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बस अब और नहीं

बस अब और नही

कावेरी बड़ी तल्लीनता से बोलती जा रही थी, और मीटिंग में शामिल सभी सदस्य प्रशंसा के भाव लिए उसे देख रहे थे। उसके खामोश होते ही लोगों ने मेजें थपथपा कर उसका उत्साहवर्धन किया। कावेरी के चेहरे पर दर्पपूर्ण मुस्कुराहट आ गई। प्रसन्नता से नेत्र चमक उठे

" व्हाट नॉनसेंस " यतीन का क्रोधपूर्ण स्वर गूंजा। सभी उपस्थित लोग चौंक पड़े " ये है आपका बिज़नेस बढ़ाने का मार्के का प्लान ? कावेरी,किस दुनिया में रहती हैं आप ? कौन कहेगा कि आप कम्पनी के इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठी हैं ?"

" लेकिन सर म..." उसने कुछ कहना चाहा।

" रहने दीजिए, आपके वश का नही कम्पनी चलाना। एम बी ए की परीक्षा पास करना और बात है और कम्पनी चलाना और बात। यहाँ तजुर्बा काम आता है। " बात काटते हुए यतीन ने फिर कहा। सभी किंकर्तव्यविमूढ़ से देखते रह गए। ऐसा सन्नाटा छा गया कि सुई भी गिरे तो सुनाई दे।

" सर " इस बार एक नया नारी स्वर उभरा

" जी सिमरन जी " स्वर को कोमल बनाते हुए यतीन उसकी और मुड़े " क्या कहना चाहती हैं आप ?"

" सर परमीशन दें तो मैं भी कुछ कहना चाहती हूँ, मेरे पास भी एक प्लान है। "

" हाँ बिलकुल, कहिये। " प्रसन्नता भरे स्वर में सहमति मिल गई। सिमरन खड़ी हुई और बोलना शुरू किया। सभी उपस्थित सदस्य बेचारगी के भाव लिए सुनने लगे। उसकी बात खत्म होते ही यतीन चहक उठे

" वेल डन सिमरन, इसे कहते हैं पॉलिसी। ब्यूटी विद ब्रेन, तुम इसका लिविंग् एग्जाम्पल हो ।"

" लेकिन सर, आयम अफ्रेड, इससे कम्पनी को लॉस हो सकता है ।"

" नही पवन जी, ये बहुत बढ़िया स्ट्रेटेजी है। आयम डैम श्योर, कम्पनी को बहुत फायदा होने वाला है । सिमरन आप बहुत तरक्की करेंगी, मैं बता रहा हूँ। मेरा पचास साल का अनुभव कभी गलत नही साबित हो सकता।" उनके बोलते ही सिमरन अदा से बाल झटकते हुए अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुरा दी। उसने उपेक्षापूर्ण दृष्टि से कावेरी को देखा। जैसे कहना चाह रही हो कि तुम कुछ नहीं मेरे सामने।

कावेरी की ऑंखें डबडबा आयीं। सभी हैरानी से देख रहे थे। बॉस को ये क्या हो गया है, कावेरी का इतना बढ़िया प्लान बकवास करार दे दिया, और सिमरन का मूर्खतापूर्ण विचार उन्हें इतना पसंद आया। कुछ चापलूस उनकी हाँ में हाँ मिलाने लगे पर कम्पनी के शुभचिंतक मौन रह गए। मीटिंग खत्म हुई और सब उठकर चल दिए। रह गए तो यतीन और सिमरन उस कक्ष में अकेले।

बाहर आकर दबे स्वर में बातें होने लगीं। कावेरी का बेवजह अपमान कई लोगों को रास नही आया।उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि यतीन क्यों हाथ धोकर कावेरी के पीछे पड़ गए हैं। एक वक्त था जब वह उसकी तारीफ़ करते नही थकते थे। डेडिकेशन हो तो कावेरी जैसा, नॉलेज हो तो कावेरी जैसी, लॉयल्टी हो तो कावेरी जैसी, पैशन हो तो कावेरी जैसा, कावेरी ... कावेरी ... कावेरी । पर अब, उन्हें हुआ क्या है ? ये सवाल हर मस्तिष्क में था।

यह सिलसिला शुरू हुआ था पिछले कुछ समय से। दोष कावेरी की योग्यता का था, या अप्राप्य सौंदर्य का अथवा तेजी से बढ़ती लोकप्रियता का ? यतीन खुद अपने दिल में चल रहे मनोभावों को समझ नही पा रहे थे। एक तीव्र आकर्षण उन्हे खींचता था कावेरी की ओर , तथा दूसरी ओर तरक्की की ओर तेजी से अग्रसर कावेरी के कदम देखकर ईर्ष्या के सहस्त्रों नागफ़नी उनके मन मस्तिष्क में सिर उठा लेते थे। एक अजीब प्रेम और घृणा का रिश्ता पनप रहा था उनके मध्य।

