभी नही टालता था इसलिए उसने हामी भर दी।
विश्वजीत:- "कल सुबह हम चलेंगे भानुप्रताप जी के महल, वहां आप अपनी होने वाली रानी से भी मिल लीजियेगा।"
दिग्विजय:- "जी बाबा सा..!"
दिग्विजय के आने की वजह से प्रशांत ना तो अब अपने दोस्तों से मिल पायेगा और ना ही चांदनी को देख पायेगा। वो अपने कमरे में बैठा चांदनी की तस्वीर को निहारता रहा।
अगली सुबह, महाराज विश्वजीत और उनका परिवार भानुप्रताप जी के यहां पहुंचा। दिग्विजय और प्रशांत एक ही गाड़ी में बैठे थे। दिग्विजय की हालत खराब थी, लड़की देखने जाना था, लड़की कैसी होगी ये सब सोचकर उसके पसीनें छूट रहे थे। प्रशांत को उसकी हालत देख बहुत हँसी आ रही थी।
प्रशांत दिग्विजय को परेशान करने के लिए बोला:- "वैसे भाई सा, मैंने सुना है भाभी सा बहुत खातरनाक हैं।"
दिग्विजय ने उसे घूरकर देखा और कहा:- "अभी हमारा विवाह नही हुआ है, इसलिए उन्हें भाभी सा मत कहिये आप"
प्रशांत:- "लेकिन विवाह भी तो उनसे ही होगा ना आपका..!! और असल बात तो ये है कि विवाह के पश्चात् आपका क्या होगा?"
दिग्विजय:- "बात को घुमाइए मत कुँवर, जो कहना है साफ़ साफ़ कहिये"
प्रशांत:- "हमने सुना है भाई सा कि उन्हें गुस्सा बेहद जल्दी आता है, और वो सामने वाले से ज्यादातर अपनी तलवार से बात करती हैं"
दिग्विजय:- "क्या कुछ भी बोल रहे हैं आप, ऐसा कुछ नही होगा"
प्रशांत अपनी हँसी रोकते हुए:- "आप खुद देख लेना भाई सा"
सब महाराज भानुप्रताप के महल पहुंचे। भव्यता के साथ सबका स्वागत किया गया। दिग्विजय और बाकी सब को टिका लगाकर उन्हें महल में प्रवेश करवाया गया। बेहद खूबसूरत और आलिशान महल था। सब हॉल में बैठ गए और बातें करने लगे। भानुप्रताप सबकी खातिरदारी में लगे हुए थे वहीं दिग्विजय प्रशांत की कही बातों के बारे में सोच रहे थे।
विश्वजीत:- "भानुप्रताप जी, अगर आपकी अनुमति हो तो दिग्विजय अपनी होने वाली रानी से मिल सकते हैं?"
भानुप्रताप:- "जी जी अवश्य, कुछ समय में इनका विवाह होने वाला है। अगर अच्छे से समझ लें एक दूसरे को तो इनके लिए हीं अच्छा रहेगा"
भानुप्रताप ने एक दासी को बुलाया और कहा:- "आप राजकुमारी को तैयार कर हमारे बगीचे में ले आइये, कुँवर दिग्विजय उनसे मिलना चाहते हैं"
दासी:- "जी महाराज"
कुछ समय बाद भानुप्रताप ने दिग्विजय और प्रशांत को दासी के साथ बगीचे में भेज दिया जहाँ राजकुमारी उनका इंतज़ार कर रहीं थीं। दोनों बगीचे की खूबसूरती देखते हुए आगे बढ़ रहे थे। कुछ दुरी पे दिग्विजय को राजकुमारी दिखी, हलाकि उनकी पीठ कुँवर की तरफ थी इसलिए वो उनका चेहरा नही देख पाये।
दोनों राजकुमार आगे बढे तो सामने राजकुमारी किसी से बात कर रहीं थीं और उनके हाथों में तलवार था। राजकुमारी सामने खड़े नौकर से:- "इसकी धार तो काफी तेज़ है"
ये सुनते ही दिग्विजय प्रशांत की तरफ देखने लगे। उनकी ऐसी हालत देख प्रशांत को हँसी आ गयी। दोनों राजकुमारी के पीछे खड़े हो गए, दासी ने राजकुमारी को आवाज लगाई तो राजकुमारी पीछे पलटी। उन्हें देख दिग्विजय और प्रशांत दोनों लड़खड़ा गए।
सामने एक बेहद डरावनी शक्ल की लड़की खड़ी थी, वो इतनी भयानक लग रही थी कि उसे कोई भी देखे तो डर जाये। और यही हाल दिग्विजय और प्रशांत का हुआ था। राजकुमारी ने दोनों के सामने हाथ जोड़े और उन्हें अपने साथ झरने के पास ले गई। दोनों को बैठाकर राजकुमारी उनके सामने बैठ गयीं।
राजकुमारी की तरफ देखने की हिम्मत ना दिग्विजय की हो रही थी और ना प्रशांत की। दोनों सर झुकाये बैठे थे। राजकुमारी ने बात शुरू की:- "आप लोगों को कोई दिक्कत तो नही हुई रास्ते में?"
दिग्विजय हिम्मत कर सर झुकाये बोले:- "नहीं, कोई दिक्कत नही हुई"
राजकुमारी ने अगला सवाल दागा:- "तो कैसी लगी मैं आपको?"
दिग्विजय मानो काटो तो खून नही वाली हालत हो रखी थी। बेचारे क्या बोलते, बस सार झुकाये बैठे रहे। प्रशांत धीरे से दिग्विजय से बोला:- "माना की आप हमे उतने पसंद नही, लेकिन आपकी ज़िंदगी हम ऐसे बर्बाद होते नही देख सकते भाई सा, आप चलिए हमारे साथ।"
प्रशांत ने दिग्विजय का हाथ थामा और राजकुमारी से बोला:- "क्षमा करें राजकुमारी सा, हमे कुछ जरूरी काम है।"
प्रशांत दिग्विजय को अपने साथ ले जाने लगा तभी पीछे से एक बहुत प्यारी सी आवाज कानों में पड़ी "रुकिए"।
दोनों के कदम रुक गए, जब उन्होंने पीछे मुड़ के देखा तो एक बेहद खूबसूरत लड़की सामने खड़ी थी। लड़की हँसते हुए दोनों के पास आई और बोली:- "जिनसे मिलने आये हैं, उनसे मिले बिना ही चले जायेंगे आप लोग"
प्रशांत:- "जी आप कौन?"
लड़की:- "हम हैं राजकुमारी कल्याणी"
दिग्विजय राजकुमारी की खूबसूरती और उनके बात करने की अदा को निहारते रह गए। प्रशांत ने मुस्कुराते हुए दिग्विजय का हाथ छोड़ दिया और बोला:- "हमे नही पता था, हमारी भाभी सा इतनी शरारती हैं"
प्रशांत दिग्विजय और कल्याणी को छोड़ बगीचे के दूसरे तरफ चला गया ताकि दोनों बात कर सकें। राजकुमारी और दिग्विजय झरने के पास बैठ गए। सारी दासियाँ वहां से हटकर बगल में खड़ी हो गयीं।
कल्याणी:- "हमे क्षमा कर दीजिये इस मजाक के लिए"
दिग्विजय कुछ नही बोले, बस मुस्कुराकर रह गए।
कल्याणी:- "आप इतने चुप चुप क्यों हैं?"
दिग्विजय:- "बस आपकी खूबसूरती को निहार रहे"
कल्याणी ने शर्म से अपनी नज़रें झुका ली। कुछ देर की ख़ामोशी के बाद कल्याणी बोली:- "क्या आपको ये रिश्ता मंजूर है?"
दिग्विजय मुस्कुराते हुए:- "ना करने की कोई वजह ही नही है"
तीनों वापस महल में आगए। राजकुमारी ने सबके पाँव छुए और वहीं खड़ी हो गयी। दिग्विजय बैठे उन्हें निहार रहे थे। विश्वजीत की नज़र जब दिग्विजय पे पड़ी तो वो बोले:- "आपको ये रिश्ता मंजूर है ना कुँवर?"
दिग्विजय मुस्कुराते हुए:- "जी बाबा सा"
भानुप्रताप और बाकी सब खुश हुए तो भानुप्रताप ने कल मंगनी करने का प्रस्ताव रखा। विश्वजीत ने स्वीकृति दी।
सब वापस महल आ गए। कल सगाई थी, कमलावती पुरे जोरों शोरो से तैयारी करवा रहीं थीं। वहीं प्रशांत अपने कमरे में उदास बैठा हुआ था। आज पुरे दो दिन हो गए चांदनी को देखे। शाम का वक्त हो चला था। प्रशांत अपने कमरे से निकला और कमलावती से कुछ देर में लौटने का बोल बाहर चला गया।
प्रशांत कोठे के बाहर पहुंचा, अभी काफी समय था चांदनी के नृत्य में, और वो इतनी देर वहां रुक नही सकता था इसलिए वहीं साइड में खड़ा हो गया तभी खिड़की के पास उसे चांदनी दिखी। सादे कपडे पहने, कोई मेकअप नही। उसने खिड़की बंद की और वापस अपने कमरे में चली गई।
प्रशांत ने उसे एक बार देख लिया, उसके लिए काफी था। आज चांदनी का सादा रूप देखकर प्रशांत उसकी तरफ और झुकने लगा। कुछ समय वहीं खड़ा खिड़की को निहारता रहा फिर वापस अपने हवेली चला गया।
हवेली में कमलावती कुछ दसियों से फलों की टोकरी बंधवा रही थीं। जब उन्होंने प्रशांत को देखा तो उसे अपने पास बुलाया और कहा:- "कुँवर, नैना अपने ससुराल में आपकी प्रतीक्षा कर रही है। हम ये फल और गहनें गाड़ी में रखवा देते हैं, आप जाकर उन्हें ले आइये।"
प्रशांत "जी माँ सा"कहकर अपने कमरे में तैयार हो गया और कुछ देर बाद अपनी बड़ी बहन "नैना"और उनकी आठ साल की पुत्री "प्रत्यूषा"को बुलाने चला गया।
नैना, प्रशांत से बड़ी थी और दिग्विजय से छोटी। कम उम्र में ही उनकी शादी करा दी गयी थी।
प्रशांत अपनी बहन के ससुराल पहुंचा, खातिरदारी की गयी उसकी। अपनी बहन और भांजी को लेकर वापस महल आ गया।
दिग्विजय अपने कमरे में बैठे कल्याणी के बारे में सोचकर मुस्कुरा रहे थे। उनहोने दास को अपने कमरे में बुलाया और बोले:- "जाओ जाकर मुंशी जी से कहो, हमने उन्हें बुलाया है !"
दास जी बोलकर चला गया। कुछ समय बाद मुंशी जी दिग्विजय के पास आये तो दिग्विजय ने उनके सामने कुछ फरमाइश की। मुंशी जी मुस्कुराते हुए बोला:- "कुँवर सा, कल आपके जाने से पहले हम आपको दे देंगे"
मुंशी वापस चले गए और दिग्विजय बिस्तर पर लेटे हुए कल के सपने बुनने लगे।
अगली सुबह, सब बन ठन के भानुप्रताप जी की हवेली की तरफ चल पड़े। बहुत सारी गाड़ियां में पहचान के लोगों के साथ दिग्विजय कल्याणी के महल पहुंचे। भानुप्रताप जी ने सारी व्यवस्था बाहर बगीचे में करायी थी। सब वहीं विराजमान हो गए। भानुप्रताप ने दिग्विजय को स्टेज पे बैठने को बोला।
पंडित जी ने पूजा आरम्भ की। उन्होंने कन्या को बुलाने को कहा तो भानुप्रताप ने दासिओं को इशारा किया। कुछ ही पलों में खूबसूरत लहंगे में लिपटी कल्याणी चली आ रही थी। उसे देख दिग्विजय की दिल की धड़कने सामान्य से तेज़ धड़कने लगा।
राजकुमारी कल्याणी स्टेज पे आई, पूरी रीती रिवाज के साथ दोनों की मंगनी हुई। धीरे धीरे सारे मेहमान जाने लगे। भानुप्रताप ने विश्वजीत से आज रात का भोजन साथ कर, कल सुबह जाने को कहा तो विश्वजीत मान गए। भानुप्रताप ने सबको विश्राम करने को कहा। महल के अलग अलग हिस्सों में सब आराम करने लगे।
वहीं दिग्विजय कल्याणी से एक बार मिलना चाहता थे। जो तोहफा वो उनके लिए लाये थे उसे देना चाहते थे। शाम हो गई लेकिन दिग्विजय को कल्याणी कहीं नज़र नही आई। प्रशांत दिग्विजय के पास आया और उन्हें परेशान देख पूछा:- "क्या हुआ भाई सा, भाभी सा से मिलना है?"
अपने ख्याल में खोए हुए दिग्विजय ने हाँ कहा फिर अगले पल जब उन्हें एहसास हुआ तो वो तुरंत ना ना करने लगे। प्रशांत को उनकी हरकतों पे हँसी आगयी। दिग्विजय झेंप गए।
प्रशांत दिग्विजय के पास आया और बोला:- "आप फिक्र मत कीजिये भाई सा, हम कुछ इंतज़ाम करते हैं"
दिग्विजय:- "क्या करने वाले हैं आप?"
प्रशांत:- "हमपर भरोसा रखिये भाई सा"
प्रशांत कमरे से बाहर चला गया। दिग्विजय खुद से:- "कहीं कोई गड़बड़ ना करदें ये"
प्रशांत कमरे से बाहर गया और एक दासी से बुलाकर कुछ समझाया। दासी मुस्कुराते हुए राजकुमारी के पास पहुंची और प्रशांत की कही हुई बात उन्हें बता दी। राजकुमारी ने दासी से कुछ कहा और दासी ने प्रशांत को सारी बातें बता दी।
प्रशांत दिग्विजय के पास पहुंचा और बोला:- "हम्म, तो सारे इंतज़ाम कर दिए हैं हमने, आप जाकर उनसे मिल लेना।"
दिग्विजय को विश्वास नही हुआ, उन्होंने हैरानी से प्रशांत की तरफ देखा तो प्रशांत बोला:- "ऐसे मत दिखिए हमे, आज रात सबके खाने के बाद भाभी सा अपने कमरे के बाहर आपसे मिल लेंगी।"
दिग्विजय ने प्रशांत को ख़ुशी के गले लगा लिया। सबने मिलकर रात का खाना खाया और अपने अपने कमरे में चले गए। दिग्विजय दासी का इंतज़ार कर रहे थे। कब वो आये और राजकुमारी से मिलने की बात कहे। कुछ समय बाद दासी आई और राजकुमारी से मिलने की बात कही।
दिग्विजय की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। वो मुस्कुराते हुए राजकुमारी के कमरे की तरफ बढ़ चले। लेकिन ख़राब किस्मत कि उन्हें रास्ते में विश्वजीत मिल गए। कुछ देर उन्होंने दिग्विजय से बात की फिर अपने कमरे में चले गए। आज पहली बार दिग्विजय का ध्यान अपने बाबा सा की बातों पे नही था।
दिग्विजय छुपते छुपाते राजकुमारी के कमरे के पास पहुंचे। राजकुमारी उन्हें कमरे के बाहर खड़ी मिल गयीं। दिग्विजय मुस्कुराते हुए उनके पास पहुंचे। वो कुछ बोलते इससे पहले हीं कल्याणी को दिग्विजय के पीछे सुलेखा(कल्याणी की माँ सा) आती दिखाई दी। कल्याणी ने जल्दी से दिग्विजय की बांह पकड़ी और अपने कमरे में दाखिल होकर उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया।
दिग्विजय को कुछ समझ नही आया इसलिए उन्होंने कुछ बोलना चाहा लेकिन कल्याणी ने अपने हाथ उनके होठों पे रख रख दिए और परेशान सी अपनी आँखे बंद कर ली। दोनों एकदूसरे के बहुत करीब थे। दिग्विजय तो बस कल्याणी की मासूमियत भरे चेहरे में खो गए। वहीं कल्याणी महादेव से प्रार्थना कर रही थी कि कुछ गड़बड़ ना हो जाए। रानी सुलेखा कल्याणी के कमरे के बाहर आयीं और कमरा बंद देख वापस अपने कमरे में चली गईं।
बाहर किसी की आहट नही आई तो कल्याणी ने अपनी आँखे खोलीं। सामने निहारते हुए दिग्विजय पर जब उनकी नज़र पड़ी तो शर्म से उनकी नज़रे झुक गयी। अगले हीं पल वो शर्माकर उनसे अलग हो गयी और वहां से भागकर कमरे की खिड़की पर जाकर खड़ी हो गयीं।
दिग्विजय की नज़र सामने की दिवार पे गई जहाँ उनकी तस्वीर टंगी हुई थी। उन्होंने हैरानी से तस्वीर की तरफ कदम बढ़ाये और गौर से देखने लगे। कल्याणी ने जब उन्हें देखा तो उनके पास आयीं। दिग्विजय ने उनसे कहा:- "मेरी तस्वीर आपके कमरे में कैसे?"
कल्याणी:- "मेरी और आपकी शादी आपके विलायत जाने के तुरंत बाद हो गई थी, हमे आप पहली नज़र में ही भा गए थे और हमने उसी समय इस विवाह के लिए अपनी रजामंदी दे दी थी। माँ सा से कहकर हमने ये तस्वीर यहां लगवाई थी ताकि आप हर पल मेरी नज़रों के सामने रहें।"
दिग्विजय मुस्कुराते हुए उन्हें देखने लगे। उन्हें इस तरह खुदको देखता पाकर कल्याणी पलट गयी। दिग्विजय उनके पास आये और उनके कंधे पर अपना हाथ रख बोले:- "प्रेम करतीं हैं आप हमसे?"
राजकुमारी कुछ नही बोली, अपनी आँखें मींचे खड़ी रही। दिग्विजय उनके थोड़े करीब आये और बोले:- "आपने जवाब नही दिया"
कल्याणी कुछ नही बोली बस अपना सर हाँ में हिलाकर वापस खिड़की पे जाकर खड़ी हो गयीं। दिग्विजय उनके पास आये और खिड़की की दूसरी छोर पे खड़े होकर मुस्कुराते हुए कल्याणी को देखने लगे। उन्हें ध्यान आया कि कल्याणी के लिए लाया हुआ तौफा अभी तक उनकी जेब में है।
उन्होंने अपनी जेब से एक बॉक्स निकाला और उसे खोल कर कल्याणी की तरफ बढ़ाते हुए बोले:- "एक छोटा सा तौफा आपके लिए"
कल्याणी ने जब डिब्बे में देखा तो उसने बेहद प्यारा सा चैन था जिसपे डायमंड का छोटा सा पेंडेंट लगा हुआ था। कल्याणी के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी।
कल्याणी ने दिग्विजय से कहा:- "आप हीं पहना दीजिये"
दिग्विजय की जैसे मन की मुराद पूरी हो गयी। उन्होंने डिब्बे में से चैन निकाला और कल्याणी की तरफ बढ़ गए। खिड़की से छन के आती चाँद की रौशनी, कल्याणी की रूप को और निखार रही थी।
दिग्विजय कल्याणी के पीछे गए, उनके सर पे रखे पल्लू को उन्होंने कल्याणी के कंधे पर रख दिया। खुले, घने बालों को अपनी उँगलियों से आगे कर चैन पहनाने लगे। दिग्विजय का स्पर्श पाकर कल्याणी की आँखे बंद हो गई। दिग्विजय ने उन्हें चैन पहनाया और उन्हें कंधे को अपनी हाथों में थामे, झुक कर कल्याणी की गर्दन को चूम लिया। कल्याणी बर्फ सी जम गयी। अपने लहंगे को मुट्ठी में कस लिया उन्होंने।
दिग्विजय ने कल्याणी का पल्लू दोबारा उनके सर पे रखा और कान के पास आकर धीरे से कहा:- "मैं चाहता हूँ कि आप अपनी जुबान से अपने प्यार का इज़हार करें, इंतज़ार करूँगा..! चलता हूँ.."
दिग्विजय कल्याणी के कमरे से निकल गया वहीं कल्याणी अभी तक दिग्विजय के स्पर्श से मदहोश हुए खड़ी थी।
दिग्विजय अपने कमरे में पहुंचे और मुस्कुराते हुए बिस्तर पर लेट गए। इधर प्रशांत चांदनी को देखने के लिए तड़प रहा था। कल तो एक नज़र देख भी आया था लेकिन आज सगाई के चलते एक बार भी चांदनी को देख न पाया वो।
सुबह सब विदा लेकर जाने लगे। कल्याणी भी सर पे पल्लू रखे सबके पैर छूकर चली गयी। शर्म के मारे उन्होंने एक बार भी दिग्विजय की तरफ नही देखा वहीं दिग्विजय खड़े उनको निहार रहे थे। सब अपनी अपनी गाड़ी में बैठे और महल से निकलने लगे। राजकुमारी कल्याणी भागते हुए महल के छत पे पहुंचीं और वहां से दिग्विजय को जाते हुए देखने लगी।
दिग्विजय को ये आभास हो गया था। उन्होंने गाड़ी से बाहर झाँककर छत की ओर देखा तो कल्याणी खड़ी नज़र आयीं। मुस्कुराते हुए उन्होंने अपने हाथ हिलाए तो कल्याणी ने भी हाथ हिलाकर उन्हें विदा किया। गाड़ी में बैठा प्रशांत ये सब देख रहा था। जब कल्याणी आँखों से ओझल हो गयी तब दिग्विजय सही से गाड़ी में बैठ गए।
प्रशांत उन्हें छेड़ते हुए:- "देख लिये उन्हें या फिर से गाड़ी वापस ले चलें"
दिग्विजय झेंपते हुए बोले:- "आप कुछ ज्यादा नही बोल रहे हैं?"
प्रशांत:- "हमें ऐसा नही लगता, वैसे एक बात बताइये, कल इतने आतुर क्यों थे आप भाभी सा से मिलने के लिए?"
दिग्विजय बाहर देखने लगे और मुस्कुराने लगे। प्रशांत ने जब उन्हें मुस्कुराते देखा तो आगे कुछ भी पूछना सही नही समझा। सब वापस हवेली पहुंचे। प्रशांत अपने कमरे में पहुंचा और वहां पे रखी चांदनी की स्केच अपने हाथों में लेकर देखने लगा। कल का दिन उसने कैसे काटा, ये सिर्फ वो ही जानता था।
शाम में महाराज ने पंडित जी को बुलाया और उनसे शादी का कोई शुभ मुहूर्त निकालने को कहा। चूँकि दिग्विजय भारत सिर्फ एक महीने के लिए आये थे इसलिए महाराज उनकी शादी इस एक महीने में हीं कराना चाहते थे। पंडित जी ने कुंडली मिलाई और आज से पच्चीस दिन बाद का सही मुहूर्त निकाला।
दिग्विजय तीस दिन बाद जाने वाले थे इसलिए विश्वजीत ने भानुप्रताप से परामर्श लेकर 25 दिन बाद की तारीख शादी के लिए तय कर दी। राज्य के बड़े राजकुमार की शादी थी तो तैयारियां भी उसी हिसाब से शुरू की गई। दिग्विजय बहुत खुश थे, उन्हें कल्याणी से प्रेम हो चूका था।
आज प्रशांत अपने दोस्तों के साथ कोठे पर पहुंचा। सब वहां मौजूद थे। सबके सामने शराब परोसा गया लेकिन आज प्रशांत ने शराब को हाथ नही लगाया। वजह थे दिग्विजय, प्रशांत उन्हें कोई मौका नही देना चाहता था डांटने के लिए। कुछ समय बाद चांदनी आई, आज सुनहरे रंग की अनारकली में बला की खूबसूरत लग रही थी।
चांदनी ने नाचना शुरू किया, उसी के साथ पुरे हॉल में लोगों की वाह वाह गूंज रही थी। प्रशांत तो बस उसमे खोकर रह गया था। एकटक निहारे जा रहा था। बेगम आएशा ने चांदनी को कुछ इशारा किया तो चांदनी नाचते नाचते प्रशांत के पास गयी और उसके करीब आकर नाचने लगी।
उसकी करीबी प्रशांत के दिल की धड़कने बढ़ा रहीं थीं। चांदनी उसकी आँखों में देखते हुए नाच रही थी और प्रशांत उसकी आँखों में अपना अक्स देख कर पागल हुआ जा रहा था। चांदनी वापस अपनी जगह पर आई और एक आखिरी ताल के साथ उसने अपना नृत्य खत्म किया और वापस चली गयी।
प्रशांत अपने दिल पे हाथ रख वहीं खड़ा रहा, जब दोस्तों ने बुलाया तब जाकर होश आया उसे।
प्रशांत वापस हवेली आया और सीधे अपने कमरे में चला गया।
शादी के दस दिन पहले...
दिग्विजय अपने कमरे में बैठे शेरवानी का नाप दे रहे थे तभी भागता हुआ प्रशांत उनके कमरे में आया और बोला:- "क्षमा करें भाई सा, लेकिन आपका हमारे साथ जाना बहुत आवश्यक है।"
दिग्विजय:- "लेकिन कहाँ जाना है कुँवर, ये तो बताइये।"
प्रशांत उनके पास आया और उनके हाथों तो थामते हुए बोला:- "रास्ते में बता देंगे भाई सा, लेकिन अभी चलिए हमारे साथ"
प्रशांत दिग्विजय को अपने साथ ले जाने लगे। निचे कमलावती ने जब दोनों को जाते देखा तो उन्होंने पूछा:- "कहाँ जा रहें हैं आप दोनों?"
प्रशांत:- "अभी आते हैं माँ सा"
प्रशांत ने अपनी फटफटी पे दिग्विजय को बैठाया और कुछ देर में गाड़ी, हवा से बातें करने लगी। दिग्विजय पीछे बैठे प्रशांत को गाड़ी धीरे चलाने को बोल रहे थे।
प्रशांत ने गाड़ी एक मंदिर के बाहर रोकी जहाँ पहले से शाही गाड़ियां लगी हुई थी।
दिग्विजय प्रशांत से बोले:- "आप हमे यहां क्यों लेकर आएं हैं कुँवर ?"
प्रशांत:- "भाई सा, अंदर तो चलिए सब समझ आ जायेगा"
प्रशांत दिग्विजय को अपने साथ मंदिर परिसर में ले गया। दिग्विजय ने सामने देखा तो राजकुमारी कल्याणी महादेव की आराधना में लीन थीं। उन्होंने प्रशांत की तरफ हैरानी भाव से देखा तो प्रशांत उनसे बोला:- "हैरान मत होइए भाई सा, हमारे जिन दोस्तों को आप गलियां देते नही थकते, उन्होंने हमे जानकारी दी भाभी सा के यहां होने की।"
दिग्विजय प्रशांत को घूरकर देखने लगे तो प्रशांत बोला:- "यहीं खड़े होकर हमारे मेहनत पे पानी मत फेरिये भाई सा, और जाकर भाभी सा से मिलिए। आपको देखकर खुश हो जाएँगी वो।"
दिग्विजय प्रशांत से गले मिले फिर अंदर मंदिर में चले गए। कल्याणी आँखें बंद किये प्रार्थना कर रहीं थीं। दिग्विजय उन्हें निहारते हुए खुद भी हाथ जोड़े प्रार्थना करने लगे।
भव्य मंदिर, बगल से बहती नदी, दूर दीखते घने जंगल और पहाड़। प्रशांत वहां की खूबसूरती को निहारते हुए चांदनी को याद करने लगा। कल रात की बात याद करते हुए उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गयी। वहीं दिग्विजय प्रार्थना कर अपनी आँखे खोल राजकुमारी को देखने लगे जो अभी भी आँखे बंद किये हुईं थीं।
दिग्विजय ने मुस्कुराते हुआ कहा:- "सारी मन्नत आज हीं मांग लेंगी आप?"
कल्याणी ने दिग्विजय की आवाज सुनी तो हैरानी से उन्होंने दिग्विजय की तरफ देखा और कहा:- "आप यहाँ?"
दिग्विजय मुस्कुराते हुए:- "क्या आपको कोई और दिख रहा है?"
कल्याणी:- "हमारा मतलब था कि आप यहां क्या कर रहें हैं?"
