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जहाज़ महल

साल का आखिरी दिन था। पूरा शहर जश्न मनाने की तैयारी कर रहा था। सड़कों पर भीड़ कम हो चुकी थी क्योंकि लोग बाग़ अपने घरों में सज संवर रहे थे। नए साल की पार्टी का जश्न हर बार कुछ ख़ास जो होता था। शहर की सबसे पॉश कॉलोनी गुलमोहर गार्डन के 'विंग ए' में टॉप फ्लोर पर एक बड़े से फ्लैट में शालिनी और अमन भी ज़ोर शोर से नए साल के स्वागत की तैयारी कर रहे थे। इस बार वो लोग शालिनी की बहन के घर एक हाउस पार्टी में जा रहे थे। शालिनी प्रैग्नैंट थी और अमन उसे किसी भीड़ भाड़ वाली जगह पर लेकर जाना नहीं चाहता था।

"हम लोग क्राउन प्लाज़ा क्यों नहीं जा रहे अमन? मेरी सारी फ्रैंड्स इस बार वहीँ जा रही हैं।" शालिनी ने अपने बाल संवारते हुए कहा।

"बेबी, इस हालत में? देखो, डॉक्टर ने साफ़ कहा है कि अब हमारा छोटा मेहमान कभी भी आ सकता है। ऐसे में इतनी भीड़ वाली जगह पर, तेज़ म्यूजिक के बीच, ठीक नहीं होगा। सेलिब्रेट करने के तो हज़ार मौके मिलेंगे हमें पर अभी सेफ्टी ज़रूरी है।" अमन ने अपनी टाई सेट करते हुए कहा।

शालिनी के चेहरे से ज़ाहिर था कि वो मुत्तमईन नहीं थी पर बहस कर के वो अपनी शाम खराब नहीं करना चाहती थी। और वैसे भी उसके जीजा शहर के जाने माने डॉक्टर थे। उनकी हाउस पार्टी थोड़ी एलीट किस्म की ज़रूर होने वाली थी पर बोरिंग बिलकुल नहीं।

अमन ने मुस्कुराकर एक भरपूर नज़र शालिनी पर डाली और बोला, "क़यामत! बहुत अच्छी लग रही हो। मैं गाड़ी निकालता हूँ, तुम आ जाओ।"

अमन निकल गया और शालिनी आईने में अपने अक्स को निहारती अपने मेकअप को फिनिशिंग टच देने लगी। अपने चेहरे के ग्लो को देख कर वो इठला उठी। प्रैग्नैंसी ग्लो और अमन के कॉम्पलिमेंट के कॉम्बिनेशन से चेहरा खिल उठा था।

शालिनी खुद भी जानती थी कि डिलीवरी की डेट नज़दीक थी और ऐसे में अपनी फ्रैंड्स के साथ वो वैसे भी उतना एन्जॉय नहीं कर पाती लेकिन न जाने क्यों अमन को अपनी परवाह करते देखना अच्छा लगता था उसे। जब वो उसकी ज़िद पर गुस्सा ना कर के किसी छोटी बच्ची की तरह उसे समझाता तो शालिनी को लगता कि शादी से पहले वाला अमन वापस आ गया है जो शादी के बाद ज़िम्मेदारियों और कॉर्पोरेट की मोटी तनख्वाह के बड़े बोझ के नीचे कहीं छुप सा गया था।

अपने आप पर एक क्रिटिक जैसी नज़र डालकर जब शालिनी को इत्मिनान हुआ, उसने अपना पर्स उठाया और कुछ मेकअप का सामान, मोबाईल और दवाइयां डालकर बाहर की ओर चल दी। वो दरवाज़े पर पहुंची ही थी कि एक डिलीवरी बॉय पैकेट ले कर प्रकट हो गया। अमन ने देखा तो गाड़ी में से ही चिल्लाकर बोला, "कम ऑन शालिनी! हम पार्टी में जा रहे हैं। तब भी तुमने खाना आर्डर किया है!"

शालिनी ने मुस्कुराकर अमन को देखा, पेमेंट किया और मीनू को आवाज़ देकर बुलाया। मीनू को पैकेट संभलवाकर शालिनी ने उस से कुछ कहा और वो खिल उठी। शालिनी आकर गाड़ी में बैठी और सीट बेल्ट बांधते हुए अमन से बोली, "गाड़ी चलाओ न! ऐसे क्या देख रहे हो? अरे बाबा इतना भी नहीं खाने लगी मैं। वो आज हम सब पार्टी करेंगे और मीनू हमारे घर की देखभाल! तो मैंने कुछ डिज़र्ट्स और चाइनीज़ खाना आर्डर किया और मीनू को बोला कि बच्चों को बुलाकर खिला दे!"

