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प्रेम, बारिश और पत्र !

प्रेम, बारिश और पत्र !

हाउस no 23 /D से आती तेज़ आवाज़ों से बाहर नीम के पेड़ पर बैठा एकलौता कौआ घबरा के काँव काँव करते हुए उड़ गया और उसी के साथ उस आलीशान बंगले से दनदनाते हुए कर्नल श्रवण तीर की तेज़ी से चलते हुए गाड़ी में जा बैठे। उनके पीछे भागते हुए बंसी भी बाहर निकला और बड़ा सा गेट पूरा खोल दिया, गाड़ी निकलते ही माथे का पसीना पोंछते हुए वही लॉन के पास बनी सीढ़ियों पर बैठ गया. उनके पीछे पीछे गीता भी अपनी हंसी दबाये, आकर उसकी बगल में जा बैठी।

'बड़ा कहते हो मैं नहीं डरता, देखो कैसे पसीने छूट रहे है' हँसते हुए गीता ने अपने दुप्पट्टे से बंसी के माथे का पसीना पोंछते हुए कहा।

'गलती तो मेरी ही है,तुमने भी नहीं बताया कि मफिन्स खत्म हो गए हैं, जानती तो हो साहब नाश्ते में वही लेते है, भड़के तो जायज़ बात पर ही ना' बंसी शर्मिंदा सा बोला।

'कुछ भी कहो, हैं तो खड़ूस ही ना!'

'ऐसे मत कहो, नारियल जैसे है साहब, ऊपर से कठोर मगर दिल से एकदम मुलायम'

'दिल तक पहुंचने से पहले बंदा चाहे ऊपर ही पहुंच जाए!' गीता खिलखिला पड़ी, बंसी आंख दिखाता हुआ अंदर की ओर चल पड़ा.

हुआ यूँ था कि आज सुबह आठ बजे जब कर्नल श्रवण नाश्ते की टेबल पर आये तो मफिन की बास्केट खाली देख उनका पारा एकदम शूट हो गया! 45 साल के अविवाहित रिटायर्ड श्रवण को ज़िंदगी में डिसिप्लिन के बाद यदि किसी चीज़ से प्यार है तो वह है मफिन्स! पूरे दिन चाहे कुछ ना खाये, कोई डिमांड ना करे लेकिन नाश्ते में दो मफिन तो उन्हें चाहिए ही चाहिए। सुबह नाश्ता लगाते हुए जब बंसी ने देखा कि मफिन्स ख़त्म है तो उसका रंग ही उड़ गया, भागते हुए अपनी साइकिल उठा वह एरोमा बेकरी पहुंचा, लेकिन दस मिनट इंतज़ार के बाद भी दूकान अभी खुली नहीं थी, सो मन मार वह वापिस आ गया. और जैसा पता था ठीक वैसा ही कर्नल साहब ने एक तूफ़ान खड़ा कर दिया, और अच्छा ख़ासा सुनाने के बाद गाड़ी की चाबी उठायी और घर से बाहर हो गए!

एरोमा बेकरी खुल चुकी थी, देहरादून की यह बेकरी उनकी फेवरेट थी, और यही के मफिन्स के वह दीवाने थे. गुस्से और भूख की जल्दी में उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया और दरवाज़ा बाहर की ओर खोलने की जगह उन्होंने उसे अंदर की तरफ खोल दिया जो बाहर निकल रही मोहतरमा के सर पर लगने से बाल बाल बच गया. थोड़ा शर्मिंदा थोड़ा बौखलाते हुए कर्नल साहब सॉरी बोल कर अंदर खिसक लिए और मोहतरमा कमर पर हाथ रख, तमतमाया चेहरा लिए कुछ पल तो उन्हें घूरती रही और फिर एक सेल्समेन के समझाने पर मन ही मन कुछ बुदबुदाते सर झटक बाहर चली गयी. सामने लगे शीशे में उसे जाता देख कर्नल साहब शांति की सांस ले माथे का पसीना पोंछने लगे!