दिग्विजय:- "ये तो आप अपने देवर से पूछिये, वही हमे लेकर आएं हैं"
दिग्विजय और कल्याणी दोनों मंदिर परिसर से बाहर आएं। कल्याणी ने पूजा की थाल दासी को पकड़ा दी और दिग्विजय के साथ नदी किनारे चली गई। वहां प्रशांत पहले से मौजूद था। कल्याणी को देख उसने उनके पाँव छुए और दोनों को अकेला छोड़ दूसरी तरफ चला गया। दिग्विजय और कल्याणी कुछ देर बात करते थे। बात तो सिर्फ दिग्विजय कर रहे थे, विलायत की कहानी सुनाकर। कल्याणी चुप चाप मुस्कुराते हुए उनकी बातें सुन रही थी।
कुछ समय बाद कल्याणी दिग्विजय से विदा लेकर अपने महल चली गयीं वहीं दिग्विजय भी प्रशांत के साथ हवेली को निकल गए।
धीरे धीरे दिन गुजरने लगे। शादी की तैयारियों के चलते प्रशांत चांदनी को देखने नही जा पाता था जिसका खामियाजा चांदनी को आएशा बेगम की कड़वी बातें सुनकर गुजारना पड़ता था।
शादी का दिन भी आ गया। पूरा महल दुल्हन की तरह सजा हुआ था। कुँवर दिग्विजय अपने कमरे में शेरवानी पहनने की जद्दोजहद में लगे हुए थे। भव्य तरीके से दिग्विजय की बारात निकली। हज़ारों की संख्या में हाथी, ऊँट, घोड़े वहां मौजूद थे। सबपर सैनिक सवार थे। कुँवर दिग्विजय को शाही घोड़े पर बैठाया गया और बारात भानुप्रताप के हवेली की ओर चल पड़ी।
बारात भानुप्रताप की हवेली पहुंची। पूरा राज परिवार द्वार पे मौजूद था बारात के स्वागत के लिए। रस्मों को पूरा करते हुए दिग्विजय को महल के अंदर प्रवेश कराया गया। कुछ समय बाद कल्याणी दुल्हन के जोड़े में मंडप की ओर चली आ रही थी। दिग्विजय और कल्याणी का विवाह हो गया। विदाई सुबह होनी थी इसलिए सारे अतिथि गण के लिए राज भानुप्रताप ने आराम करने का बंदोबस्त कर दिया था। सबने मिलकर आराम फ़रमाया।
सुबह भी हो गई। दिग्विजय अपनी रानी को विदा कर हवेली ले आये। कमलावती ने कल्याणी का स्वागत किया और उन्हें कमरे में जाकर विश्राम करने को कहा। दिग्विजय की बहन नैना ने अपनी भाभी सा को कमरे तक पहुँचाया और उनका दिल बहलाने के लिए उनसे बातें करने लगी।
विश्वजीत ने दिग्विजय को अपने पास बुलाया और बोले:- "तो कब वापसी है आपकी, विलायत?"
दिग्विजय:- "चार दिन बाद की"
विश्वजीत:- "अब आपका विवाह हो गया है, कुछ समय पश्चात् आपका राजतिलक हो जायेगा और आप इस राज्य के अगले महाराज होंगे ऐसे में विलायत जाकर अपना समय बर्बाद करने का कोई मतलब नही है"
दिग्विजय:- "बाबा सा, सिर्फ दो महीनों की बात है, इतने दिनों की मेहनत को जाया नही होने दे सकते हम। उनके बाद तो हमें यहीं रहना है आप सब के साथ"
विश्वजीत:- "हम्म ठीक है, पर हम सोच रहे थे, अभी अभी आपकी शादी हुई है, आपको अपना समय बहुरानी को देना चाहिए, इतनी जल्दी जायेंगे तो उन्हें बुरा लगेगा"
दिग्विजय:- "हमने उनसे पहले ही बात कर ली है बाबा सा, उन्हें कोई ऐतराज़ नही है"
आज कालरात्रि थी इसलिए दिग्विजय दूसरे कमरे में सोये हुए थे। अगले दिन राजा विश्वजीत ने महल में बहुभोज रखा था। आस पड़ोस के सारे राज मौजूद थे। राजा भानुप्रताप भी अपने परिवार के साथ वहां मौजूद थे। सारे इंतजामात बाहर बगीचे में किये गए थे वहीं कल्याणी हवेली में सज सवर के बैठी थीं।
मुँह दिखाई की रस्म अंदर चल रही थी। दिग्विजय बाहर बगीचे में लोगों से मुलाकात कर रहे थे। धीरे धीरे सारे अतिथि वापस जाने लगे। नैना ने कल्याणी को दिग्विजय के कमरे में बैठा दिया और उन्हें छेड़ते हुए वापस आ गयी। पूरा कमरा मोगरे और अन्य फूलों से सजा हुआ था।
बाहर दिग्विजय कुछ काम में व्यस्त।
प्रशांत ने दिग्विजय से कहा:- "भाई सा, आज आपकी सुहागरात है और आप यहां कामों में लगे हुए हैं। जाइये भाभी सा आपकी राह तक रही होंगी।"
दिग्विजय मुस्कुराने लगे तो प्रशांत ने उन्हें छेड़ते हुए कहा:- "क्या बात है, बड़ा मुस्कुराया जा रहा है। वैसे आपने भाभी सा के लिए तोहफा तो लिया है ना?"
दिग्विजय ने संक्षिप्त सा जवाब दिया "हम्म"
प्रशांत उत्साहित होकर:- "क्या लिया है?"
दिग्विजय ने उसे घूरकर देखा और बोले:- "कुछ ज्यादा नही बोल रहे हैं आप"
प्रशांत:- "बस एक सवाल तो किया है आपसे। अब ये सब छोड़िये और जाइये भाभी सा के पास। वर्ना कटार से बात करने लगेंगी वो"
दिग्विजय वहां से अपने कमरे में चले गए। दिग्विजय की आहट पाकर कल्याणी सही से बैठ गयीं। दिग्विजय जब कमरे में आये तो कमरे की हालत देखकर उनका दिल जोरों से धड़कने लगा। यही हाल कल्याणी का भी था। दीवान पे अपने घुटनों को मोड़े कल्याणी अपनी नज़रे झुकाये बैठी थी।
दिग्विजय ने कमरे का दरवाजा बंद किया और कल्याणी के सामने आकर बैठ गए। उन्होंने अपनी जेब से एक बॉक्स निकाला और कल्याणी की तरफ बढ़ाते हुए बोले:- "ये आपके लिए"
कल्याणी ने धीरे से अपना हाथ बढ़ाकर दिग्विजय का दिया तोहफा ले लिया। दिग्विजय कल्याणी की तरफ थोडा बढे और उनका घूँघट उठा दिए। ऐसा लग रहा था मानो आसमान का चाँद आज दिग्विजय के कमरे में बैठा हो। कुछ पल दिग्विजय उनके चेहरे को निहारते रहे फिर उनकी तरफ झुकने लगे तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया।
दिग्विजय कल्याणी के पास से उठकर गेट खोलने गए तो सामने प्रशांत खड़ा था।
दिग्विजय:- "कहिये"
प्रशांत:- "कोई परेशानी तो नही है ना भाई सा?"
दिग्विजय:- "नहीं"
प्रशांत:- "ठीक है"
प्रशांत वापस चला गया और दिग्विजय गेट बंद कर कल्याणी के पास आये। उनके हाथों को थामकर वो उनके होठों की तरफ झुकने लगे। दोनों के होठ मिलने वाले थे तभी एक बार फिर दरवाजा बजा। दिग्विजय कल्याणी से बोले:- "एक मिनट"
कल्याणी ने शर्मा कर अपनी नज़रे झुका ली।
दिग्विजय गेट के पास आये और गेट खोलकर देखा तो सामने दाँत दिखाता प्रशांत खड़ा था। दिग्विजय को गुस्सा तो आया लेकिन गुस्से को दबाते हुए बोले:- "हमने कहा ना कुँवर, सब ठीक है"
प्रशांत:- "अरे नही भाई सा, हम तो कुछ लेने आये थे"
दिग्विजय:- "क्या ?"
प्रशांत:- "आपने जो विलायत से गाना बजाने वाला यंत्र लाया था, वो हमे दे दीजिये।"
दिग्विजय अपने कमरे में गए और अपने संदूक से म्यूजिक सिस्टम उठाकर उन्हें दे दिया।
प्रशांत:- "धन्यवाद्, भाई सा"
दिग्विजय ने दरवाजा बंद किया और वापस कल्याणी के पास आये।
दिग्विजय:- "उन्हें म्यूजिक सिस्टम चाहिए थे इसलिए आये थे"
कल्याणी:- "जी"
दिग्विजय ने कल्याणी के चेहरे पर आ रही लटों को उनके कान के पीछे किये और हौले से उनके गालों को चूम लिया। कल्याणी की आँखे बंद हो गई, उनकी साँसे तेज़ चलने लगी। कल्याणी ने शर्म से अपना चेहरा हथेलियों से छुपा लिया। दिग्विजय ने उनकी हथलियों को पकड़ा और उनके चेहरे से हटा दिया। कल्याणी का चेहरा अभी भी झुका हुआ था। दिग्विजय ने उनके चेहरे को ऊपर किया और होठो की तरफ झुकने लगे। लेकिन इस बार फिर गेट बजा। दिग्विजय को बहुत गुस्सा आया। लेकिन कल्याणी के सामने उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा:- "एक मिनट"
धीरे धीरे बड़बड़ाते हुए वो गेट के पास गए और गेट खोला तो प्रशांत अपनी बत्तीसी चमकाते हुए खड़ा था।
दिग्विजय अपने गुस्से पर काबू कर बोले:- "अब क्या हुआ कुँवर ?"
प्रशांत अपनी हँसी रोकते हुए बोला:- "क्या भाई सा, आपने हमे डब्बा तो थमा दिया लेकिन गाने वाले कैसेट देना भूल गए"
दिग्विजय उन्हें घूरते हुए कमरे में गए और कैसेट निकालने लगे। प्रशांत को दिग्विजय के चेहरा को देख बहुत हँसी आ रही थी लेकिन वो जैसे तैसे अपनी हँसी रोके खड़ा रहा। दिग्विजय ने कैसेट प्रशांत के हाथों में थमाया और गेट बंद कर दिया। बाहर प्रशांत अपनी हँसी नही रोक पाया और जोर जोर से हँसने लगा। वहीं कमरे में कल्याणी दीवान से उठकर खड़ी हो गयीं थीं। दिग्विजय उनके पास आये और पीछे से उन्हें बाँहों में भरकर बोले:- "क्षमा करियेगा, वो जानबुझ कर परेशान कर रहे हैं"
कल्याणी:- "हमे पता है !"
दिग्विजय ने कल्याणी को अपने सामने किया और धीरे से उनकी नथ निकाल दी। फिर मंगटिके को उन्होंने निकाल कर टेबल पर रख दिया। प्यार से निहारते हुए उन्होंने कल्याणी के झुमके निकाल कर टेबल पर रख दिए। दोनों एक दूसरे की आँखों में खो गए। दिग्विजय ने कल्याणी के माथे को चूमा, लेकिन इस बार होठों तक आने से पहले हीं गेट बजा। दिग्विजय गुस्से में बोले:- "इनकी तो हम.."
कल्याणी की हँसी छूट गयी। दिग्विजय इस बार गुस्से में गेट खोले और बिना सामने देखे बोले:- "क्या है कुँवर, तबसे परेशान कर रखा है हमे। एक काम करिये आप हमारे कमरे में हीं रुक जाइये, हम कहीं और चले जाते हैं कल्याणी के साथ"
सामने कमलावती मुस्कुराते हुए उनकी बातें सुन रही थी। कमलावती बोली:- "कुँवर, हम हैं"
सामने अपनी माँ सा को देख दिग्विजय ने अपनी आँखे मीच ली और बोले:- "हमे माफ़ करना माँ सा, हमने आपको देखा नही"
कमलावती हँसते हुए:- "कोई बात नही, लगता है छोटे कुँवर ने कुछ ज्यादा हीं परेशान कर दिया है आपको"
दिग्विजय उनकी बातें सुन झेंप गए तो कमलावती बोलीं:- "हम आपके और बहुरानी के लिए दूध लेकर आये हैं, ये लीजिये। और हम अभी प्रशांत की खबर लेते हैं।"
कमलावती चली गयीं और दिग्विजय हाथों में ट्रे लिये गेट बंद कर कमरे में आ गए। उन्होंने ट्रे टेबल पर रखा और एक गिलास दूध लेकर कल्याणी की तरफ बढ़ गए जो खिड़की के पास खड़ी थीं। दिग्विजय उनके पास गए और गिलास खिड़की पर रख बोले:- "अभी माँ सा आयीं थीं, ये दूध देकर गयीं हैं"
कल्याणी:- "जी"
दिग्विजय:- "प्रशांत की तरफ से हम माफ़ी मांगते हैं, उन्होंने.."
दिग्विजय के आगे बोलने से पहले हीं कल्याणी ने उनके होठों पे अपने हाथ रख दिए और मुस्कुराते हुए उन्हें देखने लगीं। दिग्विजय ने उनके हाथ अपने होठों से हटाये और धीरे धीरे उनके लबों की तरफ झुकने लगे। दोनों के होठ मिल गए। कुछ देर बाद दोनों अलग हुए तो कल्याणी ने शर्म से अपना चेहरा दिग्विजय के सीने में छुपा लिया।
दिग्विजय ने उन्हें गले से लगा लिया। दोनों कुछ देर ऐसे हीं खड़े रहे फिर दिग्विजय ने कल्याणी को अपनी गोद में उठाया और दीवान की तरफ बढ़ चले।
आज की रात दोनों संपूर्ण रूप से पति पत्नी बन गए।
इधर प्रशांत अपने कमरे में बैठे धीमे आवाज में गाना सुन रहे थे। नींद आँखों से कोसो दूर, बस चांदनी के ख्याल में खोए हुए थे। गाने की हर एक लाइन में वो खुदको और चांदनी को महसूस कर रहे थे।
प्रशांत खुद से:- "आपको देखे बिना एक भी दिन नही गुजरता चांदनी, आपकी उन आँखों ने पता नही कैसा जादू किया है हमपर कि सब कुछ भूल बैठे हैं हम।"
अगली सुबह दिग्विजय अपने कमरे में सो रहे थे। कल्याणी भी उनके बगल में सो रहीं थीं। उनकी आँख खुली तो कल रात के बारे में सोचकर वो शर्मा गयीं और उठकर स्नानघर में चली गयीं नहाने। नई नवेली दुलहन की तरह उन्होंने लहंगा पहना हुआ था और साथ में सर पे दुपट्टा। कानों में झुमके, हाथों में भरी हुई चूड़ियाँ और मांग ने मांगटीका पहने वो बहुत खूबसूरत लग रहीं थी।
कल्याणी दिग्विजय के पास आयीं और उन्हें आवाज देते हुए जगाने लगी लेकिन दिग्विजय को कुछ सुनाई ही नही दिया। वो आराम से सोते रहे। कल्याणी पूजा घर में गयीं और वहां उन्होंने पूजा और आरती की। आरती में विश्वजीत और कमलावती दोनों शामिल हुए। कल्याणी ने दोनों के पैर छुए फिर पूरी हवेली में धुप दिखाते हुए अपने कमरे में गयीं। दिग्विजय अभी तक सोये हुए थे।
कल्याणी ने अपने कमरे में धुप दिखाया और एक एक कर सारी खिड़कियां खोल दी। धुप की रौशनी से दिग्विजय कसमसाने लगे। आँखे मीचते हुए उन्होंने कल्याणी को देखा और बोले:- "कल्याणी खिड़कियों पे परदे लगाइये, हमे परेशानी हो रही है। "
कल्याणी दूसरे खिड़की का परदा उठाते हुए बोलीं:- "बिल्कुल नही, चलिए उठिए। सुबह हो गई है। इतनी देर तक कोई सोता है भला। "
दिग्विजय ने सुना तो बोला:- "आप जरा यहां आइये..!! "
कल्याणी वहीं खड़े होकर बोलीं:- "क्यों? "
दिग्विजय:- "अरे आइये तो सही। "
कल्याणी खिड़की के पास धूपदान रखा और दिग्विजय के पास आकर खड़ी हो गयीं और बोलीं:- "जी कहिये। "
दिग्विजय ने लपककर उनका हाथ पकड़ा और बिस्तर पर गिराते हुए बोले:- "हम्म, अब अच्छी नींद आएगी। "
कल्याणी उनसे छूटने की कोशिश करते हुए:- "छोड़िये हमे, बहुत काम है साहिब। आज हमारी पहली रसोई है। "
दिग्विजय उन्हें अपनी बाँहों में कसते हुए:- "चली जाइएगा। थोड़ी देर हमारे पास रहिये। वैसे भी दो दिन बाद हम वापस विलायत चले जायेंगे। "
कल्याणी विलायत जाने की बात सुन उदास हो गयीं। दिग्विजय ने जब उनका चेहरा देखा तो बोले:- "सिर्फ तीन महीनों की बात है कल्याणी, फिर हम आपके पास होंगे हमेशा हमेशा के लिए। "
कल्याणी:- "आपके बिना हमने इतने साल कैसे गुजारे हैं ये सिर्फ हम ही जानते हैं। अब फिर से ये तीन महीने किसी वनवास से काम नही हैं साहिब। "
दिग्विजय उनके गालों पर हाथ रख बोले:- "तो फिर आप भी चलिए हमारे साथ। "
कल्याणी दिग्विजय से खुदको छुड़ाते हुए खड़ी हो जातीं हैं और खिड़की की तरफ बढ़ते हुए बोलती हैं:- "ये संभव नही है साहिब। हम इस राज्य की बहुरानी हैं अब और हमारा इस तरह राज्य से बाहर जाना, शोभनीय नही है। "
दिग्विजय उसके पास आये और उनके सामने खिड़की पर बैठ बोले:- "ये सब पुरानी बातें हैं कल्याणी, अब हम नए दौर में हैं और ये सब नही मानते। "
कल्याणी:- "लेकिन ये प्रथा है साहिब और किसी के मानने ना मानने से ये बदलेगा नही। "
दिग्विजय:- "अच्छा ठीक है, हम एक बार बाबा सा से बात करते हैं इस बारे। अगर उन्होंने अनुमति दे दी तो फिर आप चलेंगी ना हमारे साथ विलायत? "
कल्याणी ने सर हिलाकर हामी भरी तो दिग्विजय बोले:- "आपको एक बात पता है विलायत के बारे में? "
कल्याणी:- "क्या..? "
दिग्विजय:- "वहां हर सुबह बीवियां अपने पति को शुभ प्रभात कैसे बोलती हैं? "
कल्याणी:- "कैसे? "
दिग्विजय ने कल्याणी के हाथों को पकड़ा और उनको अपने करीब लाकर उनके गालों को चूमते हुए:- "ऐसे..!! "
कल्याणी अपने हाथ छुड़ाकर शरमाते हुए वहां से भाग जाती हैं और दिग्विजय अपने सर पे हाथ फिराते हुए कमरे के दरवाजे के पास आते हैं।
दरवाजे के पास प्रशांत मुस्कुराते हुए खड़ा था।
दिग्विजय उससे बोले:- "आप वहां क्यों खड़े हैं कुँवर, आइये ना..!! "
प्रशांत:- "भाई सा, हम तो बस आपका ये गाने का डिब्बा देने आये थे "
दिग्विजय मुस्कुराते हुए:- "इसे साउंड बॉक्स कहते हैं कुँवर "
प्रशांत दिग्विजय के हाथों में बॉक्स थमाते हुए:- "हाँ वही, अब हम चलते हैं "
दिग्विजय बॉक्स रखने के लिए आगे बढे तभी पीछे से प्रशांत की आवाज आई।
शरारत से मुस्कुराते हुए प्रशांत ने कहा:- "वैसे भाई सा, और क्या क्या होता है विलायत में? "
दिग्विजय ने जब सुना तो वो पीछे मुड़कर देखे जहां प्रशांत शरारत से मुस्कुरा रहे थे। दिग्विजय ने बॉक्स वहीं टेबल पर रखा और उनके पीछे भागते हुए बोले:- "कल रात की आपकी शरारत हम भूल गए थे, रुक जाइये आप, छोड़ेंगे नही हम आपको। "
प्रशांत भागते हुए:- "पहले पकड़ के तो दिखाइए भाई सा। "
पुरे हॉल में दोनों भाग रहे थे। कल्याणी रसोईघर में अपनी पहली रसोई की रस्म पूरी कर रहीं थीं। जब दोनों की आवाज उन्होंने सुनी तो रसोईघर से बाहर आकर देखने लगी।
दोनों ऐसे भाग रहे थे एकदूसरे के पीछे जैसे किसी मैराथन की रेस में हो। प्रशांत भागते हुए कल्याणी के पास आया और उनके पीछे छुपते हुए बोला:- "भाभी सा, बचा लीजिये हमे वर्ना भाई सा हमे आज छोड़ेंगे नही "
दिग्विजय भागते हुए कल्याणी के पास आये और बोले:- "आप हट जाइये कल्याणी, आज हम इन्हें छोड़ेंगे। कल्याणी के पीछे से निकलिए कुँवर "
प्रशांत:- "हम नही आ रहे भाई सा "
दिग्विजय:- "हमने कहा..."
कल्याणी उनकी बात पूरी होने से पहले बोलीं:- "जाने दीजिये ना, पहली गलती समझ कर माफ़ कर दीजिये। "
दिग्विजय:- "कल्याणी, आपकी वजह से हम इन्हें छोड़ रहे हैं। और कुँवर आप, अगर अगली बार ऐसा कुछ किया तो पिट जायेंगे हमारे हाथों। "
प्रशांत वहां से ऊपर भागते हुए बोला:- "उसके लिए आपको दोबारा शादी करनी पड़ेगी भाई सा "
दिग्विजय उनके पीछे बढ़ते हुए बोले:- "आपकी तो.."
प्रशांत भाग के अपने कमरे में चले गए और दिग्विजय वहीं पे खड़े होकर मुस्कुराने लगे। कल्याणी रसोईघर में चली गयीं। विश्वजीत अपने कमरे से बाहर आये और दिग्विजय को देख उन्हें अपने पास बुला लिया।
विश्वजीत ने दिग्विजय को कुछ काम से बाहर भेज दिया। शाम में दिग्विजय वापस आये। आज उनकी पत्नी की पहली रसोई थी लेकिन काम की वजह से समय पे नही आ पाये। दुखी थे इस बात को लेकर इसलिए वो सीधे अपने कमरे में चले गए।
कल्याणी कमरे में आयीं और उन्हें ऐसे देख बोली:- "क्या हुआ साहिब, कोई परेशानी है क्या? "
दिग्विजय उनका हाथ पकड़ अपने पास बैठाते हुए बोले:- "हमे माफ़ कर दीजिये कल्याणी। आज आपकी पहली रसोई थी और हम समय से नही आ पाये। "
कल्याणी:- "साहिब, आप माफ़ी मत मांगिये, हमे बुरा नही लगा। बल्कि हमने आपके लिए खाना पहले हीं निकाल के अलग रख दिया था। आप रुकिए, हम अभी गर्म कर लाते हैं"
दिग्विजय के चेहरे पर मुस्कुराहट फिर से आ गयी। वो फ्रेश होने चले गए तबतक कल्याणी ने उनके लिए खाना गर्म कर कमरे में ले आयीं।
दिग्विजय ने बड़े चाव से खाना खाया और साथ ही कल्याणी को भी अपने हाथों से खिलाया।
ऐसे हीं दो दिन गुजर गए। वो दिन भी आ गया जब दिग्विजय विलायत जाने वाले थे। सुबह से ही कल्याणी उदास थीं। उनकी उदासी महल में मौजूद हर सदस्य ने भांप ली थी लेकिन कोई क्या कहता। दिग्विजय को भी कल्याणी का उदास चेहरा नही अच्छा लग रहा था।
दिग्विजय अपना सामान बांध रहे थे और कल्याणी उनके लिए अच्छा सा पकवान बना रही थी। एक तरह से अपना ध्यान भटका रहीं थीं। दिग्विजय अपना सामान पैक कर अपने बाबा सा के पास गए। विश्वजीत अपने कमरे में बैठे कुछ काम कर रहे थे। दिग्विजय ने दरवाजा खटखटाया तो विश्वजीत उन्हें देख कर बोले:- "आइये कुँवर.. "
दिग्विजय:- "बाबा सा, हमे आपसे कुछ कहना था। "
विश्वजीत:- "कहिये ना कुँवर "
दिग्विजय:- "बाबा सा, हम चाहते हैं कि कल्याणी भी हमारे साथ विलायत जाएँ"
विश्वजीत अपनी कुर्सी से उठ गए और बोले:- "ये क्या कह रहे हैं आप कुँवर, आपको पता है ना वो अब हमारी बहुरानी हैं और यहां की होने वाली रानी और हमारे यहां ये नियम है कि रानियों को हम घर (राज्य) के बाहर नही भेजते।
दिग्विजय:- "लेकिन बाबा सा नियम तो हमने हीं बनाये हैं ना और इसमें किसी का क्या नुकसान हो सकता है। अगर कल्याणी हमारे साथ थोडा बाहर रह लेंगी तो किसी को कोई दिक्कत नही होगी। "
विश्वजीत:- "आप समझ नही रहे हैं कुँवर"
दिग्विजय:- "बाबा सा, कल्याणी का उतरा हुआ चेहरा हमसे देखा नही जा रहा है"
विश्वजीत:- "हम भी नही देख पा रहे उन्हें ऐसे इसलिए हमने कहा था आपसे, आगे की पढाई अब रहने दीजिये और यहां का कार्यभाल सम्भाल लीजिये"
दिग्विजय:- "बाबा सा, ये डिग्री हमारे लिए बहुत जरूरी है। और अगर हमे ये डिग्री मिली तो हम जनता के लिए बेहतर से बेहतर काम कर सकते हैं। इसकी बहुत वैल्यू है बाबा सा"
दोनों बाप बेटे में ऐसे हीं बात होती रही लेकिन विश्वजीत नही माने। थके हारे कदमों से दिग्विजय विश्वजीत के कमरे से जाने लगे तो पीछे से विश्वजीत बोले:- "कितने बजे निकलना है आपको कुँवर? "
दिग्विजय:- "जी, शाम पाँच बजे, ट्रेन है हमारी दिल्ली के लिए। "
दिग्विजय अपने कमरे में आ गए और विश्वजीत अपने कमरे में विचार विमर्श करने लगे।
दिग्विजय अपने कमरे में बैठे कुछ सोच रहे थे तभी उनके कमरे के बाहर से दासी ने आवाज दी।
दिग्विजय:- "कहिये"
दासी:- "कुँवर सा, रानी कल्याणी आपको निचे खाने के लिए बुला रहीं हैं"
दिग्विजय:- "हम अभी आते हैं"
दिग्विजय निचे टेबल पर खाने बैठ गए। वहां पहले से विश्वजीत, कमलावती, प्रशांत मौजूद थे। कल्याणी सबको खाना परोस रही थी। दिग्विजय कल्याणी से बोले:- "आप भी बैठ जाइये और हमारे साथ खाइये"
कल्याणी ने अपने सर के पल्लू को पकडे कमलावती की तरफ देखा फिर विश्वजीत की तरफ। विश्वजीत ने हामी भरी तो कल्याणी खुश होते हुए बैठ गयी और सबके साथ खाने लगी। विश्वजीत ने देखा, इस छोटी से बात ने कल्याणी के चेहरे पर कितनी बड़ी मुस्कान बिखेर दी है। खाना खाकर सब अपने कमरे में चले गए और कल्याणी किचन में कुछ काम करने लगी।
दिग्विजय कल्याणी का इंतज़ार कर रहे थे ताकि जाने से पहले वो उनके साथ कुछ समय बिता सकें लेकिन कल्याणी को काम से फुरसत ही नही थी।
दिग्विजय ने बाहर खड़ी दासी को बुलाया और बोले:- "जाइये और रानी कल्याणी को बोलिये कि हमने उन्हें बुलाया है, तुरंत"
दासी:- "जी कुँवर सा"
दासी निचे आई और कल्याणी को दिग्विजय की बात बताई। कल्याणी कमरे में गयीं जहाँ दिग्विजय कमरे के चक्कर काटते हुए दिखे। कल्याणी जब सामने आयीं तो थोडा शख्त लहज़े में बोले:- "कहाँ थी आप?"