"हमारे घर में?"

"हाँ। तो क्या फ़र्क़ पड़ जाएगा? बैडरूम लॉक्ड है। डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खा भी लेंगे तो क्या हो जाएगा अमन? मीनू सफाई तो कर ही देगी न? और फिर वो हमारे घर का, हमारा कितना ख्याल रखती है!"

"तुम जो करो वो ठीक है।"

"तुम नाराज़ हो?"

"नहीं। तुम्हें इस से ख़ुशी मिलती है तो मैं कैसे नाराज़ हो सकता हूँ भला?"

"इसीलिए तो आय लव यू सो मच अमन!"

प्यार में भीग कर और फिर और ट्रैफिक में लाल पीले होकर, दोनों शालिनी की बहन के घर पहुंचे। घर क्या था, एक शानदार कोठी थी। ऊँची सफ़ेद चारदीवारी, जिस पर थोड़ी थोड़ी दूरी पर पीले खूबसूरत बल्ब लगे हुए थे और आज रंग बिरंगी लाइट्स भी दमक रही थीं। घर के बाहर कुछ गाड़ियां पार्क थीं। बड़े से काले गेट पर दो गार्ड तैनात थे। अमन पार्किंग के लिए जगह तलाश ही रहा था कि गार्ड ने उसे पहचान कर सलाम ठोका और अंदर जाने का इशारा करते हुए गेट पूरा खोल दिया। बड़े से गार्डन में हर जगह रौशनी थी पर पार्टी का कोई इंतज़ाम नज़र नहीं आ रहा था।

"पार्टी पीछे पूल साइड पर है। दीदी ने बताया था।" शालिनी ने चहक कर कहा।

अमन ने मुस्कुराकर गाड़ी पोर्च में कोठी के अंदर जाने वाले दरवाज़े के ठीक सामने लगा दी और सहारा देकर शालिनी को उतारा। बाईं ओर का लोहे का खूबसूरत पार्टीशन हटा हुआ था, यानि मेहमान सीधे, पीछे पूल की तरफ जा सकते थे। कोठी के अंदर जाने की ज़रूरत नहीं थी।

शालिनी ने अमन को इशारा किया और वो दोनों भी बाकी मेहमानों की तरह कोठी के साइड से होकर पीछे पूल तक पहुंचे। पूल के चारों ओर गोल टेबल्स और कुर्सियों पर मेहमानों के बैठने की व्यवस्था थी। एक ओर करीने से बार और खाने के काउंटर लगे हुए थे जहां से वेटर ट्रे में मेहमानों को सभी व्यंजन और उनकी पसंद का ड्रिंक सर्व कर रहे थे। ठीक सामने, दीवार के सहारे स्टेज बनाया गया था। खूबसूरत ताज़े फूलों और रंगीन बल्बों की झालरों की सजावट के बीच जाने माने युवा ग़ज़ल गायक विराट अनुपम जी अपने संगतकारों के साथ मखमली सफ़ेद चादरों से ढके स्टेज पर विराजमान थे। पूल में तैर रहे फ्लोटिंग कैंडल्स, मद्धम रौशनी, गुलाबी ठंड - इन सब की बराबरी सिर्फ़ अनुपम जी की मरमरी आवाज़ ही कर सकती थी।

स्पीकर से अनुपम जी की आवाज़ जादू बिखेर रही थी -

"स्याह शब में वो नई नूर अंदाज़ी लाए, अंधेरों के शहर में रोशन चिराग लाए।

कतरा कतरा जल रही है तन्हाई, इज़्तिरारी में वो कुरबतों की नर्म आग लाए।"

अमन ने एक कुर्सी पर शालिनी को सहारा देकर बैठाया और टेबल पर कार की चाबी और अपना मोबाइल रख कर चरों तरफ एक नज़र दौड़ाई। अपने ठीक पीछे वाली टेबल पर उसे निहारिका नज़र आयी। अनुपम जी की पत्नी - निहारिका, जो जानी मानी आर्टिस्ट थी। निहारिका की दो खूबसूरत पेंटिंग्स अमन के घर की शोभा भी बढ़ा रही थीं। अमन को देखते ही निहारिका ने चहक कर हेलो बोला। अमन ने मुस्कुराते हुए उसका अभिवादन किया। शालिनी ने जैसे ही निहारिका की आवाज़ सुनी, वो उठी और निहारिका को इशारा कर अपने पास बुला लिया। निहारिका और शालिनी अच्छी सहेलियां थीं। दोनों एक ही कॉलेज से पढ़ी थीं, शादी से पहले एक ही कॉलोनी में रहती थीं, और किस्मत से अब भी दोनों पड़ौसी थीं। और अजब संयोग ये कि दोनों ही प्रैग्नैंट थीं और दोनों ही की डिलीवरी की ड्यू डेट नज़दीक थी।

