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भारतीय चिकित्सा विज्ञान में वनस्पतियों की महत्ता

भारतीय आस्तिक विद्वानों की यह दृढ़ धारणा रही है कि जिस प्रकार सृष्टि की रचना करने से पूर्व उसके सम्यक संचालन हेतु ईश्वर ने वेदों को प्रकट किया उसी प्रकार आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली की सष्टि भी ब्रह्मा ने की थी। भारतीय चिकित्सा विज्ञान का मूल स्रोत आयुर्वेद नित्य सिद्ध ईश्वरीय ज्ञान है । इस ईश्वरीय ज्ञान को ब्रह्मा ने स्मरण करके प्रजापति को दिया तत्पश्चात केंद्र तथा भारद्वाज आदि महर्षि यों के पास से क्रमानुसार शिष्य प्र शिष्य परंपरा द्वारा यह सर्वसाधारण तक सुलभ हो सका।

“ ब्रह्मा स्मृत्वाऽऽयुषो वेदं , प्रजापतिमजिग्रहत् । सोऽश्विनौ तौ सहस्राक्ष , तेऽत्रिपुत्रादिकान् मुनीन् ।। "

न्याय दर्शनकार ने तो वेदों की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए आयुर्वेद की सत्यता को प्रमाण रूप में उद्धृत किया है ---"मंत्र आयुर्वेद बच्चा तत् प्रमाणयम"--अर्थात जिस प्रकार मंत्र सत्य हैं उसी प्रकार आयुर्वेद भी सत्य है उसी प्रकार वेद भी सत्य हैं इसीलिए सुश्रुत कार ने कहा है कि--" मंत्र व त संप्रयोग तव्यम" अर्थात आयुर्वेद को मंत्र की तरह बिना कोई शंका किए प्रयोग करो ज्ञान पूर्वक आयुर्वेदिक औषधियां प्रयोग करने पर फल प्राप्ति में कोई संदेह नहीं रहता

भारतीय चिकित्सा पद्धति एक प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति है इसका मूल मंत्र ही यह है कि --अपथ्य का परिहार और पथ्य वनस्पतियों का सेवन "--चिकित्सा शब्द का अर्थ --है रोग निवृत्ति करना कित रोगाप नयने धातु से चिकित्सा शब्द बना है संसार में उत्पन्न समस्त स्थावर जंगम प्राणियों को कभी न कभी रोग होता ही है और भारतीय चिकित्सा विज्ञान के इस मूलमंत्र के अनुसार ही पशु पक्षी हाथी जानवर तक भी अपत्य का परिहार तथा पत्य वनस्पतियों का जंगल में सेवन कर ही रोग निवृत हो जाते हैं वस्तुतः मानव शरीर के लिए भी जो वह जो भोज्य पदार्थ हैं वही औषधि है और जो औषधि है वही भोज्य है महर्षि सुश्रुत कहते हैं

" अन्नमूलं बलं पुसां , बलमूलं हि जीवनम् ||

अर्थात भोज्य पदार्थ ही बल रक्षा या शरीर रक्षा का मूल कारण है और जीवन बल के अधीन है महर्षि चरक ने भी कहा है

" “ प्राणा हि प्राणिभूतानां अन्नं लोकोऽभि धावति ।
वर्ण प्रसादः सौस्वर्यं जीवितं प्रतिभा सुखम् ।
तुष्टिः पुष्टिबलं मेधा सर्वमन्ने प्रतिष्ठितम् ।। "


अर्थात अन्न ही प्राणी समूह के लिए प्राण स्वरूप है स्वर्ग लोक अन्य के लिए आ ग्रह शील है वर्ण सु स्वर ता जीवन प्रतिभा सुख पुष्टि पुष्टि बॉल एवं मेधा सभी भो जयवस्तु के आश्रित हैं आज विश्व में जो पांच प्रकार की चिकित्सा पद्धति प्रचलित है जिन्हें होम्योपैथी एलोपैथी साइकोपैथी नेचुरोपैथी और हाइजीन म के नाम से पुकारते हैं उनके मूल तत्व को आयुर्वेद के पंच निदान में महर्षि ओं ने लिखा है की