कल्याणी थोडा डर गयी और डरते हुए बोलीं:- "वो हम काम कर रहे थे।"
दिग्विजय ने जब उन्हें डरते देखा तो उनके पास आते हुए बोले:- "हमे माफ़ कर दीजिये, हम थोड़े शख्त लहज़े में बोले"
दिग्विजय ने कल्याणी को गले से लगा लिया और बोले:- "अभी कुछ देर में हम यहां से निकल जायेंगे। हम आपके साथ कुछ पल बिताना चाहते हैं कल्याणी"
कल्याणी ने दिग्विजय के चेहरे की तरफ देखा। दोनों की आँखों में आंसू डबडबाए हुए थे। कल्याणी ने अपनी आँखे बंद की तो आँखों से आंसू निकलकर चेहरे पर आ गए। वो हिम्मत कर आगे बढ़ी और दिग्विजय के लबों को चूम लिया। ये एक दूसरे के बिछड़ने के गम का मिलन था। दोनों एकदूसरे को बेतहाशा चूमे जा रहे थे। कल्याणी ने भी अपनी लाज को आज दिग्विजय को सौप दिया था।
दिग्विजय के जाने में महज 2 घंटे बचे थे। दिग्विजय और कल्याणी एक दूसरे की बाँहों में लेटे हुए थे तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया।
दिग्विजय लेटे हुए बोले:- "कौन है"
दासी:- "जी हम हैं, रानी"
दिग्विजय:- "कहिये"
दासी:- "महाराज ने आपको बुलाया है कुँवर सा"
दिग्विजय:- "आप चलिए, हम अभी आते हैं"
दासी वहां से चली गयी और दिग्विजय कल्याणी को अपनी बाँहों में भरते हुए उनके माथे को चूमते हैं और कहते हैं:- "हम अभी आते हैं"।
दिग्विजय विश्वजीत के कमरे में गए।
दिग्विजय:- "आपने बुलाया था बाबा सा "
विश्वजीत:- "आइये कुँवर"
दिग्विजय उनके पास गए और उनके सामने खड़े हो गए। विश्वजीत:- "हमने बहुत सोचा इस बारे में कि कल्याणी को आपके साथ भेजे या नहीं भेजे। और काफी विचार विमर्श के बाद ये निष्कर्ष पे पहुंचे हैं कि आप उन्हें अपने साथ विलायत ले जा सकते हैं"
विश्वजीत ने दिग्विजय को इजाजत दे दी कल्याणी को अपने साथ विलायत ले जाने की। दिग्विजय की ख़ुशी का ठिकाना नही रहा। मुस्कुराते हुए दिग्विजय अपने कमरे में पहुंचे जहाँ कल्याणी अलमारी में अपने कुछ सामान रख रहीं थीं। दिग्विजय उनके पास गए और पीछे से उन्हें बाँहों में भर लिया। दिग्विजय का स्पर्श पाकर कल्याणी मुस्कुरा उठी और बोली:- "क्या हुआ साहिब, बाबा सा ने आपको क्यों बुलाया था..?? "
दिग्विजय:- "बाबा सा कह रहे थे यहां अकेले आपका मन नही लगेगा इसलिए हम आपको अपने साथ विलायत ले चलें..!! "
कल्याणी हैरानी से उनकी तरफ पलट गयीं और बोलीं:- "क्या? बाबा सा मान गए? "
दिग्विजय मुस्कुराते हुए उनके चेहरे को थामते हुए बोले:- "हां, बाबा सा मान गए, और आपको हमारे साथ जाने की इजाजत दे दी "
कल्याणी:- "लेकिन साहिब..!! "
दिग्विजय:- "अब ये लेकिन वेकिन बाद में कीजियेगा, जल्दी से अपना सामान बांधिए नही तो हमारी ट्रेन छूट जायेगी "
कल्याणी अभी भी सोच में डूबी हुई थीं तो दिग्विजय उनके पास आये और उनकी कमर के चारो तरफ अपने हाथों का घेरा बनाकर बोले:- "क्या आप हमारे साथ जाना नही चाहती हैं कल्याणी? "
कल्याणी:- "ऐसा कुछ नही है साहिब "
दिग्विजय:- "तो फिर जल्दी से तैयारी कीजिये"
कल्याणी अभी भी खड़ी थीं तो दिग्विजय बोले:- "क्या हुआ कल्याणी "
कल्याणी मुस्कुराते हुए बोलीं:- "आप हमे छोड़ेंगे तब तो हम अपना सामान बांधेंगे "
दिग्विजय ने कल्याणी की कमर से हाथ हटा लिया और मुस्कुराते हुए बाहर आ गए। कल्याणी अपने सामान बांधने लगी। बहुत खुश थीं कल्याणी।
जाने का समय हो चला, नौकर ने दिग्विजय और कल्याणी का सामान गाड़ी में रख दिया। विश्वजीत, कमलावती और प्रशांत तीनों बाहर आये, इन दोनों को विदा करने। कल्याणी और विश्वजीत ने अपने बाबा सा और माँ सा के पैर छुए। दिग्विजय ने प्रशांत को गले लगाया। गाड़ी में बैठकर ये दोनों दिल्ली के लिए निकल गए। आज प्रशांत दुखी भी था और खुश भी।
दुखी, की उसके भाई सा फिर चले गए और खुश इसलिए की अब वो चांदनी से मिल सकेगा, उसे देख सकेगा।
शाम के सात बजे, प्रशांत अपने दोस्तों के साथ कोठे पर पहुंचा। वहां जाकर उसने देखा कि कोठे का रंग रूप बदला हुआ है। नए रंगों से रंगा कोठे का हॉल बेहद आकर्षक लग रहा था। प्रशांत निचे बिछे गद्दे पर अपने दोस्तों के साथ बैठ गया। जब आएशा बेगम ने प्रशांत को देखा तो मुस्कुराते हुए उसके पास आई और बोली:- बड़े दिनों बाद आना हुआ कुँवर सा..!!
प्रशांत ने जाम भरा हुआ ग्लास उठाया और मुस्कुराते हुए अपने होठों से सटा लिया। कुछ ही देर बाद चांदनी आई और अपने नृत्य से एक बार फिर सबका मन मोह लिया। आज प्रशांत चांदनी से मिलना चाहता था इसलिए उसने आएशा बेगम को अपने पास बुलाया और बोला:- "हमे चांदनी से मिलना है"
आएशा बेगम:- "लेकिन कुँवर सा.."
प्रशांत:- "लेकिन वेकिन कुछ नही सुनना चाहते हम, आपको मुँह मांगी कीमत दी जायेगी इसके लिए"
आएशा का चेहरा खिल गया, यही तो वो चाहती थी। धीरे धीरे राजपरिवार के सारे खजाने अपने कब्जे में कर, ऐशो आराम की ज़िंदगी थी आएशा बेगम।
प्रशांत से कुछ पल रुकने का बोल वो चांदनी के कमरे में गयी जहाँ चांदनी अपने गहने उतार रही थी। आएशा बेगम उसके पास गयी और बोली:- "अभी अपने गहने मत उतारो चांदनी, कुँवर सा तुमसे मिलना चाहते हैं"
चांदनी:- "लेकिन हम ऐसे कैसे मिल सकते हैं उनसे.. आपने उन्हें मना नही किया?? "
आएशा बेगम:- "मुँह मांगी रकम देने को तैयार हैं वो तुमसे एक मुलाकात के लिए, हम भला मना कर के हाथ आती लक्ष्मी को कैसे ठुकरा सकते हैं"
चांदनी:- "लेकिन आप जानती हैं, हम ऐसे किसी से नही मिल सकते..!!"
आएशा बेगम:- "देखो चांदनी, हम जो बोल रहे हैं चुपचाप करो वरना तुम जानती हो तुम्हारा क्या हश्र हो सकता है"
चांदनी:- "आप मेरा कुछ नही बिगाड़ सकती, इसलिए ये धमकियाँ हमे मत दीजियेगा"
आएशा बेगम ने एक थप्पड़ जड़ दिया चांदनी को और बोली:- "बहुत ज्यादा जबान चल रही है तुम्हारी, काबू में कराे इन्हें वर्ना हाथ धो बैठोगी इनसे"
आएशा बेगम चांदनी के कमरे से बाहर प्रशांत के पास चली गयी और बोली:- "आप कुछ पल प्रतीक्षा करें, हम अभी आपको उनके पास ले चलते हैं। "
प्रशांत के लिए अब और इंतज़ार करना मुश्किल हो रहा था। इतने लंबे इंतज़ार के बाद आज पहली बार वो चांदनी से मिलने वाला था, एक एक पल काटना बेहद मुश्किल था उसके लिए।
दूसरी तरफ दिग्विजय कल्याणी के साथ दिल्ली एअरपोर्ट पर पहुँच गए। कल्याणी कभी अपने राज्य से बाहर नही निकली थीं इसलिए उनके लिए ये अनुभव नया था। साथ ही हवाई जहाज पर भी वो पहली बार सफर करने जा रही थी। दिग्विजय ने उन्हें वेटिंग एरिया में बैठा दिया और खुद काउंटर पर जाकर बोर्डिंग पास ले आये।
कल्याणी की नज़रे चारों ओर थी, 1995 में भी वहां काफी मॉडर्निटी आ गयी थी। दिग्विजय कल्याणी के पास आये और अपने कोट के दो बटन खोल आराम से बैठते हुए बोले:- "हम बहुत खुश हैं कल्याणी, आप हमारे साथ जा रही हैं। हम आपको पूरा विलायत घुमाएंगे। आप एक बार उस जगह को देख लें, उससे खूबसूरत जगह आपको कहीं नज़र नही आएगा। "
कल्याणी उनकी तरफ मुड़ी और उनके चेहरे को देखते हुए बोलीं:- "हमारे भारत से खूबसूरत जगह कहीं नही है साहिब। विलायत चाहे कितना भी खूबसूरत क्यों ना हो, हमारे भारत से खूबसूरत और विविध कोई देश नही.."
दिग्विजय मुस्कुरा कर उन्हें देखने लगे। कुछ समय बाद अनाउंसमेंट हुई, दिग्विजय ने कल्याणी का हाथ थामा और अपने साथ चेकिंग पॉइंट पर ले गए। कुछ ही पल बाद दोनों प्लेन में आकर बैठ गए। दिग्विजय ने कल्याणी को आराम से बैठा दिया और खुद उनके बगल में आकर बैठ गए। कल्याणी प्लेन के बाहर झाँक कर देख रही थीं तब दिग्विजय उन्हें देख बोले:- "कल्याणी, हमे कुछ बताना है"
कल्याणी उनकी तरफ मुड़ी और बोलीं:- "कहिये ना साहिब"
दिग्विजय:- "कल्याणी, आप पहली बार हवाई सफ़र कर रही हैं तो आपको पहली बार थोडा डर लगेगा, जब जहाज अपनी उड़ान भरेगा, थोड़ी घबराहट होगी लेकिन एक बार ये प्लेन हवा में स्थिर हो जाये, फिर आपका सारा डर खत्म हो जायेगा"
कल्याणी:- "जी साहिब"
कुछ ही देर बाद, एयरोप्लेन उड़ान भरने लगा। हवा में उठते के साथ ही कल्याणी ने दिग्विजय का हाथ कस कर पकड़ लिया और अपनी आँखे बंद कर बैठ गयी। दिग्विजय उन्हें मुस्कुराते हुए देखने लगे, डरते हुए भी कितनी खूबसूरत लग रहीं थी कल्याणी।
एक दिन के सफ़र के बाद दोनों, लंदन पहुंचे। भारत से बिलकुल विपरीत था लंदन, पहनावा, रहन सहन, भाषा सब कुछ अलग था। दिग्विजय लंदन में पैर रखते ही विलायती हो गए थे लेकिन सिर्फ दूसरों के लिए। कल्याणी के लिए तो अब भी वो उनके साहिब ही थे।
महल में विश्वजीत अपने कमरे में बैठे थे, उन्होंने दासी से कमलावती को भेजने को कहा। कमलावती कमरे में आयीं और उनके पास खड़े होते हुए बोलीं:- "आपने बुलाया था मालिक..!! "
विश्वजीत एक नज़र उन्हें देखते हैं और बोलते हैं:- "हां, आइये बैठिए हमारे पास"
कमलावती अपने खुँघट को ठीक करते हुए विश्वजीत के पास बैठ गयीं।
विश्वजीत:- "प्रशांत कहाँ हैं? "
कमलावती:- "जी, वो अपने दोस्तों के साथ बाहर गए हैं"
विश्वजीत:- "दिग्विजय के जाते हीं इनकी आवारागर्दी शुरू हो जाती है, एक नही सुनते हमारी"
कमलावती कुछ नही बोली बस चुपचाप बैठे विश्वजीत को सुनती रहीं।
कोठे पे बैठे प्रशांत चांदनी से मिलने का इंतज़ार कर रहा था। उसका इंतज़ार खत्म हुआ जब बेगम आएशा ने उसे अपने साथ चलने को कहा। प्रशांत बेगम आएशा के साथ चांदनी के कमरे के बाहर आकर रुक गए। आएशा मुस्कुराते हुए उन्हें अंदर जाने का इशारा किया और खुद वापस चली गयीं। प्रशांत चांदनी की कमरे में आये, चांदनी टेबल पर रखे गुलदस्ते में फूल लगा रही थू। प्रशांत ने हल्का सा खाँसकर चांदनी का ध्यान अपनी तरफ किया।
चांदनी उसकी तरफ मुड़ी और बोली:- "प्रणाम कुँवर सा..!! "
प्रशांत:- "नमस्ते "
चांदनी प्रशांत के पास आई और बोली:- "आइये न कुँवर सा, बैठिए "
प्रशांत कमरे में रखी कुर्सी पर बैठ गया। चांदनी अब भी खड़ी थी तो प्रशांत बोला:- "आप भी बैठ जाइये, कब तक ऐसे खड़े रहेंगी"
चांदनी अपने बिस्तर पर बैठ गयी और बोली:- "बेगम आएशा ने बताया आप हमसे मिलना चाहते थे, क्या मैं वजह जान सकती हूँ"
प्रशांत को समझ नही आ रहा था क्या जवाब, सीधे सीधे बोल भी नही सकते थे कि "प्यार हो गया है, इसलिए मिलने चले आये"।
प्रशांत:- "हमें आपका नृत्य बेहद पसंद आया, तो सोचा थोडा रूबरू हो जाएँ आपसे। आपको थोडा और पहचान लें"
चांदनी मुस्कुराते हुए बोली:- "हमारे नृत्य के तो लाखों लोग कायल हैं, लेकिन सब हमसे तो नही मिलते "
प्रशांत:- "बातें अच्छी कर लेती हैं आप.."
चांदनी थोड़ी असहज हो रही थी ऐसे प्रशांत के साथ अकेले कमरे में बैठने से। प्रशांत ने उसकी परेशानी भांप ली और बोला:- "अब हम चलते हैं, हमे देर हो रही है"
चांदनी खड़ी हो गयी और बोली:- "जी, कुँवर सा"
प्रशांत एक नज़र चांदनी को देख वापस अपने महल चला गया।
देखते ही देखते दिन गुजरने लगे। उस दिन के बाद से प्रशांत कभी भी चांदनी से अकेले में नही मिला। हर शाम सात बजे वो कोठे पर जाया करता और उसे जी भर देख वापस अपने महल आ जाता। कल्याणी और दिग्विजय भी विलायत में अपना क्वालिटी टाइम बिताते, एक दूसरे को अच्छे से समझने का मौका मिला था उन्हें। दिग्विजय कल्याणी को लंदन के प्रसिद्ध जगहों पर ले जाया करता घुमाने।
ऐसे ही ढाई महीने गुजर गए। एक दिन शाम में चांदनी अपने कमरे में तैयार हो रही थी, तभी आएशा बेगम उसके पास आई और गुस्से में उसके चेहरे को पकड़ते हुए बोली:- "अपना रंग सही से नही दिखा रही है तू, तभी तो वो कुँवर तुझमे ज्यादा दिलचस्पी नही दिखा रहा है। देख चांदनी, बहुत शराफत दिखा दी मैंने लेकिन अब बर्दास्त नही करुँगी। अपने पहले रूप में वापस आ और फिर से कुँवर को अपनी मुट्ठी में कर वर्ना तेरी जगह यहां कोई और होगा, समझी..!! "
चांदनी गुस्से में उनका हाथ झटकती है और गुस्से से घूरते हुए कहती है:- "नुमाईश के लिए नही रखे गए हैं हम यहां, और हमसे तमीज से पेश आया कीजिये क्योंकि अब हम भी आपकी बद्तमीजी बर्दास्त नही करेंगे"
बेगम आएशा:- "बहुत जबान चलने लगी है तेरी"
और खिंच के एक थप्पड़ जड़ दिया उसके चेहरे पर। चांदनी के होंठ कट गए और वहां से खून आने लगा।
आएशा बेगम गुस्से में कमरे से निकल गयी और इधर चांदनी अपने होठो से आते खून को पोछने लगी। उसकी आँखों से निकले आंसू उसके चेहरे पर आ गए।
कुछ समय बाद प्रशांत कोठे पर आया और बैठकर चांदनी का इंतज़ार करने लगा। चांदनी आई, और नाचने लगी। प्रशांत की नज़र उसके होठों पे गयी जहां से अभी भी हल्का हल्का खून रिस रहा था। प्रशांत की मुट्ठियाँ कस गयी। प्रशांत गुस्से में उठा और चांदनी के हाथ को पकड़ अपने साथ उसके कमरे में ले गया। इधर आयशा बेगम खुश हो रही थीं। उन्हें लगा प्रशांत को आज चांदनी पे बहुत प्यार आ रहा है, उसके एक थप्पड़ ने आज चांदनी और कुँवर दोनों पे जादू कर दिया है तभी तो आज कुँवर खुदपे काबू नही कर पाये। अपनी जीत पे आएशा बेगम खुश हो रही थी वही कमरे में प्रशांत चांदनी के सामने हाथ बांधे गुस्से में खड़ा था और बोला:- "आपके होठ पर चोट कैसे लगी "
चांदनी चुप थी तो प्रशांत फिर से बोला:- "हमने आपसे कुछ पूछा है चांदनी "
चांदनी:- "वो गलती से दरवाजे से चोट लग गया था हमे, इसलिए "
प्रशांत:- "अच्छा "और चांदनी की तरफ बढ़ने लगा। उसके हर बढ़ते कदम के साथ चांदनी पीछे की तरफ जा रही थी। प्रशांत रुक गया तो उसके साथ चांदनी भी रुक गयी। प्रशांत ने खिड़की खोली, बाहर से आती स्ट्रीट लाइट की रौशनी सीधे चांदनी के चेहरे पर पड़ रही थी। प्रशांत उसके पास आया, चांदनी ने उसके चेहरे को हाथों में लिया और बोला:- "अगर चोट दरवाजे से लगी है तो ये पंजे के निशान आपके चेहरे पर क्या कर रहें हैं चांदनी"
चांदनी ने अपनी नज़रे निची कर ली तो प्रशांत बोला:- "हमे सच सच बताइये चांदनी, किसने आप पे हाथ उठाया है?"
चांदनी आपने भींगे पलकों से प्रशांत की तरफ देखने लगी। उसकी नम आखे देख प्रशांत की आँखे भी नम हो गयी।
प्रशांत ने चांदनी के चेहरे से अपना हाथ हटा लिया और उसके हाथों को पकड़ बाहर की तरफ ले जाते हुए बोला:- ठीक है, मत बताइये। हम खुद पता कर लेंगे।
चांदनी ने अपना बांया हाथ प्रशांत के हाथ पे रखा और उसे रोकते हुए बोली - "नही कुँवर सा, आप किसी को कुछ नही बोलेंगे"
प्रशांत रुक गया और चांदनी की तरफ मुड़कर बोला - "तो आप हमे सच बता रहीं हैं "
चांदनी ने अपना हाथ प्रशांत के हाथ से छुड़ाया और बोली - "ऐसा कोई सच नही कुँवर सा। ये कोठा है और यहां की बातें इसी दिवार तक सिमित रहे तो अच्छा है..!! "
प्रशांत कुछ नही बोला, बस एकटक चांदनी के चेहरे को देखने लगा। दोनों तरफ से ख़ामोशी छाई हुई थी। इस ख़ामोशी को तोड़ते हुए प्रशांत बोला - "देखिये चांदनी, आप चाहे इसे जो समझे लेकिन मैं आपको तकलीफ में नही देख सकता। बेहतर होगा आप अपना ख्याल रखें वर्ना मैं आपको यहां से अपने साथ ले जाऊंगा"
प्रशांत गुस्से में था, ये बोलकर वो वहां से निकल गया। चांदनी उसे जाती देखती रही। प्रशांत के जाने के बाद वो वहीं बिस्तर पर बैठ गयी और रोने लगी।
कुछ देर बाद आएशा बेगम चांदनी के कमरे में आयीं और बोलीं - "क्या कह रहे थे कुँवर सा? तुझे अपना बना लिया क्या उन्होंने..?? "
चांदनी ने आएशा बेगम की तरफ देखा और गुस्से में बोली - "छी, कितनी गन्दी सोच है आपकी लेकिन अफ़सोस आपने जो सोचा था वैसे कुछ नही हुआ "
"चटाआआक"एक जोरदार थप्पड़ चांदनी के गालों पे पड़ा। आएशा बेगम उसके चेहरे को हाथ में लेकर बोली - "इतनी देर से वो यहां क्या कर रहे थे? "
बेगम ने उसका चेहरा झटक दिया और बोली- "किसी काम की नही है तू, अब तू देख मैं क्या करती हूँ..!! "
कुछ दिन ऐसे ही कोठे पर चांदनी नाचती रही लेकिन एक दिन जब वो तैयार हो रही थी तब आएशा बेगम किसी लड़की के साथ उसके कमरे में आई और बोली - "इनसे मिलो चांदनी, ये हैं माया "
सामने एक बेहद खूबसूरत लड़की खड़ी थी, बड़ी बड़ी काजल से सनी आँखे, पतले होंठ जिसपे उसने डार्क लिपस्टिक लगाया हुआ था। लंबे घुंघराले बाल जिसे उसने खुला छोड़ रखा था। मैरून रंग की अनारकली सूट पहने वो एकदम तैयार खड़ी थी।
आएशा बेगम चांदनी से बोली - "कहा था ना मैंने, ज्यादा जुबान चलाओगी तो तुम्हारा ही बुरा होगा। और देख आज हो भी गया..! अबसे कुँवर सा को तुम नही, माया अपने जाल में फसाएगी..! "
चांदनी हैरानी से उसे देखने लगी। उसे इस बात की जरा भी उम्मीद नही थी। वो कुछ बोलती इससे पहले ही आएशा बेगम माया से बोलीं - "चलिए माया, नाच का समय हो चला है। कुँवर सा इंतज़ार कर रहे होंगे। बस आप उनपे अपना रंग जमा दीजिये फिर तो सबकुछ अपना होगा"
माया इतराते हुए बोली - "आप बिलकुल फिक्र ना करें बेगम जान, कुँवर सा को हम अपने वष में ऐसे करेंगे कि वो पिछला सब कुछ भूल जायेंगे "
आएशा बेगम माया के कंधे पर हाथ रख बोलीं - "हमे आपसे यही उम्मीद थी माया...!! "
आएशा बेगम और माया कमरे से बाहर चले गए वहीं चांदनी शबनम के साथ स्तब्द सी खड़ी रही। उसे इस घटना की बिलकुल उम्मीद नही थी। उसके दिमाग में बस एक ही सवाल गूंज रहा था "अब अगर वो नाचेगी नही तो फिर उसका यहां क्या काम? "
बाहर प्रशांत बैठा बेसब्री से चांदनी का इंतज़ार कर रहा था। तभी हॉल में लगी बल्ब की रौशनी को कम कर दिया गया, पुरे हॉल में झूमर और उसकी कारीगरी से भरी रौशनी बिखर रही थी।
सामने एक लड़की घूँघट डाले बैठी थी। कम रौशनी की वजह से किसी को भी वो लड़की ठीक से नही दिख रही थी। गाना बजा, और उसके साथ ही लड़की ने अपना घूँघट उठाया और चारो तरफ फिर से रौशनी कर दी गयी..!!
इन आँखों की मस्ती के
आ इन आँखों की मस्ती के
मस्ताने हज़ारों हैं मस्ताने हज़ारों हैं
इन आँखों से वाबस्ता
अफ़साने हज़ारों हैं
इन आँखों की मस्ती के.....