जब पहली बार कावेरी का उस बहुराष्ट्रीय कम्पनी में आगमन हुआ तो यतीन सब कुछ बिसरा कर उसे देखते रह गये। दूध में शहद सी रंगत, लम्बी काली केशराशि, तीखे नाक नक्श, सुगठित तन्वंगी देह, बुद्धिप्रदीप्त चेहरा । एक बार निगाह पड़ती तो दृष्टि हटाने का मन नही करता। लगता था जैसे उम्र को उसने कैद कर लिया है। उसका आकर्षण हर एक को अपनी ओर खींचता था। किसी के लिए भी यकीन करना मुश्किल था कि वह दो युवा होते बच्चों की माँ है। कम उम्र में विवाह और फिर जल्दी जल्दी दो बच्चे। गृहस्थी की जिम्मेदारियां भी उसे अध्ययन से रोक न पाई। कठिन परिश्रम से परीक्षाएं उत्तीर्ण करते हुए उसने एम बी ए कर लिया।

किशोर होते बच्चे जब स्वयं में व्यस्त हो गए और उन्हें माँ की इतनी ज़रूरत नही रही तो निकल पड़ी वह एक नई राह की ओर। उसके पति कार्तिक ने कभी पत्नी को हतोत्साहित नही किया। उन्हे नाज़ था कावेरी पर। वह हर जगह उसका मजबूत सहारा बने रहे । मित्र सम्बन्धियों की आलोचनाओं के बावजूद उन्होंने उसे आसमान की ऊँचाई की ओर उड़ान भरने को स्वतंत्र कर दिया। कई जगह आवेदन करने पर मुश्किल से उसे एक कम्पनी में मामूली पद पर रख लिया गया। बढ़ती वयस और अनुभवहीनता के कारण उसकी योग्यता के अनुरूप काम नही मिला, पर उसने हिम्मत न हारी। चल पड़ी लगन से, मिला हुआ कार्यभार सम्हालने। कुछ समय के कठोर परिश्रम के बाद वह अपने अधिकारियों की दृष्टि पर चढ़ने लगीं, रही सही कसर उसके सौंदर्य ने भी पूरी कर दी। तेजी से तरक्की करते और नौकरियाँ बदलते हुए वह आज अच्छी स्थिति में आ चुकी थी।

यतीन उस बहुराष्ट्रीय कम्पनी में सर्वोच्च पदासीन थे। आकर्षक, अधेड़ ,यतीन की योग्यता एवं तीव्र बुद्धि का लोहा हर कोई मानता था। उनकी मेहनत से कम्पनी को बहुत फायदा हुआ था। अपने मृदु व्यवहार, कर्मठता व परिश्रम से यतीन ने बहुत मान सम्मान एवं धन अर्जित किया था। अपनी सफलता से अभिभूत अब उनमे आत्माभिमान पनपने लगा था।

दो वर्ष पूर्व जब कावेरी ने जब उस कम्पनी में पदभार ग्रहण किया तो यतीन उससे बहुत प्रभावित हुए। धीरे- धीरे कावेरी के गुण देखकर वे तेजी से उसकी ओर आकर्षित होते चले गये। सौंदर्य और बुद्धि का ये तालमेल उन्हे अक्सर अचंभित कर जाता था। उधर कावेरी भी यतीन के व्यक्तित्व व तीक्ष्ण बुद्धि से प्रभावित हुए बिना न रह सकी थी। उनके व्यक्तित्व में एक अजब सा आकर्षण था जो न चाहते हुए भी वह उनकी ओर खिंच रही थी।अक्सर वे कावेरी की प्रशंसा करने लगे थे। दोनों के मध्य बहुत मधुर घनिष्ठ सम्बन्ध पनप रहे थे । दोनों एक दूसरे से प्रभावित, आकर्षित और कद्र करने वाले थे। एक महिला अपना घर परिवार भुलाकर इस प्रकार अपने कार्य के लिए जुनूनी हो सकती है ये देखकर यतीन हैरान रह जाते।

सब कुछ अच्छा चल रहा था, यतीन के आदेशानुसार कावेरी का इकतालिसवां जन्मदिन बड़े उल्लास के साथ मनाया जा रहा था। तभी मुख्य कार्यालय से आये उस पत्र को पढ़कर यतीन असमंजस में पड़ गये। उन्हे समझ नहीं आ रहा था कि वह खुश हैं या दुःखी। यह पत्र कावेरी की पदोन्नति का पत्र था। अब वह उनसे मात्र एक सीढ़ी नीचे रह गई थी। पहली बार ईर्ष्या ने उनके हृदय में स्थान ग्रहण कर लिया। निरुत्साहित स्वर में उन्होने कावेरी को शुभकामनाएं देते हुए पदोन्नति पत्र पकड़ा दिया। ऑफिस में हर्ष की लहर दौड़ गई। सभी उस समाचार से बहुत खुश थे। हर कोई बढ़कर कावेरी को बधाई दे रहा था और उसकी प्रशंसा कर रहा था।

