Seep me bandh ghutan - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

सीप में बंद घुटन.... - 1

सीप में बंद घुटन....

ज़किया ज़ुबैरी (ब्रिटेन)

(1)

आज वह घुट रही थी कि रवि चुप क्यों है---!!

जब रवि की बड़ी बड़ी शरबती आँखों में शीला की गहरी काली काली आँखों ने झाँका था तो रवि ने अपनी आँखें ऐसे बंद करली थीं जैसे उसने शीला के पूरे वजूद को अपनी लम्बी लम्बी पलकों वाली आँखों में समां लिया हो....उसको अपने साए में सुरक्षित कर लिया हो....मोती को सीप में बसा लिया हो हमेशा के लिए..!

उस शाम दोनों उस पार्टी में आँखों ही आँखों में एक दूसरे से बातें करते रहे - बिलकुल लेज़र लाइट की तरह एक दूसरे का पीछा करते रहे. जैसे ही शीला चुपके से उसकी ओर देखने की हिम्मत करती वो एकदम से अपनी नज़रों से प्यार की हल्की सी फुहार बरसा देता और दोनों मीठी सी मुस्कराहट के साथ आस पास के लोगों की ओर जल्दी जल्दी देखने लगते की कहीं किसी और को उनके सितारों भरे आकाश और हर ओर बिखरी चांदनी का अहसास तो नहीं हो गया...! आज चीखते चिंघाड़ते ऑर्केस्ट्रा से भी उनको बांसुरी की सुरीली धुन सुनाई दे रही थी....शहनाई की आवाज़ गूँज रही थी...हर ओर ऊर्जा की बचत करने वाली बत्तियों की मरी सी दूधिया रौशनी भी उनको नीली नीली चांदनी बरसाती हुई नज़र आ रही थी.

ऐनी और श्याम की ये सातवीं वेडिंग-एनिवर्सरी थी. दोनों इस लिए बहुत खिले जा रहे थे की उन्होंने जैसे आज टेनिस का डबल टूर्नामेंट जीत लिया हो. सेवेन-इयर्स इच से वो भी डरे हुए थे...अंग्रेज़ों ने भी ये वहम बैठाया हुआ था की अगर सात साल शादी के निकल जाएं तो समझो शादी आगे भी चलेगी. हालांकि अब तो दो साल भी गुज़र जाने पर लोग अपने आप को बधाई देते देखे गए हैं. अब एक दूसरे की कमज़ोरियों को बरदाश्त करने की सहनशीलता और माफ़ कर देने की नम्रता शायद शब्द- कोष से विदा हो गए हैं..!

रवि ने कितनी बार श्याम को फ़ोन करके मालूम करना चाहा था कि वो महिला कौन थी जो उसके फ़ंक्शन में आई थी जिसे देखकर रवि को अपनी पत्नी से और अधीक चिढ़ सी होने लगी थी .... ऐसी भी तो लड़कियां होती हैं जिनकी आवाज़ मे भैरवी के कोमल सुर हो .... जिनके देखने से रोम रोम झूम उठे और जो मधुरता में संगीत की धुन बन जाये. श्याम ना जाने क्यों रवि का प्रश्न हर बार टाल जाता पर दूसरे मित्रों को स्वयं ही आप उसका नम्बर बता देता.

एक दिन शीला कहीं जाने के लिए बाहर निकल रही थी कि दरवाज़े की घंटी बजी और उसने ये सोचते हुए कि कौन इस समय बिना बताए चला आ रहा है. दरवाज़े को चेन पर लगाकर दराड़ से एक आँख से झांकते हुए ''कौन है'' पूछा. आवाज़ में थोड़ी सी घबराहट थी ''छमा कीजयेगा मैं बिना बताए चला आया हूं, उस दिन श्याम के यहाँ आपसे मुलाक़ात हुई थी। बातें भी हुई थीं की आपने कहाँ पढ़ाई की है और आप आजकल क्या करती हैं.''