हेतु विपरीत व्याधि विपरीत हेतु या व्याधि विपरीत हेतु सम एवं व्याधि सम औषधि अन्य और बिहार का उपयोग शरीर के लिए सुखदायक या आरोग्य कारक है

एक बार आश्रम में बैठे हुए महर्षि जैमिनी से वृक्ष पर स्थित एक पक्षी ने पूछा को ऽरूक अर्थात निरोगी कौन है महर्षि ने उत्तर दिया हित भुक अर्थात जो हितकर पुष्टिकर और विशुद्ध आहार करता है वही निरोगी है पक्षी ने फिर पूछा को अरुक उत्तर मिला मित् भुक अर्थात परिमित आहार करने वाला जिससे रोग ही ना हो अतः स्पष्ट है की प्राकृतिक वनस्पतियों पर आधारित हितकर पुष्टिकर और विशुद्ध आहार और सदाचार ही जीवन एवं शरीर को सुरक्षित बनाए रख सकता है इसी सिद्धांत पर भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति अनादि काल से चली आ रही है इसीलिए कहा गया है

" विनापि भेषजैाधि पथ्यादेव निवर्तते ।
न तु पथ्यविहीनां भेषजानां शतैरपि ।। "


अर्थात पथ्य द्वारा ही रोग आरोग्य हो सकता है प्थय विहीन सैकड़ों औषधियों से भी रोग का शमन नहीं हो सकता इसीलिए विभिन्न देशों में वहां की जलवायु के अनुसार उत्पन्न वनस्पति तथा रितु चर्या द्वारा अर्थात ऋतु के अनुकूल वनस्पति के सेवन का ही प्रयोग औषधि रूप में हितकारी होता है यही आचार्य चरक का निर्देश है


“ यस्य देशस्य योजन्तुः , तज्जं तस्यौषधं हितम् ।। "


इसीलिए भारतीय चिकित्सा विज्ञान विश्व का श्रेष्ठतम विज्ञान प्रमाणित होता है जब से हमने अपने देश में उत्पन्न वनस्पतियों का औषधि के रूप में प्रयोग करना छोड़ कर विदेशी चिकित्सा पद्धति को अपनाया है इसी कारण रोगों का शमन होने के स्थान पर उन्हें वृद्धि ही हुई है अतः भारतीय चिकित्सा विज्ञान के अनुसार अद्भुत चमत्कार से युक्त वनस्पतियों का औषधी रूप में प्रयोग ही सर्वहितकारी कहा जा सकता है औषधि सूक्त में कहा गया है कि


" अश्वत्थे वो निषदनं , पर्णे वो वसतिष्कृता । "


अर्थात हे औषधियों तुम्हारा विश्राम स्थान अश्वत्थ वृक्ष पर है और तुम्हारे निवास की योजना पर्ण वृक्ष पर की गई है यहां निश्चय ही औषधि का संकेत वनस्पतियों से ही है एक अन्य स्थान पर भी इसका संकेत मिलता है औषधियों को लता रूप में वर्णन कर पुष्पवती तथा फल प्रसवा कहा गया है औषधि: प्रति मोद धवं पुष्पवतीं प्रंसूवरी: ( औंसू) वनस्पति रूप इन औषधि यो को सैकड़ों शक्ति संपन्न तथा हजारों प्रकार की बताया गया है तथा उनसे रोगमुक्त करने की प्रार्थना की गई है


" शतं वो अम्ब धामानि सहस्त्रमुत वो रुहः ।
अधा शतकृत्वो यूयमिमं मे अगदं कृत ।। औ.सू.


वनस्पति रूप में होने के कारण ही औषधियों को देवों से भी पुरातन कहा गया है


“ या ओषधी : पूर्वा जाता देवेश्यस्त्रियुगं पुरा ।
मनै नु बभूणात्महं शतं धामानि सप्त च ।। औ.सू.


अर्थात जो देवों के पूर्व तीन पीढ़ियों के पहले ही उत्पन्न हुए हैं उन पुरातन औषधियों के 107 सामर्थ्यो का मैं मनन करता हूं


“ या : फलनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पणी : ।।
बृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुंचन्त्वहंसः ।। औ.सू.