कावेरी के हर्ष का पारावार न था, उसने सबके सामने इस शुभसन्देश का श्रेय यतीन के मार्गदर्शन को दिया और सबकी बधाइयाँ स्वीकार करने लगी। उसके चेहरे से मुस्कुराहट जा नही रही थी। आज वो सबके आकर्षण का केंद्र बिंदु थी। हर मुँह पर उसकी ही तारीफ के शब्द थे। यतीन का दिमाग भन्ना गया, इस वक़्त वे पहली बार खुद को भीड़ में अकेला महसूस कर रहे थे।

चुपके से उन्होने ऑफिस बॉय को व्हिस्की लेकर आने का आदेश दिया , और अपने कक्ष में आ गये। किसी का ध्यान उनके प्रस्थान पर न गया। सब हँसते मुस्कुराते पार्टी में मशगूल रहे, काफी देर बाद कावेरी का ध्यान इधर गया,तो उसने खोजपूर्ण दृष्टि चारों ओर दौड़ाई। पर तभी सहकर्मियों ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया।

अपने कक्ष में आकर यतीन ने एक पटियाला पैग बनाया और सिप करने लगे

" घमंडी, अपना राग अलापने वाली ... समझती क्या है खुद को, आज जिस पोजिशन पर है, मैंने बनाया है उसे। आज अपने भक्तों के बीच ऐसी घिरी है कि मेरी खबर तक न ली कि मैं कहाँ हूँ " गिलास खाली करते हुए वे बड़बड़ाये।

" में आय कम इन सर ?"

निगाह उठाकर देखा तो सिमरन खड़ी थी, उनकी सेक्रेटरी,जिसके प्रति वह अच्छे भाव नही रखते थे।

जब पहली बार उसने उनके ऑफिस में प्रवेश किया था तो उसका रंग रूप देखकर यतीन को अरुचि पैदा हो गई थी। लाल रंग की नाभिदर्शना साड़ी, बिना बाहों का गहरे गले का ब्लाउज़, स्थूल शरीर, सांवला रंग, साधारण चेहरा मोहरा, उसपर चढ़ी मेकअप की परत, आगे की ओर किये बाल। उसके सौंदर्य बोध पर तरस खाकर रह गये थे वह। जब बात करती तो स्वर में अतिरिक्त मधु घुल जाता।

" यस " उन्होंने प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा।

" सर आप पार्टी छोड़कर यहाँ क्यों आ गए ?"

" कुछ नही, थोड़ी तबियत ठीक नही। "

" सर, कावेरी जी के प्रमोशन का क्रेडिट आपको जाता है।अगर आपने उन्हें इतना सपोर्ट न किया होता तो आज वो ये दिन न देख पातीं। " सिमरन के वाक्य पर पहली बार उन्होंने उसे दिलचस्पी से देखा।

" नो, शी डिज़र्व इट। "

" नही सर, ये आपकी भलमनसाहत है जो आप दूसरों को इतना प्रमोट करते हैं। आप जैसा बॉस किस्मत से मिलता है। कावेरी जी खुशकिस्मत हैं जो आप उनकी ज़िंदगी में आये।" कहते हुए अजीब से भाव उसके चेहरे पर थे।

" आपकी निगाह पत्थर पर भी पड़ेगी ,तो वह हीरा बन जाएगा ।"

वे अर्थपूर्ण निगाह से देखते रहे और वह बोलती जा रही थी।

" ये बात और है कि कावेरी जी इसे अपनी योग्यता समझती हैं। उनमे अब काफ़ी गुरुर आ गया है।उनकी जगह मैं होती तो आपकी पूजा करती। मैं तो खुद को बहुत लकी समझती हूँ की आप मेरे बॉस हैं ।"

तभी दरवाजे पर किसी ने नॉक किया और दोनों उधर देखने लगे। कावेरी ने प्रवेश किया और सिमरन को प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा।

" मैं चलती हूँ सर, अपनी तबियत का ख्याल रखियेगा ।" कहते हुए सिमरन बाहर निकल गई।

" तबियत ? क्या हुआ सर , तबियत को ? "

" कुछ नही कावेरी, माइग्रेन का दर्द है शायद, तुम जाओ, आज की हीरोइन तो तुम हो, पार्टी में तुम्हारा होना ज़रूरी है। "

" पार्टी ओवर हो गई , मैं देखने आयी थी कि आप कहाँ गए ।" एक पल वो रुकी फिर गिलास उनके हाथ में से लेती हुई बोली " आज आप ऑफिस में ड्रिंक कर रहे हैं ?" वह हैरान थी इससे पहले ऐसा कभी नही हुआ था।

" अब बस करिये यतीन, आपकी तबियत और बिगड़ जाएगी ।"