दिन की शुरुआत ही अच्छी ना हो तो दिन अच्छा कैसे जाएगा, सोचते हुए कर्नल साहब ने मफिन्स लिए,पेमेंट की और तेज़ी से बाहर आये तो देखा बारिश शुरू हो गयी थी, पहाड़ों की बारिश का क्या कब आये कब चली जाए! पानी से बचते हुए कर्नल साहब आकर अपनी में गाड़ी में बैठ गए. कल पूरी रात बारिश हुई थी, सड़कों पर कही कही पानी जमा था, लेकिन सुबह के वक़्त ज्यादा भीड़ भक्कड़ ना होने की वजह से उन्होंने तेज़ी से U -Turn लिया तो सड़क पर जमा पानी फ़व्वारे र्की तरह चारो तरफ बिखर गया और उसके साथ ही एक तेज़ चीख उनके कानो से आ टकराई! गाड़ी रोक कर बाहर देखा तो उनके होश ही उड़ गए! बेकरी शॉप वाली मोहतरमा स्कूटर से उतर हेलमेट हाथ में लिए सीधे उनकी तरफ ही आ रही थी। उसे देखते ही वह पूरा माज़रा पलभर में समझ गए! मोहतरमा के साफ़, शफ्फाक कुर्ते और सलवार पर कीचड़ के पानी का abstract डिज़ाइन खूब उभर कर आया था! शर्मिंदा होकर वह गाड़ी से उतर आये और उनके सॉरी बोलने से पहले ही अपनी मोटी -मोटी आँखे घुमाते हुए मोहतरमा गुस्से से जाने क्या क्या बोले जा रही थी

'देखिये, सड़क पर पानी था, और कोई रास्ता नहीं था, आप थोड़ा सावधानी रखती तो ऐसा नहीं होता, वैसे भी मैंने आपको देखा नहीं था" उसे चुप करने की कोशिश में कर्नल साहब उसे चुप कराने की कशिश करने लगे तो मैडम और भड़क गयी.

'क्या मतलब है आपका? गलती खुद की और मुझे संभल कर चलने का उपदेश दे रहे है? आँखे दी है न ईश्वर ने, सामने देख लिया करे'

'मैडम, मैं सॉरी कह तो रहा हूँ, खामखाँ बात बढ़ा रही हैं आप!' कर्नल साहब अपने आप को सँभालते हुए बोले।

'कुछ तो प्रॉब्लम है आपको, पहले सर फोड़ने में कोई कसर नहीं रखी और अब यह गन्दा पानी मेरे ऊपर बरसा दिया! किसी सरकारी अस्पताल में जा कर आप अपनी आँखों का इलाज़ करवा ले, हो सके तो दिमाग का भी -नार्मल नहीं लग रहे आप मुझे!' गुस्से से उसके गाल तमतमा रहे थे और बालों की एक मोटी सी लट बार बार उसकी आँखों के सामने आ रही थी. एक हाथ से हेलमेट हिलाते और दूसरे से बाल पीछे करते उस चेहरे पर कर्नल साहब की निगाहें मानो जम गयी, आँख हटाने की बरसक कोशिश के बाद भी वह अपने नज़रे उससे हटा ही नहीं पा रहे थे! उन्हें इस तरह घूरते देख मोहतरमा का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया था.

'इंसान को शर्म आती है तो माफ़ी मांगता है पर आप को अपने किये पर पछतावा है ना शर्म, भगवान ही समझे आप जैसे ill -mannered इंसांन को!' पैर पटकते हुए रोली - पोली सी वह मोहतरमा जब जाने को पलटी तब कर्नल साहब को होश आया.

'sorry, गलती मेरी ही थी' जब तक उनका मुँह खुला तब तक मोहतरमा उन पर एक नफरत भरी निगाह डाल अपना स्कूटर स्टार्ट कर चल दी थी. कर्नल साहब का सॉरी हवाओं में ही टंगा रह गया!

दिल के अपने लॉजिक अपने रीज़न होते है यह बात कर्नल श्रवण को जीवन में पहली बार समझ में आ रही थी. अपनी 45 साल की उम्र में ऐसा नहीं था उन्हें किसी पर प्यार ना आया हो; दुनिया भर के जानवर, बंदूके, गाड़ियां, बाइक्स सब पर उन्हें प्यार आता था लेकिन आज बात कुछ और थी -आज जिस पर उनका दिल कुछ कच्चा कच्चा हो रहा था वह एक लड़की थी - उन्हें भला -बुरा कहती लड़की, गोल गोल आँखे घुमाती लड़की, और एक हाथ से हेलमेट सँभालते दूसरे हाथ से अपने घने बाल चेहरे से हटाती लड़की! कर्नल साहब अपने ही हाल पर बेहाल से हो रहे थे. इसी बेध्यानी में घर आकर वह चुपचाप अपने कमरे में जा कर लेट गए. काले और सफ़ेद रंगों से सजा बैडरूम उनका सबसे प्रिय कमरा था, जहाँ ज्यादा सामान नहीं था, एक बड़ा सा बेड, एक आराम कुर्सी, एक छोटा सा सोफा, एक टेबल और वाल टू वाल ग्रे कारपेट, और बालकनी में लगे खूब हरे भरे ढेर सारे पौधे! औंधे लेटे कर्नल श्रवण को पहली बार लगा कि टेबल पर एक बड़े से वास में ढेर सारे लाल फूल होते तो कमरा ज्यादा अच्छा लगता! जाने किन फूलों के साथ साथ आग बरसाती मोहतरमा के बारे में सोचते सोचते कब उनकी आँख लग गयी, पता ही ना चला.