चांदनी को वहां ना पाकर सब हैरान थे, लेकिन इतनी खूबसूरत लड़की को सामने देख सब उसमे खो गए और जाम पे जाम गटकते हुए नाच का लुफ्त उठाने लगे सिवाय प्रशांत के।
प्रशांत ने जब माया को सामने देखा तो एकदम से चौक गया। चांदनी के सिवा यहां किसी और के होने की उम्मीद उसे नही थी। माया नाचते हुए प्रशांत के पास आई और उसके करीब आकर नाचने लगी। लेकिन उसकी इस हरकत में प्रशांत को कोई दिलचस्पी नही थी। वो वहां से तुरंत हट गया और बेगम आएशा के पास जाकर बोला - "ये कौन है और चांदनी कहाँ हैं? "
आएशा बेगम - "आप बैठिए ना कुँवर सा, हमने माया को खास आपके लिए बुलाया है। अबसे चांदनी की जगह ये ही आपका दिल बहलायेगी.. "
प्रशांत खिंजकर बोला - "ये क्या बकवास है, हमे यहां सिर्फ चांदनी चाहिए, उसकी जगह कोई नही ले सकता समझी आप..!! "
प्रशांत गुस्से में वहां से जाने लगा लेकिन माया उसके पास आई और उसके हाथ को पकड़ अपने साथ सबके बिच ले आई। गाना बज रहा था और उसी के साथ माया के पैर प्रशांत के चारों ओर थिरक रहे थे। माया प्रशांत के करीब आई और उसके आँखों में देखते हुए नाचने लगी।
प्रशांत को बहुत गुस्सा आया, उसने माया की बाजुएँ पकड़ी और खुदसे दूर कर दिया। गुस्से में घूरते हुए वो बाहर चला गया।
माया ने मुस्कुराते हुए अपना नाच ख़त्म किया और वहां से बेगम आएशा के पास चली गयी।
माया - "कुँवर सा, इतने गुस्से में कहाँ गए हैं बेगम जान "
बेगम आएशा हँसते हुए - "कही नही माया, वो लौट कर आपके पास ही आएंगे। अभी उनपे चांदनी का बुखार चढ़ा है "
माया अपने लटों से खेलते हुए बोली - "दो दिन का बुखार है बेगम जान, फिर वो मेरे आगे पीछे घूमते नज़र आएंगे। बेशुमार दौलत के साथ साथ आकर्षित चेहरा भी पाया है कुँवर सा ने। हमारा तो दिल ही जीत लिए इन्होंने, हाए.. "
बेगम आएशा - "चलिए, अब आपको इश्क़ हो ही गया है फिर हमारे लिए काम आसान हो जायेगा। हमें बस उस चांदनी को रास्ते से हटाना होगा "
माया कुटिल मुस्कान लिए बोली - "हमारे पास चांदनी को रास्ते से हटाने के लिए एक बेहतर तरकीब है, दो दिन बाद वो हमारे रास्ते से हमेशा के लिए हट जाएँगी "
बेगम आएशा - "कहीं उन्हें मारने के बारे में तो नही सोच रही हैं आप? "
माया - "नही बेगम जान, उससे भी बेहतर और बदत्तर तरकीब है हमारे पास "
माया ने बेगम को कुछ बताया तो दोनों हँसने लगी और चांदनी के कमरे की तरफ बढ़ गयी।
प्रशांत कोठे से बाहर निकला और अपने दोस्तों के साथ अड्डे पर पहुंचा। वहां उसके दोस्त खाने पिने का सारा इंतज़ाम रखते थे। चारों दोस्त वहां पहुंचे और सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए। बृजेश ने बड़ी बड़ी शराब की बोतलें सामने टेबल पर रखी। सबने एक एक बोतल उठाई और पिने लगे। अभी शराब की सबसे ज्यादा जरूरत प्रशांत को थी, वो आज की बातें भुलाने में लिए एक साँस में पूरी बोतल पी गया। सारे दोस्त उसका साथ देने के लिए जल्दी से अपनी बोतलें खाली कर ली।
बृजेश नशे की हालत में बोला - "कुँवर सा, अगर आप इज़ाज़त दें तो हमारे पास आपके लिए कुछ और भी है जो हमने शहर से मंगवाई है। "
लखन नशे में चूर होकर बोला - "सिर्फ कुँवर सा के लिए मंगाई है आपने, हमारा क्या बृजेश? "
बृजेश - "चिंता क्यों करते हैं लखन, हमने सबके लिए मंगाई है और यकीन मानिये, एक बात इसे अपने शरीर में उतारने के बाद आप बाकि नशे को भूल जायेंगे। "
प्रशांत हाथो में पकड़ी खाली शीशी को जोर से जमीन पे पटक देता है और बोलता है - "फिर देर क्यों कर रहें हैं बृजेश आप, जल्दी लाइए, इस शराब से हमारा कुछ नही होता अब। "
बृजेश ने अपनी जेब से एक पुड़िया निकाला जिसमे सफ़ेद पाउडर जैसा था कुछ (ड्रग्स)। उसने पैकेट को फाड़ा और सामने की टेबल पर ड्रग्स को बिखेर दिया और बोला - "ये है वो नायाब नशा, इसे करने के बाद इंसान सब कुछ भूल जाता है। ऐसा समझिये कुँवर सा, शराब की हज़ार बोतलों के बराबर है ये। " "रुकिए हम दिखाते हैं, इसे कैसे लिया जाता है। "
बृजेश ने एक कागज के टुकड़े को रोल किया और नाक के रास्ते उस पाउडर को अपने शरीर में दाखिल कर लिया। प्रशांत, लखन और अनुज तीनों गौर से बृजेश को देख रहे थे।
बृजेश अपने नाक को रगड़ते हुए बोला - "आइये, आप लोग भी इसका सेवन करिये "
ये बोलते के साथ ही बृजेश बदहवास सा लेट गया और बड़बड़ाने लगा।
अनुज आगे आया और उसने भी बृजेश की तरह ड्रग्स ले लिया। फिर लखन और आखिरी में प्रशांत। सब वहीं पड़े हुए बड़बड़ा रहे थे। प्रशांत तो दूसरी दुनिया में चला गया था जहां उसके सामने चांदनी नाच रही थी और वहां प्रशांत के अलावा दूसरा कोई नही था।
अगले दिन भी चांदनी की जगह माया नाचने आई थी। उसका नाच पूरा होने से पहले ही प्रशांत अपने दोस्तों के साथ उठकर चला गया और एक बार फिर अपने अड्डे पर दोस्तों के साथ ड्रग्स लेने लगा।
अगले दिन दोपहर में चांदनी अपने कमरे में बैठी थी तभी माया और आएशा बेगम किसी लेडी डॉक्टर के साथ उसके कमरे में आई।
बेगम आएशा - "यही है वो डॉक्टर जिनका ऑपरेशन करना है आपको "
चांदनी चौंक गयी और बोली - "किस.. कैसा ऑपरेशन..? "
बेगम आएशा हँसते हुए - "अब नाचने का काम तो तुझसे छीन चूका है, बैठा के तो नही खिला सकते ना तुझे इसलिए अब तू हमारे दूसरे धंधे में काम करेगी "
चांदनी एकदम से लड़खड़ा गयी और बोली - "ये आप क्या कह रही हैं बेगम जान, आपको पता है मैं ये नही कर सकती "
माया - "करना तो तुझे पड़ेगा, तभी तो तू हमारे रास्ते से हटेगी..!! "
माया डॉक्टर से - "निकाल दीजिये इसकी बच्चेदानी और बना दीजिये इसे बाँझ ताकि ये भी औरों की तरह हर रात किसी ना किसी की तवायफ बन सके "
चांदनी चीखते हुए - "नही... आपलोग ऐसा नही कर सकते मेरे साथ..!! ( बेगम आएशा के पैरों में गिर के बोली) बेगम, रहम करिये मुझपर.. आप जानती हैं मैं ये सब नही कर सकती है। "
बेगम आएशा उसे एक लात मारकर खुदसे दूर कर देती है और बोलती है - "रहम और तुमपर? ये तुम्हे तब सोचना चाहिए था जब तुम अपनी जबान चलाती थी, जब हमारी बातें नही मानती थी। पैसे देकर ख़रीदा है मैंने तुम्हे, ऐसे कैसे छोड़ सकती हूँ। मार्किट में भाव गरम है तुम्हारे, फायदा उठाना ही तो हमारा काम है। "
चांदनी आएशा बेगम के पास फिर से आने लगी और गिड़गिड़ाने लगी लेकिन आएशा बेगम ने सख्ती से डॉक्टर से कहा - "अगले दो घंटे में इसका ऑपरेशन हो जाना चाहिए। हम अपने आदमियों से आपका सामान भिजवाते हैं "
आएशा बेगम माया से - "चलिए माया "
दोनों कमरे से बाहर निकल गए। चांदनी वहीं बैठी रोती रह गयी, गिड़गिड़ाती रह गयी लेकिन किसी को कोई फर्क नही पड़ा। उसका दर्द वहां मौजूद सिर्फ एक सख्स समझ रहा था और वो थी शबनम जो कोने में खड़ी रो रही थी।
कुछ देर बाद एक आदमी आया और डॉक्टर का सारा सामान रखकर वहां से चला गया। डॉक्टर ने बाहर खड़ी दो नर्स को बुलाया।
चांदनी डॉक्टर के सामने गिड़गिड़ाते हुए बोली - "डॉक्टर, हमे छोड़ दीजिये। हम ये नही करवा सकते है। हमारी बात मानिये डॉक्टर, हमे छोड़ दीजिये। "
डॉक्टर - "देखिये, हमे ये करना पड़ेगा। इसके पैसे लिए हैं हमने "
चांदनी गुस्से में चीखते हुए बोली - "किसी की इज्जत, आबरू को छलनी करने के लिए कैसे पैसे ले सकते हैं आप लोग। एक औरत से माँ बनने का हक्क कैसे छीन सकते हैं आप लोग "
डॉक्टर - "आपकी इन बातों का हमपे कोई असर नही होगा चांदनी जी, आप भी जानती हैं यहां मौजूद हर औरत को हमने ही बाँझ बनाया है। वो भी आपकी तरह रोती थी लेकिन आज आपका ये कोठा उसी वजह से चल रहा है। "
डॉक्टर ने नर्स को इशारा किया चांदनी को पकड़ने के लिए। नर्स आगे बढ़ने लगी और चांदनी खुदको पीछे की तरफ धकेलने लगी। नर्स चांदनी तक पहुँचती उससे पहले ही किसी ने उसके सर पे ज़ोर से वार किया। नर्स अपना सर पकडे जमीन पर गिर गयी।
डॉक्टर, चांदनी और एक और नर्स वहां मौजूद सख्स को हैरानी से देखने लगे। वो कोई और नही बल्कि शबनम थी। शबनम ने ही नर्स को मारा था, वो पलटी और दूसरी नर्स के सर पे वार कर निचे गिरा दिया। वो डॉक्टर की तरफ बढ़ी लेकिन डॉक्टर वहां से बाहर की तरफ भाग गयी। शबनम ने जल्दी से दरवाजा बन्द किया और चांदनी के पास आई। अपने कांपते हाथों से चांदनी के चेहरे को पकड़ बोली - "चांदनी, आप जाइये यहां से वरना सब आपको भी तवाएफ बना देंगे। निकल जाइये यहां है, हम ज्यादा देर नही रोक पाएंगे इन सब को..!! "
चांदनी रोते हुए शबनम के गले लग गयी। वो जल्दी से उठी और एक छोटे से बैग में अपने कुछ कपडे और गहने रखे और कमरे की खिड़की से खुदकर भाग गयी।
डॉक्टर ने आकर चांदनी को बताया हमले के बारे में। बेगम आएशा और माया चांदनी के कमरे के बाहर आयीं और दरवाजा बंद देख खटखटाने लगी लेकिन किसी ने दरवाजा नही खोला। बेगम ने तुरंत अपने आदमियों को बुलाया और दरवाजा तोड़ने को कहा। दरवाजा टूटते ही सामने दो नर्स जमीन पर बेहोश नज़र आयीं और शबनम उनके पास चेहरे पर बिना किसी के भाव के खड़ी थी।
आएशा बेगम शबनम के पास आई और थप्पड़ मारते हुए बोली - "नमकहराम, क्यों किया तूने ऐसा? कहाँ है चांदनी?? "
शबनम फीका सा मुस्कुराकर बोली - "जो मेरे साथ हुआ वो उसके साथ कैसे होने दे सकती थी मैं, भगा दिया मैंने उसे..!! "
"चटाआक"एक और थप्पड़ उसके गाल पे पड़ा। बेगम आएशा ने खिड़की के बाहर झांकर देखा तो उसे कुछ दूर पर चांदनी भागती दिखाई दी। उन्होंने अपने आदमियों को इशारा किया और बोली - "किसी भी हालत में मुझे वो यहां वापस चाहिए "
आएशा बेगम के आदमी वहां से चले गए चांदनी के पीछे। बेगम ने एक मोटी चमड़ी की रस्सी निकाली और शबनम को बेतहाशा मारने लगी।
चांदनी कोठे से निकलकर अपने बैग को सम्भालते हुए बेतहाशा भागे जा रही थी। उसे अंदेशा था कि अभी तक बेगम को पता चल गया होगा और उन्होंने अपने आदमी उसके पीछे लगा भी दिए होंगे। खुदको बचाने के लिए चांदनी भागती रही भागती रही। अँधेरा हो चूका था, इसलिए ना ही रास्ते का पता चल रहा था और ना ही बेगम के आदमी चांदनी को देख पा रहे थे।
प्रशांत अपने दोस्तों के साथ अड्डे पर जा रहा था तभी उससे चांदनी टकरा गयी। अंधेरे में प्रशांत उसका चेहरा नही पाया। चांदनी हड़बड़ी में बोली - "हमे माफ़ कर दीजिये "
और जाने के लिए आगे बढ़ी लेकिन प्रशांत ने उसका हाथ पकड़ लिया। वो पहचान गया था चांदनी की आवाज को।
प्रशांत धीरे से बोला - "चांदनी....? "
चांदनी भी कुँवर की आवाज पहचान गयी। वो मुड़ी और बोली - "जी, हम चांदनी हैं "
प्रशांत - "आप इस वक्त यहां क्या कर रही हैं? और इतनी तेज़ी में कहाँ जा रही हैं "
चांदनी कांपते हुए आवाज में बोली - "हमे जाने दीजिये कुँवर सा, वर्ना वो लोग हमे मार देंगे.. "
प्रशांत हैरानी से उसे देखते हुए बोला - "कौन मार देगा? आप चलिए हमारे साथ, हमारे रहते कोई कुछ नही बिगाड़ सकता आपका, समझी आप "
चांदनी रोते हुए बोली - "हम नही जायेंगे वहां वापस, हमे छोड़ दीजिये, हम यहां से बहुत दूर चले जायेंगे। "
वहां से प्रशांत का अड्डा नजदीक था, वो अपने दोस्तों को घर जाने के लिए बोल दिया और चांदनी से बोला - "आप चलिए हमारे साथ, हम आपको कोठे पर नही ले जा रहे लेकिन ऐसे अकेले भी नही छोड़ सकते आपको "
प्रशांत चांदनी का हाथ पकडे अपने साथ अड्डे पर ले गए। वहां उनके दोस्त ने उनकी बाइक लगा दी और सब चले गए वहां से प्रशांत और चांदनी को अकेले छोड़। दोनों अड्डे के अंदर गए तो वहां टेबल पर दारू के खाली बोतलें रखी हुई थी। प्रशांत चांदनी को वहां से थोड़ी दुरी पर ले गया और एक कुर्सी पर बैठा कर खुद वहां पड़ी खाली बोतलों को फेकने चला गया। भागते भागते चांदनी थक गयी थी इसलिए उसे कुर्सी पर बैठ काफी आराम मिल रहा था।
प्रशांत वापस आया और चांदनी के सामने की कुर्सी पर बैठ गया। वो चांदनी को निहारने लगा, भागने की वजह से काफी थकी हुई लग रही थी, बाल भी बिखरे हुए था। कपडे थोड़े गंदे हो गए थे।
प्रशांत उसकी तरफ देख कर बोला - "अगर आप खुदको ठीक करना चाहें तो कर सकती हैं, यहां इस तरफ (हाथों से इशारा करते हुए) स्नानघर है।
चांदनी फ्रेश होना चाहती थी, वो बोली - "जी शुक्रिया.. "
प्रशांत - "आप यहां आराम से रहिये, हम कुछ देर में आते हैं। "
प्रशांत वहां से बाहर चला गया और चांदनी स्नानघर में अपने कपडे लेकर चली गयी।
प्रशांत जब बाहर आया तो बेगम आएशा के आदमी अंदर की तरफ ताक झाँक कर रहे थे। कुँवर को बाहर आते देख डर कर पीछे हट गए।
प्रशांत उनके पास आया और बोला - "ये क्या कर रहे हैं आपलोग? "
तीनों आदमी सर झुकाकर बोले - "हमे क्षमा कर दीजिये कुँवर सा, हमे नही पता था आप यहाँ हैं "
प्रशांत - "हम्म, वैसे आपलोग यहाँ कर क्या रहे हैं ? "
एक आदमी - "कुँवर सा, कोठे से चांदनी भाग गयीं हैं। उन्हें ही पकड़ने के लिए बेगम जान ने हमे भेजा है "
प्रशांत - "तो आपको क्या लगता है, चांदनी अभी यही होंगी? वो शहर छोड़ने की फ़िराक में होंगी। हमे ऐसा लगता है आप लोगों को बस अड्डा जाना चाहिए। "
दूसरा आदमी पहले आदमी से - "कुँवर सा सही कह रहे हैं, हमे बस अड्डे चलना चाहिए। अगर वो बस पकड़ के भाग गयी तो बेगम जान हमे छोड़ेंगी नही। "
तीनों आदमी वहां से फुर्ती के साथ भाग गए। कुछ देर वहीं टहलने के पास प्रशांत अंदर गया। चांदनी फ्रेश होकर बाहर आ गयी थी। नहाने के बाद उसे काफी अच्छा महसूस हो रहा था।
प्रशांत चांदनी के पास आया और बोला - "अभी बेगम आएशा के भेजे हुए आदमी आये थे आपको ढूंढते हुए। हमने उन्हें बस अड्डे भेज दिया। अब आप सुरक्षित हैं। "
चांदनी अपने हाथ जोड़ते हुए बोली - "शुक्रिया कुँवर सा "
प्रशांत - "अब हमे बताइये कि आखिर ऐसी क्या बात हो गयी जो आपको कोठे से ऐसे भागना पड़ा? "
चांदनी पहले ना नुकुर करती रही लेकिन प्रशांत ने जिद की तो उसे सब बताना पड़ा।
प्रशांत गुस्से में बोला - "उनकी ये जुर्रत..!! अब हम उन्हें छोड़ेंगे नही.."
चांदनी - "नही कुँवर सा, आप कुछ नही करेंगे वर्ना उन्हें हमारे यहां होने की बात पता चल जायेगी। कल सुबह होते ही हम यहां से चले जायेंगे लेकिन हमारी खातिर आप कुछ भी नही करेंगे। हम आपके आगे हाथ जोड़ते हैं। "
प्रशांत - "ठीक है, हम कुछ नही करेंगे लेकिन आप कहीं नही जाएंगी हमे बिना बताये। आज रात आप यही रुकिए, हम आपके लिए कुछ ना कुछ इंतज़ाम कर देंगे। हम अभी चलते हैं, किसी चीज की आवश्यकता हो तो हमे बुला लीजियेगा, हम बाहर ही हैं। "
प्रशांत वहां से बाहर निकल गया। उसे कुछ दुरी पे अनुज जाता दिखाई दिया। प्रशांत ने उसे आवाज दी तो अनुज आया।
प्रशांत - "अनुज, हमे बृजेश से वो नशा लाकर दीजिये। बहुत जरूरत है अभी हमे उसकी "
प्रशांत को ड्रग्स की तलब लग चुकी थी। थोड़ी सी परेशानी और घबराहट में उसे सिर्फ ड्रग्स का ही ख्याल आ रहा था।
अनुज बृजेश को अपने साथ ले आया और तीनों ने वहीं बैठ के ड्रग्स लेना शुरू किया। नशा चढ़ते ही सब कुछ भूलकर वो वहीं बाहर सो गए।
चांदनी भी निचे जमीन पर अपना एक दुपट्टा बिछाकर सो गयी। बेगम आएशा के आदमी ने हर जगह चांदनी को ढूंढा, लेकिन उन्हें चांदनी कही नही मिली। थक हारकर वो वापस कोठे पे पहुंचे जहां बेगम आएशा और माया बड़ी बेसब्री से आदमियों का इंतज़ार कर रहीं थीं। तीनो आदमी वहां पहुंचे और जब बेगम ने चांदनी को उनके साथ नही देखा तो बरस पड़ी उनपे। साथ में दो चार थप्पड़ भी बरसा दिए।
बेगम आएशा - "कहाँ है चांदनी? तुम तीनों मिलकर भी नही पकड़ पाये उसे? "
पहला आदमी - "बेगम जान, हमने उन्हें हर जगह ढूंढा लेकिन वो कही नज़र नही आयीं। हम उन्हें ढूंढने बस अड्डे पर भी गए लेकिन वो कहीं नही दिखी हमें। "
बेगम आएशा - "ऐसे कैसे नज़र नही आई, निकम्मे हो तुमलोग तभी तो तीन होकर भी नही ढूंढ पाये उसे "
बेगम आएशा - "अब निकलो यहां से, और उसे ढूंढकर अपने साथ ही लौटना वर्ना यहीं दफना दिए जाओगे "
आधी रात को अनुज और बृजेश नींद से जागे, सर भारी था। दोनों ने मिलकर प्रशांत को जगाया और अपने अपने घर चले गए। नशे के चलते उसे चांदनी का ख्याल ही नही रहा और वो अपने महल वापस चला गया।
अगली सुबह .....
चांदनी की नींद खुली, और खुदको नए जगह पर पाकर एक पल के लिए वो परेशान हो गयी लेकिन जब कल की बातें याद आई तो एक बार फिर उसके चेहरे पर उदासी छाने लगी। कल सुबह से कुछ खाया नही था उसने इसलिए भूख भी बहुत लगी थी लेकिन वो यहां से बाहर नही निकल सकती।
जब भूख बर्दास्त नही हुई तो वो उठी और गेट के पास जाकर बाहर की तरफ झाँकने लगी। अगर आस पास कोई नही हुआ तो वो बाहर से अपने लिए कुछ खाने को ले आएगी लेकिन ख़राब किस्मत। अड्डे से कुछ ही दुरी पर खड़े बेगम आएशा के आदमी पर उसकी नज़र गयी और वो जल्दी से गेट बंद कर अंदर आ गयी। डर उसके चेहरे से झलक रहा था।
खुदको समेट कर वो वापस उसी जगह बैठ गयी। तभी उसकी नज़र मेज पे रखे नमकीन के पैकेट पे गयी। वो भागते हुए गयी, और पैकेट से नमकीन निकालकर जल्दी जल्दी खाने लगी। पानी से भरा जग भी रखा हुआ। जग से ही पानी पीकर उसने लंबी साँस ली। अब भूख थोडा कम हुआ था।
प्रशांत अपने कमरे में सोया हुआ। हमेशा की तरह कमलावती उसके कमरे में आई और जगाते हुए नींबू पानी दे दिया। प्रशांत नींबू पानी पिने लगा तभी उसे चांदनी की याद आई। वो जल्दी से बिस्तर पर से उठा और एक साँस में नींबू पानी खत्म कर कमरे से भाग गया। कमलावती को कुछ पूछने का समय भी नही मिला।
प्रशांत वहां से निकल सीधे अड्डे पर पहुंचा। उसे रास्ते में बेगम के आदमी मिल गए जिन्होंने उसे प्रणाम किया और सुबह सुबह यहां पे आने के बारे में पूछने लगे। प्रशांत कुछ बहाना बनाकर निकल गया लेकिन वो जानता था कि उन आदमियों को थोडा बहुत शक होने लगा है उसपर।
प्रशांत अंदर गया जहां चांदनी बैठी हुयी थी। प्रशांत उसके पास गया और बोला - "हमे क्षमा कर दीजिये, कल हम महल वापस चले गए थे। आपको कोई दिक्कत तो नही हुई ना ? "
चांदनी - "नही कुँवर सा, हमे कोई दिक्कत नही हुई लेकिन हमे भूख लगी थी तो हमने यहां रखे नमकीन खा लिए "
प्रशांत - "कोई बात नही। यहां पर रहना अब ठीक नही है, बेगम के आदमी हर तरफ आपको ढूंढ रहे हैं। आप हमारे साथ महल चलिए। "
चांदनी चौंक कर बोली - "क्या? महल और वो भी हम ? कुँवर सा, आप जानते हैं ना अगर किसी ने हमे वहां देख लिया तो बहुत परेशानी हो जायेगी। महाराज को पता चला तो वो हमारा सर कलम करवा देंगे। "
प्रशांत - "ऐसा कुछ नही होगा, आप हमपर भरोसा रखिये। किसी को आपके बारे में पता नही चलेगा और बस कुछ दिन की बात है, उसके बाद हम आपके लिए बेहतर इंतज़ाम करवा देंगे लेकिन अभी चलिए हमारे साथ। "
चांदनी - "लेकिन कुँवर सा.... "
प्रशांत उसकी बात बिच में काटकर - "अभी लेकिन वेकिन का समय नही है चांदनी, आप अपना सामान बांधिए, हम अभी आते हैं। और हाँ, अगर किसी ने दरवाजा खोलने को कहा तो मत खोलियेगा। बेगम के आदमी यहीं आस पास हैं। "
प्रशांत वहां से निकल गया और इधर चांदनी कुछ सोचने लगी। प्रशांत निकलकर लखन के पास गया और उससे दासियों जैसे कपडे मांगे।
लखन - "लेकिन उन कपड़ों का आप क्या करेंगे कुँवर? "
प्रशांत - "आप सवाल जवाब बाद में करियेगा, अभी हमे वो कपडे लाकर दीजिये जल्दी। "
लखन - "अभी लाया.. "
लखन दौड़ के गया और कुछ देर में दासियों वाले कपडे का इंतज़ाम कर अपने साथ ले आया। प्रशांत उन कपड़ो को लेकर चांदनी के पास पहुंचा और उन्हें पहन कर आने को कहा।
चांदनी ने घाघरा- चोली पहन लिया और दुपट्टा गले में लगाया हुआ था। प्रशांत उसके पास आया और बोला - "आप इस दुपट्टे से अपना चेहरा छुपा लीजिये ताकि कोई भी आपको देख ना पाये "
चांदनी ने वैसा ही किया। उसने दुपट्टा से अपना चेहरा ढँक लिया और अपना सामान लेकर प्रशांत के साथ छुपते छुपाते महल पहुंची। प्रशांत ने उसे कुछ देर बाहर प्रतीक्षा करने को बोला और वहां से सीधे अपने कमरे में गया। उसने एक रस्सी अपने कमरे की खिड़की से निचे लटका दी और बाहर आकर कमरे का गेट बंद कर दिया।
प्रशांत चांदनी के पास पहुंचा और बोला - "हमने अपने कमरे की खिड़की से रस्सी लटका दी है, दाएं तरफ से हमारे कमरे की खिड़की दिखेगी आपको। हम यहां मौजूद द्वारपालों का ध्यान अपनी ओर करते हैं, तबतक आप अपने सामान के साथ ऊपर चढ़ जाइये।
चांदनी - "लेकिन कुँवर सा, हम कैसे रस्सी से चढ़ पाएंगे? "
प्रशांत - "उसकी चिंता मत करिये आप, हमने जगह जगह गांठे बना दी हैं, आप उनपे पैर फसा कर चढ़ जाना। इससे ज्यादा हम कुछ नही कर सकते थे। आपको ये करना ही होगा। "
चांदनी - "ठीक है, हम पूरी कोशिश करेंगे "
प्रशांत - "आप यहीं रुकिए, और हमारे इशारे का इंतज़ार कीजियेगा "
प्रशांत वहां से अंदर आया और एक तरफ साइड में जाकर खड़ा हो गया। महल के बाहर 10 लोग खड़े थे जिनमे 4 द्वारपाल थे और कुछ माली वगैरह थे। प्रशांत ने सबको इशारा कर अपने पास बुलाया और उनका ध्यान अपनी तरफ करने लगा अपनी बातों में उलझाकर।
सब लोग प्रशांत से बातें करने में लगे हुए थे, इसी का फायदा उठाकर प्रशांत ने हाथ उठाकर चांदनी को इशारा किया। चांदनी भी एक हाथ से घूंघट सम्भाले और दूसरे में अपना बैग पकडे अंदर की तरफ आ गयी।
प्रशांत के बताये अनुसार वो महल के दाहिने तरफ मुड़ी, उसे प्रशांत के कमरे की खिड़की दिखी जिससे रस्सी लटक रहा था। तभी महल में से एक दासी बाहर आई और चांदनी को देख आवाज लगाई - "ऐ, सुनो जरा.. "
चांदनी ठिठक गयी, बाकि सब प्रशांत से बात करने में लगे हुए थे इसलिए किसी को भी दासी की आवाज नही सुनाई दी लेकिन प्रशांत ने उसे देख लिया था। उसने जल्दी से दासी को आवाज लगाई तो दासी उसके पास पहुंची और बोली - "जी कुँवर सा "
प्रशांत - "हमारे लिए एक ग्लास पानी ले आइये, हमे बहुत प्यास लगी है "
दासी - "जी कुँवर सा, अभी लाए "
प्रशांत और दासी जबतक एक दूसरे से बात कर रहे थे उतनी देर में चांदनी जल्दी से छुप गयी। दासी के महल में जाते हीं वो रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ने लगी। बहुत मुश्किल हो रही थी उसे ऊपर चढ़ने में।
दासी पानी लेकर आई और कुँवर को देकर वापस महल में चली गयी। प्रशांत हाथों में ग्लास लिए भगवान से प्रार्थना कर रहा था ताकि चांदनी सही सलामत कमरे में चली। उसने अभी एक घूंट पानी पिया ही था कि कमलावती महल से बाहर आई और महल के दाएं तरफ जाने लगीं जिधर अभी चांदनी मौजूद थी।
पानी पीते पीते प्रशांत अटक गया और खांसने लगा।खांसते हुए वो कमलावती के पास पहुंचा और उन्हें रोकते हुए बोला - "क्या हुआ माँ सा, आप यहां? कुछ काम था क्या ? "
कमलावती की पीठ चांदनी की तरफ थी। और प्रशांत का चेहरा चांदनी की तरफ। वो चांदनी की तरफ देख रहा था, बड़ी मशक्कत के बाद, आधी दुरी तय कर पायी थी वो।
कमलावती - "हमने पूजा रखवाया है आज, इसलिए हमे फूलों की आवश्यकता थी। वही लेने आये हैं "
प्रशांत - "किसी दासी को बोल देती माँ सा, आपने तकलीफ क्यों की? "
कमलावती - "आपको पता है ना कुँवर, हम पूजा पाठ के मामले में किसी पे भरोसा नही करते। "
चांदनी ऊपर चढ़ चुकी थी, अब वो रस्सी ऊपर खिंच रही थी जिसके निचले हिस्से पर उसने अपना बैग बांध रखा था। इधर प्रशांत कमलावती को अपनी बातों में फसाए रखा था। चांदनी ने जल्दी से अपना बैग ऊपर खिंच लिया।
प्रशांत कमलावती से बोला - "ठीक है माँ सा... आप तोड़ लीजिये फूल। "
प्रशांत वहां से हट गया। एक लंबी, राहत भरी साँस, प्रशांत और चांदनी ने ली।
ऐसे ही दिन गुजरने लगे। चांदनी को महल में रुके पुरे दस दिन हो गए थे। कमलावती जब भी कमरे में आती तो चांदनी जल्दी से छुप जाया करती। प्रशांत ने भी नशा बन्द कर दिया था। वो किसी भी हालत में चांदनी के लिए मुश्किल खड़ा नही करना चाहता था। हलाकि ड्रग्स की लत उसे लग गयी थी। जब कभी उससे रहा नही जाता तो दिन में जाकर थोड़ी मात्रा में ड्रग्स ले लिया करता।
दिन पर दिन उसके दिल में चांदनी के लिए प्यार बढ़ता ही जा रहा था। अपनी नज़रों के सामने देख उसे बहुत सुकून मिलता। चांदनी कमरे में सोती तो प्रशांत बाहर बालकनी में अपने गद्दे लगाकर सोता था। वहीं कोठे पर अब भी आएशा बेगम और माया परेशान थे चांदनी के भाग जाने से लेकिन उन्होंने अपनी कोशिशें नही छोड़ी। सबसे बड़ी बात ये थी कि अब कुँवर का आना जाना भी बंद हो गया था जिस वजह से माया का मूड उखड़ा उखड़ा रहता था।
एक दिन प्रशांत ने चांदनी को अपने दिल की बात कहने का मन बनाया। सुबह सुबह वो बगीचे में गया और वहां से कुछ गुलाब के फूल तोड़ अपने कमरे में जाने लगा तभी कमलावती ने उन्हें टोक दिया।
कमलावती - "कुँवर, इतनी सुबह सुबह कहाँ से आ रहा हैं आप? (हाथों में गुलाब के फूल देखकर बोली) और ये फूल? ये किसलिए तोडा आपने?? "
प्रशांत मन में - "मर गए अब तो "
प्रशांत - "वो माँ सा, हम बगीचे में टहल रहे थे तो हमे ये गुलाब दिखे। बेहद खूबसूरत लगे तो हमने इन्हें तोड़ लिए ताकि अपने कमरे में रख सकें.. फूलदान में.. "
कमलावती - "लेकिन अचानक से। आपने कभी ऐसा नही किया। "
कमलावती प्रशांत के पास आयीं और उन्हें देखते हुए बोलीं - "कुछ दिनों से बदले बदले नज़र आ रहे हैं आप, क्या बात है कुँवर?? "
प्रशांत उनसे नज़रे बचाते हुए बोला - "कोई बात नही है माँ सा, और हमे कोई बदलाव नज़र नही आ रहा खुद में। अगर आपको लगता है तो अच्छा है ना, थोड़े तो सुधर रहे हैं हम.. "
कमलावती ने उसके कान पकडे और बोली - "आप और सुधर रहे हैं? अगर ये बदलाव किसी अच्छी वजह से हो रहा है तो ठीक वरना अंजाम आप समझते हैं ना। "
प्रशांत अपने कान छुड़ाते हुए बोला - "क्या माँ सा, कहाँ की बात आप कहाँ ले जा रही हैं। हम तो बस मजाक कर रहे थे। अब हम चलते हैं कमरे में। "
प्रशांत वहां से तुरंत अपने कमरे में चला गया। चांदनी अपने बैग से कुछ निकाल रही थी तभी प्रशांत पीछे से आया और उसे आवाज लगाते हुए बोला - "चांदनी... "
चांदनी मुड़ के देखि तो सामने प्रशांत हाथों में गुलाब के फूल लिए खड़ा था। चांदनी उसके पास आई और बोली - "जी कहिये कुँवर सा "
प्रशांत ने थोड़ी हिम्मत की और उसकी तरफ फूल बढ़ाते हुए बोला - "ये आपके लिए चांदनी "
चांदनी ने फूल ले लिया और बोली - "शुक्रिया "
प्रशांत - "चांदनी हम आपसे कुछ कहना चाहते हैं "
चांदनी - "जी कहिये। "
प्रशांत - "हमे समझ नही आ रहा कैसे कहें। ( चांदनी की तरफ पीठ कर आगे बोला) हमने जब आपको पहली बार देखा तो हम देखते रह गए थे आपको। अलग सा खिंचाव महसूस हुआ था हमे। हम आपके बारे में सोचने लगे, और फिर हमे एहसास हुआ कि हम आपसे प्यार करने लगे हैं। हाँ चांदनी, हम आपसे प्यार करते हैं। "
प्रशांत पीछे मुड़ के देखा तो चांदनी स्तब्ध सी खड़ी उसे एकटक देखे जा रही है और उसके हाथों से फूल छूटकर फर्श पर गिर गए हैं। प्रशांत चांदनी के पास आया तो बोला - "क्या हुआ चांदनी ? "
चांदनी के आँखे से आंसू गिर रहे थे। प्रशांत उसके पास आया और उसके आंसू पोछने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाये, चांदनी ने अपने कदम पीछे खिंच लिए। प्रशांत हैरानी से उसे देखते हुए बोला - "चांदनी... "
लेकिन चांदनी कुछ नही बोल रही थी। वो अपने कदम पीछे की तरफ बढ़ाये जा रही थी तभी उसका पैर पीछे रखी टेबल पर लगा और एक किताब निचे गिर गया। ये वही किताब थी जिसमे प्रशांत ने चांदनी के स्केच रखे थे। किताब गिरते हीं उसमे रखे स्केच बाहर निकल आये। चांदनी की नज़र जब निचे गयी तो उसे पेपर पर अपनी स्केच नज़र आई। चांदनी निचे झुक के पेपर उठाने लगी। उसने एक एक कर 3-4 पेपर देखे जिसमे चांदनी के स्केच बने हुए थे।
