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वक़्त

" कितनी देर से फोन कर रही मगर आपको फोन उठाने का भी वक़्त नहीं है " डॉक्टर मानस को गुस्से से यह बात बोलते हुए दिया की आंखो में आंसू आ गए थे कि उसने फोन काट दिया ।
वो शायद सांस भी नहीं ले पा रही थी उसकी तेज सांस जो डॉक्टर मानस ने सुन ली थी मगर फोन कटने की वजह से कुछ भी समझ नहीं आया ।

आदी को गए हुए 2 साल हो गए थे, मगर दिया उसे कभी छोड़ नहीं पाई ।
लगभग 10 महीने पहले ही डॉक्टर मानस से दिया कि मुलाकात हॉस्पिटल के मीटिंग में हुई थी । साथ में काम करते करते अब दिया और डॉक्टर मानस दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह समझने लगे थे ।
डॉक्टर मानस ने दिया को अपने दिल की बात भी बता दी थी मगर दिया अभी आदी को भूल नहीं पाई थी वह आज भी आदी के यादों को समेटे रखती थी ।
उसके होने का अहसास जिंदा रखती थी ।
" कहते है किसी के जाने के बाद भी वह जिन्दगी से तब तक नहीं जाता जब तक हम उसे जाने की इजाज़त ना दे "
दिया धीरे - धीरे इस बात को स्वीकार कर चुकी थी कि अब आदी उसके बीते हुए कल का हिस्सा है जो उसका आने वाला कल कभी नहीं बन सकता ।
घर और काम की जिम्मेदारियों के साथ साथ दिया अब डॉक्टर मानस की जिम्मदारियां भी निभाने लगी थी ।
सुबह से रात होने के बीच में एक बार फोन करके वह तबीयत से लेकर खाने पीने तक सारी जरूरी बातें पूछ कर अपने काम में लग जाती थी । ऐसी छोटी छोटी जिम्मेदारियां रिश्तों को मजबूत बना देती है ।
धीरे धीरे अब यह फोन दिन में दो से तीन बार और रात में सोने से पहले एक बार जरूर होता था ।
लेकिन अब डॉक्टर मानस चार से पांच फोन में से एक का ही जवाब देते थे ।
कभी कभी हम रिश्ते बना कर उन्हें निभाना भूल जाते है ।
ठीक वैसे ही डॉक्टर मानस ने रिश्ता बनाया तो मगर वो निभाना भूल गए ।
दिया को इस बात से कोई शिकायत नहीं थी क्युकी काम के दबाव को वह जितनी अच्छी तरह से समझती थी उतनी ही अच्छी तरह से वह डॉक्टर मानस को समझती थी । वो अलग बात है कि वह वो भी समझ जाती थी जिससे उसे खुशी मिल सके ।

दिया कि तबीयत खराब होने की वजह से वह कुछ दिन की छुट्टी लेकर घर पर आ गई ।
अब दिया पहले से ज्यादा खुद को अकेला महसूस करती थी । आदी की यादें और डॉक्टर मानस की व्यस्तता शायद दोनों एक साथ उसे अकेला रहना सीखा रहे थे ।
दिया अपना काम जो घर से करती थी। अब खाली समय मिलने पर अपनी बुक लिखना शुरू कर चुकी थी ।
एक दिन अचानक दिया को सुबह से तेज बुखार था शरीर सूरज से भी ज्यादा तप रहा था , सिर दर्द से फटा जा रहा था । घर वाले उसे लेकर हॉस्पिटल पहुंचे । डॉक्टर ने कुछ टेस्ट करवाने को बोला और कुछ मेडिसिन के साथ दिया को छुट्टी दे दी । टेस्ट करवा कर दिया को घर ले कर आ गए । टेस्ट की रिपोर्ट आने में दो दिन लगेंगे । घर आकर दिया ने खाना खा कर दवा खाया । उसने डॉक्टर मानस को फोन किया मगर हमेशा की तरह फोन नहीं उठा । उसने वॉट्सएप पर " missing you " लिख कर मैसेज भेज दिया ।
ये वो मैसेज था जो वो हर रात आदी को लिखती थी मगर भेज नहीं पाती । आज पहली बार उसने यह मैसेज डॉक्टर मानस को भेजा ।
जिसका जवाब रात तक नहीं आया था ।
रात में सोने से पहले दिया ने फिर से फोन किया और हमेशा की तरह खाने से लेकर सारी जरूरी बातें पूछ कर खयाल रखना कह कर फोन रख कर सो गई ।
दो दिन बाद रिपोर्ट आई तो डॉक्टर को वापस दिखाने गए । दिया को बाहर बैठा कर उसके बाबा अंदर डॉक्टर से कुछ बात चीत कर रहे थे उनके चेहरे को देख कर दिया भी थोड़ा घबरा गई थी ।
बाहर निकलने पर उसने बाबा से पूछा कि क्या हुआ है ?
मगर जवाब में बाबा ने वहीं कहा जो हर पिता अपने बच्चे से बोलता है - कुछ नहीं ! डॉक्टर ने कहा जल्द ही ठीक हो जाएगी ।