ठीक उसी वक़्त, मसूरी रोड के छोटे से बंगले में मुँह बनाती, बड़बड़ाती देविका अपने सफ़ेद सूट के धूसर रंग को धोने के लिए डाल, नहाने चली गयी.

'इस प्यारे शहर में इतने बतमीज़ लोग है, मुझे पता नहीं था, बाहर से आया होगा, कोई टूरिस्ट ही होगा! अपने किसी जानने वाले की गाड़ी उठायी और चल पड़े होंगे शहर एक्स्प्लोर करने, कितनी बेशर्मी से घूर रहा था, ना शर्म ना लिहाज़' देविका नहाते हुए लगातार बड़बड़ाये जा रही थी.

'सुबह सर धो कर निकली थी, कहाँ मालूम था घंटे भर बाद दोबारा शैम्पू करना पड़ेगा! सोचा था संडे है ढेर काम निपटा लूँगी मगर इस हालत में कहाँ जाती!' नहा कर अपनी हेल्पर बेला के हाथ की अदरक, इलायची वाली चाय पीते भी उसके दांत अब भी गुस्से से किटकिटा रहे थे.

लगभग 42 साल की रोल्ली -पोली सी थी मैडम देविका! हिंदी की प्रोफेसर थी. 23 साल की उम्र में पहला इश्क़ किया था, और शादी के मंडप में फेरों से ठीक पहले जब लड़के के माँ पिता ने उसके पिता से उनका बंगला अपने बेटे के नाम करने को कहा तो बड़ी उम्मीद से उसने अपने महबूब की तरफ देखा था, लेकिन उसे बेशर्मी से मुस्कुराते देख, अपने माँ बाबूजी का हाथ पकड़ मंडप छोड़ बाहर आ गयी थी, उसके बाद शादी के बारे में कभी सोचा भी नहीं।किताबों, ग़ज़लों, फूलों सितारों के साथ साथ वह खाने की बेहद शौकीन थी - पूड़ी छोले, चाट -पापड़ी, परांठे मिल जाए तो बड़े से बड़ा गुस्सा भी मिनटों में काफूर, लेकिन केक, चाकलेट उसे बेहद नापसंद थे. कमरे की बत्ती बुझा, हैडफ़ोन चढ़ा, अपनी मनपसंद ग़ज़ल लगा जब वह लेटी तो लगातार घूरता चेहरा उसके जहन में चमकने लगा, और वह झटके से उठ कर बैठ गयी!

ज़िंदगी अगर अपने ढर्रे पर चलती रहे तो आसान लगती है, लेकिन जहाँ उसने कोई घुमावदार मोड़ ले लिया तो उससे निपटना थोड़ा मुश्किल हो जाता है, और इसी मुश्किल में आ फंसा था कर्नल श्रवण का दिल! बंसी और गीता दम साधे उनका बदला हुआ रूप देख रहे थे, मन ही मन डरे हुए भी थे कि गरजने वाला शेर कैसे चुप सा बैठा है, कही यह तूफ़ान से पहले की शांति तो नहीं?

'सुनो जी, मुझे लगता है साहब अपने अकेलेपन से उदास है? शादी काहे नहीं कर लेते?' गीता चुप तो रह नहीं सकती थी.

'बड़े साहब और मेमसाहब बोल- बोल कर थक गए थे, एक से एक शानदार घरों के रिश्ते आते थे, लेकिन कभी हां ही नहीं की! कई दोस्त थी इनकी, हर बार हमे लगता यही बहूरानी है लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं' बंसी गहरी सांस लेते हुए बोला।

'समय कोई एक सा रहता है क्या? हो सकता है प्रेम व्रेम हो गया हो इन्हे?' गीता ठोड़ी पर हथेली टिका कर हॅसने लगी और सीढ़ियों से आते कर्नल साहब की मानों सांस ही रुक गयी!