चांदनी हैरानी से उन स्केच को देख रही थी, उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे वहीं प्रशांत चांदनी को देख रहा, उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रहा था।
प्रशांत चांदनी के पास आया और उसके चेहरे को हाथों में लेते हुए बोला - "क्या हुआ चांदनी, आप ऐसे क्यों बर्ताव कर रही हैं? क्यों रो रही हैं आप?? "
चांदनी ने प्रशांत का हाथ पकड़ा और उसे हटाते हुए बोली - "आपने हमसे प्यार क्यों किया कुँवर सा? "
प्रशांत - "ये कैसा सवाल है चांदनी? "
चांदनी - "हमारे सवाल का जवाब दीजिये कुँवर सा, क्या कभी भी आपको हमारी तरफ से आपके लिए कुछ नज़र आया? "
प्रशांत गौर से चांदनी को देखते हुए बोला - "नही... लेकिन "
आगे बोलने से पहले ही चांदनी बोली - "फिर कैसे प्यार कर बैठे आप हमसे? "
प्रशांत - "चांदनी... "
चांदनी - "नही कुँवर सा, आप हमसे प्यार नही कर सकते। हम कोठे पर नाचने वाली एक मामूली सी लड़की हैं और आप एक कुँवर हैं। इतने बड़े राज्य के राजकुमार, आपको हम जैसी लड़की से प्यार करना शोभा नही देता। हमने कभी भी आपको उस नज़र से नही देखा, हमे जरूरत थी और आप हमारे साथ खड़े थे इसलिए हम यहां आ गए लेकिन हमने कभी भी इसके अलावा कुछ नही सोचा और ना ही किसी बात की उम्मीद की। हम आपको धोखे में नही रखना चाहते कुँवर सा, लेकिन हम कभी भी आपसे प्यार नही कर पाएंगे.. "
प्रशांत - "प्यार कभी भी दो इंसान के बिच की कमियों को नही देखता चांदनी, आप कोठे पर नाचती हैं और इसके पीछे जरूर कोई वजह रही होगी। और अगर नही भी थी कोई वजह तो भी हमे कोई फर्क नही पड़ता। हमे बस इतना पता है कि हम प्यार करते हैं आपसे और बेहद प्यार करते हैं। हम समझ रहे हैं चांदनी और हम किसी तरह का कोई दबाव नही डाल रहे आप पे। आप अपना समय लीजिये, हम ताउम्र आपका और आपके जवाब का इंतज़ार कर सकते हैं। "
चांदनी प्रशांत की तरफ पीठ कर खड़ी हो गयी और बोली - "हम कभी नही अपना सकते कुँवर सा आपको और ना ही कभी प्यार कर सकते हैं "
प्रशांत चांदनी के पास आया और उसकी तरफ देखते हुए बोला - "क्यों चांदनी, क्यों नही कर सकती आप हमसे प्यार??,, बताइये चांदनी। "
चांदनी ने अपनी आँखे बन्द कर ली, आँखों से आंसू लुढक के चेहरे पर आ गए और बोली - "क्योंकि हम किसी और से प्यार करते हैं। "
प्रशांत अपनी जगह से लड़खड़ा गया। वो लड़खड़ाते हुए पीछे की टेबल से जा टकराया। चांदनी उसकी तरफ बढ़ी और उसे सम्भालने के लिए हाथ बढ़ाया लेकिन प्रशांत ने अपना हाथ दिखाकर उसे रोक दिया।
प्रशांत की आँखों में आंसू आ गए थे, वो फुर्ती के साथ वहां से निकल गया और चांदनी वहीं धम्म से जमीन पर बैठ गयी। प्रशांत वहां से निकल कर अपने दोस्तों के पास चला गया। आज उसे नशे की बहुत जरूरत महसूस हो रही थी। चांदनी का किसी और को प्यार करना उससे बर्दास्त नही हो रहा था। पहली बार किसी से प्यार किया था उसने और वो भी किसी और से प्यार करती है अब।
प्रशांत ने उस दिन शराब, ड्रग्स, सिगरेट हर तरह का नशा किया। वो बस अपने गम को भुला देना चाहता था। रोता हुआ वो शराब पिए जा रहा था लेकिन कानों में तो बस चांदनी के वो शब्द गूंज रहे थे "क्योंकि हम किसी और से प्यार करते हैं। "
चांदनी कमरे में बैठी रो रही थी, उसे समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे। मन तो कर रहा था यहां से कहीं दूर चली जाये। कमरे में बैठी वो सिसक रही थी, बेतहाशा आँखों से आंसू बह रहे थे। तभी कमरे में एक दासी आई। प्रशांत अपना कमरा बंद करना भूल गया, कमलावती के कहने पर वो दासी कमरे में आई थी कुछ सामान रखने। किसी के सिसकने की आवाज सुन वो आवाज की दिशा में बढ़ने लगी।
उस छोटे से कमरे में उसे जमीन पर बैठी चांदनी रोते हुए दिखी। घबरा कर दासी वहां से भागते हुए विश्वजीत के पास पहुंची। कमलावती विश्वजीत के पास ही खड़ी थीं। दासी को ऐसे घबराता देख कमलावती बोलीं - "क्या हुआ? ऐसे घबरा क्यों हैं आप?? "
दासी अपना सर झुकाये बोली - "रानी सा, वो...कुँवर सा... के कमरे में.... वो... "
कमलावती सख्त आवाज में बोलीं - "अपनी बात पूरी करिये, आपको पता है ना अभी महाराज के सामने खड़ी हैं आप। "
दासी - "क्षमा चाहते हैं रानी सा, वो कुँवर सा के कमरे में एक लड़की हैं । "
कमलावती चौंक कर बोलीं - "क्या बकवास कर रही हैं आप, होश में तो हैं? "
दासी - "हम सच कह रहे हैं रानी सा, महादेव की सौगंध "
कमलावती और विश्वजीत कुछ दास- दासियों के साथ ऊपर, कुँवर के कमरे की तरफ बढ़ गए। कमरे का दरवाजा खुला हुआ था, इस बात से बेखबर चांदनी अब भी रो रही थी। विश्वजीत, कमलावती और दास दासियाँ कमरे में पहुंचे। सामने का नज़ारा देख विश्वजीत और कमलावती दोनों दंग थे, अपने बेटे के कमरे में किसी लड़की को देख दोनों के होश उड़ गए।
चांदनी अभी भी सिसक रही थी। तभी उसके कानों में महाराज की भारी भरकम सख्त आवाज सुनाई दी - "कौन हो तुम और यहां, हमारे बेटे के कमरे में क्या कर रही हो? "
कमरे में प्रशांत के अलावा किसी और की आवाज सुन चांदनी के होश उड़ गए। उसने जब पलट कर देखा तो पीछे महाराज और महारानी खड़े थे। चांदनी कांपने लगी। कांपते हुए वो खड़ी हुई। कुछ भी बोलने की हिम्मत उसमे नही थी।
विश्वजीत फिर से थोड़ी सख्ती से बोले - "सुनाई नही दिया आपको? हमने पूछा कौन हैं आप? "
चांदनी अब भी घबराई सी खड़ी थी। वहां खड़े एक दास ने चांदनी को पहचान लिया और बोला - "महाराज, ये तो आएशा बेगम के कोठे पर नाचने वाली चांदनी हैं। "
दास की नज़र बगल में खड़ी अपनी बीवी पे गयी जो उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर रही थी। अपनी बीवी को देख दास सकपका गया और मन ही मन बोला - "मुँह खोलने से पहले देख तो लेते कि तलवार सामने खड़ी है। "
दासी ने इशारों इशारों में दास से कहा - "चलो तुम घर पे, आज तो खैर नही तुम्हारी। "
विश्वजीत चांदनी से बोले - "क्या ये जो बोल रहे हैं वो सच है? "
चांदनी ने सर झुकाये हुए हुंकार भरी। विश्वजीत का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उन्होंने चिल्ला कर दरबान को बुलाया और बोले - "बंदी बना लीजिये इन्हें "
चांदनी को बेड़ियां पहना कर निचे ले जाया गया। पुरे राज्य में ये बात आग की तरह फ़ैल गयी कि चांदनी को महाराज ने गिरफ्तार करवा लिया है। ये बात आएशा बेगम और माया तक भी पहुँच गयी। दोनों एक तरफ खुश थे कि चांदनी मिल गयी वहीं दूसरी तरफ उसे फिरसे कोठे पर कैसे लाया जाये इस वजह परेशान थे।
प्रशांत और उसके दोस्त, सारी बातों से बेखबर, नशे में धुत्त पड़े हुए थे।

चांदनी को विश्वजीत के आदेश पर बंदी बना लिया गया था। विश्वजीत ने कुछ फैसला करने से पहले एक बार प्रशांत से बात करना चाहते थे इसलिए उन्होंने चांदनी को एक कमरे में बंदी बना दिया।
प्रशांत को किसी बात की कोई खबर नही थी। वो तो बस नशे में धुत्त अपने दोस्तों के साथ मौज कर रहा था। आएशा बेगम को ये बात पता चली तो उन्होंने अपने आदमियों से गाड़ी निकालने को कहा। माया और आएशा बेगम, दोनों महल की तरफ चल पड़े।
चांदनी कमरे में बैठी अपने बंधे हाथों को देख रही थी। उसे अपने पकडे जाने से ज्यादा चिंता प्रशांत की थी। अपने बारे में ना सोचकर प्रशांत ने उसकी मदद करनी चाही और आज वो खुद फस गया चांदनी की वजह से। यही सब सोचते हुए चांदनी फुट फुट कर रोने लगी।
आएशा बेगम और माया दोनों राजमहल पहुंचे। महाराज अपने मंत्रियों के साथ हॉल में बैठे किसी बात को लेकर मंथन कर रहे थे। महल के बाहर खड़े दरबान और दास ने जब आएशा बेगम और माया को वहां देखा तो सबकी भौएं तन गयीं। सबको पता था बेगम आएशा यहां किसलिए आयीं हैं। बाहर खडे दरबान ने दोनों को रोका एयर भागता हुआ अंदर पहुंचा।
महाराज अभी बात कर रहे थे, ऐसे में उन्हें टोकना दरबान को उचित नही लगा और वो वहीं खड़ा हो गया। लगभग पंद्रह मिनट हो चुके थे लेकिन महाराज अभी भी चर्चा कर रहे थे किसी विषय पर आएशा बेगम और माया से जब और इंतज़ार नही हुआ तो वो दनदनाते हुए अंदर पहुँच गयीं। दरबान ने उन्हें रोकने की पूरी कोशिश की लेकिन असफल रहा।
महाराज के साथ बैठे सभी मंत्री की नज़र आएशा बेगम और माया पर गयीं। पहचानते तो सब थे, लेकिन किसी ने अपने चेहरे पर झलकने नही दिया। आखिर रातें उनकी कोठे पर ही तो रंगीन होती थी।
महाराज ने दोनों को देखा और बोले - "कौन हैं आप लोग? और ऐसे कैसे बिना अनुमति अंदर आ गए। "
बेगम आएशा थोडा झुककर बोली - "आदाब महाराज, हम बेगम आएशा हैं। क्षमा चाहते हैं ऐसे बिना आपकी अनुमति के आ गए लेकिन महाराज हमारा आपसे मिलना बहुत जरूरी था। "
महाराज अपनी जगह से खड़े हो गए। उन्हें देख वहां मौजूद सारे मंत्री गण भी खड़े हो गए। विश्वजीत थोड़ी सख्त आवाज में बोलें - "हिम्मत कैसे हुई आपकी हमारे महल में कदम रखने की? , निकल जाइये यहां से। "
आएशा बेगम सर झुकाकर बोली - "क्षमा चाहते हैं महाराज लेकिन हम यहां अपनी अमानत, चांदनी को लेने आये हैं। "
महाराज चांदनी का नाम सुन थोडा शांत हुए और वहां मौजूद मंत्रीगण से बोले - "आप सब से हम बाद में मुलाकात करते हैं तबतक आप सब इस विषय पर और जानकारी इकठ्ठा करिये। "
सब महाराज को प्रणाम कर वहां से निकल गए। उनसब के जाते हीं महाराज बोले - "आप जानती हैं उन्हें हमारे राज महल में पाया गया है। बिना कार्यवाही किये हम उन्हें नही छोड़ सकते। उनकी हिम्मत कैसे हुई हमारी महल में आने की। "
आएशा बेगम थोडा व्यंग से मुस्कुराते हुए बोली - "लेकिन महाराज, इतनी कड़ी सुरक्षा, इतने सारे पहरेदारों के बिच से वो अंदर आयीं कैसे? और आयीं भी तो आपके बेटे के कमरे में कैसे पहुंची.. ? "
विश्वजीत उसकी बात सुन चौक गएं। उन्हें नही पता था कि आखिर चांदनी के प्रशांत के कमरे में पाये जाने वाली बात बेगम को कैसे पता चली।
उनकी मनोदशा भांपते हुए बेगम बोलीं - "आपको हैरानी हुई कि चांदनी के बारे में इतना सब कैसे जान गए हम। क्या करें महाराज, हमारा काम हीं यही है। अंदर के साथ साथ बाहर भी नज़र रखनी पड़ती है। वैसे आप फिक्र मत करिये, हम ये बात किसी को नही बताएंगे। "
उसकी बात सुन महाराज क्रोधित हो गए और गुस्से में लगभग चीखते हुए बोले - "खामोश...!! ये मत भूलिए कि आप अभी कहाँ हैं और किसके सामने खड़ी हैं। हमे जरा भी वक्त नही लगेगा आपका सर कलम करने में। "
उनकी तेज़ आवाज सुन वहां मौजूद हर कोई डर गया। बेगम आएशा लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोलीं - "क्षमा, क्षमा महाराज। हमारी जबान फिसल गयी। आपका अपमान करने का हमारा कोई इरादा नही था। हमे खबर मिली की चांदनी यहां हैं, कुछ दिन पहले वो हमारे कोठे से भाग गयी थीं तबसे हमारे आदमी उन्हें चारों ओर ढूंढ रहे हैं। हमे खबर मिलते हीं भागते हुए आये हैं यहां। "
महाराज को आएशा बेगम समझा रहीं थीं। विश्वजीत को भी कहीं ना कहीं अपने बेटे की गलती लगी। इसलिए उन्होंने आखिरी चेतावनी देकर चांदनी को उनके हवाले करने का फैसला किया। चांदनी को बंद कमरे से बाहर लाया गया। जब उन्होंने सामने आएशा बेगम और माया को देखा तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। मरना मंजूर था लेकिन फिर से उस दलदल में जाना नही।
आएशा बेगम उसके पास आयीं और दाँत पिसते हुए धीरे से बोली - "बहुत भाग लीं आप, अब और नही। शांति से वापस कोठे पर चलिए, आपकी दुनिया सिर्फ वहीं है, कहीं और नही। समझी आप..! "
चांदनी का हाथ पकडे वो महाराज के पास आयीं उन्हें धन्यवाद कह वापस जाने लगी। बेगम आएशा और माया दोनों के चेहरे पर कुटिल और विजयी मुस्कान थी वहीं चांदनी एक तरह से सदमे में थी। महाराज से कुछ कहना चाहती थी लेकिन हिम्मत नही कर पायी। सारा खेल तो हिम्मत का ही था। आएशा बेगम जबरजस्ती चांदनी को खीचते हुए गाड़ी में बैठाकर अपने साथ कोठे पर ले गयीं।
अब बेगम जरा भी देर नही करना चाहती थीं। उन्होंने डॉक्टर को फ़ोन लगाया लेकिन डॉक्टर किसी काम से शहर से बाहर गए हुए थे, तक़रीबन तीन दिन लगने थे उनको। ये तीन दिन चांदनी और प्रशांत की ज़िंदगी बदल के रख देने वाले थे।
चांदनी को आएशा बेगम के कहने पर एक कमरे में बंद कर दिया। शबनम पे भी नज़रबंदी थी। उसपे सबकी पूरी नज़र थी ताकि वो चांदनी से ना मिल सके। कोठे पर महफ़िल सजनी शुरू हो गयी। माया के आने के बाद कोठे की रौनक और बढ़ गयी थी। दूसरे राज्य से भी अमीर लोग आते थे माया का नृत्य देखने। शाम का वक्त हो चला था। माया ने सबको अपने हुस्न से कायल करना शुरू काट दिया। उसके घुंघरुओं की आवाज पुरे हॉल में गूंजने लगीं। जब चांदनी ने ये आवाज सुनी तो अपनी किस्मत के बारे में सोचने लगी। "कहाँ कल तक इस कोठे पर चांदनी राज करती थी, कहाँ से सारी वाह वाहियां उसपर लुटाई जाती थीं और आज उसकी जगह कोई और है। "
शाम में प्रशांत को होश आया तो वो वापस राजमहल गया। विश्वजीत उसी की इंतज़ार में हॉल में टहल रहे थे। प्रशांत के आते ही वो चिल्ला उठे - "प्रशांत.. इधर आइये। "
उनकी कड़क और गूंजती आवाज सुनकर कमलावती भी बाहर आ गयीं। थी तो एक माँ हीं और आज महाराज के कठघरे में उनका बेटा खड़ा होने वाला था।
प्रशांत हर बात से बेखबर उनके पास पहुंचा और बोला - "जी बाबा सा.. "
विश्वजीत ने प्रशांत के गालों पर एक थप्पड़ मारा। प्रशांत हैरानी से उन्हें देखने लगा। आज पहली बार उसके बाबा सा ने उसपर हाथ उठाया था।
कमलावती थोडा आगे बढ़कर बोलीं - "ऐसा मत करिये साहिब, जवान लड़का है। "
विश्वजीत कमलावती को घूरते हुए गुस्से में बोलें - "आप आज कुछ नही बोलेंगी। हमे जो करना है हमे करने दीजिये। "
कमलावती शांत हो गयीं तो विश्वजीत प्रशांत से बोले - "आपके कमरे में वो कोठे पर नाचने वाली लड़की क्या कर रही थी? "
ये सवाल सुनते हीं प्रशांत के होश उड़ गए। उसने हैरानी से विश्वजीत की तरफ देखा तो विश्वजीत बोले - "हमारे सवालों का जवाब दीजिये कुँवर, वो तवायफ आपके कमरे में क्या कर रही थी? "
प्रशांत अब भी चुप रहा। उसके दिमाग में बस एक ही ख्याल आ रहा था और वो था चांदनी का।
प्रशांत मन में - "अगर बाबा सा को चांदनी के बारे में पता चल गया है इसका मतलब चांदनी खतरे में हैं। "
विश्वजीत एक और थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाये लेकिन कमलावती हाथ जोड़े बिच में खड़ी हो गयीं। विश्वजीत ने अपने हाथ रोक लिए और गुस्से में चीखते हुए बोले - "हमने मना किया है आपको, हट जाइये हमारे बिच से। "
प्रशांत कमलावती को कंधे से पकड़ साइड करता है और विश्वजीत के सामने हाथ जोड़कर कहता है - "हमे क्षमा काट दीजिये बाबा सा लेकिन हमारी मज़बूरी थी इसलिए हमने उनको महल में, अपने कमरे में रखा। "
विश्वजीत - "ऐसी भी क्या मज़बूरी आन पड़ी कि एक राजकुमार को अपने कमरे में किसी तवायफ को रखना पड़ा। "
प्रशांत थोडा नरम भाव से बोला - "बाबा सा वो तवायफ नही है। बस कोठे पर नाचती हैं। हमने उन्हें यहां इसलिए रखा था क्योंकि कोठे पर उनके साथ जुल्म हो रहा था। ( प्रशांत उनको वहां की सारी बातें बताता है)।
विश्वजीत उसकी बातें सुनकर बोलें - "अगर उन्हें दिक्कत थी तो हमारे पास आतीं। गलत सही का निर्णय लेने के लिए हम हैं। आपको इन सब में पड़ने की क्या जरूरत थी? आपने एक बार भी नही सोचा कि ये सब करना क्या एक कुँवर को शोभा देता है? "
प्रशांत - "बाबा सा, वो आपके पास नही आ सकती थी। उन्हें औरों की तरह जबरजस्ती बाँझ बनाया जा रहा था और हम ये किसी भी हाल में नही होने दे सकते थे। "
विश्वजीत - "एक नाचने वाली के लिए इतनी फिक्र सही नही है कुँवर। "
प्रशांत हल्का सा मुस्कुराकर बोला - "हमे फिक्र है उनकी, क्योंकि हम प्रेम करते हैं उनसे। "
प्रशांत की बातें सुन विश्वजीत और कमलावती दोनों हैरानी से प्रशांत को देखने लगे। अगले ही पल गुस्से में विश्वजीत ने प्रशांत को एक और थप्पड़ जड़ दिया और गुस्से में बोले - "क्या होश खो बैठे हैं आप कुँवर? होश भी है आपको, क्या बकवास किये जा रहे हैं आप। ये कैसे भूल गए कि एक राजकुमार किसी तवायफ से प्यार नही कर सकते। "
प्रशांत - "लेकिन हम करते हैं और प्रेम कभी भी दो लोगों के बिच की दूरियों, कमियो को नही देखता। हम प्रेम करते हैं उनसे और हम आपके सामने ये बात पुरे दिल से स्वीकार करते हैं। "
विश्वजीत - "आपका दिमाग खराब हो गया है कुँवर। बेहकी बेहकी बातें करना बंद करिये आप। "
प्रशांत अपने कमरे की ओर जाते हुए बोला - "ये सच्चाई है बाबा सा और हम ठीक हैं। "
प्रशांत अपने कमरे में चले गैर वहीं विश्वजीत धम्म से वहीं सोफे पर बैठ गए। कमलावती रसोईघर में गयी और उनके लिए पानी ले आई। पानी पीकर विश्वजीत बोले - "ये सब क्या हो गया कमलावती? पुरे राज्य में ये बात फ़ैल गयी। इन्हें जरा भी हमारे इज्जत का ख्याल नही आया। महाराज होकर भी हमे शर्मिंदगी महसूस हो रही है। "
प्रशांत अपने कमरे में गया और चारो तरफ चांदनी को देखा लेकिन चांदनी उसे कहीं नज़र नही आई। उस छोटे से कमरे में जाकर देखा लेकिन चांदनी वहां भी नही थी। किसी अनहोनी की आशंका पाकर प्रशांत निचे भागा जहां विश्वजीत और कमलावती थी। प्रशांत उनके पास जाकर बोला - "चांदनी कहाँ हैं माँ सा ? "
उसकी बात सुन विश्वजीत और कमलावती उसकी तरफ देखने लगे। कमलावती प्रशांत से बोली - "उनके कोठे से औरतें आयीं थीं, हमने उन्हें उनके साथ ही भेज दिया। "
प्रशांत ने अपना सर पकड़ लिया। अब इन लोगों से क्या बोले उसे कुछ समझ नही आ रहा था। प्रशांत बाहर की तरफ जाने लगा तभी पीछे से विश्वजीत की आवाज आई - "आप कहीं नही जा सकते कुँवर। हमने आपके बाहर जाने पर पाबंदी लगा दिया है। "
प्रशांत उनकी तरफ बढ़ते हुए बोला - "लेकिन बाबा सा हमारा जाना जरूरी है। "
विश्वजीत उसकी तरफ देखते हुए बोले - "लेकिन वेकिन कुछ नही कुँवर, हमने फैसला कर लिया है। आप कहीं नही जायेंगे। "
विश्वजीत ने आवाज देकर बाहर खड़े सैनिकों को बुलाया और बोले - "आप सब कुँवर पे पूरी नज़र रखेंगे। ध्यान रहे ये कहीं ना जाने पाएं। "
प्रशांत पैर पटकते हुए अपने कमरे में चला गया और टहलने लगा। वो जानता था चांदनी ठीक नही है और अगर वो नही गया तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जायेगा।
प्रशांत जब भी बाहर जाने की कोशिश करता उसे रोक दिया जाता। कोई उसकी परेशानी नही समझ रहा था। उसने खाना पीना छोड़ दिया था लेकिन कमलावती के कसम के चलते एक दो कौर खाना पड़ता था। ऐसे ही तीन दिन बीत गए। प्रशांत ने इसी बिच अनुज से कहकर कुछ शराब की बोतलें और ड्रग्स मंगा लिए थे। अपनी परेशानी कम करने का एक यही रास्ता नज़र आया उन्हें। ये तीन दिन वो नशे में धुत्त पड़े रहते थे अपने कमरे में।
कमलावती उसके लिए बहुत परेशान थीं। विश्वजीत से इस बारे में बात करती लेकिन विश्वजीत भी "जल्द सब ठीक हो जायेगा"कहकर बात टाल दिया करते। लेकिन प्रशांत के परेशान तो वो भी थे। उनके सामने बस एक रास्ता नज़र आरहा था और वो था प्रशांत की शादी का।
विश्वजीत कमलावती से बोले - "हम पडोसी राजा, सत्येंद्र सिंह को प्रस्ताव भेजते हैं, उनकी पुत्री की शादी प्रशांत से करने के लिए। "
अगले दिन विश्वजीत ने राजा सत्येंद्र के राज्य अपना प्रस्ताव भेज दिया। शाम तक उसका जवाब भी आ गया। उन्हें अपनी पुत्री के लिए प्रशांत का रिश्ता मंजूर था। विश्वजीत और कमलावती बहुत खुश हुए। अब उन्हें बात करनी थी प्रशांत से।
विश्वजीत ने प्रशांत को बुलाया और बोले - "हमने आपका रिश्ता पड़ोसी राज्य की राजकुमारी आराधना से तय कर दिया है। उन्हें भी ये रिश्ता मंजूर है। "
अपनी शादी की बात सुनकर प्रशांत हक्का बक्का रह गया। वो विश्वजीत से बोला - "क्षमा चाहते हैं बाबा सा लेकिन हम चांदनी से प्यार करते हैं और उनसे हीं शादी करेंगे। उनके अलावा हम किसी और के बारे में सोच भी नही सकते हैं। "
विश्वजीत उसकी बात सुन गुस्सा हो गए और थोड़े गुस्से में बोले - "होश में रहिये कुँवर, हम उस तवायफ को अपने घर के बहु कभी नही बनने देंगे इसलिए बेहतर है आप उन्हें भूल जाएँ और अपनी आगे की ज़िंदगी पे ध्यान दें। "
प्रशांत - "लेकिन मेरी ज़िंदगी हीं चांदनी हैं। हम किसी और को अपनी ज़िंदगी में नही अपना सकते। "
विश्वजीत चिल्ला उठे और बोले - "तो ठीक है, हमारा फैसला भी सुन लीजिये आप, अगर आपने हमारे कहे अनुसार शादी नही की तो आपको इस राज्य से निकाल दिया जायेगा और हमसे आपका रिश्ता भी खत्म हो जायेगा हमेशा हमेशा के लिए। "
प्रशांत उन्हें समझाते हुए बोला - "बाबा सा आप समझने की कोशिश करिये। हमने पुरे दिल से चांदनी को चाहा है और उन्हें हम नही भूल सकते। हमने खुदको वचन दे रखा है। अगर चांदनी नही तो कोई भी नही..!! "
विश्वजीत प्रशांत से मुँह फेरकर खड़े हो गए और बोले - "हमने आपको अपना आखिरी फैसला सुना दिया है। आगे आपको क्या करना है इसका फैसला आप करिये। "
प्रशांत - "ठीक है बाबा सा, हमने भी बता दिया है आपको। हमारे लिए चांदनी क्या हैं ये आप में से कोई नही समझ सकता। हम आज ही आपका ये महल छोड़कर जा रहे हैं। "
विश्वजीत उसकी तरफ पलटे और हैरानी से उसे देखने लगे। कमलावती के पैर लड़खड़ा गए। वो प्रशांत के पास आयीं और उसके चेहरे को छूकर बोली - "ऐसा ना कहिये कुँवर, आप दोनों की आपसी मतभेद की सजा मुझे क्यों दे रहे हैं। "
प्रशांत उनके दोनों हाथों को थामकर बोला - "माँ सा, आप तो समझती हैं ना हमारा प्रेम। हम कैसे किसी और को चांदनी की जगह दे दें जबकि वो हमारे दिलों दिमाग में इस कदर बस चुकी हैं कि किसी और को उनकी जगह नही दे सकते हम। "
कमलावती कुछ बोलतीं इससे पहले ही विश्वजीत बोले - "क्या ये आपका आखिरी फैसला है कुँवर? "
प्रशांत उनकी तरफ देखकर बोला - "जी बाबा सा। "
विश्वजीत दूसरी तरफ मुड़ गए और अपनी आँखे बंद कर बोले - "तो निकल जाइये हमारे महल से, हमारे राज्य से हमेशा हमेशा के लिए। "
प्रशांत कुछ नही बोला। वो विश्वजीत के पास आया और उनके पैर छूकर कमलावती के पास आकर बोला - "अपना और बाबा सा का ख्याल रखियेगा माँ सा। "
कमलावती उसे रोकते हुए बोली - "ऐसा मत करिये कुँवर, मत जाइये..!! "
विश्वजीत कमलावती से बोले - "जाने दीजिये उन्हें कमलावती। "
कमलावती विश्वजीत से बोली - "महाराज इन्हें रोकिये "
विश्वजीत थोड़े सख्त होकर बोले - "हमने कहा ना, जाने दीजिये इन्हें। "
प्रशांत वहां से निकल गए। उन्हें पता था कि आगे कहाँ जाना है। वो आएशा बेगम के कोठे की तरफ चल पड़े।
प्रशांत राजमहल छोड़ के जा चूका था। कमलावती भी अपने कमरे में जाकर रोने लगी। विश्वजीत को भी बहुत बुरा लग रहा था लेकिन वो चाह कर भी कुछ नही कर सकते थे अब। प्रशांत हवेली से निकलकर सीधे अपने दोस्तों के पास गया। उनसे कुछ शराब की बोतलें, ड्रग्स और थोड़े पैसे लेकर वो अपने दोस्तों के साथ कोठे की तरफ बढ़ गया। कोठे के बाहर आकर वो रुक गया, चारो तरफ पहरे लगे हुए थे। सबकी पहचान करने के बाद ही कोठे में प्रवेश कराया जा रहा था। प्रशांत को मालूम था कि उसे अब कोठे में नही आने दिया जायेगा क्योंकि चांदनी को उसने अपने पास छुपा कर रखा था। अंदर का जायजा लेंने के लिए उसने अनुज को कोठे के अंदर भेजा। अनुज उसके कहने पर अंदर गया। सब लोग आ चुके थे। आएशा बेगम साइड में खड़ी होकर एक दासी से कह रही थीं - "जाओ, चांदनी को देखो । अभी कुछ देर में डॉक्टर आ रही हैं। देखना इस बार कोई होशियारी ना करे। "
अनुज ये सुनकर बाहर आया और प्रशांत को सारी बात बता दी। अब उनके पास दो ही आप्शन थे, या तो डॉक्टर को यहाँ आने से रोके या फिर चांदनी को अपने साथ यहां से ले जाये। लखन ने उसे कुछ आईडिया दिया जिससे प्रशांत खुश हो गया। चारो दोस्त वहां से निकलकर कोठे से थोडा दूर चले गए। कुछ ही दुरी पर उन्हें डॉक्टर और दो नर्स आती दिखाई दी। तीनों पैदल थीं, शायद गाड़ी ख़राब हो गयी थी उनकी। चारों ने मिलकर डॉक्टर और नर्सेज को अगवा कर लिया और अपने अड्डे पर ले गए। प्रशांत, अनुज और लखन तीनों ने अपना भेष बदला और आदर्श को कोठे के बाहर गाड़ी लाने का बोल कोठे में चले गए। आएशा बेगम ने जब तीनों को देखा तो उनके पास आयीं और बोलीं - "आप लोग? आप लोग कौन हैं और डॉक्टर नाज़नीं कहाँ हैं? "
प्रशांत जो की अभी एक फीमेल डॉक्टर बना था, अपनी आवाज बदलकर बोला - "नाजनी मैम को कुछ जरूरी काम आ गए थे, इसलिए उन्होंने हमे भेजा है। हम याशमीन हैं। "
आएशा बेगम ने ज्यादा सवाल जवाब नही किया, वो बस जल्द से जल्द अपना काम करवाना चाहती थीं। दासी से कहकर उन्होंने प्रशांत और दोस्तों को चांदनी के कमरे में भेज दिया। खुद भी जातीं लेकिन अभी माया का नृत्य शुरू होने वाला था और उनका वहां रुकना जरूरी था।
प्रशांत और उसके दोस्त चांदनी के कमरे में पहुंचे। एक कोने में बैठी चांदनी खुदको समेटे हुए थी। बहुत कमजोर लग रही थी। प्रशांत उसके पास गया, सामने डॉक्टर को देख चांदनी डर गयी और पीछे हटने लगी तो प्रशांत बोला - "चांदनी डरिये मत, हम हैं, प्रशांत..! "
प्रशांत की आवाज सुन चांदनी एक पल उसे देखने लगी। अगले ही पल पहचान गयी और उसके गले लग गयी। प्रशांत ने उसे बाँहों में भर लिया और शांत कराता रहा। चांदनी उससे अलग हुई तो प्रशांत बोला - "अब हम यहां नही रुक सकते। आपको हमारे साथ चलना होगा अभी.. आप कुछ जरूरी सामान हमे दीजिये, हम अपने बैग में रख लेते हैं फिर यहां से बहाना बनाकर चले जायेंगे हमेशा हमेशा के लिए। "
चांदनी उसकी बात सुन जल्दी से उठी और अपने कुछ जरूरी सामान प्रशांत के बैग में रख दिए। प्रशांत ने उसे कुछ समझाया फिर सब निकल गए। बाहर आएशा बेगम थीं। उनसब के साथ चांदनी को देख वो उनके पास आयीं और बोली - "चांदनी, कहाँ लेकर जा रहे हैं आप चांदनी को? "
प्रशांत बात सम्भालते हुए बोला - "जी हमे इन्हें अपने साथ हॉस्पिटल लेकर जाना पड़ेगा। यहां करना सम्भव नही है हमारे लिए। कुछ दिक्कतें हैं जो डॉक्टर नाजनी ही सही कर सकती हैं। "
बेगम आएशा - "अच्छा, तो हम बात कर लेते हैं डॉक्टर से.. "
प्रशांत और बाकि सब परेशान हो गए, कहीं उनका भांडा ना फुट जाये क्योंकि अब तक तो डॉक्टर को होश आ गया होगा, जिन्हें उनसब ने मिलकर बंदी बनाया था। प्रशांत ने बात संभालनी चाही और बोला - "आप बात करके समय क्यों जाया कर रही हैं बेगम जान, हमने बात कर ली है उनसे और वो अभी हॉस्पिटल में हैं। हमे जल्द से जल्द निकलना होगा क्योंकि उन्हें कहीं जाना है काम से। "
बेगम देर नही करना चाहती थीं इसलिए उन्हें हामी भरी और उनके साथ दो आदमियों को भेज दिया। सब बाहर आये और कुछ दूर चले। फिर प्रशांत और उसके दोस्तों ने मिलकर उन दो आदमियों को वहां से भगा दिया। चांदनी अब आजाद थीं।
प्रशांत अपने दोस्तों से गले मिला। लखन और अनुज वहीं थे बस आदर्श नही था वहां। प्रशांत वहीं उसका वेट करता रहा। कुछ देर बार एक गाड़ी लेकर आदर्श आया और उससे गले मिलकर हाथों में चाभी पकड़ा दिया। चांदनी प्रशांत से बोली - "आप इनसब से ऐसे क्यों मिल रहे हैं, वापस भी तो आना है आपको। "
प्रशांत अभी कुछ नही बोला। उसने चांदनी से सामान रखने का इशारा किया। चांदनी ने अपना सामान रखा। दोनों गाड़ी में बैठे, प्रशांत ड्राइव करने वाला था। अपने शहर को आखिरी बार देखकर, चांदनी और प्रशांत अपने नए सफर पे निकल गए।





वर्तमान में...