" आज तो दोहरी ख़ुशी का दिन है कावेरी, तुम्हारा जन्मदिन और उसपर प्रमोशन, आज तो डबल सेलिब्रेशन है ।" कहते हुए उन्होंने कावेरी के दोनों हाथ थाम लिए। एक पल को दोनों की दृष्टि मिली, वह उन तीखी निगाहों को सह न पाई और पलकें झुका दीं। चुम्बन के तीव्र आवेग में वह किसी किशोरी की तरह सिहर उठी। यतीन मानों पागल हो उठे। तभी मेज पर रखा गुलदस्ता गिर गया और कावेरी चौंक पड़ी। तेज धक्के से स्वयं को यतीन की कैद से आज़ाद किया और रुमाल को चेहरे पर फिराती हुई बोली

" बहुत देर हो गई, सभी जा चुके हैं। हमे भी अब चलना चाहिए ।"

" यूँ सुलगाकर मत जाओ कावेरी, मैं दीवाना हो गया हूँ तुम्हारा,मैं पागलों की तरह तुम्हे चाहता हूँ। जानता हूँ की तुम भी मुझे चाहती हो ।"

" नही, ये गलत है, मेरे मन में ऐसा कुछ नही, मैं आपकी बहुत रिस्पेक्ट करती हूँ ।"

" रिस्पेक्ट, माय फुट, झूठ मत बोलो, मैंने पढ़ी है तुम्हारी आंखो में अपने लिए चाहत ।"

" ये सच है यतीन, हम अच्छे मित्र हैं पर इससे आगे बढ़ना ठीक नही, चिंगारी भड़की तो हमारे घर तबाह हो जाएंगे ।"

" मुझे परवाह नही ।"

" पर मुझे है, ठीक है चाहत पर वश नही, लेकिन मैं मर्यादा का उल्लंघन कभी नही कर सकती। चलती हूँ, गुड बाय ।" कहते हुए वह तेजी से बाहर निकल गई। सिमरन ने उसे जाते देखा तो सोचने के अंदाज़ में ऑंखें सिकोड़ लीं। फिर जैसे उसे सब स्पष्ट होता चला गया। समझने के अंदाज़ में उसकी आँखों में एक चमक जाग गई।

यतीन ने फिर व्हिस्की से गिलास भरा और गटगट पीने लगे। आँखों में कावेरी का सुंदर चेहरा घूम रहा था। आवेश से चेहरा लाल हो रहा था नसें तनी हुईं थीं।

" सर, सभी जा चुके हैं, कावेरी मैडम भी। आप भी उठिये न, वरना आपकी तबियत और खराब हो जाएगी ।"

" आप जाइये सिमरन,मैं अभी यहीं रुकूँगा। "

" नही सर, मैं आपको इस हालत में छोड़कर नही जाऊँगी। कावेरी जी जाते हुए बड़े गुस्से में थीं। न जाने क्या बात थी। "

क्रोध की लहर सी यतीन की चेहरे पर दौड़ गई। उन्होंने फिर से गिलास भरा

" नही सर, अब और नही, आज आपको क्या हो गया है? "

" सिमरन, जाइये आप यहाँ से। " आवाज़ तेज हो गई थी।

" नही सर, मैं आपको इस हालत में छोड़कर नही जाऊँगी, आप बहुत परेशान लग रहे हैं। बाकी किसी को आपकी फ़िक्र हो या न हो पर मुझे है ।" कहते हुए वह काफी नजदीक आ गई। यतीन ने गौर से उसे देखा, आज वो चेहरा काफ़ी आकर्षक लग रहा था। एक बार से से पाँव तक उसे देखा। उसकी शारीरिक भाव भंगिमा में आमंत्रण का भाव था। नशे का ख़ुमार और कावेरी के प्रति क्रोध, सबने मिलकर सोचने की शक्ति छीन ली थी। अवरोध कुछ था नही हृदय की जलन हावी होने लगी और वे इससे छुटकारा पाने को आतुर हो उठे। सिमरन उनके प्रति सदय हो उठी , आवेग अपना कूल तोड़ उठा।

अगले दिन कावेरी यतीन के सामने आने से बचती सी रही, उन्होंने भी उस ओर रुख न किया। सिमरन के चेहरे पर आज एक अलग चमक नज़र आ रही थी। कई बार वो बॉस के कक्ष में गई, लंच भी दोनों ने साथ ही किया। इसके बाद कावेरी की ज़रूरत यतीन को मुश्किल से ही पड़ती और सिमरन उनके जीवन का आवश्यक अंग बनती जा रही थी। एक फ़र्क ये भी आया था कि अब जब- तब वे कावेरी का सबके सम्मुख अपमान करने लगे।