अर्थात जिनमें फल लगते हैं और जिनमें नहीं लगते , जिसमें फूल प्रकट होते, हैं और जिनमें नहीं प्रकट होते वे सभी औषधियां बृहस्पति की आज्ञा होने पर हमें इस आपत्ति से मुक्त करें यहां औषधि शब्द का प्रयोग वनस्पति के लिए ही किया गया है तो हम उत्तमाशा औषधि तव वृक्षा उपस्तयः अर्थात हे औषधि तुम सर्वश्रेष्ठ हो सभी वृक्ष तुम्हारे आज्ञाकारी सेवक है एक अन्य स्थान पर भी "या औषधि ही सोम राज्ञीः विष्ठता पृथ्वी मनु ) अर्थात यह सोम जिनका राजा है वह सभी औषधियां पृथ्वी के पृष्ठ भाग पर इधर-उधर बिखरी पड़ी है औषधी रूप वनस्पति को चेतनावान भी माना है वनस्पतियों की विभिन्नता व असीम गुणों के कारण ही भारतीय चिकित्सा विज्ञान का औषध भंडार इतना विशाल है कि जिस की गणना करना भी मानव शक्ति के वश में नहीं है औषधि निर्माण प्रणाली भी पूर्ण त वैज्ञानिक है इसी आधार पर आयुर्वेद की अष्टांग चिकित्सा प्रणाली अनंत काल से अविच्छिन्न रूप से चलती आ रही है वैसे तो भारतीय चिकित्सा विज्ञान की व्यापकता व विशालता को देखते हुए समस्त वनस्पतियों का प्रथक प्रथक महत्व का विश्लेषण करना मानव वश में नहीं है तथापि उदाहरण स्वरूप किंचित वनस्पतियों का औषधी रूप में प्रयोग व उनके लाभ का वर्णन अगॄ अंकित है ---


नंबर 1 तुलसी ---- यह एक बहुत उपयोगी वनस्पति है प्रदूषित वायु के शुद्धिकरण में तुलसी का विलक्षण योगदान है इसके सेवन से प्राणघातक और दु :साध्य रोगों को भी निर्मूल किया जा सकता है तुलसी और काली मिर्च के का ढा से ज्वर दूर होता है पत्तियां खाने से मलेरिया के दूषित तत्वों का मूलतः नाश होता है इस पौधे में मच्छरों को भी दूर भगाने का गुण है तुलसी की पत्तियों को दही या छाछ के साथ सेवन करने से वजन कम होकर शरीर सुडौल बनता है थकान मिटती है दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है रक्त कणों में वृद्धि होती है मानसिक रोगों में भी असाधारण सफलता मिलती है श्यामा तुलसी सौंदर्य वर्धक है त्वचा के रोग विष दोष खांसी स्वास वात काफ आदि तथा मुंह की दुर्गंध नष्ट होती है तुलसी से किडनी की कार्य शक्ति में वृद्धि होती है ब्लड प्रेशर हृदय की दुर्बलता मानसिक शारीरिक दुर्बलता और कैंसर जैसे असाध्य रोगों में भी लाभ देखा गया है मुंहासे दूर करने एवं चेहरे की कांति बढ़ाने मैं भी तुलसी अत्यंत उपयोगी है इस प्रकार अनेकों रोगों के निदान हेतु तुलसी एक अत्यंत उपयोगी वनस्पति सिद्ध होती है



नंबर 2-- नीम यह एक अत्यंत उपयोगी वृक्ष है इसकी जड़ से लेकर फूल पत्ती वह फल सभी अवयव औषधीय गुणों से भरपूर हैं भारतीय चिकित्सा में यह कल्पवृक्ष तुल्य है इसकी जड़ को उबालकर पीने से बुखार दूर होता है इसकी छाल के प्रयोग से फोड़े फुंसी खुजली दाद आदि चर्म रोग दूर हो जाते हैं नीम की दातून से दांत और मसूड़े मजबूत होते हैं तथा पायरिया जैसे रोग भी दूर हो जाते हैं नीम की पत्तियां चबाकर खाने से रक्त शुद्ध होता है पत्तियों के उबले पानी से स्नान करने से त्वचा संबंधी बीमारियां दूर होती हैं घाव धोने से उसके जीवाणु मरते हैं और घाव ठीक हो जाता है नीम की पत्तियों का प्रयोग पेचिश और प्रमे ह जैसी बीमारियों में भी लाभ मिलता है नीम की पत्ती की खाद फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का विनाश कर पेड़ पौधों को पोषक तत्व प्रदान करती है फूल ब निबोरी के प्रयोग से पेट के रोग नहीं होते निबोरी का तेल भी अनेक चर्म रोगों के लिए लाभकारी सिद्ध होता है