प्रशांत उस लड़के को अपनी कहानी सुनाता रहा। लड़का भी बड़े गौर से सब सुन रहा था। खिड़की के बाहर देखते हुए प्रशांत सब कुछ बताता रहा फिर चुप हो गया।
लड़का कुर्सी पे बैठे हुए बोला - "इसका मतलब सर, आप एक राज्य के राजकुमार हैं, कुँवर हैं। "
प्रशांत उसकी तरफ मुड़ा और बोला - "मैं कुँवर था लेकिन अब नही। अब मैं सिर्फ एक चित्रकार हूँ, पेंटर हूँ.. "
लड़का - "सर आपकी लव स्टोरी तो बहुत कमाल की है लेकिन मैंने आपको हमेशा अकेले देखा है। चांदनी कहीं नज़र नही आयीं आपके साथ। "
प्रशांत हौले से मुस्कुराया और बोला - "क्योंकि कहानी अभी बाकि है मेरे दोस्त..! कुछ खाते हैं फिर उसके बाद आराम से सुनाऊंगा आगे की कहानी.. "
लड़का - "सर अब बिलकुल वेट नही हो रहा। जल्दी से कहानी पूरी करिये, सुस्पेंस बढ़ता जा रहा है। "
उसकी बात सुन प्रशांत हँसने लगा। फ़ोन से उसने खाना आर्डर किया। कुछ देर में खाना आ गया। दोनों ने मिलकर खाना खाया।
लड़का प्रशांत से आगे की कहानी सुनाने के लिए रिक्वेस्ट करने लगा तो प्रशांत ने आगे कहना शुरू किया..........
प्रशांत और चांदनी वहां से निकल गए। कुछ दूर तक दोनों खामोश रहे। इस ख़ामोशी को तोड़ते हुए प्रशांत बोला - "आप ठीक तो है ना चांदनी? "
चांदनी - "जी हम ठीक हैं। "
प्रशांत ने आगे जाकर गाड़ी में पेट्रोल भरवाया और वहां से आगे बढ़ गया। दिन ढल गया था, चारो तरफ अँधेरा हो चूका था। दोनों में से किसी ने कुछ खाया नही था इसलिए प्रशांत ने रास्ते में एक ढाबा देखकर गाड़ी रोक दिया। दोनों उतरे और ढाबे की तरफ बढ़ गए। प्रशांत ने खाना मंगवाया और खुद चांदनी के साथ पास के नल पे हाथ मुँह धोने चला गया। दोनों आये और साथ में खाने लगे। शांति अब भी थी दोनों के बिच। खाना खाकर दोनों गाड़ी में वापस आये। प्रशांत ने ढाबे के पास काफी चहल पहल देखि तो वहीं रूककर आराम करना सही समझा। प्रशांत ने गाड़ी थोड़ी साइड में लगाई और चांदनी को पीछे की सीट पे आराम करने का बोल दिया। चांदनी भी काफी ताकि हुयी थी इसलिए वो आराम से सो गयी। प्रशांत कुछ देर वहीं टहलता रहा। जब चांदनी को सोता देखा तो अपने बैग से शराब की एक बोतल निकाल ली और पिने लगा। उसके आँखों के सामने बार बार विश्वजीत की कही बातें घूम रही थी। शराब के घूंट भरता जा रहा था तबतक जबतक उसके पैर लड़खड़ाने नही लगे।
प्रशांत वहीं खड़ा रहा और आस पास अपनी धुंधली आँखों से देखता रहा। तभी उसे आस पास कोठे से आये आदमी दिखाई दिए। शायद वो उन्हें ढूंढने आये थे। उन आदमियों को देखते ही प्रशांत लड़खड़ाते हुए गाड़ी में बैठ गया और गाड़ी पूरी रफ़्तार से भगाने लगा। नशा सर पे चढ़ चूका था इसलिए सब थोडा धुंधला सा दिखाई दे रहा था। पास की गाड़ी को इतनी रफ़्तार से भागता देख ढाबे पे मौजूद सबकी नज़र उसपर पड़ी। जब कोठे के आदमियों ने देखा तो उन्होंने तुरंत गाड़ी निकाली और पीछे पीछे भगा दिया।
गाडी दाएं बाएं मुड़ते हुए बढ़ती जा रही थी। प्रशांत से सम्भल नही रहा था लेकिन फिर भी वो भगाए जा रहा था। चांदनी भी इतनी हलचल की वजह से उठ गयी। जब उसने प्रशांत से पूछा तो प्रशांत ने आदमियों के पीछे होने की बात बताई। चांदनी ने सीट कस के पकड़ लिया। गाड़ी बुरी तरह हिल रही थी, डगमगा रही थी। प्रशांत की गाड़ी की रफ़्तार इतनी थी कि पीछे पड़े लोग काफी पीछे रह गए। प्रशांत मुड़ मुड़ के उन्हें देख रहा था। जब उसने आखिरी बार पीछे देखा तो कोई नज़र नही आया। वो खुश हुआ लेकिन आगे ध्यान नही दिया। आगे खाई थी। प्रशांत ने जब आगे देखा तो जल्दी से ब्रेक लगाया लेकिन तबतक काफी देर हो चुकी थी। गाड़ी सीधे खाई में गिरी। खाई इतनी गहरी नही थी लेकिन गाड़ी के आगे का हिस्सा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। प्रशांत बहुत बुरी तरह घायल हो गया था और बेहोश भी। चांदनी को भी चोटें आयीं थीं लेकिन पीछे बैठने की वजह से वो काफी हद तक बच गयी थी।
चांदनी ने अपनी आँखे खोली, जब सामने प्रशांत पे नज़र गयी तो चीख पड़ी वो। प्रशांत को जगह जगह चोट आई थी, सर पे काफी गहरा जख्म था और गाड़ी में उसके शरीर का निचला हिस्सा बुरी तरफ फंस चूका था। चांदनी मशक्कत करते हुए बाहर निकली, आगे की गेट खोलने की कोशिश की लेकिन गेट नही खुल रहा था। चांदनी ने ऊपर जाकर मदद मांगने की सोची। वो जैसे तैसे ऊपर आई। कुछ गाड़ियां गुजर रही थीं, चांदनी ने उनसे मदद मांगी लेकिन वो किसी ने उसकी मदद नही कही। चांदनी हिम्मत नही हारी, कुछ देर बाद एक गाडी आकर उसके पास रुकी। कार में एक युवा दंपति बैठे हुए। चांदनी को इस हाल में देख दोनों कार से बाहर आये।
चांदनी दोनों के पास आई और रोते हुए बोली - "हमारी मदद करिये। वो...वो... कुँवर.. हमारा मतलब है प्रशांत जी को बहुत चोटें आयीं हैं.. "
पास खड़ी औरत ने चांदनी को चुप कराया फिर तीनों भागते हुये निचे आये जहां प्रशांत बेहोश था। आदमी ने पास पड़े पत्थर की मदद से गेट खोला और प्रशांत को बाहर निकाला। वो बेहोश था। तीनों ने मिलकर प्रशांत को ऊपर खड़ी कार में बैठाया और हॉस्पिटल की तरफ बढ़ गए। चांदनी ने रोते रोते बुरा हाल कर लिया था। औरत उसे सांत्वना दे रही थी लेकिन चांदनी तो बस रोते हुए कुँवर को देखे जा रही थी। आदमी पूरी स्पीड से कार ड्राइव कर रहा था।
कुछ ही देर में हॉस्पिटल पहुंचे। स्ट्रेचर पे लेटाकर प्रशांत को ऑपरेशन थिएटर में शिफ्ट किया गया। डॉक्टर्स प्रशांत का इलाज करने लगे। वहीं चांदनी बाहर खड़ी प्रशांत के ठीक होने की दुआ मांग रही थी। कुछ ही देर बाद थिएटर से डॉक्टर बाहर आये उस आदमी से बोले - "डॉक्टर शशांक, प्लीज.. "
शशांक डॉक्टर के साथ साइड में चला गया। डॉक्टर उसे कुछ बता रहे थे। शशांक चांदनी के पास आया। परेशानी उसके चेहरे से साफ़ झलक रहा था। चांदनी ने उसे ऐसे देखा तो उसका दिल बैठने लगा। हिम्मत कर वो हकलाते हुए बोली - "क..क्या.. कहा.. डॉक्टर ने..? "
शशांक ने एक बार अपनी वाइफ को देखा फिर चांदनी से बोलना शुरू किया - "पेशेंट को बहुत सी चोटें आयीं हैं जिस वजह से उनके शरीर में कोई हलचल नही है। एक तरह से वो पार्शियली कोमा में चले गए हैं। आँखों में, हाथों में थोड़ी बहुत मूवमेंट होगी लेकिन वो पहले की तरह रेस्पोंड नही कर पाएंगे। "
चांदनी ने जब सुना तो वहीं पड़ी कुर्सी पे धम्म से बैठ गयी। सब शुन्य सा हो गया था। आँखों ने लगातार आंसू बह रहे थे। शशांक ने अपनी वाइफ को इशारा किया तो वो उसके पास बैठ गयी और समझाने लगी। शशांक ने आगे बोला - "ये टेम्पररी है, सही इलाज के साथ वो जल्द ही रिकवर कर जायेंगे। "
चांदनी डबडबाई आँखे लिए शशांक से बोली - "उनकी जान को कोई खतरा तो नही है ना ? "
शशांक उससे थोड़ी दुरी बनाकर बैठते हुए बोला - "भगवान् का शुक्र है, वरना जैसा एक्सीडेंट हुआ था ऐसे में किसी की बचने की उम्मीद बहुत कम होती है। लेकिन वो ठीक हैं। "
चांदनी को थोड़ी राहत हुयी।
शशांक चांदनी से - "आपका घर कहाँ है ? "
चांदनी शशांक की तरफ देखने लगी। वो उसके जवाब का इंतज़ार कर रहा था। चांदनी बोली - "अभी हमारा घर नही है। हम दूसरे शहर जा रहे थे कुछ परेशनियों की वजह से लेकिन रास्ते में उनका एक्सीडेंट हो गया। "
शशांक की पत्नी वहीं पे थी। चांदनी के बगल में बैठते हुए बोली - "अगर आप चाहो तो हमारे साथ रह सकती हो। "
चांदनी थोडा सकुचाते हुए बोली - "लेकिन हम.. "
उसकी बात पूरी होने से पहले ही वो औरत बोली - "जबतक आपके पति ठीक नही हो जाते, तबतक तो रह सकती हो आप हमारे साथ? हमे कोई दिक्कत नही होगी बल्कि हमे तो ख़ुशी होगी। वैसे भी मुझे घर में बोर नही होना पड़ेगा, आल रहोगे तो मन लगा रहेगा। "
चांदनी कुछ पल सोचने लगी। सर पे छत तो चाहिए ही थी और ऐसी हालत में प्रशांत को कहाँ कहाँ लेकर भटकेगी। वापस भेज भी नही सकती अभी इसलिए उसने हामी भर दी।
औरत ने अपना और शशांक का परिचय कराया - "मैं वर्षा हूँ, हाउस वाइफ भी और सोशल वर्कर भी। और ये मेरे पति, शशांक। ये एक डॉक्टर हैं और ये हॉस्पिटल हमारा ही है। "
चांदनी उन्हें देख मुस्कुरा दी और हाथ जोड़कर बोली - "आपका बहुत बहुत शुक्रिया। अगर आज आप दोनों नही होते तो शायद हम सब कुछ खो चुके होते। "
वर्षा उसके हाथो को पकड़ निचे करते हुए बोली - "ये सब मत सोचो। कोई और रिश्ता ना सही लेकिन इंसानियत का रिश्ता तो है ना हमारे बिच। और अगर हम नही करते तो कोई और मदद करता। ये सब मत सोचो अभी और चलो, कुछ देर आराम कर लो। "
शशांक ने कुछ डॉक्टर्स से बात की और अगले दिन प्रशांत को पुरे मशीन के साथ अपने घर में शिफ्ट करवा दिया। प्रशांत को बाहर के गेस्ट हाउस में रखा गया था। चांदनी ने भी ज़िद करके वहीं अपना बिस्तर लगवा लिया ताकि प्रशांत को कुछ जरूरत हो तो वो उसके पास रहे......
शशांक का घर ज्यादा बड़ा तो नही था लेकिन खूबसूरत बहुत था। बाहर में छोटा सा गार्डन, एक हॉल, हॉल से लगकर गेस्ट रूम, गेस्ट रूम के बगल में एक छोटा सा ओपन किचन, सामने डाइनिंग टेबल लगे हुए थे। हॉल की दूसरी तरफ शशांक और वर्षा का रूम। दोनों की शादी को सात साल हो गए थे लेकिन कुछ कंप्लीकेशन की वजह से वर्षा अभी तक कंसीव नही कर पायी थी। हालाँकि कोशिश पूरी थी, अच्छी मेडिसिन, डॉक्टर से रेगुलर चेकअप। शायद कोई चमत्कार की दरकार थी। चांदनी ने पूरा घर देखा, सारा सामान करीने से सजा हुआ था। साफ़ सफाई का पूरा ध्यान रखते थे दोनों।
प्रशांत को कमरे में शिफ्ट किया गया। चांदनी ने भी अपना बिस्तर एक साइड फोल्डिंग पे लगा लिया था। डॉक्टर्स की टीम ने प्रशांत को अच्छे से चेक किया। अभी वो स्टेबल था। चांदनी फ्रेश होने चली गयी। चांदनी का बैग शशांक ने मंगवा लिया था क्योंकि प्रशांत तो घर से खाली हाथ चला था, कुछ पैसों और शराब की बोतलों के अलावा कुछ था नही उसके साथ। चांदनी फ्रेश होकर बाथरूम से निकली तभी गेट नॉक हुआ। चांदनी ने गेट के पास जाकर देखा तो वर्षा खड़ी थी, हाथों में ट्रे लिए।
मुस्कुराते हुए वर्षा ने कहा - "क्या मैं अंदर आ सकती हूँ ? "
चांदनी - "आइये ना, आपको पूछने की जरूरत नही है। "
वर्षा ट्रे लेकर अंदर आते हुए बोली - "बहुत थक गई होंगी आप, तो सोचा आपके लिए चाय और नाश्ता लेती चलूँ..! "
चांदनी - "शुक्रिया, हमे इसकी बहुत जरूरत थी। "
दोनों वहीं रखे सोफे पे बैठ गयी। वर्षा ने चाय का कप चांदनी की तरफ बढ़ाया और बोली - "आप ये "हम"करके क्यों बात करते हो? मेरा मतलब अब तो समय और माहौल सब चेंज हो गया है, और "हम"बोलने पे ऐसा लगता है जैसे हम 19वी शताब्दी में पहुँच गए हैं। "
चांदनी उसकी बात सुन हौले से मुस्कुराई और बोली - "हम मुख्यतः गुजरात के रहने वाले हैं लेकिन फिर कम उम्र में हमे राजस्थान आना पड़ा। वहां सब कुछ पौराणिक है, लोगों का पहनावा, रहन सहन आपको पहले के जमाने की तरह ही मिलेगा। राजाओ का बोल बाला है और ऐसे राज्य में पुरे अदब के साथ पेश आना पड़ता है, इसलिए हम "हम"का इस्तेमाल करते हैं। "
वर्षा चाय की एक घूंट भरते हुए बोली - "ये बात तो बिलकुल सही कही आपने, इस हम में अदब तो है और साथ में एक अलग माहौल बनाता है, जैसे कि (थोड़ी भारी आवाज करते हुए) "हम हैं राजा हरिश्चंद्र ".... "
दोनों ऐसे ही बातें करते हुए चाय पीती रहीं। चांदनी वर्षा के साथ किचन में आ गयी। क्योंकि शाम हो गया था और रात का खाना भी बनाना था। चांदनी ने वर्षा को मना कर दिया और खुद बनाने की ज़िद करने लगी। वर्षा को उसकी ज़िद के आगे झुकना पड़ा। चांदनी ने तीनों के लिए चावल, दाल, रोटी, और सब्जी बनाई।
शशांक बाहर गया था, लौट कर सबने साथ में खाना खाया। चांदनी ने प्लेट किचन में रखे और फिर प्रशांत के पास कुछ देर बैठ गयी। प्रशांत ने अपनी आँखे बंद की हुई थी। चांदनी वहीं बैठी रही और उसे निहारती रही। एक्सीडेंट की वजह से बहुत कमजोर हो गया था। चांदनी को याद आया कि बाहर हॉल में कुछ किताबें रखी हुई है। चांदनी बाहर गयी और एक हिंदी की किताब उठाकर ले आई। उसमे कुछ हिंदी कहानियां थी। चांदनी ने किताब खोला और प्रशांत को कहानी सुनाने लगी।
प्रशांत पूरी तरह से कोमा में नही था इसलिए वो चांदनी की आवाज साफ़ साफ़ सुन सकता था। चांदनी कहानी सुनाती रही और प्रशांत चेहरे पर बिना किसी भाव के सुनता रहा।
कहानी खत्म होते ही, चांदनी ने प्रशांत के बालों में हाथ फेरा और सोने चली गयी।
अगली सुबह चांदनी जल्दी उठ गयी और किचन में जाकर सबके लिए चाय बना कर ले आई। शशांक और वर्षा अपने कमरे में बाहर ही आ रहे थे, चांदनी ने दोनों को चाय दिया। कुछ देर तीनों साथ बैठे। शशांक को आज जल्दी हॉस्पिटल जाना था इसलिए वो चला गया।
नाश्ता करने के बाद चांदनी और वर्षा कुछ देर बाहर बगीचें में टहलने आये। दोनों आपस में बातें करने लगे। चांदनी को बातों बातों में पता चला कि वर्षा की प्रेगनेंसी में कंप्लीकेशन है। चांदनी वापस कमरे में आई। प्रशांत ने अपनी आँखे खोली हुई थी। चांदनी उसके पास गयी और उसे जागता देख बोली - "उठ गए आप? कैसी नींद आई रात में कुँवर सा? "
प्रशांत ने आँखों की पुतलियाँ चांदनी की तरफ घुमाई और पलके झपकाकर अपना जवाब दिया। तभी वर्षा कमरे में आई और बोली - "चांदनी इनका शरीर पानी से पोछ दो और इनके कपडे बदल दो तबतक मैं मार्किट से कुछ सामान लेकर आती हूँ। "
वर्षा ने चांदनी के हाथ में शशांक का एक कुर्ता पैजामा थमाया और वहां से चली गयी साथ में चांदनी को उलझन में डाल गयी। प्रशांत उसकी तरफ देख रहा था मानो कहना चाह रहा हो कि "रहने दीजिये, हम ठीक हैं। "
चांदनी बाथरूम में गयी और छोटे वाले बाल्टी में पानी भरकर ले आई। तौलिये को बाल्टी में डुबो दिया ताकि पानी अच्छे से सोख ले तबतक। हिचकिचाते हुए वो प्रशांत की तरफ बढ़ी और हकलाती हुई ज़बान में बोली - "वो.. हमे... मतलब आपका शरीर...!! "
चांदनी बोल नही पा रही थी। प्रशांत ने कुर्ता पहना हुआ था। चांदनी एक बार फिर हिम्मत कर बोली - "हमे आपका कुरता उतारना पड़ेगा तभी अच्छे से.... "
प्रशांत को उसकी हालत देख हँसी भी आ रही थी और शर्म भी। चांदनी ने कांपते हाथों से प्रशांत के कुर्ते का बटन खोलने लगी। अपनी नज़र दूसरी तरफ घुमाई हुई थी उसने पर प्रशांत की नज़र चांदनी पे थी। चांदनी ने प्रशांत का शरीर पोछा और उसे कपडे पहना कर बाहर आ गयी। प्रशांत को पसीने आ गए थे साथ ही चांदनी को भी। कुछ देर बाद खुदको सामान्य कर चांदनी कमरे में गयी तो उसकी नज़र प्रशांत के चेहरे पे गयी। पसीनें की कुछ बुँदे उसके चेहरे पर उभर आई थी। चांदनी ने तौलिये से उसका चेहरा पोछा और पंखा चलाकर बाहर चली गयी।
दिन ऐसे ही गुज़रने लगा। चांदनी प्रशांत को हर रात कहानियां सुनाती, उसका पूरा पूरा ख्याल रखती जिसकी वजह से प्रशांत के शरीर में अब थोड़ी बहुत हलचल शुरू हो गयी थी। अपने सर को अगल बगल घुमा सकता था वो साथ ही हाथों में थोड़ी थोड़ी मूवमेंट होने लगी थी। शशांक ने प्रशांत को देखते हुए कहा - "अगर ऐसे ही इनका ख्याल रखा गया तो ये जल्द ही ठीक हो जायेंगे। "
शशांक की बात सुन चांदनी बहुत खुश हुई। अब और लगन से साथ प्रशांत का ख्याल रखती। हल्का फुल्का बोल भी लिया करता था प्रशांत।
एक दिन शशांक ने प्रशांत के लिए व्हील चेयर लाया। चांदनी की मदद से उसे व्हीलचेयर पे बैठाकर उसे बगीचे तक ले गया। आज कितने दिनों बाद प्रशांत बाहर, खुली हवा में आया था। आँखे बंद कर वो लंबी लंबी साँसे लेने लगा। बगीचा खूबसूरत था ही, चांदनी उसे पूरा बगीचा घुमाने लगी। प्रशांत के चेहरे पर एक अलग सुकून था, एक अलग शांति थी। दोनों को यहां आये डेढ़ महीने हो चुके थे। लेकिन कभी भी उन्हें ऐसा नही लगा कि वो किसी पराये घर में रह रहे हैं। शशांक और वर्षा अब उन्हें परिवार का एक सदस्य मानने लगे थे।
दो दिन बाद....