आहत हुई कावेरी ने स्वयं को काम में झोंक दिया। उसपर काम एक जूनून बनकर हावी हो गया था। घर को वह बिलकुल भूल चुकी थी, बच्चे तो स्वयं में इतने व्यस्त थे की उन्हें फ़र्क नही पड़ा। पर कार्तिक खुद को उपेक्षित महसूस करने लगे थे। उन्हें कावेरी का पागलपन, उसकी कुंठा समझ आ रही थी, पर वह खामोश थे।बुद्धिमती पत्नी पर विश्वास था उन्हें। जानते थे की जब भी वह कुछ करना चाहती है तो खुद को भी भूल जाती है। बड़ी मेहनत से वह उस मुकाम पर पहुँची थी। सफलता की कीमत तो चुकानी ही होगी। यह दौर भी गुज़र जाएगा, ऐसा सोचकर उन्होंने अपने मन को समझा लिया था।

कावेरी अपने केबिन में बैठी काम कर रही थी कि तभी एक व्यक्ति ने मुलाकात का समय लिया। आगन्तुक बड़ी उम्र का लग रहा था। सर पर विरल होती केशराशि, दुबला पतला शरीर, चेहरे पर मायूसी और विषाद के भाव। उसने स्वयं का परिचय सिमरन के पति के रूप में दिया। कावेरी आश्चर्य में पड़ गई

" आप शायद गलत जगह आ गए हैं ,मैं अभी आपको सिमरन के केबिन में भिजवाती हूँ। " कहते हुए उसने घण्टी बजा दी।

" नही, आपसे ही मिलने आया हूँ।"

" मुझसे क्या काम पड़ गया आपको ?"

" जी कहने में तकलीफ़ होती है, पर सिमरन घर बर्बाद करने पर तुली हुई है। हर जगह उसके और बॉस के सम्बन्धों की बातें हैं। मुझे बाहर निकलने में शर्मिंदगी होती है। "

" इसमें मैं क्या कर सकती हूँ ? आप उसे ही समझाइये न। "

" आपको क्या लगता है मैम, क्या मैंने कोशिश न की होगी ? पर वो तो कुछ सुनने को तैयार ही नही। उसे खानदान की इज्जत की कोई चिंता नहीं रही अब। "

" पर ये तो पति पत्नी का मामला है, इसमें मैं क्या कर सकती हूँ ?"

" आप उसका ट्रांसफर करवा दीजिये, उसे टर्मिनेट कर दीजिए। कुछ तो कीजिये, मैं बड़ी उम्मीद लेकर आया हूँ। "

" आप शायद भूल गए हैं कि यहाँ के बॉस यतीन जी हैं, उनका ही ऑर्डर वैल्यू करता है। मैं उनकी सबऑर्डिनेट हूँ । "

" प्लीज़ एक कोशिश तो कीजिये, समझाइये उन्हें। " वह लगभग रूआँसा हो उठा।

" ओके, आईल ट्राइ माय बेस्ट ।" वह विचलित हो गई। आगन्तुक के जाने के बाद कुछ देर वह सोच में डूबी रही। जानती थी की उसके हाथ में कुछ नही है। पर एक प्रयास तो करना ही था।

वह यतीन के केबिन की तरफ चल पड़ी। ऑफिस बॉय ने बताया कि बॉस अभी बिज़ी हैं। समझ गई की यतीन ने सिर्फ बहाना बनाया है। ऐसा पहले भी कई बार हो चुका था। पर आज वह बिना बात किये वापस नही जाने वाली थी। वह बिना कुछ कहे गुस्से में अंदर आ गई। देखा यतीन बड़े रिलैक्स मूड में हँसकर किसी से बातें कर रहे हैं। कावेरी को देखकर वह चौंक गए और फोन बंद कर दिया

" आप यहाँ कैसे ? मैंने कहा था न कि मैं बिज़ी हूँ। " तल्ख स्वर उभरा

" आप ऐसा कौन सा ज़रूरी काम कर रहे थे जो मुझसे दो मिनट बात करने का भी वक़्त नही आपके पास। " कावेरी का भी स्वर तीखा हो गया।

" मैडम ये कम्पनी मैं चला रहा हूँ इतने बरसों से। काम करता हूँ, मुझे प्रोमोशन तोहफ़े में नही मिलते ।"

" तो आपका मतलब है कि मुझे योग्यता के दम पर नही बल्कि तोहफ़े में प्रमोशन मिला है ?"

" ये तो आप ही बेहतर जानती होंगी कि मालिकों ने किस एवज़ में आपको इतनी जल्दी-२ तरक्की दी है ।" वह व्यंग्य से मुस्कुराए

" छी, आप ईर्ष्या में इस कदर नीचे गिर सकते हैं मैं सोच भी नहीं सकती थी। हर औरत सिमरन नही होती । बाई द वे उसका हसबैंड आया था, और अपना घर बचाने की भीख माँग रहा था मुझसे। आपदोनो के बीच जो चल रहा है इसकी चर्चा हर जुबान पर है। "

" ये सब घटिया बातें करने वाली तुम हो कावेरी। तुमने ही ये अफ़वाह उड़ाई है। "