ये " जल्द ही " शायद सबसे देर में आता है । इस बात को दिया अब तक जान चुकी थी ।
जब घर आकर उसने रिपोर्ट देखी तो अचानक उसे कुछ भी समझ नहीं आया ।
कभी कभी हम जो चीजें समझ जाते है उसे जानबूझ के ना समझने की कोशिश करते है ।
दिया सब कुछ समझ गई थी मगर उसने ना समझने की पूरी नाकामयाब कोशिश की । एक दो मेडिकल शब्द जिसे वो रोज मरीजों की फाइल में पढ़ती थी आज उसे अपनी रिपोर्ट पर पढ़ के वो अपने पढ़े लिखे होने पर पछतावा हो रहा था ।
दिया को हमेशा सिर में दर्द होता था जो अब उसके ब्रेन ट्यूमर का दर्द बन चुका था ।
उसकी आंखो में आंसू नहीं थे बस मां बाबा के लिए चिंता थी । उस दिन उसने डॉक्टर मानस को कोई फोन नहीं किया ।
रात में तकिए से उसने नींद ना आने की शिकायत की । तकिए की आंखो से भी आंसू की उतनी ही बूंदे गिरी जितनी दिया की आंखो से फिर उन दोनों के आंसू ने एक दूसरे को गले लगा लिया ।
आंखे बंद कर दिया ने आदी की सारी धुंधली तस्वीरों को साफ कर उसे देखते देखते साजा कर सो गई ।

तीन महीने बाद -

सुबह उठ कर दिया सूरज की कुछ किरणे चुरा कर अपने जिन्दगी में रोशनी भरने की कोशिश की । मानो कई दिनों से उसने अंधेरे को अपना घर बना लिया था । जिसमे अब वो उजाला चाहती थी ।
डॉक्टर मानस से वह अपने दिल की बात बताना चाहती थी । उनसे ढेर सारी बाते करना चाहती थी मगर शायद डॉक्टर मानस के पास उतना भी वक़्त नहीं था जितना कम वक़्त अब दिया के पास था ।
सुबह से शाम तक दिया ने दस बार फोन किया । मगर जवाब नहीं मिला ।
रात को सोने से पहले उसने एक बार फिर से फोन किया ।
" कितनी देर से फोन कर रही आपको , फोन उठाने का भी वक़्त नहीं है " - डॉक्टर मानस को गुस्से से यह बात बोलते हुए दिया की आंखो में आंसू आ गए । उसने फोन काट दिया ।
डॉक्टर मानस को उसके रोने का अहसास हुआ उन्होंने फोन किया मगर आज पहली बार दिया ने फोन नहीं उठाया ।
वो अब सोना चाहती थी । दवा खा कर उसने तकिए को गले लगाया और आंखे बंद कर सो गई ।
उस रात दिया के साथ सब कुछ सो गया वो तकिया, कमरा , कमरे में रखी सारी किताबें , दिया की अधूरी लिखी बुक और खुली कलम, आदी की सारी यादें और डॉक्टर मानस से जुड़ी वक़्त की सारी शिकायते , और साथ ही सारी जिम्मेदरियां भी सो गई ।
अंत में वो अंधेरे से भरी रात की चांदनी भी सो गई जो दिया के साथ हर रात जगा करती थी ।

"उस रात वक़्त भी चैन से सो गया "

" अब दिया इतनी व्यस्त थी सोने में की फिर कभी उसके पास फोन करने का भी वक़्त नहीं था " ।

जिसके बाद इस बात की शिकायत डॉक्टर मानस ने हर दिन की - दिया क्या तुम्हारे पास थोड़ा सा वक़्त नहीं था मुझे यह बताने का ??

सही वक़्त कभी भी वक़्त पर नहीं आता बस हर वक़्त दिया यह सोचती थी .....

©"दिया_एक_लेखिका"


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