“जी ठीक है आ जाइए मेरे पति भी बस नीचे आने ही वाले हैं”, कहते हुए शीला ने कुंडी हटाकर दरवाज़ा खोल दिया. अन्दर आते हुए, आने वाले ने सर से सोला हैट उतारकर झुकते हुए अंग्रेज़ी नमस्ते किया और शीला ने जल्दी से हाथ पीछे को कर लिए कि कहीं घुटने मोड़ते हुए हाथ को चूमने के लिए दबोच ना ले. उसको कुछ कुछ याद तो आया था कि महोदय कहां मिले थे पर उनका घर आ जाना कुछ समझ नहीं पा रही थी शीला पति के नीचे उतरने की ध्वनि से वो फिर से उठ कर खड़े हो गए. और हाथ मिलाते हुए बताया कि फ़िल्म निर्माता है ... “ कैसे आना हुआ? ” पति ने सीधा सवाल पूछ लिया, सोचते हुए कि आज शीला कि चोरी पकड़ी गई. वह फिल्मों में जाना चाह रही है. पति को पहले दिन से यह ख़्याल परेशान करता रहता था कि सुन्दर स्त्री से विवाह कर के निबाह लेना आसान बात नहीं है. ''शीलाजी ये आपको कहाँ मिले''? '' पति के सीधे सवाल से प्रोड्यूसर साहेब घबरा गए. शीला ने बता दिया पर बारीक़ी बताना आवश्यक नहीं समझा क्योंकी सच्ची बात ये थी कि उसे स्वयं ही नहीं मालूम था कि महोदय कैसे पधारे हैं. आप लोगों से मिलकर बहुत खुशी हुई फिर कभी आऊंगा जब आप लोग बाहर नहीं जा रहे होंगे. और तेज़ तेज़ डग भरते आप ही कुंडी खोल जैसे आए थे वैसे ही चले गए.

शीला खड़ी सोचती रही...काश इनकी जगह वो आ गया होता... वो अजनबी जिसने उसे फिर से बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया है...वो जिसको हर समय देखने का जी चाहता रहता है. जिसकी हंसी उसे हवाओं में...बारिश कि रिमझिम में और पुरवाई की सरसराहट में भी सुनाई देती है. भला उसने स्वयं क्यों नहीं उस अजनबी का अता-पता मालूम कर लिया... ! वह आप ही मालूम कर लेती....उसने सोचा वो कोशिश करेगी...अवश्य करेगी.

इस देश में यहाँ का यह कल्चर बन गया है. अगर गुज़ारा नहीं होता तो स्वतंत्रता हासिल कर लो. आखिर भारत ने भी तो अंग्रेज़ों से स्वतन्त्र कराया था अपने को - अहिंसा द्वारा. वो भी कुछ ऐसा ही करेगी. स्वतंत्र हो जाएगी.- छोड़ देगी पति को...पर किसके लिए? वो आप ही आप चिंतित हो गई अपने इस तरह के ख़्याल पर. जल्दी से पति से कहा, “चलिये ना.” पति उसे घूरे जा रहे थे..वो उसे और अधिक कस कर बांधना चाह रहे थे. दोनों के विचार एक दूसरे के विरुद्ध एक ही समय में समय की धारा के साथ बहे जा रहे थे.

अभी शीला अपने लम्बे बालों को लहराती साड़ी का पल्लू सम्भालती निकलने ही वाली थी की उसके मोबाईल की सुरीली घण्टी उसके पर्स मे बजने लगी।

“पहचाना नहीं आपने?” खनकती सी गहरी आवाज़ शीला के छोटे छोटे लाल होते हुए कानों से टकराई.

''नहीं पहचाना... अरे आप---! आप को मेरा फ़ोन नंबर कैसे मिल गया ? ... किसने दिया...अरे कमाल हो गया...आप ही हैं ना...? ”

''कौन...आप ही...?''

''मेरा नाम 'आप ही' नहीं है....!

''मेरा मतलब है आप जो वहाँ थे..?''

''कहाँ थे?''

''मैं समझ गई.'' और वो ख़ुशी के मारे आगे कुछ बोल ही नहीं सकी.

''आप चुप क्यों हो गईं...मैं आपकी आवाज़ सुनने को कब से मारा मारा फिर रहा हूँ.''

“आवाज़ सुनने को बेचैन तो हुआ जा सकता है पर मारा मारा क्यों फिरना पड़ता है?'' शीला ने आवाज़ कि कंपकंपाहट पर काबू पाते हुए पूछा.