" मैं आपका बहुत सम्मान करती थी , पर आप उस लायक नही ।" कहते हुए वह बाहर निकल गई। क्षोभ से मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया। उसके कठिन परिश्रम और योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाया गया था। अब यहाँ रुकना उसे भारी लगने लगा। घर आकर उसने खुद को स्टडी में बंद कर लिया। जब डिनर के लिए भी बाहर न निकली तो कार्तिक को चिंता होने लगी। झुमकी बुलाने गई तो उसने भूख न होने की बात कहकर मना कर दिया।

अब कार्तिक ने जाकर दरवाजा खटखटाया। पहले तो वह कुछ न बोली पर जब कई बात दस्तक दी तो उसने दरवाजा खोल दिया। उसका चेहरा देखकर कार्तिक विचलित हो गए

" क्या हुआ कावेरी ?"

उसने कोई जवाब न दिया। सिर्फ एक बार निगाह उठाकर पति की ओर देखा, उन आँखों मे गहरी पीड़ा के भाव थे। देखकर लग रहा था कि वह जबर्दस्त झंझावात से गुज़र रही है। दोबारा पूछा तो उसने सिर हिलाकर मना कर दिया की कोई बात नही है। वह समझ गए कि अभी वह कुछ नही बताएगी। उन्होंने फिर ज़िद नही की, उसे पर्याप्त समय देने का इरादा कर लिया, ताकि वह सामान्य स्थिति में आये तभी शायद कुछ बताएगी।

बहुत मनुहार करके दो चार कौर भोजन खिला सके। फिर उसे चेहरा धोकर आने के लिए कहा। जैसे ही वह बाथरूम गई उन्होंने कमरे में चारों और दृष्टि दौड़ाई। मेज पर नींद की गोलियों की शीशी पड़ी थी जिसे कभी-कभी अधिक तनाव की स्थिति में वह प्रयोग कर लेती थी। शीशी उठाकर उन्होंने अपनी जेब के हवाले की।

तभी वह स्टडी में आ गई, उन्होंने उसे बेडरूम में चलने को कहा तो उसने इंकार कर दिया। कई बार कहने पर मुश्किल से कार्तिक वहाँ से चले गए। वह कई घण्टे मानसिक सन्ताप से जूझती रही। जिस यतीन को उसने इतना सम्मान दिया था, मन में एक कोमल भाव भी पनपने लगा था, उन्होंने ही उसपर इतना गन्दा इलज़ाम लगाया। उसे गिराने के लिए इस हद तक उतर आये ! सहनशक्ति जवाब दे रही थी। दर्द से सर फ़टने लगा था। उसने नींद की गोली की तलाश में निगाह दौड़ाई, पर वह लापता थी। उसकी आँखों के सामने चिंतित कार्तिक का चेहरा आ गया। कुछ देर यूँ ही खड़ी रही फिर शयनकक्ष की ओर चल दी।

कार्तिक पलँग की पुश्त से टिके हुए सो रहे थे। हाथ में एक पुस्तक थी। उसने पुस्तक उनके हाथ से लेकर रख दी। आँखों से चश्मा उतारा तो उनकी आँख खुल गई।

" ठीक से सो जाइये न, किताब लेकर क्यों बैठे थे ?"

" तुम भी तो नही सोईं। "

" मैं तो अक्सर देर रात तक काम करती हूँ, पर आप तो नही जागते न।" कहते हुए कुछ पल को रुकी फिर गहरी दृष्टि से उन्हें देखा। " मेरी नींद की गोली नही मिल रही, आप ...?"

" हाँ "

" क्यों ?"

" तुम्हारा मूड देखकर थोड़ा घबरा गया था, आओ मैं सुला दूँ। " कहते हुए उन्होंने उसे सीने से लगा लिया और हौले हौले उसका सर सहलाने लगे। पति के स्नेहसिक्त व्यवहार से अब तक रोका हुआ मन का ज्वार फट पड़ा और आँखों से अश्रु बह निकले।

" बताओगी नही कि क्या हुआ ?" जवाब में वह बस सिसकती रही। कार्तिक ने दोबारा प्रश्न नही किया।

दूसरे दिन ऑफिस जाने का मन नही किया, बहुत लंबे समयान्तराल पश्चात उसने अवकाश लिया था। आशंकित कार्तिक ने भी उस दिन छुट्टी ले ली। उसने उन्हें बताया तो कुछ नही पर पति की चिंता उसे बहुत भली लगी।

दो दिन बाद एक मीटिंग अटेंड करते हुए ऑफिस गई तो देखा सभी सहकर्मी एकत्रित हैं और यतीन उन्हें सम्बोधित कर रहे हैं।

" आज बड़ी खुशी का दिन है, सिमरन, जिसे मैं अपनी बेटी का दर्जा देता हूँ, का जन्मदिन है। अपनी मेहनत से उसने कम समय में ही बड़ी सफलता हासिल की है। तो लंच टाइम में एक छोटी सी पार्टी मेरी तरफ से। " कावेरी के मुँह में जैसे कुनैन सी कड़वाहट घुल गई।