प्रशांत कमरे में बैठा एक किताब पढ़ रहा था तभी चांदनी कमरे में आई। उसके हाथ में एक स्केचबूक और साथ में कुछ कलर्स और पेंसिल वगैरह थे। वो प्रशांत के पास आई और उसकी तरफ सामान बढ़ाते हुए बोली - "लीजिये कुँवर सा, ये हम आपके लिए लाये हैं। "
प्रशांत ने जब हाथों में कलर्स देखे तो उसके चेहरे पर एक लंबी सी स्माइल आ गयी। बहुत मिस किया था उसने इन सब को। चांदनी के हाथों से सारा सामान लेकर देखने लगा लेकिन उसे पेंट ब्रश कहीं नज़र नही आया।
प्रशांत चांदनी की तरफ देखते हुए बोला - "लेकिन इसमें ब्रश तो है ही नही.. "
चांदनी ने अपने सर पे हाथ रख लिया और बोली - "हम ब्रश लाना तो भूल ही गए। हमारे दिमाग में एक बार भी नही आया। "
तभी कमरे में शशांक और वर्षा एक साथ आये। शशांक ने सुन लिया था इसलिए बोला - "कोई बात नही चांदनी, मेरे पास एक ब्रश है। "
प्रशांत शशांक की तरफ देखते हुए बोला - "आपको भी चित्रकारी का शौक है। "
शशांक सोफे पर बैठते हुए बोला - "हाँ, समय बिताने के लिए कर लिया करता था पेंटिंग लेकिन समय के साथ सब पीछे छूट गया। वैसे ऊपर के कमरे में ईजल स्टैंड और कैनवास पैनलस् हैं। मैं आपके कमरे में लगवा देता हूँ..!! "
प्रशांत खुश हो गया। इतने दिनों में आज पहली बार इतनी ख़ुशी उसके चेहरे पर सबने देखि थी।
चांदनी और वर्षा की मदद से शशांक ने ईजल स्टैंड और कैनवास पैनल्स प्रशांत के कमरे में रखवा दिया। साथ ही प्रशांत के हाथों में ब्रश भी थमा दिया। प्रशांत खुदको रोक नही पाया और व्हीलचेयर को ईजल स्टैंड के पास लगाकर पेंटिंग करना शुरू किया। उसे इतना मग्न देखकर सब बहुत खुश थे और उसे किसी तरह का डिस्टर्बेंस ना हो इसलिए सब बाहर हाल में आकर बैठ गए।
चांदनी ने अपने और प्रशांत के बारे में सब कुछ बता दिया था दोनों को और उनके पास्ट से इन्हें कोई प्रॉब्लम नही था। वर्षा किचन में जाने लगी चाय बनाने के लिए लेकिन तभी उसे चक्कर आया। गिरने को हुई उससे पहले ही शशांक ने उसे थाम लिया और बोला - "तुम ठीक तो हो ना वर्षा? "
वर्षा ठीक है खड़े होते हुए बोली - "मैं ठीक हूँ, बस थोडा चक्कर सा आया। "
चांदनी वर्षा के पास आई और बोली - "आप आराम करिये, हम चाय बना लाते हैं सबके लिए। "
चांदनी चाय बनाने किचन में चली गयी और वर्षा शशांक के पास बैठ गयी। उसे कमजोरी महसूस हो रही थी। इधर प्रशांत सब से बेखबर, अपने रंगों से खेल रहा था। कुछ ही देर में चांदनी चार कप चाय बनाकर ले आई। दो कप शशांक और वर्षा को देकर प्रशांत के कमरे में जाने लगी। चांदनी ने दरवाजा खटखटाया तो प्रशांत ने उसे अंदर आने को कहा। हाथ में दो कप चाय पकडे वो कमरे में दाखिल हुयी। ईजल स्टैंड की पीठ चांदनी की तरफ थी इसलिए वो पेंटिंग नही देख सकती थी। चांदनी प्रशांत के थोडा पास आई और बोली - "हम चाय लाये थे कुँवर सा आपके लिए। "
प्रशांत कैनवास पे अपने हाथों से रंग लगाते हुए बोला - "हम्म, रख दीजिये हम अभी पी लेंगे। "
चांदनी ने प्रशांत के पास रखी टेबल पे चाय रखा और खुद कमरे की खिड़की के पास आगयी। चाय का एक घुट लेते हुए चांदनी प्रशांत से बोली - "हमे यहां रुके डेढ़ महीने हो गए हैं कुँवर सा, और आप भी पिछले डेढ़ महीने से यहीं है। हम महल में महाराज और महारानी के पास खबर भी नही भिजवा पाये। उन्हें बेहद चिंता हो रही होगी आपकी। "
कैनवास पे रंग भरते प्रशांत के हाथ रुक गए। चांदनी प्रशांत की तरफ पलटी तो वो बाथरूम की तरफ जा रहा था। कुछ देर में अपने हाथों को धोकर वो बाहर आया और टेबल पे रखी चाय की कप उठाकर चांदनी के पास आया। चांदनी खड़ी थी और प्रशांत अपने व्हीलचेयर पे बैठा था। एक घुट चाय पीकर प्रशांत बोला - "हमने महल छोड़ दिया है हमेशा हमेशा के लिए। "
चांदनी हैरान भाव से प्रशांत की तरफ देखने लगी मानो उसे भरोसा नही हो रहा जो उसने सुना।
प्रशांत - "हमने महल उसी दिन छोड़ दिया था जिस दिन हम आपको कोठे से आजाद कराने आये थे। बाबा सा ने हमसे कहा कि हम आपको भूलकर किसी और से विवाह कर लें जो हमसे कभी नही होगा। हमारे पास आखिरी रास्ता था, महल छोड़ने का। "
चांदनी हक्की बक्की सी सुन रही थी। उसने ये कभी नही सोचा था कि प्रशांत उसके लिए अपना सब कुछ छोड़ कर चला आएगा। चांदनी प्रशांत की तरफ देखते हुए बोली - "लेकिन कुँवर सा, आपने ये सब क्यों किया? क्या जरूरत थी? आपने अपना परिवार, अपना राज्य सब छोड़ दिया वो भी मेरे लिए जबकि आप जानते हैं हमारे दिल में आपके लिए कोई भावना नही है। "
प्रशांत ने चाय खत्म की और कप को खिड़की पर ही रख दिया। उसने चांदनी की तरफ एक नज़र देखा फिर खिड़की से बाहर देखते हुए बोला - "चांदनी अब हम कुँवर नही रहे, इसलिए हमे कुँवर मत बोलिये। हमने आपको सबकुछ बता दिया है चांदनी और यकीन मानिये, हम इस बारे में अब कोई बात नही करना चाहते है। उम्मीद है आप समझेंगी। "
प्रशांत वहां से बाहर की तरफ निकल गया। शशांक और वर्षा वहीं हॉल में बैठे थे। प्रशांत को बाहर आता देख वर्षा बोली - "आपकी पेंटिंग पूरी हो गयी क्या ? "
प्रशांत रुक गया और उन दोनों की तरफ देखते हुए बोला - "जी "
शशांक और वर्षा प्रशांत की तरफ बढ़े और बोले - "तो चलिए फिर, दिखाई हमे। "
प्रशांत दोनों को अपने साथ कमरे में ले गया। चांदनी पहले से मौजूद थी वहां। प्रशांत ईजल स्टैंड के पास गया और उसको तीनों की तरफ घुमा दिया। तीनों की आँखे फ़टी की फ़टी रह गयी। प्रशांत ने अपनी हवेली को हूबहू उतार दिया था। शशांक और वर्षा ने शायद ही कभी इतनी अच्छी पेंटिंग देखि होगी। चांदनी भी बड़े गौर से पेंटिंग देख रही थी। और मन ही मन बोली - "इन्होंने तो हूबहू महल हमारे सामने ला दिया। "
शशांक पेंटिंग के पास आया और उसे देखते हुए बोला - "प्रशांत, आपके हाथों में जादू है। हमने आज तक ऐसी कारीगरी वो भी ब्रश से, नही देखि। "
वर्षा ने भी प्रशांत की खूब तारीफ की। शशांक ने अपना फ़ोन निकाला और किसी को फ़ोन कर शाम तक आने को कहा।
शशांक प्रशांत की तरफ मुड़ते हुए बोला - "आज शाम में मेरे एक दोस्त आ रहे हैं। उन्हें पेंटिंग्स का बहुत शौक है साथ ही वो इन्हें इंडियन और फॉरेन कस्टमर को भी बेचते हैं। अगर आप चाहें तो अपनी पेंटिंग उन्हें बेच सकते हो आप। "
प्रशांत के चेहरे पर एक रौनक आ गयी। पैसे थे नही और इतने दिनों से किसी और के घर में रहने में अच्छा भी नही लग रहा था इसलिए प्रशांत मान गया।
चारों कमरे से बाहर आये। तभी वर्षा को उल्टी जैसा मन हुआ। मुँह पर हाथ रख वो अपने कमरे की तरफ भाग गयी। शशांक और चांदनी भी उसके पीछे भागे। प्रशांत व्हीलचेयर पे था इसलिए वो वहीं रूक गया और चिंता के भाव लिए वर्षा के कमरे की तरफ देखने लगा।
वर्षा बाथरूम से बाहर आई। शशांक और चांदनी वहीं खड़े थे। शशांक वर्षा के पास आया और बोला - "तुम ठीक तो हो ना वर्षा ? "
लेकिन वर्षा ने कोई जवाब नही दिया और कबर्ड की तरफ बढ़ गयी। कबर्ड से प्रेग्नेंसी किट निकालकर वो बाथरूम में गयी। शशांक बेचैनी से बाहर घूम रहा था। करीब पाँच मिनट बाद वर्षा बाहर निकली और भरी आँखों से शशांक की तरफ देखने लगी। शशांक उसके पास आया और उसके गालों को छूते हुए बोला - "क्या हुआ वर्षा ? "
वर्षा ने प्रेगनेंसी किट आगे किया जिसमे पॉजिटिव रिजल्ट था। किट देखते ही शशांक ने वर्षा को अपनी बाँहों में भर लिया। चांदनी को लगा अभी दोनों को अकेला छोड़ देना चाहिए इसलिए वो वहां से निकल गयी। शशांक ने ना जाने कितनी बार वर्षा के चेहरे को चूम लिया था। बहुत खुश थे दोनों।
वर्षा और शशांक बाहर आये। चांदनी प्रशांत के पास खड़ी थी। चांदनी वर्षा के पास आई और बोली - "आप ठीक तो हैं ना? "
वर्षा ने अपना सर हाँ में हिलाया। चेहरा ख़ुशी से खिल गया था। वर्षा ने चांदनी से जब बताया तो चांदनी ने ख़ुशी से वर्षा को गले लगा लिया। फिर शशांक को बधाई दी। प्रशांत ने भी दोनों को बधाइयाँ दी। चांदनी किचन में गयी और वहां से मिठाई लाकर सबका मुँह मीठा कराया।
वर्षा मिठाई का एक टुकड़ा लेकर चांदनी की तरफ बढ़ाते हुए बोली - "आप दोनों जब से हमारे घर आये हैं, सब कुछ बदल गया है। आपदोनो के कदम बहुत शुभ हैं हमारे लिए। "
शाम में शशांक के कुछ दोस्त उसके घर आये जिन्हें उसने बुलाया था प्रशांत की पेंटिंग दिखाने के लिए। चार लोग थे। सब सोफे पर बैठे शशांक के बात कर रहे थे। प्रशांत भी उनके पास ही था।
अमित ने शशांक से कहा - "सिर्फ तारीफ ही करते रहोगे या पेंटिंग दिखाओगे भी ? "
शशांक - "अरे चलो ना। "
शशांक सबको प्रशांत के कमरे में ले गया जहां उन्होंने प्रशांत की बनाई पेंटिंग देखि। सबके मुँह खुले के खुले रह गए।
वहां मौजूद सभी लोग में से प्रणय बोला - "सचमे, जितनी तारीफ तुमने की है शशांक, इस पेंटिंग को देखने के बाद वो भी कम लग रही है। प्रशांत, आपने बड़ी बारीकी से इस चित्र को पेश किया है। "
उनमे खड़े एक आदमी ने अपने कैमरे से पेंटिंग की फ़ोटो ली और बोला - "ये पेंटिंग तो लाखों में बिकेगी और देखिएगा पेंटर साहब, इस इकलौते पेंटिंग के लिए लोगों की लाइन लगने वाली है। "
सब नाश्ता कर वहां से चले गए। शशांक ने प्रशांत को आश्वस्त किया कि सब ठीक होगा। अगले दिन अमित का फ़ोन आया शशांक के पास।
अमित - "बधाई हो, एक ग्राहक को प्रशांत की बनाई पेंटिंग बहुत पसंद आई और वो उसे खरीदना चाहते हैं। तुम समय बता दो मैं उन्हें ऑफिस में बुला लेता हूँ। वहीं तुम और प्रशांत पेंटिंग के साथ आ जाना। "
शशांक - "ये तो बहुत अच्छी बात है अमित। आज शाम की मीटिंग फिक्स कर दो। हम तुम्हारे ऑफिस आ जायेंगे। "
"ठीक है "बोल अमित ने फ़ोन रख दिया। शशांक प्रशांत के पास गया और शाम में पेंटिंग के साथ अमित के ऑफिस चलने की बात बताई तो प्रशांत तैयार हो गया।
शाम में दोनों पेंटिंग लेकर अमित के ऑफिस पहुंचे। वहां एक आदमी पहले से बैठा हुआ था। दोनों ने उन्हें अपना परिचय दिया और बैठ गए। उस आदमी ने पेंटिंग देखि और प्रशांत की तरफ मुखातिब होते हुए बोले - "आपके हाथों में सचमुच जादू है। मैं ये पेंटिंग के लिए आपको पुरे डेढ़ लाख देने को तैयार हूँ। "
कुछ देर बाद, उस आदमी ने प्रशांत की तरफ ढाई लाख का चेक बढ़ाया और पेंटिंग लेकर चले गए। अमित ने प्रशांत को बधाई दी साथ हीं और पेंटिंग्स बनाने को कहा। प्रशांत ने उसे कमिशन की रकम दी और धन्यवाद बोलकर शशांक के साथ चला आया। घर आकर वर्षा ने सबका मुँह मीठा कराया। प्रशांत ने चेक शशांक की तरफ बढ़ाते हुए बोला - "आपने हमारी इतनी मदद की। उस वक्त साथ दिया जब हमे सबसे ज्यादा जरूरत थी। अगर आपदोनो नही होते तो शायद हम जिंदा नही होते। ये देकर हम आपके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाना या अपमान नही करना चाहते, अपितु ये एक छोटा सा योगदान है हमारा। "
शशांक ने प्रशांत के हाथ को दूर करते हुए बोला - "बड़े भाई को पैसे देंगे अब आप। "
प्रशांत की आँखों में आँसू आ गए। शशांक ने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया। प्रशांत मन ही मन सोचा - "अगर शशांक जी की जगह हमारे भाई सा होते तो आज वो हमें इसी तरह गले लगाते। "
अपने भाई सा को याद कर उसकी आँखे नम हो चली। सबने मिलकर सेलिब्रेट किया। प्रशांत पहली बार अपने राज महाराजाओं वाले स्टाइल को छोड़ एक नार्मल शहरी इंसान की तरह सेलिब्रेट कर रहा था। वर्षा ने केक बनाया था जिसे सबने मिलकर कट किया और खाया। खाना खाने के बाद प्रशांत ने चांदनी से बगीचे में उसे छोड़ने को कहा तो चांदनी उसके साथ बाहर आगयी। मौसम सुहावना था। प्रशांत ने चांदनी को भी बैठने को कहा तो चांदनी अंदर से एक कुर्सी ले आई और बैठ गयी। प्रशांत उसे गौर से देख रहा था। चेहरे पर एक अलग नूर, ख़ुशी थी चांदनी के चेहरे पर। "आजादी का नूर"।
चांदनी ने जब प्रशांत और अपने ओर देखता पाया तो पूछ बैठी - "क्या हुआ? क्या देख रहे हैं आप कुँवर सा ? "
प्रशांत झेंप गया और सामने की तरफ देखते हुए बोला - "देख रहे हैं, आप कितनी खुश हैं यहां। एक आजाद पंछी की तरह रौनक है आपके चेहरे पर। "
चांदनी - "सच कहा आपने। हम यहां एक अलग सुकून महसूस कर रहे हैं यहां। खुला खुला सा वर्ना वहां हम एक कैदी की तरह ज़िंदगी जी रहे थे। लोगों को अपनी अदाओं से लुभाना बस इतना ही काम रह गया था हमारा। हम क्या हैं, क्यों है? इसका कोई अस्तित्व नही था। "
प्रशांत चांदनी के चेहरे को गौर से देखते हुए बोला - "हम आपकी पीड़ा का अंदाजा भी नही लगा सकते चांदनी लेकिन एक बात हमारे जहन में कौंध रही है और वो ये कि आप आएशा बेगम के कोठे तक पहुंची कैसे ? "
चांदनी ने उसे एक नज़र देखा फिर बोलना शुरू किया - "हम राजस्थान के एक छोटे से गाँव से हैं। घर में तीन बड़ी बहनें और दो छोटे भाई बहन थे। घर की आर्थिक स्थिति कभी ठीक नही रही। अब्बू के सर पर बोझ बढ़ता चला गया। मेरी दो बड़ी बहनों की शादी हो गयी लेकिन दहेज़ की वजह से हालात बद से बदत्तर होते चले गए। फिर एक दिन हमारी फूफी (बुआ) आयीं। उन्होंने हमारी आर्थिक हालत ठीक करने के लिए हमे गोद लेना चाहा। घर में सबसे सुंदर होने की वजह से वो हमे बहुत पहले से पसंद करती थी। अब्बू और अम्मी को समझा बुझा कर और उनके हाथों में पैसे देकर वो हमे अपने साथ ले गयीं। हम फूफी के घर रहने लगे। घर के काम कर दिया करते हम। फूफू के कुछ दोस्तों का आना जाना था वहां पर और किसी ने फूफू से आएशा बेगम के कोठे की बात की तो फूफू हमे बेचने को तैयार हो गए। फूफी इसके खिलाफ थीं लेकिन फूफू के आगे उनकी एक ना चली और वो हमे आएशा बेगम के कोठे पर बेच आये। कोठे पर लगे सख्त नियम और पहरे में हम कैद होकर रह गए। "
प्रशांत उसकी बात सुन आगे बोला - "और जिनसे आप प्यार करती हैं वो ? "
चांदनी - "युसूफ नाम हैं उनका। हमारी मुलाकात उनसे हमारे फूफी के घर हुई थी। वहीं पास के घर में रहते थे और उस समय वो पढाई करते थे। हमदोनो एकदूसरे को पसंद करते थे लेकिन कभी कहने की हिम्मत नही हुई। जब हमे फूफू अपने साथ ले जाने लगे उसके एक दिन पहले उन्होंने हमसे अपने दिल की बात कही। उस दिन हमदोनो ने कसम खाई थी कि हमेशा एक दूसरे के रहेंगे। हमे पता है आज भी वो हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे। "
प्रशांत कुछ नही बोला। अंदर ही अंदर कुछ टूटने का महसूस हुआ। हर बार उसे चांदनी से प्यार होता और हर बार दिल टूट भी जाता लेकिन कमबख्त दिल है की मानता नही। दोनों वहीं बैठे बातें करते रहे। समय ज्यादा होने पर कमरे में चले आये। चांदनी अपने बिस्तर पर सो गयी लेकिन प्रशांत की आँखों में नींद नही थी। आज की सारी घटनाएं उसके दिमाग में घूम रही थी।
अगली सुबह प्रशांत जल्दी उठ गया और अपने कैनवास और रंगो को लेकर बाहर गार्डन में चला गया। चांदनी को याद कर उसने एक लड़की की पेंटिंग बनाई जिसके चारों तरफ लोग बैठे हुए थे और वो पैरों में बेड़ियाँ पहन नाच रही थी। आँखों के निचे और गालों पर काजल के गहरे निशान थे जो ये दर्शा रहे थे कि वो कितना रोई है। सुबह के 6 बज गए लेकिन प्रशांत अभी भी अपने रंगो के साथ खेल रहा था। वर्षा किसी काम से किचन की तरफ जा रही थी तभी उसे बाहर का गेट खुला हुआ देखा। गेट बंद करने जब वो बाहर आई तो प्रशांत को देख रुक। उसे इतने मग्न देख वर्षा उसे पास चली गयी।
प्रशांत इन सब से बेखबर पेंटिंग बनाने में लीन था। वर्षा ने जब पेंटिंग देखा तो मुस्कुरा उठी और धीरे से बोली - "बहुत चाहते हैं ना आप उसे ? "
प्रशांत के हाथ रुक गए। उसने पीछे पलट कर देखा तो वर्षा खड़ी थी। प्रशांत उसकी तरफ देखते हुए बोला - "इससे क्या फर्क पड़ता है। सच्चाई तो आप जानती हैं। "
वर्षा एक कुर्सी ले आई और उसके बगल में लगाते हुए बोली - "हाँ जानती हूँ सच, लेकिन अब उसका कोई मतलब नही रह गया। आपने अपना सब कुछ उसके लिए छोड़ा और वो पुरे मन से आपकी सेवा कर रही हैं। कुछ तो बात होगी ना ? "
प्रशांत दोबारा से पेंटिंग करते हुए बोला - "वर्षा जी, अब कोई उम्मीद नही है। वो किसी और से प्यार करती हैं और हमे कभी नही अपनाएंगी। "
वर्षा - "मैं बात करके देखती हूँ चांदनी से, शायद कुछ बात बने। "
प्रशांत उसकी तरफ देखते हुए बोला - "जबरदस्ती का रिश्ता हम नही चाहते। "
वर्षा कुर्सी से उठ जाती है और घर में जाते हुए बोलती है - "कोशिश करने में क्या हर्ज़ है कुँवर सा। "
प्रशांत के चेहरे पर एक मुस्कान तैर जाती है।
प्रशांत ने पेंटिंग बनाकर अपने कमरे में रख दी। सुबह सब नाश्ते पर एक साथ बैठे थे। शशांक प्रशांत से बोला - "वर्षा बता रही थी कि आपने एक और पेंटिंग बनाई है प्रशांत ? "
प्रशांत उसकी तरफ देखते हुए बोला - "जी "
शशांक - "तो मैं अमित से बात करूँ ? "
प्रशांत - "जैसा आपको ठीक लगे। "
शशांक - "एक काम करते हैं प्रशांत। आप और पेंटिंग्स बनाइये फिर एक एग्जीबिशन रखते हैं जिसमे देश विदेश के बड़े लोग आपकी पेंटिंग पसंद भी करेंगे और खरीदेंगे भी। "
वर्षा - "लेकिन शशांक, ये जल्दबाज़ी नही होगी ? आय मीन अभी थोडा स्टेबल होने चाहिए। एक बार प्रशांत की पेंटिंग्स फेमस हो गई तो एग्जीबिशन सक्सेसफुल हो जायेगी। "
शशांक - "हम्म, यू आर राईट ! मैं अमित से बात करता हूँ इस नई पेंटिंग के बारे में और लगे हाथ एग्जीबिशन के बारे में डिस्कस कर लूंगा। उसे ज्यादा आईडिया है इस बारे में और अगर भगवान ने साथ दिया तो ये एग्जीबिशन वही ऑर्गनॉइज़ कर देगा। "
शाम में शशांक प्रशांत को अपने साथ अमित के ऑफिस लेकर गया। वहां उससे एग्जीबिशन को लेकर चर्चा हुई तो अमित मान गया। इसमें उसका भी बहुत फायदा होने वाला था।
अमित प्रशांत से बोला - "प्रशांत, आप बस बढ़िया बढ़िया पेंटिंग बनाओ। बाकि का काम हम देख लेंगे। मैं ऐड दे देता हूँ जिससे अच्छा प्रमोशन हो जायेगा एग्जीबिशन का। "
शशांक - "गुड आईडिया। और प्रशांत के लिए कैनवास और रंगो का इंतज़ाम मैं कर दूंगा फिर तो पुरे शहर में प्रशांत छा जायेंगे। "
शशांक और प्रशांत शशांक की गाड़ी से घर लौटने लगे। रास्ते में उन्होंने कैनवास और पेंट्स वगैरह खरीद लिए थे। दस दिन बाद एग्जीबिशन की डेट फिक्स की गयी। इन दस दिनों के लिए प्रशांत ने अपने आप को पूरी तरह से रंगों में डूबा दिया था। अपने कमरे में बैठा दिन रात बस पेंटिंग करता था। उसके लिए ये दस दिन बहुत खूबसूरत थे। क्योंकि उसके हाथ में ब्रश था और आस पास चांदनी ।
दसवें दिन....