'प्रेम?' गीता की बात रह रह कर उनके दिमाग में कौंधने लगी! 'क्या सच में? नहीं, नहीं ऐसा कैसे संभव हो सकता है? लेकिन जो मेरे साथ हो रहा है वह भला है क्या? शायद इतनी बतमीज़ी की है मैंने, उसका ही गिल्ट है, माफ़ी मांग लूँगा तो शांति मिले शायद! लेकिन कहाँ ढूंढूंगा उसे? मिलने को चंद मिनटों में ही दो बार मिल गयी लेकिन पिछले पंद्रह दिन से कितनी बार निकला हूँ एक बार भी नहीं दिखी' सोचते हुए श्रवण गाड़ी में जा बैठे। शायद बेकरी वाला जानता हो, सोच कर उन्होंने गाड़ी एरोमा बेकरी की तरफ बढ़ा दी.

दूकान के अंदर जाते समय, तीर की तरह तने रहने वाले कर्नल साहब के कंधे आज थोड़ा झुके झुके से थे। सकुचाते हुए वह भीड़ छंटने का इंतज़ार करने लगे. दर्जन भर मफिन पैक करवाते हुए उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि किस तरह और क्या पूछे? पेमेंट करने लगे तो सामने वही सेल्सबॉय था जिसने उस दिन उन मोहतरमा को कुछ समझाया था.

'वह........ उस दिन ....... जिनके सर पर दरवाज़ा लगने से बच गया था, उन्हें जानते हो क्या?'

'जी, कर्नल साहब, देविका मैम है, प्रोफ़ेसर है,मैं उनका स्टूडेंट रह चूका हूँ, यही मसूरी रोड पर रहती है.' लड़का मुस्कुराते हुए बोला।

कर्नल साहब को माफ़ी मांगने का रास्ता मिल गया! एक खूबसूरत सा केक पैक करवा, वहां पड़े कुछ कार्ड्स में से एक सॉरी का प्यारा सा कार्ड उठा उस पर कुछ लिख उन्होंने लड़के को कुछ समझाया और दूकान से मुस्कुराते हुए बाहर आ गए! हल्की हल्की बारिश फिर शुरू हो गयी थी, लेकिन आज कर्नल साहब गाड़ी की ओर ना भाग कर, वही खड़े हो ठंडी ठंडी फुहारों का आनंद लेने लगे. उनके चेहरे पर इत्मीनान की भोली सी हँसी खेल रही थी!

जो अपने घर का दरवाज़ा खुशियों के लिए बंद कर देते है, उनके घर में ख़ुशी बिना दस्तक दिए ख़ामोशी से अंदर आकर ज़ोर से थप्पा कह कर गले लगा लेती है. उस शाम बेला ने जब ऑर्किड के फूलों के एक बुके के साथ, केक और एक हल्के नीले रंग का कार्ड देविका की और बढ़ाया तो देविका चौंक गयी! आज तो न उसका बर्थडे है न कोई और ख़ास दिन, फिर यह किसने और क्यों भेजा? उसने कार्ड खोल कर पढ़ा तो हैरान हो बेला से पुछा -

'कौन लाया?'

'कोई लड़का था दीदी, बोला आपके लिए है'

नीले कार्ड पर गहरी नीली स्याही से अपने नाम और पते के साथ लिखा था -'I am sorry'!

कई सालों बाद आज यह देख कुछ तो छू कर गया था देविका के मन को, हालांकि इन तीन शब्दों में ऐसा कुछ नहीं था, लेकिन देविका को जो लिखा था आश्चर्य उस पर नहीं था बल्कि इस बात पर था कि सॉरी बोलने के लिए कितना प्रयास किया होगा इन कर्नल साहब ने उसे ढूंढ़ने में! उस रात पनीर के कोफ्ते और पुलाव खाने के बाद देविका ने जब नन्हा सा टकड़ा केक खाया तो बेला हक्कीबक्की रह गयी! आज पहली बार उसने देविका को केक खाते देखा था. उस रात कभी सपने ना देखने वाली देविका सिर्फ ऑर्किड के बगीचों के सपने देखती रही. बरसों से खूटियों पर टंगा उसका मन, उस रात चुपके से उतर उसके सीने में जा बैठा था!

यहाँ कार्ड भेज कर कर्नल साहब को थोड़ा चैन तो मिल गया था लेकिन उन्हें यह बात भी समझ आ गयी थी कि सॉरी कहने के बाद भी दिल में जो भारीपन था वह इस बार कुछ अलग था. एकतरफा बेक़रारी को गले क्यों लगाए रखना, सोच कर कर्नल साहब अपने ज़हन से देविका की मोटी मोटी आँखों से कतराने लगे!