इतनी कुत्सित मानसिकता, इतने विकृत रिश्ते! बड़ी मुश्किल से तो दो दिन बाद वह खुद को शान्त कर पाई थी पर ऑफिस आते ही लगने लगा जैसे दिमाग फट जाएगा। थोड़ी देर तो वह लैपटॉप खोलकर बैठी रही, काम में दिल लगाने की कोशिश करती रही फिर जब बर्दाश्त करना कठिन लगने लगा तो उठकर घर चल दी।

दूसरे दिन सभी चौंक गए जब खबर मिली की सिमरन की फिर से तरक्की हो गई, और कावेरी की वार्षिक रिपोर्ट संतोषजनक नही पाई गई।

" मैम, समझ नही आता की सिमरन ने ऐसा क्या जादू कर दिया है सर पर ,जो उन्हें उसकी हर बात अच्छी लगती है, और आपका बेवजह अपमान करते रहते हैं ।" सहकर्मी अशोक आक्रोश में था।

" कुछ नही अशोकजी, अब वक़्त आ गया है कि मुझे इस कम्पनी से विदा ले लेनी चाहिए ।"

" तो हम भी यहाँ नही रहेंगे मैम। "

" देख लीजिए, जैसा ठीक लगे, वैसे भी जो हालात बन रहे हैं मुझे नही लगता कि मेरे जाने के बाद मेरे करीबी समझे जाने वाले लोग यहाँ ज्यादा दिन तक टिकने दिये जाएंगे। "

यतीन को जब सूचना मिली की कावेरी को दूसरी कम्पनी में बेहतर सैलरी और पद मिल रहे हैं तो उन्हे गहरा आघात सा लगा। अब कावेरी पद प्रतिष्ठा में उनके समकक्ष हो गई थी। उनका अहम प्रतिकार के लिए व्याकुल हो उठा। उन्होने सौगन्ध खा ली की इसके जवाब में वह सिमरन को खड़ा करेंगे। जिसकी पदोन्नति बहुत तेजी से हो रही थी। बेशक बॉस की कृपादृष्टि थी, परन्तु आवश्यक योग्यता कहाँ से आती। सिमरन योग्यता में कावेरी के समक्ष कहीं नही ठहरती थी। यतीन ने बहुत मेहनत करनी शुरू की, उसकी प्रेजेंटेशन भी वे खुद ही तैयार करते और वाह वाही सिमरन को मिलती। बदले में वह भी उनका ऋण चुका देती , अपने अंदाज़ में। उसका ज़मीर कभी कचोटता ही नहीं था। आपसी लेन देन से वह रिश्ता मजबूत हो रहा था, पर यतीन की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल रही थी। सिमरन को अधिकतर लोग हेय दृष्टि से देखते थे।

कावेरी का काम के प्रति जूनून रंग ला रहा था और वो प्रतिद्वंदी कम्पनी की सी इ ओ बन चुकी थी। उधर शॉर्टकट अपनाते हुए सिमरन भी तेजी से आगे बढ़ रही थी। कई बार दोनों का आमना सामना होता और कावेरी का मन घृणा से भर उठता।

कावेरी को नीचा दिखाने और सिमरन को हठ वश आगे बढ़ाने का दुष्परिणाम अब सामने आने लगा था। उनके बहुत से गलत फैसलों का खामियाजा अब कम्पनी को भुगतना पड़ रहा था। उधर सिमरन की महत्वाकांक्षा काफ़ी बढ़ चुकी थी, उसे अब वो सब कुछ चाहिए था जो कावेरी को हासिल था। बस तलाश थी एक अवसर की । यतीन से जो हासिल हो सकता था वो सब मिल चुका था, अब उनसे चिपके रहने से कोई फायदा नही था। यतीन अब एक डूबता जहाज थे और वह इस डूबते जहाज से उतरने की फ़िराक़ में थी। इंतज़ार था बस एक अवसर का, जिसे लपकने को वह तैयार बैठी थी।

एक के बाद एक नुकसान झेलती कम्पनी का आखिर प्रतिद्वंदी कम्पनी के मालिक रेड्डी ने टेक ओवर कर लिया। अधिकतर पुराने कर्मियों को हटा दिया गया, जिनमे यतीन भी शामिल थे। इससे भी बड़ा झटका तब लगा जब उन्होने देखा कि सिमरन अब कम्पनी की एक छोटी शेयर होल्डर बन गई थी। यह सब जानकर यतीन के क्रोध का ठिकाना न रहा भड़कते हुए वह सिमरन के नए फ्लैट पर पहुँचे जहाँ उसने अभी हाल ही में शिफ्ट किया था। अपने पति को तो वह काफी पहले छोड़ चुकी थी।

" ओह, आप यहाँ ?" यतीन को दरवाजे पर पाकर वह चौंक गई।

" तो उस बुड्ढे रेड्डी को शीशे में उतार लिया तुमने ?"

