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छोटू

अरे छाया जल्दी चलना, रोज की तरह आज फिर हम लोग बस स्टैंड जाने में लेट हो जाएंगे। ग्रामीण सेवा भी पूरी भर जाएगी। ऐसा कह के दिशा लगभग छाया का हाथ खींचते हुए बस स्टैंड तक ले कर चली गई।

छाया और दिशा दोनों फ्रेंड है। वह दोनों अपने घर से दूर कंप्यूटर क्लास आती है। आने जानेे के लिए ग्रामीण सेवा जो कि एक तरह की ऑटो है, उसका इस्तेमाल करती है। बहुत सी गाड़ियां आ और जा रही है। ज्यादातर भरी हुुई है, अचानक से एक आवाज आती है जल्दी जल्दी आओ बैठो बैठो... छाया और दिशा उस ऑटो मेंंंं बैठ जाती है। दिशा का ध्यान जाता है उस ऑटो में टिकट लेने वाला एक छोटा बच्चा है जोकि शायद 9 10 साल का होगा। वह बच्चा बहुत ही बातूनी था, एक बार बात करना चालू करता तो फिर रुकता ही नहीं था। वह बिल्कुल फिल्मी अंदाज में बातें करता था हम उसकी बातें सुनते थे और जोर-जोर से हंसते थे, वह भी हमें हंसाने के लिए मजेदार बातें करता था। छोटू मुझे और छाया को दीदी कहने लगा था। मैं जब-जब छोटू को ऑटो पर देखती, मन मैं अनगिनत सवाल आने लगते ऐसी क्या मजबूरी होगी जो छोटू को ऐसी उम्र में काम करना पड़ रहा है। एक बार मैंने छोटू से पूछा भी था छोटू तू स्कूल नहीं जाता है क्या, तो छोटू ने बोला "दीदी स्कूल भेजने वाला कोई नहीं है मैं स्कूल नहीं जा पाता बड़ी मुश्किल से यह काम मिला है इसी में खुश हूं " इतने छोटे से बच्चे के मुंह से ऐसी बात सुनकर मन बड़ा बेचैन हो गया, मुझे समझ ही नहीं आया मैं उसे क्या बोलूं फिर सोचा शायद उसकी जरूरत है।


बाल मजदूरी पर लेख निबंध तो बहुत लिखे जाते हैं। लेकिन उस पर अमल बहुत ही कम लोग करते हैं। कितनी बार हम अपनी आंखों से बहुत से ऐसे छोटे बच्चों को काम करते हुए देखते हैं जो बहुत ही कम उम्र के होते हैं और उन्हें वह काम नहीं करना चाहिए। लेकिन हम लोग देखते हैं और आगे बढ़ जाते हैं, मन में कहीं ना कहीं यह विचार भी आता है कि काश हम इन सब को रोक पाते लेकिन वह विचार, विचार ही रह जाता है, सच्चाई यह है कि आज भी लोग भाषण तो बहुत बड़े-बड़े देते हैं लेकिन उस पर काम नहीं करते। मेरे भी मन में कहीं ना कहीं यह विचार आया कि काश, मैं छोटू को इन सब से निकाल पाती, लेकिन मेरा विचार भी, विचार ही रह गया।

लगभग 1 साल हो गया था हमें इंस्टिट्यूट जाते हुए और इस एक साल में दो चार बार ही ऐसा हुआ होगा कि मैं छोटू के ऑटो में नहीं गए। छोटू और मेरे बीच प्यारा सा रिश्ता बन गया था। वह मेरे लिए छोटू था और मैं उसके लिए दीदी। बहुत बार मैं छोटू के लिए चॉकलेट भी लेकर जाती थी। बहुत खुश हो जाता था उस दिन छोटू और उस दिन मेरे दिल को भी पता नहीं एक सुकून सा मिलता था। छोटू बहुत ही प्यारा था, मासूम सा थोड़ा सा सांवला सा, उसकी आंखें बहुत ही प्यारी थी । सच में काश उसे यह सब कुछ ना करना पड़ता काश वह भी पढ़ता और बच्चों की तरह।