देविका भी क्यों याद रखती, गल्ती की माफ़ी मांगना नेकदिल होने का सबूत तो था लेकिन इससे आगे कुछ उम्मीद करना बेवकूफी थी, लेकिन आते जाते वास में रखे ऑर्किड और उनका नीला होता पानी देख उसका खूँटी वाला मन कोई प्यारी सी बेवकूफी करने को चाहने लगा था. फूल मुरझाने लगे थे, उनको फेंकने से पहले वह कुछ करना चाह रही थी, सो अरसे से इक्कठी की हुई स्टेशनरी में से काफी ढूंढ़ने के बाद हल्के गुलाबी लेटर पैड को निकाल, उसने एक पन्ने पर कुछ लिखा, और वैसे ही गुलाबी लिफ़ाफ़े में डाल, उस पर उनका पता लिख बेला को डाक में डालने को बोल दिया। इतना करने के बाद भी उसके दिल में तितलियों सा कुछ कुछ उड़ता रहा, लेकिन वह सबसे अनजान और बेखबर बन अपनी किताबों में फिर से उलझने लगी.

जिस तरह बारिशों से भरे बादलों को देख कर अंदेशा हो जाता है कि आज बारिश होगी वैसे ही चंद शब्दों वाले रंगीन लिफाफों वाले खत में वह सब पढ़ लिया जाता है जो लिखा ही नहीं होता! उस शाम जॉगिग से जब कर्नल साहब वापिस लौटे तो गीता और बंसी के चेहरों पर कुछ ऐसा था जो वह देख तो रहे थे पर समझ नहीं पा रहे थे. जब जूते उतार वह अपनी आराम कुर्सी में बैठे तो बंसी ने एक गुलाबी लिफाफा उनकी तरफ बढ़ा दिया। दो मिनट वह खत हाथ में लिए बैठे रहे, दुआ कर रहे थे कि खत वही हो जिसका उन्हें इंतज़ार था. खत खोल कर कागज़ पर मोती से अक्षरों में लिखा था -

'लड़ने झगड़ने के लिए लोगों को एक दूसरे को ढूंढ़ते हुए तो कई बार देखा है लेकिन माफ़ी मांगने के लिए किसी को ढूंढ़ना पहली बार देखा! आपके भेजे केक, फूलों का शुक्रिया, लेकिन मैं आपके लिए कुछ भेज नहीं पायी, क्योंकि आपकी पसंद नापसंद नहीं जानती। वैसे फ़ोन के ज़माने में पत्र लिखना याद दिलाने का भी शुक्रिया, आज बीस साल बाद किसी को पत्र लिखा है! फ़ोन नंबर नहीं दे रही हूँ , ना आपसे मांग रही हूँ, बात करने का यह पत्र वाला सिलसिला कुछ देर तो चला ही सकते है !- देविका'

बीसियों बार पढ़ कर भी कर्नल साहब की मुस्कुराहट कम नहीं हो पा रही थी. दो -दो सीढ़ियां एक साथ फ़र्लांगते हुए कर्नल साहब जाकर बढ़िया सा लेटर पैड खरीद लाये। अपनी हैंडराइटिंग देख कई बार सकुचा जाते लेकिन अपनी बात कहने में ज़रा नहीं झिझकते!

उस पूरे मानसून, पत्र मेघदूत बन दोनों घरों पर बरसते रहे, और कितनी ही फूलों से भरी नयी क्यारियां बनाते रहे. दो अलग तरह के इंसान उम्र के एक लम्बे पड़ाव पर जब मिले तो दिलों के साथ उनके हाथ भी एक दूसरे पर कस गए थे!

'सुनो, बारिशे ख़त्म होने से पहले मिल लो, भुट्टों का सीजन चला जाएगा, और उम्र भी कुछ और आगे सरक जायेगी, बुढ़ापे में शायद भीगने से बीमार हो जाए, इसीलिए तब तक की हर बारिश में मन भर के भीग लेते है'

'बीमार होने के डर से भीगना छोड़ देंगे?'

'बीमार होने पर साथ के तकिये पर तुम्हारा चेहरा दिखता रहे तो मुझे डर नहीं लगेगा'

जब कर्नल श्रवण ने देविका के सामने विवाह प्रस्ताव रखा तो उसने ख़ुशी से हां कहते हुए बरसों से अलमारी में रखा अपना शादी का जोड़ा निकाल बेला को दे दिया। खुशियों के आने के रास्ते साफ़ होने चाहिए, इतनी छोटी और मुलायम होती है खुशियां कि हल्की सी ठोकर से भी गिर जाती है. और इस बार देविका उन्हें सहेजने के लिए बिलकुल तैयार थी।

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