अमित ने सुबह सुबह ही गाड़ी भिजवा दी थी ताकि सारे पेंटिंग्स एग्जीबिशन हॉल में पहुँच जाये और उन्हें समय से लगा दिया जाये। शशांक ने ड्राईवर की मदद से सारी पेंटिंग गाड़ी में रखवा दी।
दोपहर में शशांक और वर्षा अपने कमरे में तैयार हो रहे थे। चांदनी तैयार थी, वर्षा के कहने पर उसने आज आसमानी रंग की साड़ी पहनी थी। शशांक ने भी जिद कर प्रशांत को सूट पहनने को कहा तो प्रशांत तैयार हो गया। बस कमी थी तो टाई की। और टाई प्रशांत को बांधनी नही आती थी क्योंकि उसने कभी पहना नही था।
प्रशांत चांदनी से बोला - "क्या आपको टाई बनानी आती है चांदनी? "
चांदनी अपने हाथ आगे बढ़ाते हुए बोली - "जी, लाइए। "
प्रशांत ने टाई चांदनी के हाथों में थमा दी। चांदनी ने टाई को अपने गले में लगाया और नॉट बनाने लगी। प्रशांत उसे गौर से देखे जा रहा था।
प्रशांत चांदनी से बोला - "आपने टाई बनानी कहाँ से सीखी ? "
चांदनी टाई बनाते हुए बोली - "फूफी के बेटे को देखा था हमने कई बारी टाई बनाते हुए। और देख कर सिख गए। "
टाई तैयार थी। चांदनी ने अपने गले से टाई निकाली और प्रशांत की तरफ बढ़ाते हुए बोली - "ये लीजिये, बन गयी। "
प्रशांत - "आप ही पहना दीजिये क्योंकि हमे पहनना भी नही आता है। "
चाँदनी थोडा आगे झुकी और प्रशांत के सफ़ेद शर्ट की कालर को ऊपर कर टाई पहनाने लगी। टाई बांधते हुए चांदनी प्रशांत के नजदीक आ गयी थी। उसकी साँसे, प्रशांत महसूस कर सकता था। वो एकटक चांदनी को देखे जा रहा था। चांदनी की नज़र जब उसपर पड़ी तो उनकी भूरी आँखों में चांदनी खोने लगी। आज पहली बार था जब चांदनी प्रशांत में इस कदर खोयी थी। कॉलर पर से हाथ हट चूका था।
शशांक और वर्षा तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आये। बाहर की तरफ जाते हुए शशांक बोला - "तुम प्रशांत और चांदनी को बुलाकर लाओ, मैं कार निकालता हूँ। "
वर्षा चांदनी के कमरे की तरफ बढ़ गयी। दरवाजा खुला था इसलिए वर्षा बिना नॉक किये अंदर आ गयी। सामने, प्रशांत और चांदनी अभी तक एक दूसरे में खोये थे। वर्षा ने दोनों को देखा तो मुस्कुराते हुए खाँसने लगी। वर्षा जी आवाज सुन दोनों को होश आया। चांदनी झट से अलग हो गयी। प्रशांत भी इधर उधर देखने लगा। दोनों की हालत देख वर्षा को हँसी तो आ रही थी लेकिन अपनी हँसी रोकते हुए वो बोली - "चलें। "
दोनों वर्षा के साथ बाहर आगए। चांदनी थोड़ी आगे निकल गयी तो वर्षा प्रशांत से बोली - "लगता है चिंगारी लग चुकी है। बस हवा देना बाकि है। "
प्रशांत मुस्कुराकर रह गया। प्रशांत और चांदनी पीछे बैठ गए और वर्षा शशांक के साथ आगे। लगभग बीस मिनट बाद, चारों एग्जीबिशन हॉल पहुंचे। वहां पहले से कुछ लोग मौजूद थे। शशांक ने अमित को फ़ोन किया तो अमित आया उन सबको रिसीव करने। धीरे धीरे भीड़ बढ़ने लगी। शहर की नामी हस्तियां मौजूद थी वहां। कुछ फॉरेन से भी आये थे। देखते ही देखते प्रशांत की सारी पेंटिंग्स महंगे दामों में बिकने लगी। दस पेंटिंग्स बनाये थे उसने और दसों पेंटिंग दो घंटे के अंदर बिक गयी।
शशांक और बाकि सब घर वापस आ गए। इस बिच बहुत से लोगों से मिलना जुलना हुआ साथ ही पुरे हॉल में इतनी देर तक खड़े रहने की वजह से सब थके हुए थे। वर्षा इस हालत में और ज्यादा थक गयी थी इसलिए आराम करने चली गयी। चांदनी कुछ देर आराम कर किचन में गयी और सबके लिए रात का खाना बनाने लगी। रात में सबने मिलकर खाना खाया। प्रशांत और शशांक अपने अपने कमरे में सोने चले गए। चांदनी और वर्षा बाहर गार्डन में बैठे हुए थे।
वर्षा चांदनी से बोली - "चांदनी एक बात बोलूँ? "
चांदनी - "जी, कहिये ना। आपको हमसे पूछने की जरूरत नही है। "
वर्षा - "तुमने क्या सोचा है आगे के बारे में? मेरा मतलब है, मैं तो सब जानती हूँ तुम्हारे बारे में और समझती भी हूँ लेकिन मुझे लगता है तुम्हे अब आगे बढ़ना चाहिए। माफ़ करना अगर मैं ज्यादा बोलूँ तो लेकिन चांदनी प्रशांत तुम्हे बहुत चाहते है। उनकी आँखों में सम्मान, इज्जत और प्यार सब देखा है मैंने। अगर उनकी जगह कोई और होता तो शायद ही वो सब करता जो उन्होंने तुम्हारे लिए किया। बिता हुआ कल भूलना इतना आसान नही है, मानती हूँ लेकिन एक बार कोशिश तो कर सकती हो ना चांदनी..!! एक बार मौका देकर देखो चांदनी, बस एक बार.... "
वर्षा ने अपनी बात खत्म की। उसकी बात से चांदनी सोच में पड़ गयी। वर्षा ने उसे सोचते देखा तो बोल पड़ी - "आराम से सोचना, कोई जल्दबाज़ी नही है। "
चांदनी और वर्षा अपने अपने कमरे में चले गए। चांदनी करवटें बदलती रही, उसे नींद नही आ रही थी। दिमाग में सिर्फ वर्षा की कही बातें घूम रही थी।
वर्षा की बात सोचते हुए चांदनी सारी रात करवटें बदलती रह गयी। अगली सुबह जल्दी उठकर वो किचन में चली गयी और सबके लिए चाय बनाने लगी। प्रेगनेंसी की वजह से वर्षा को काफी नींद आती थी जिस वजह से वो देर तक सोई रहती थी। चांदनी चाय को दो कप ट्रे में रख वर्षा के कमरे की तरफ बढ़ गयी। उसने दरवाजा खटखटाया। शशांक ने दरवाजा खोला और सामने चांदनी को देख बोला - "अरे चांदनी ! इतनी सुबह सुबह ? "
चांदनी - "आज हम जल्दी उठ गए तो सोचा सबके लिए चाय बना देते हैं। "
ट्रे शशांक की तरफ बढ़ाते हुए बोली - "ये लीजिये, आपकी और वर्षा जी की चाय। "
शशांक ने शुक्रिया कहकर ट्रे अपने हाथ में ले लिया। चांदनी चली गयी और शशांक भी गेट बंद कर अंदर आ गया। वर्षा बड़े आराम से सो रही थी। शशांक बेड पे उसकी साइड आया और प्यार से उसके माथे को चूमते हुए बोला - "गुड मॉर्निंग "
वर्षा ने अपनी आँखे खोली और मुस्कुराते हुए बोली - "गुड मॉर्निंग "
शशांक ने उसकी तरफ चाय बढ़ाया। दोनों बैठ कर पीने लगे। चांदनी अपनी और प्रशांत की चाय लेकर कमरे में गयी। प्रशांत आराम से सो रहा था। चांदनी उसके पास आई और उसे निहारने लगी। उसके कानों में वर्षा की कही बातें गूंजने लगी "प्रशांत बहुत चाहता है तुम्हे..!! एक मौका दो खुदको। "
चांदनी वहां से हट गयी और खिड़की के पास जाकर बाहर देखने लगी। बाहर रंग बिरंगे फूलों को देखते चांदनी अपने बीते कल को याद करने लगी। युसूफ को दिए वादे के बारे में सोचने लगी। प्रशांत की आँख खुली। खिड़की के पास चांदनी को खड़े देख बोला - "आप वहां क्या कर रही हैं चांदनी ? "
प्रशांत की आवाज सुन चांदनी उसकी तरफ पलटी और उसकी तरफ बढ़ते हुए बोली - "कुछ नही, बस ऐसे ही खड़े थे। "
चांदनी टेबल के पास आई और प्रशांत की तरफ कप बढ़ाते हुए बोली - "ये लीजिये, आपकी चाय। "
प्रशांत ने चाय लिया और मुस्कुराते हुए बोला - "धन्यवाद "
दोनों बैठकर चाय पिने लगे। ना ही चांदनी कुछ बोल रही थी और ना ही प्रशांत। लेकिन दोनों चाय पीते हुए एक दूसरे को देख लिया करते। चाय खत्म होने के बाद चांदनी ने दोनों कप ट्रे में रखे और किचन में चली गयी। खुदको व्यस्त रखने के लिए वो नाश्ता बनाने लगी। कुछ देर में वर्षा उसके पास आई और उसे ऐसे चुप चुप देख बोली - "क्या हुआ चांदनी? आज चुप चुप सी हो। "
चांदनी उसकी तरफ देखते हुए बोली - "हमे कुछ समझ नही आ रहा कि हम क्या करें? आपकी कही बातों के बारे में सोचा हमने लेकिन हमारे ऐसा करने से युसूफ के साथ नाइंसाफी होगी। हम जानते हैं वो आज भी हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे। आज भी हमसे उतना ही प्यार करते होंगे। "
वर्षा उसकी बात काटते हुए बोली - "और अगर वो तुम्हे भूल आगे बढ़ गया होगा तो? देखो चांदनी, तुम नही जानती वो कैसा है? तुम उसे अभी भी याद हो या नही। अगर ऐसा रहता तो अभी तक उसने तुम्हे ढूंढ लिया होता लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ। तुम्हारे सामने तुम्हारा पूरा भविष्य पड़ा है, एक सच्चा प्यार करने वाला साथी खड़ा है। तुम कुछ मत सोचो चांदनी और आगे बढ़ो। "
चांदनी उसकी बात गौर से सुन रही थी। मन में द्वंद छिड़ा हुआ था। क्या करे क्या ना करे, इसी बिच फसी थी चांदनी।
दिन भर के मंथन के बाद शाम में चांदनी वर्षा के पास गयी। वर्षा आपने कमरे में बैठी हुई थी। उसने चांदनी को अपने पास बैठाया और बोली - "तो क्या सोचा है तुमने ? "
चांदनी जमीन की तरफ देखते हुए बोली - "आपने जो भी कहा हमने इस बारे में बहुत सोचा। और हमे आपकी बात सही लगी। "
वर्षा की तरफ देखते हुए बोली - "हम एक मौका देने के लिए तैयार हैं। "
वर्षा ने जब सुना तो बहुत खुश हुई और चांदनी के गले लगकर बोली - "मैं बहुत खुश हूँ चांदनी। तुमने एकदम सही फैसला लिया है। प्रशांत तुमसे बहुत प्यार करते हैं और जब उन्हें ये पता चलेगा तो बहुत खुश होंगे देखना तुम। इस नई ज़िंदगी के लिए बहुत बहुत बधाई तुम्हे। "
चांदनी भी हल्का मुस्कुरा दी। अगले दिन वर्षा प्रशांत के पास गयी जो सुबह सुबह बगीचे में बैठा हुआ था। वर्षा उसके पास जाकर बैठ गयी और बोली - "आपके लिए खुशखबरी है कुँवर सा "
प्रशांत ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए कहा - "आप हमे कुँवर सा मत कहिये, अब हम राजकुमार नही रहे। "
वर्षा - "लेकिन मैं तो आपको कुँवर ही बोलूंगी। "
प्रशांत - "खुशखबरी क्या थी, वो तो बताइये। "
वर्षा मुस्कुराते हुए बोली - "मैंने चांदनी को समझाया था आपके बारे में सोचने के लिए और एक मौका देने के लिए। कल शाम चांदनी मेरे पास आई और उसने कहा कि वो एक मौका देने के लिए तैयार है। "
प्रशांत हक्का बक्का सा वर्षा को देखते हुए बोला - "क्या सचमे चांदनी ने ऐसा बोला है ? "
वर्षा हँसते हुए बोली - "जी कुँवर सा, वो तैयार है। अब आगे क्या करना है वो आप देख लीजिये। मैंने अपना काम कर दिया। "
प्रशांत ख़ुशी से फुले नही समा रहा था। शाम में शशांक ने सबको बाहर डिनर करने को कहा। कारण थी वर्षा, एक तो आज प्रशांत के लिए ख़ुशी का दिन था और दूसरा घर का खाना खाते खाते बोर हो गयी थी। सब एक अच्छे से होटल में गए।
प्रशांत शशांक से बोला - "पैसे हम चुकाएंगे। "
शशांक मुस्कुरा दिया। वर्षा ने प्रशांत और चांदनी को एक साथ बैठाया था। जबसे प्रशांत ने सुना की चांदनी मान गयी है और जबसे चांदनी ने वर्षा से बात की तबसे दोनों एकदूसरे से नज़रे चुरा रहे हैं। वर्षा दोनों की हालत देख मुस्कुराये बिना ना रह सकी। सबसे पेट भर खाना खाया। लास्ट में वर्षा ने आइसक्रीम की ज़िद की तो शशांक सबके लिए आइसक्रीम ले आया। खाते वक्त प्रशांत के होठों के पास थोड़ी सी क्रीम लग गयी थी। चांदनी ने जब देखा तो प्रशांत को इशारे से बताने लगी लेकिन प्रशांत को कुछ समझ नहीं आया।
चांदनी ने अपने दुपट्टे का कोना लिया और प्रशांत ने होठों पे लगे आइसक्रीम को साफ़ करने लगी। प्रशांत उसमे खोया उसे देखे जा रहा था लेकिन चांदनी ने एक बार भी प्रशांत से नज़रें नही मिलायी। आइसक्रीम खाकर सब घर की ओर निकल गए। शशांक ड्राइव कर रहा था। वर्षा जानबूझ कर आगे बैठ गयी ताकि दोनों साथ में कुछ वक्त बिता सकें। ख़ामोशी के बिच सब घर पहुंचे और अपने अपने कमरे में सोने चले गए। प्रशांत को ख़ुशी के मारे नींद नही आ रही थी। वहीं चांदनी भी करवटें बदल रही थी।
प्रशांत मन ही मन बोला - "कल चांदनी से हम शादी के बारे में बात करेंगे। जैसा वर्षा जी ने कहा है, वो मान जाएँगी। हम बहुत खुश हैं, अब चांदनी मेरी हो जाएँगी सिर्फ मेरी। कल सुबह ही हम उनसे उनका हाथ मांग लेंगे। "
यही सब सोचते हुए प्रशांत सो गया। चांदनी भी कुछ समय बाद नींद के आगोश में चली गयी।
अगली सुबह, वर्षा और शशांक किसी काम से बाहर चले गए। उनके जाने से प्रशांत खुश था। चांदनी के साथ कुछ वक्त अकेले बिता सकता था और साथ ही अपने दिल के बात चांदनी को बताकर हमेशा के लिए अपना बनाने का अच्छा समय मिल गया। प्रशांत अपने कमरे में तैयार हो रहा था। आज उनसे वाइट चूड़ीदार के ऊपर लाल रंग का कुर्ता पहना था। चांदनी और प्रशांत ने मिलकर नाश्ता किया। फिर चांदनी बाहर बगीचे में चली गयी पौधों के पास ऊगी घास को साफ़ करने। फूल के पौधों को नुकसान पहुंचा रहे थे। प्रशांत अपने कमरे की खिड़की से उसे देख रहा था। आज उसका दिल सुबह से ही ज़ोरों से धड़क रहा था। मन में अनेकों ख़यालात उमड़ रहे थे।
दोपहर के दो बजे, मौसम सुहावना हो रखा था। चांदनी प्रशांत के पास आई और बोली - "हमे बाजार से कुछ सामान लाना है तो हम वहीं जा रहे हैं। अगर आपको कुछ चाहिए तो हमे बता दीजिये। "
प्रशांत - "नही, अभी हमे किसी चीज की जरूरत नही है। आप हो आइये और ध्यान रखियेगा। "
चांदनी जी बोलकर चली गयीं उसके जाते ही प्रशांत गार्डन में आया। धुप नही थी, बादल छाये हुए थे साथ ही ठंडी हवाएं भी चल रही थी। प्रशांत खुदसे बोला - "लगता है ऊपर वाले भी हमारे इस दिन को खास बनाना चाहते हैं। "
प्रशांत ने बगीचे में उगे दो तीन लाल गुलाब तोड़े और बगीचे में घूमने लगा। अब व्हीलचेयर पे उसे ज्यादा दिक्कत नही होती थी।
चांदनी मार्किट गयी। मौसम अच्छा होने की वजह से लोगों की काफी भीड़ थी। सब धुप ना होने की वजह से बाजार में अपने जरूरत का सामान खरीद रहे थे। चांदनी सब्जी के दुकान पे गयी और वहां से कुछ ताज़े सब्जी लेकर उन्हें झोले में रख लिए। कुछ किराना का सामान खरीदा।
चांदनी खुदसे बोली - "वर्षा जी के लिए कुछ फल ले लेते हैं। "
फल के दुकान से कुछ अच्छे फल लेकर उसने थैले में रखे और पैसे निकालकर दुकानदार को देने लगी तभी उसे किसी की आवाज आई - "चांदनी... "
चांदनी ने दाहिनी तरफ देखा तो यूसुफ खड़ा था। चांदनी को सामने देख आँखे नम हो गयी थी उसकी। वो जल्दी से चांदनी के पास आया और उसे गले लगाने के लिए आगे बढ़ा लेकिन आस पास लोगों को देख रुक गया। चांदनी भी उसे देख हैरान थी और उससे ज्यादा खुश थी। कितने सालों बाद दोनों आमने सामने थे।
युसूफ ख़ुशी से मुस्कुराता हुआ बोला - "हमने आपको कहाँ कहाँ नही ढूंढा चांदनी। कहाँ थीं आप? हम पागल हो गए थे आपके बिना। "
चांदनी की नज़र आस पास गयी। लोग उनदोनो को ही देख रहे थे। चांदनी ने युसूफ से कहा - "हमे कहीं और चलना चाहिए। "
युसूफ और चांदनी पास के पार्क में आ गए। दोनों एक बेंच पे दुरी बनाकर बैठ गए। युसूफ चांदनी से बोला - "आप जब अपनी फूफी के घर से बिना बताये चली गयीं थीं तब हमने बहुत ढूंढा आपको। आपकी फूफी से पूछा हमने लेकिन उन्होंने कुछ नही बताया। दो महीने पहले ही हमे आपके बारे में पता चला कि आप किसी कोठे पर हैं। हम वहां गए, सबसे पूछा लेकिन आप वहां भी नही थीं। वहां के पहरेदार से हमे पता चला कि आप कोठे से भाग गयीं हैं। हमारी आखिरी उम्मीद भी टूट गयी। हम यहां अपने दोस्त के घर आये थे, उसे कुछ जरूरी काम था और अल्लाह का शुक्र है जो आप हमे मिल गयीं। आपके बिना हम कैसे रहे हैं ये हम आपको बता भी नही सकते। "
चांदनी की आँखों से आंसू बह निकले। उसका प्यार सामने थे। युसूफ उसके थोडा करीब आया और उसके आंसू पोछते हुए बोला - "अब ना आप रोयेंगी और ना हम, बस बहुत हुआ। अब हम साथ रहेंगे वो भी हमेशा हमेशा के लिए। हम आपको यहां से ले जायेंगे और निकाह कर हमेशा अपने साथ रखेंगे। "
चांदनी ने निकाह की बात सुनी तो उसे प्रशांत की याद आई। चांदनी झटके से उससे दूर हुई और बोली - "युसूफ, अब बहुत देर हो चुकी है। हम आपसे निकाह नही कर सकते। आप हमे भूल जाइये और आगे बढिए अपनी ज़िंदगी में। "
युसूफ के कुछ कहने से पहले ही चांदनी वहां से उठी और भाग गयी। युसूफ उसके पीछे पीछे आवाज लगाते हुए बढ़ रहा था लेकिन चांदनी बिना पीछे मुड़े अपने दुपट्टे को सम्भालते हुए भागे जा रही थी।
युसूफ पीछे से बोलता हुआ आ रहा था - "चांदनी रुकिए। हमसे बात तो करिये। आप क्यों कह रही हैं ऐसा... चांदनी.... चांदनी.... "
चांदनी भागते हुए घर के पास पहुंची और गार्डन वाला गेट खोल जल्दी से बगीचे के तरफ आई। युसूफ ने अपनी स्पीड बढ़ाई और दौड़कर चांदनी की कलाई पकड़ रोकते हुए बोला - "आप ऐसे अकेले फैसला नही कर सकती चांदनी। जब तक हम आपके ऐसा बोलने के पीछे सच्चाई नही जान जाते, हम आपको नही छोड़ेंगे। "
चांदनी उसकी तरफ मुड़ी, आँखे डबडबाई हुई थी उसकी। अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली - "हमारा हाथ छोड़िये युसूफ.. "
प्रशांत बगीचे में ही था लेकिन घर के बगल वाले एरिया में। उसने युसूफ की आवाज सुनी तो अपनी व्हीलचेयर खिसकाते हुए आ ही रहा था तभी उसके कानों में चांदनी की आवाज आई "हमारा हाथ छोड़िये युसूफ.. "
प्रशांत मन ही मन बोला - "युसूफ ?"
प्रशांत थोडा आगे बढ़ा और चांदनी और युसूफ को एक साथ देखा। युसूफ ने चांदनी की कलाई पकड़ी हुई थी।
युसूफ चांदनी से बोला - "नही छोड़ेंगे हम आपका हाथ। हमे जबतक आप सच्चाई नही बता सकती हमे खुदसे दूर करने की। "
चांदनी लगभग रोते हुए बोली - "हम नही अपना सकते आपको। आपने देर कर दी युसूफ। किसी का बहुत एहसान है हमपर और हम उन्हें ऐसे छोड़ आपके साथ नही आ सकते। हम उस इंसान का दिल कैसे दुखा सकते हैं जिसने हमारे लिए अपना सब कुछ छोड़ दिया है। "
युसूफ ये सुन हक्का बक्का सा चांदनी को देखता रहा। चांदनी ने उसकी तरफ देखा, लेकिन युसूफ के आँखों में हज़ारों सवाल को देख उसने अपनी नज़रे फेर ली और बोली - "हमने उन्हें अपनाने का फैसला कर लिया है युसूफ। ये ही उनके लिए बेहतर होगा। "
युसूफ चांदनी की तरफ एक कदम बढ़ाते हुए बोला - "और हमारा क्या चांदनी? क्या आप किसी और को अपने दिल में वही जगह दे पाएंगी जो मुझे दिया है? क्या आप किसी और से प्यार कर पाएंगी चांदनी? बोलिये चांदनी। "
चांदनी ने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और हल्का चिल्लाते हुए बोली - "नही दे पाएंगे आपकी जगह किसी और को। नही कर पाएंगे किसी और से प्यार लेकिन फिर भी हमे उन्हें अपनाना होगा। अपने लिए ना सही, उनके लिए। उनका कर्ज हम मरते दम तक नही उतार सकते। युसूफ हम आपके आगे हाथ जोड़ते हैं, आप चले जाइये यहां से। हम दुआ करेंगे आपको एक बेहद अच्छी और सच्ची लड़की मिले, हमारी तरह बेवफा नही। चले जाइये आप, चले जाइये.. "
युसूफ उसके करीब आते हुए बोला - "हम कहीं नही जायेंगे, और जायेंगे तो आपको साथ लेकर। "
चांदनी उससे दूर होते हुए बोली - "आपको हमारी कसम है युसूफ..! "
युसूफ रुक गया। आँखों में आँसू जो भरे हुए थे, चांदनी के इतना कहते ही बह निकले। चांदनी ने अपनी नज़रें झुकाई रखी। आंसू उसके भी बह रहे थे। प्रशांत दूर से अपनी व्हीलचेयर पे बैठा सब देख और सुन रहा था। हाथों में जो गुलाब थे, जो उसने चांदनी को देने के लिए तोड़े थे वो जमीन पे बिखर चुके थे। आँखों में आंसू और दिल में दर्द था। युसूफ ने अपने कदम पीछे किये और पलटकर बिना चांदनी से कुछ बोले जाने लगा। वो गेट के पास पहुंचा तभी पीछे से प्रशांत की आवाज आई - "रुकिए युसूफ.. !"
युसूफ के कदम रुक गए। वो पीछे पलट गया। प्रशांत व्हीलचेयर के चक्के को आगे की तरफ बढ़ाकर आ रहा था। चांदनी ने जब प्रशांत को देखा तो परेशान हो गयी। प्रशांत युसूफ की तरफ बढ़ रहा था। उसे आने में मुश्किल हो रही थी। युसूफ उसके पास आया और बोला - "जी "
प्रशांत ने उसे गौर से देखा। थोड़ी बड़ी दाढ़ी, आँखों ने निचे हल्के हल्के गड्ढे, गोरा रंग, 6 फ़ीट हाइट। उसकी आँखे काफी गहरी थी और इस समय आंसुओ से भरी हुई थी। प्रशांत ने उसे इशारा कर बगीचे में लगे कुर्सी टेबल के पास चलने को कहा और खुद उस तरफ बढ़ गया। चांदनी जहां थी वहीं खड़ी रह गयी। प्रशांत ने युसूफ को बैठने को कहा तो युसूफ बैठ गया। प्रशांत भी अपनी व्हीलचेयर उसके बगल में लगा लिया और चांदनी की तरफ देखने लगा। चांदनी उसे ही देख रही थी मानो समझने की कोशिश कर रही थी कि आखिर अब होने क्या वाला है।
प्रशांत ने चांदनी को आवाज देकर अपने पास बुलाया। चांदनी उसके पास आई और बैठ गयी। प्रशांत ने बारी बारी से दोनों को देखा और युसूफ से बोला - "बड़ी जल्दी हार मान गए आप तो युसूफ। चांदनी ने आपको कसम दी, और आप बिना कुछ बोले, बिना कोई सवाल किये वापस चल दिए। "
युसूफ ने चांदनी की तरफ देखते हुए कहा - "हमारे लिए चांदनी ज्यादा जरूरी हैं। "
प्रशांत ने चांदनी की तरफ देखा जो जमीन को देख रही थी। प्रशांत बोला - "और आपके प्यार का क्या? इतने साल आप दोनो एक दूसरे से दूर रहे, तड़पते रहे उसका क्या? "
युसूफ खमोश हो गया। प्रशांत ने चांदनी की तरफ देखा, वो भी शांत सी, गुमसुम सी बैठी हुई थी।
प्रशांत बोला - "हम ही हैं वो जिसके बारे में अभी चांदनी बात कर रहीं थीं। "
इतना बोलते ही युसूफ ने पहली बार प्रशांत को गौर से देखा। व्हीलचेयर पे देख मन में सवाल तो उमड़ रहे थे लेकिन कुछ पूछ ना सका।
चांदनी की तरफ देखते हुए प्रशांत बोला - "हमारे लिए आप अपने प्यार को कुर्बान करने चली हैं चांदनी। आप हमे एक बात बताइये, अगर आप हमसे शादी कर लेती हैं तो क्या कभी खुश रह पाएंगी हमारे साथ? "
चांदनी चुप रही लेकिन उसकी आँखों से बहते आंसू सब बयां कर रहे थे। प्रशांत हल्का सा मुस्कुराया और बोला - "आपको ये लगता है कि हमसे शादी कर आप हमे ख़ुशी देंगी, हम खुश रहेंगे लेकिन ऐसा नही है चांदनी। आप हमारे साथ कभी खुश नही रह पाएंगी और आपको खुश ना देख हम भी खुश नही रह पाएंगे। एक साथ तीन ज़िंदगियाँ बर्बाद हो जाएँगी। और अगर आपने युसूफ से शादी की तो आपदोनो खुश रहेंगे और साथ में हम भी। "
चांदनी ने प्रशांत की तरफ देखा तो प्रशांत मुस्कुराते हुए बोला - "क्योंकि आपकी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है। हम चाहते हैं कि आप दोनों शादी कर लें और हमेशा खुश रहें। कम से कम हमे तसल्ली तो रहेगी कि किसी का तो प्यार मुकम्मल हुआ। "
चांदनी पहली बार बोली - "और आपका क्या ? "
प्रशांत हौले से हँसा और बोला - "अब हम एक जाने माने चित्रकार बन चुके हैं और आपके बाद वो ही हमे सबसे प्यारा है। अब एक प्यार मुकम्मल नही हुआ तो क्या हुआ, हमारा दूसरा प्यार तो है हमे सम्भालने के लिए। आगे की ज़िंदगी बिताने के लिए। आप हमारी चिंता मत करिये और बस युसूफ की हो जाइये। बहुत प्यार करते हैं ये आपसे, इनकी आँखों में साफ साफ दिख रहा है और आप भी इन्हें बेइंतहा चाहती हैं। "
चांदनी रो दी तो प्रशांत बोला - "युसूफ, आप जल्दी से शादी की तैयारियां कीजिये वर्ना कहीं चांदनी अपना मन ना बदल लें। "
युसूफ उठा और प्रशांत के गले लग बोला - "शुक्रिया भाईजान, आपने हमारे लिए जो किया है वो हम कभी नही भूल सकते। "
प्रशांत उसे खुदसे अलग करते हुए बोला - "भाईजान भी बोलते हो और शुक्रिया भी? ये गलत है ! आप हमसे बस एक वादा करिये, चांदनी का पूरा ख्याल रखेंगे आप। उनकी आँखों में कभी आंसू नही आने देंगे। "
युसूफ अपने हाथ जोड़ते हुए बोला - "हम वादा करते हैं। चांदनी को हमेशा खुश रखेंगे, उनकी आँखों में कभी आंसू नही आने देंगे। "
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वर्तमान में....
प्रशांत अपने बीते दिनों की बातें सुनाते सुनाते चुप हो गया। चेहरा उदास सा और आँखों में नमी थी। लड़के की आँखों में भी हल्की नमी थी।
लड़का बोला - "फिर आगे क्या हुआ? "
प्रशांत उसकी तरफ बढ़ा और बोला - "उसके बाद मैंने चांदनी और युसूफ की कोर्ट मैरिज करा दी। "
लड़का - "बहुत मुश्किल हुआ होगा ना किसी और को अपना प्यार सौपते हुए? "
प्रशांत मुस्कुराया और बोला - "दोनों एकदूसरे के प्यार थे, पूरक थे। मैं तो बहुत बाद में आया। "
लड़का - "उसके बाद आपने पेंटिंग पे ध्यान दिया और आज आप भारत के साथ साथ विदेश में भी फेमस हैं। "
प्रशांत मुस्कुराते हुए - "हम्म "
लड़का - "एक आखिरी सवाल, क्या आप अभी भी चांदनी जी को चाहते हैं? "
प्रशांत - "मैं अभी तक कुंवारा हूँ, 45 से ऊपर का हो गया हूँ फिर भी। क्या ये आपके सवाल का जवाब नही हुआ? "
दोनों हँस दिए। दोनों बात कर ही रहे थे तभी डोरबेल बजी। प्रशांत लड़के को एक्सक्यूज़ मी बोलकर गेट के पास गया। गेट खोलते ही सामने से एक प्यारी सी बच्ची प्रशांत के गले लगते हुए बोली - "कैसे हो चाचू ? "
प्रशांत ने लड़की को गले लगाये रखा और बोला - "मैं ठीक हूँ। आप यहां कैसे? "
गेट से अंदर आते हुए दिग्विजय और कल्याणी बोले - "आप तो हमे याद करते नही, इसलिए हम ही आ गए। "
प्रशांत ने दिग्विजय और कल्याणी के पैर छुए और बोला - "ऐसा नही है भाई सा, काम के सिलसिले में समय नही मिलता। आइये ना अंदर। "
चारों हॉल में आये। लड़के ने घर में गेस्ट देखा तो प्रशांत से बोला - "मैं चलता हूँ सर, थैंक यू आपने मुझे अपना इतना कीमती समय दिया। "
लड़का चला गया। दिग्विजय, कल्याणी, प्रशांत और सिया ( दिग्विजय और कल्याणी की बेटी) आपस में बैठ बातें करने लगे।
समाप्त….
©अंकिता 'चित्रांश'


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