तीसरा---- अडूसा इसे वासा के नाम से भी जाना जाता है आचार्य सुश्रुत ने वासा छय रोग तथा कफ नाशक एवं स्वास को तुरंत ठीक करने वाला कहा है खांसी के लिए अकेले ही समर्थ औषधि है बच्चों की काली खांसी व कुकर खांसी में वासा की जड़ का काढ़ा अति लाभकारी है यह ज्वरनाशक तथा रक्तशोधक भी है यह टॉनिक का भी कार्य करता है


चौथा ----अर्जुन वृक्ष, यह हृदय रोग के लिए श्रेष्ठ औषधि है आयुर्वेद शास्त्री वाग्भट भाव मिश्र आदि ने तथा निघंटु कार ने भी इसे हृदय तथा मांसपेशियों को सशक्त करने वाली अचूक दवा बतलाया है हड्डी का टूटना सूजन तथा दर्द को कम करने की शक्ति भी इसमें निहित है


पांचवा ---- ब्राह्मी इसे सोमवल्लीरी सौम्य लता दिव्या महा औषधि आदि कई नामों से जाना जाता है यह मस्तिष्क को शक्ति एवं पौष्टिकता प्रदान करने वाली तथा स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली है उन्माद और अपास्मार जैसे रोगों में भी यह लाभकारी है विद्यार्थियों के लिए अति उपयोगी औषधि है


छटा---- पलाश वेदों में इसे ब्रह्म वृक्ष कहा गया है यह एक औषधीय वृक्ष है चरक संहिता के अनुसार पलाश के 38 प्रयोग बताए हैं इन प्रयोगों के द्वारा प्रमेह कुष्ठ रोग, शोथ उदर रोग अर्श ग्रहणी अतिसार कृमी दंत शूल प्रदर रोग खांसी तथा नेत्र रोग आदि का उपचार किया जाता है पलाश का प्रयोग गर्भपात को रोकने वह गर्म रक्षण हेतु भी किया जाता है यह एक श्रेष्ठ रसायन है


सातवा ----आमला यह सर्वश्रेष्ठ शक्ति दायक फल है अमृत्तुल्य गुण होने के कारण इसे अमृत फल भी कहा गया है यह विटामिन "सी" का अनंत भंडार है एक पुष्ट ताजे आंवले में 20 नारंगीयों के बराबर विटामिन सी रहता है इससे रक्त शुद्ध होता है और रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है अश्विनी कुमार ने बुढ़ापा दूर करने हेतु च्यवन ऋषि को प्रतिदिन एक आमला सेवन करने का निर्देश दिया था ओज बल एवं युवावस्था को स्थिर रखने और बुढ़ापा दूर भगाने की यह सर्वश्रेष्ठ औषधि है इसमें सर्व रोग नाशक क्षमता विद्यमान है आंखों में ज्योति बढ़ाने बल वीर्य में वृद्धि करने वाला है हाई ब्लड प्रेशर हृदय रोग कैंसर नपुंसकता स्नायु रोग मंदाग्नि लिवर किडनी के रोग पीलिया टीवी मूत्र रोग तथा हड्डियों के रोगों को दूर करने वाला है आमला त्रिदोष नाशक है हजारों वर्ष पूर्व की गई भारतीय चिकित्सा विज्ञान की इस खोज को आधुनिक वैज्ञानिकों ने पुनः खोज कर यह स्वीकार किया है कि आमले में पाए जाने वाला एंटी ऑक्सीडेंट एंजाइम बुढ़ापे को रोकता है सिर के रोगों तथा वालों के लिए भी आमला तेल अत्यंत हितकारी है आंवले में जितने रोग प्रतिरोधक एवं रक्त शोधक तत्व विद्यमान है उतने संसार की किसी औषधि में नहीं है अतः हमें प्रतिदिन आंवले का सेवन अवश्य करना चाहिए