हर फंक्शन में पहुँच जाता हूँ केवल इस आशा में कि आप आई होंगी. उस दिन श्याम के घर भी इसी उम्मीद में चला गया था फिर आशा के ग्रूप के साथ ‘लव एट फ़र्स्ट साइट ’ भी देखने चला गया....वैसे आपका नाम क्या है?''

''मैं क्यों बताऊँ, पहले आप बताइए....!!

''आपने कभी सूरज की ओर देखा है ''

''हाँ...देखने की बहुत कोशिश की थी पर जल जाती थी उसकी गरम गरम किरणों से..!!''

''मैं भी चाँद की ठंडी किरणों की शीतलता से थर थर कांपने लगता था..''

''ऐसा तो कुछ भी नहीं होता था..!!''

''तो फिर क्या होता था?''

''बस कुछ होता था जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। ”

''आप तो सचमुच की कावियत्री हैं...''

''नाम बताएं अपना..'' उसने अपना पर जोर देते हुए कहा.

''रवि है मेरा नाम ''

''मैं शीला हूँ...''

'शीला की जवानी...'' उसने गाते हुए शरारत से कहा और खनकती हुई हंसी हंसने लगा. शीला खो गई उस पहले दिन के मिलन में जब वो बार बार जोर जोर से हँसता और शीला मजबूर हो जाती उसकी ओर देखने को...

''शीलाजी आपको मालूम है ना कि आप केवल सुन्दर ही नहीं आपकी आवाज़ की मिठास मंदिर का मधुर संगीत है मस्जिद की पवित्र अज़ान है...गिरजे की पाकीज़गी है आपकी आवाज़ में...''

शीला ये सब सुनने के लिए जैसे व्याकुल थी...बिलकुल चुप चाप एक एक शब्द जैसे लिखती जा रही हो...उन गुदगुदा देने वाले शब्दों को बार बार सुनना चाह रही हो...वह ख़ामोश रही जब तक वो बोलता रहा... ना जाने क्या क्या कह गया अपनी धुन में. जैसे आज मदिरा की दुकान पर मदिरा बे-पैसों के लुटाई जा रही हो...वो प्यार के नशे में जैसे चूर होती जा रही हो..... लड़खड़ा गई हो...पर किसी के मज़बूत बाज़ुओं ने उसे संभाल लिया हो. फंक्शन में वह सफ़ेद कुरते पाजामे में सब से अलग दिखाई पड़ रहा था...उसकी कल्पनाओं का राजकुमार लग रहा था...अगर वह दूसरी महिलाओं की ओर पल भर भी देखता तो शीला व्याकुल हो जाती...ना जाने क्यों...! शीला को वह अपना सा महसूस होने लगा था..

शीला दुविधा मे पड़ी हुई थी कि किधर जाये किस से जुड़ी रहे और किस से नाता तोड़ ले..?

चौबीस वर्ष काले पानी कि सज़ा काटने के पश्चात अब वही अकेलापन वही वीरानी वही अन्धेरा उसको अपने जीवन साथी महसूस होने लगे थे. जीवन साथी जिसने पवित्र अग्नि के नारंगी धनक रंगों के किनारे किनारे फेरे लगाकर साथ निभाने कि शपथ ली थी. वो तो ग़ैरों के साथ सारा दिन कुछ काम के बहाने और कुछ काम मे अधिक से अधिक सफलता पाने की लालच में.... दूसरों को अपने से बहुत पीछे छोड़ देने की चाहत में.... कभी यह फ़ैसला ना कर सका की अधिक उचित जीने का कौन सा अन्दाज़ होना चाहिये. पत्नी और बच्चों के बीच समय बिताना उसे समय की बर्बादी लगती. उस क़ीमती समय मे तो कुछ अच्छे काम किये जा सकते है कुछ काम निकालने वाले लोगों से मिल लूंगा, बिज़नेस मिलेगा प्रोमोशन मिलेगा.....ये होता दामोदर का उत्तर जब बच्चे और शीला मिल कर बिनती करते पति और पिता से कि आज छुट्टी का दिन हमारे संग घर मे बिता लीजिये..

“पापा मेरे साथ खेलने वाला कोइ नहीं है. मुझे टेबिल टेनिस खेलना है, आज तो संडे है आप चलिये मेरे साथ खेलने.....पापा मना नहीं कीजियेगा...प्लीज़ पापा..!”

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