एक दिन जब मैं और छाया क्लास से निकले और बस स्टैंड तक गए तो हमने देखा, छोटू का ऑटो तो खड़ा है ड्राइवर भी वही है लेकिन उसमें छोटू नहीं था।थोड़ा सा अजीब लगा चिंता भी हुई कि छोटू क्यों नहीं है लेकिन फिर सोचा शायद उसे कुछ काम पड़ गया होगा इसलिए नहीं होगा हम जाकर ऑटो में बैठ गए और हमने ड्राइवर से भी कुछ नहीं पूछा । ऐसे ही एक हफ्ता हो गया अब मुझे उसकी चिंता बहुत होने लगी मैंने छाया से बोला छाया चल ना ड्राइवर भैया से पूछते हैं कि छोटू कहां है छाया को भी शायद उसकी चिंता थी उसने बोला ठीक है चल पूछते हैं हमने पीछे बैठे बैठे ही ड्राइवर भैया से पूछा भैया छोटू कहां गया आजकल ऑटो में नहीं आता।ड्राइवर भैया ने बोला पता नहीं बहन जी हमें भी एक हफ्ता हो गया एक दिन गुस्से में बोलता है मैं काम नहीं करूंगा मुझे पढ़ाई कराओ। अब आप ही बताइए मैं तो खुद ही ऑटो चलाता हूं और वह कोई मेरा सगा थोड़ी था जो उसको मैं पढ़ाई करता। तो गुस्से में चला गया उसके बाद आज तक नहीं आया है पता नहीं कहां पर है । मैंने गुस्से में बोला आपने उसे ढूंढने की कोशिश भी नहीं की तो उसने बोला बहन जी उसे ढूंढगा या धंधा करूंगा। गया तो गया.... कितनी आसानी से उसने बोल दिया था.. गया तो गया!


बहुत दिन हो गए थे। हम उस ऑटो में भी नहीं जाते थे। हम दूसरे ऑटो में जाते थे और हमारा इंस्टिट्यूट भी अब खत्म होने वाला था सिर्फ 2 महीने रह गए थे इंस्टिट्यूट खत्म होने में। एक दिन मैं और छाया जब क्लास से निकलकर बस स्टैंड तक जा रहे थे,तो हमने देखा एक छोटा सा बच्चा भीख मांग रहा है वह आने जाने वालों को रोक रहा है और उनसे पैसे मांग रहा है उसका मुंह दूसरी तरफ था हम उसके पीछे खड़े थे मुझे वो लड़का बिल्कुल छोटू जैसा लगा। मैं और छाया जब उसके पास जाकर खड़े हो गए उसे पता नहीं चला मैंने छोटू का हाथ पकड़ा और उसे बोला, छोटू। छोटू एकदम से पलटा और मुझे देखता है उसके हाथ में कुछ पैसे थे जो उसने भीख मांग कर लिए थे। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि मैं छोटू को इस हालत में देखूंगी। छोटू भी मुझे देख कर घबरा गया। वह हड़बड़ा गया जब मैंने उससे गुस्से में पूछा यह तू क्या कर रहा है छोटू, भीख मांग रहा है। वह कुछ नहीं बोला, मैंने उसे बोला तू कहां था इतने दिन, तब भी कुछ नहीं बोला मैंने उससे कहा तुझे पैसों की जरूरत है क्या छोटू। मैं जैसे ही अपने बैग से पैसे निकालने लगी, छोटू ने मुझे सिर्फ इतना बोला दीदी मुझे पैसे नहीं चाहिए और मेरा हाथ छुड़ा कर भाग गया। पता नहीं मैं कितनी देर तक उसे आवाज मारती रही छोटू...छोटू... वह नहीं रूका। मैं उसके पीछे भागी... मैंने उसे आवाज दी छोटू...। लेकिन वह फिर भी नहीं रुका ।पता नहीं कहां गुम हो गया मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने निराश भरी नजरों से छाया की तरफ देखा है, वह भी मेरी तरह ही परेशान थी छोटू पता नहीं कहां गुम हो गया उसके बाद मेरी नजरें उसे हर जगह तलाशती थी। लेकिन वह आखिरी दिन था जब मैंने उसे देखा था। वह मासूम चेहरा आज भी मेरी आंखों में वैसे ही है। उसकी आवाज मुझे आज भी याद है जब मैंने उससे पूछा था। तेरा नाम क्या है और उसने कहा था... छोटू।

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