आठवां----- गेहूं का पौधा या एक उत्तम शक्ति दायक भोज्य पदार्थ है 24 घंटे भिगोकर सुबह गेहूं का नाश्ता करने से तथा चोकर का हलवा खाने से शक्ति आती है आटा भी चोकर सहित खाना चाहिए गेहूं के छोटे-छोटे पौधों का रस बवासीर भगंदर मधुमेह दमा खांसी गठिया बाय पीलिया तथा कैंसर जैसे असाध्य रोगों को दूर करने की क्षमता रखता है संसार में ऐसा कोई रोग नहीं जो इस रस के सेवन से अच्छा ना हो सके भयंकर फोड़ा तथा घाव पर भी इसकी लुगदी बांधने से शिघृ मिलता है


नवा--- मेथी मेथी का शाक पचने मे हल्का भूख वर्धक मल अवरोध को दूर करने वाली तथा हृदय के लिए हितकर तथा बल प्रद होती है यह पौष्टिक तथा रक्त को शुद्ध करने वाली है यह बुखार अरुचि उल्टी खांसी वात रोग कफ बवासीर क्रमी तथा क्षय रोग का नाश करने वाली है कमर दर्द रक्त चाप संधि बात मधु प्रमेह वायु गोला आदि को मिटाने वाली है यह लू लगने से भी बचाती है



दसवां--- पुनर्नवा यह वनस्पति वर्षा ऋतु में बहुतायत से पाई जाती है शरीर की आंतरिक एवं व्हाई सूजन को दूर करने हेतु अत्यंत उपयोगी है यह विभिन्न नेत्र रोग खूनी बवासीर जलोदर पथरी पीलिया मस्तक रोग ज्वर रोग अनिद्रा हृदय रोग दमा आदि में भी हितकारी है इसकी जड़ व पत्तों का रसायन रूप में प्रयोग करते हैं



11 मूली---- यह विटामिन "ए" का खजाना है इसमें प्रोटीन कैल्शियम गंधक आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है इसमें सोडियम फास्फोरस क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी है इसकी जड़ पत्ते फली सभी स्वास्थ्यवर्धक है मूली शरीर से विषैली गैस को निकालकर जीवनदायी ऑक्सीजन प्रदान करती है थकान मिट आती है पेट के कीड़े पेट के घाव ठीक करती हैं उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करती है मूली के रस में नमक और नींबू का रस मिलाकर पीने से मोटापा दूर होकर शरीर स्वस्थ और सुडौल बनता है गर्भपात को रोकती है और पुरुष में वृद्धि करती है यह सौंदर्य वर्धक भी है प्रतिदिन सेवन से रक्त शुद्ध होता है रंग निखरता है कील मुंहासे तथा चेहरे की झाइयां दूर होती हैं



12 विभिन्न फल -----फलों में सेब अंगूर पपीता अमरूद केला नारंगी अंजीर अनानास खजूर नींबू आदि अनेक फल विभिन्न रोगों को दूर करने की क्षमता रखते हैं नींबू का प्रयोग पथरी तथा बालों के लिए एवं कमर दर्द भूख अपच पेट दर्द हैजा दस्त उल्टी आदि के लिए किया जाता है या नेत्र ज्योति वर्धक भी है


वनस्पतियों का भंडार अपार है भारतीय चिकित्सा विज्ञान में इन सभी वनस्पतियों का प्रयोग रोगों के शमन हेतु व स्वास्थ्य वर्धन हेतु किया गया है जिनका वर्णन करना संभव नहीं है भारतीय चिकित्सा विज्ञान में पत्थ एवं अपथ्य पर ही विशेष विचार किया गया है---" पथ्य सेवन और अपथ्य का परित्याग"--- यही स्वास्थ्य का मूल मंत्र है अतः हमें पूर्णता शाकाहारी बन कर पथ्य वनस्पतियों का सेवन कर अपने शरीर की रक्षा करना चाहिए, क्यों कि शरीर ही धर्मार्थ चतुष्टय का मूल आधार है


इति






















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