निहारिका आकर उन दोनों के साथ बैठ गयी। ऐसा अक्सर होता था कि जब अनुपम जी परफॉर्म कर रहे होते थे, निहारिका अक्सर अकेली, खामोश बैठ उन्हें सुनती रहती थी।

कभी अगर शालिनी उस जगह मौजूद होती तो दोनों सहेलियां साथ वक़्त गुज़ारतीं वरना अनुपम जी की बिज़ी लाइफ़ में एक ओर जहां सोने-उठने और खाने-पीने से लेकर हर छोटी बड़ी चीज़ का वक़्त मुक़र्रर था, वहीँ निवेदिता के साथ बिताने के लिए बिलकुल भी वक़्त नहीं था।

शालिनी और निवेदिता अपनी बातों में मशगूल हुयी ही थीं कि शालिनी की बहन और जीजा आ पहुंचे। उन्हें मेहमानों का स्वागत करने में व्यस्त देख कर अमन और शालिनी दूर से वेव कर के अपनी टेबल पर आ बैठे थे। दोनों बहनें गले मिलीं और उनकी बातें शुरू हो गयीं। निवेदिता भी दल की सक्रिय प्रतिभागी के तौर पर बातों में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही थी।

डॉक्टर साहब से एक नज़र तीनों महिलाओं पर डाली और अमन का हाथ खींचकर शालिनी और निवेदिता अपनी बातों में मशगूल हुयी ही थीं कि शालिनी की बहन और जीजा आ पहुंचे। उन्हें मेहमानों का स्वागत करने में व्यस्त देख कर अमन और शालिनी दूर से वेव कर के अपनी टेबल पर आ बैठे थे। थोड़ा फ्री होते ही दोनों यहाँ चले आये। दोनों बहनें गले मिलीं और उनकी बातें शुरू हो गयीं। निवेदिता भी दल की सक्रिय प्रतिभागी के तौर पर बातों में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही थी।

डॉक्टर साहब ने एक नज़र तीनों महिलाओं पर डाली और अमन का हाथ खींचकर बोले, "अमन, यहाँ किट्टी पार्टी चालू है और हमारी इम्पोर्टेंस ख़त्म! चलो, वहां चलकर बैठते हैं और हम भी मर्दों की अलग महफ़िल जमाते हैं। कभी कभी तो मौका मिलता है बीवियों से बचने का।"

"हाँ हाँ जाइए जीजाजी, लेकिन भूलिएगा मत कि मर्द कहीं भी जाएं, अपनी बीवी के रडार से बाहर नहीं हो सकते।" शालिनी ने अपनी दीदी को हाई फाइव देते हुए कहा।

उसकी बात पर सभी ठहाका मारकर हंस पड़े। डॉक्टर साहब और अमन कुछ कदम चले ही थे कि शालिनी ने पुकारा। पलटकर देखा तो पाया कि निवेदिता को लेबर पैन शुरू हो गए थे। उसे संभालती शालिनी के चेहरे के भाव देख कर अमन ने भागकर उसे संभाला और उसकी आँखें देखकर बिना बोले ही सब समझ गया।

"डॉक्टर साहब! दोनों सहेलियों को एक साथ ही ले जाना पड़ेगा। आप मेहमानो को देखिए, मैं हॉस्पिटल जा रहा हूँ।" कहते हुए अमन ने सहारा देकर शालिनी को उठाया और शालिनी की दीदी ने निवेदिता को संभाला।

कमाल की बात थी कि अनुपम साहब मंच पर गाने में इतना तल्लीन थे कि उनका ध्यान ही नहीं था निवेदिता की तकलीफ़ पर।

अमन गाड़ी पूल के पास तक ले आया और तीनो महिलाऐं बैठ गयीं। कार हॉस्पिटल की ओर रवाना हो रही थी और दो ज़िन्दिगियां जद्दोजहद.... इस दुनिया में आने के किए जद्दोजहद!

- क्रमशः
- अदिति जैन

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