" माइंड योर ओन बिज़नेस "

" मैंने तेरे लिए क्या- क्या नहीं किया, और तूने मेरे साथ ही खेल खेला ?"

" शीशे के घरों में रहने वाले दूसरों पर पत्थर नही फेंका करते मिस्टर यतीन। इस खेल की शुरुआत तो आपने ही की थी। " उसने फिल्मी अंदाज़ में कहा।

" मैंने तुझे ज़मीन से उठाकर आसमान पर बैठा दिया। वरना तू थी क्या, एक मामूली सैक्रेटरी, जिसमे ड्रैस सेन्स तक न था। "

" मेरे लिए कुछ नही किया जनाब, सिर्फ कावेरी को नीचा दिखाने के लिए किया। उसकी कामयाबी और पॉपुलेरिटी से फुंके जा रहे थे आप। मुझे चारा बनाकर इस्तेमाल किया, तो मैंने भी तुम्हे सीढ़ी बना लिया। क्या बुरा किया ?"

" यू ब्लडी बिच,मैं जानता हूँ कि अपना सौदा करके ही तू कम्पनी की शेयर होल्डर बनी है। "

" तुम कौन से दूध के धुले हो, वुमनाइज़र। अगर मेरे लिए कुछ किया तो ब्याज समेत वसूल भी तो किया । कौन सा मुझपर अहसान किया। "

" सच में जो अपने पति की न हुई तो वो मेरी क्या होगी ।"

" ओहो, तो आज ज्ञान प्राप्त हो गया आपको ?" वह जहरीली हँसी हँस पड़ी। " नाओ गेट लॉस्ट " कहते हुए उसने यतीन के मुँह पर ही दरवाजा बंद कर दिया।

कावेरी के पास भी सारी खबरें पहुँचती रहीं,कि रेड्डी ने कम्पनी का टेकओवर कर लिया है, सिमरन अब कम्पनी में दो परसेंट की शेयर होल्डर है, पुराने स्टाफ को छुट्टी दे दी गई है, यतीन ने कई जगह प्रयास किये पर हर जगह उनकी बदनामी की खबर पहुँच जाती और उन्हे बेरंग वापस लौटना पड़ता। उनके परिवार ने उनसे नाता तोड़ लिया, और फिर वह कहीं गुम हो गये ।

कई दिन से कावेरी की आँखों में नींद का नामो- निशान तक न था। नींद की गोली खाई तो उसका भी असर न हुआ।अंततः झुँझलाकर उसने रात में दो गोलियाँ खा लीं। असर हुआ और आँख लग गई। जब नींद टूटी तो देखा सुबह के चार बज चुके थे। कई दिन बाद सो पाने की वजह से आज थकान कुछ कम लग रही थी। दोबारा आँख बंद करके फिर से एक झपकी लेने का प्रयास किया तो इस बार असफलता हाथ लगी। ऐसे ही लेटे लेटे काफी देर हो गई तो सड़कों पर प्रातःकालीन सैर करने वालों का कोलाहल सुनाई देने लगा। पतिदेव गहरी नींद में ए सी की शीतलता से सिकुड़े पड़े थे। कम्बल नीचे गिरा हुआ था। उसने कम्बल उठाकर कार्तिक के शरीर पर डाल दिया और खुद उठ गई।

लोगों को देखकर मन में सैर करने की इच्छा जाग्रत हो गई। एक बार सोचा कार्तिक को उठा ले पर उनकी नींद में ख़लल डालने का मन नही हुआ। चुपचाप उठकर वो पार्क की ओर चल दी। दो चक्कर पूरे पार्क के लगाकर वो एक बैंच पर बैठ गई। शीतल,मन्द सुगन्धित समीर के झोंकों ने मन प्रफुल्लित कर दिया । सूर्योदय हो चुका था। ओस से नहाई घास की हरीतिमा और रंग बिरंगे फूलों की सुंदरता ने मन मोह लिया। आज बड़े दिनों बाद उसे हल्का पन सा महसूस हुआ। खाम खाह ही इतने दिनों से वह तनाव लिए घूम रही थी। उसे आश्चर्य होने लगा की बेकार ही वह दुनिया भर की चिंता अपने दिमाग पर लादे घूम रही है। क्यों वह व्यर्थ के तनाव को स्वयं पर हावी होने दे रही है। लगा बुद्ध के तरह उसे भी आज नया ज्ञान प्राप्त हो गया है।

अपनी स्टडी में आकर समाचारपत्र पर दृष्टि दौड़ाने लगी। आहट सुनकर देखा तो कॉफी के दो मग के साथ एक सुर्ख गुलाब लिए कार्तिक खड़े हैं।

" अरे आप !"

" जी मैडम, आज तो बड़ी खिली खिली नज़र आ रही हैं ।" कहते हुए गुलाब उनकी ओर बढ़ा दिया।

" थैंक यू सो मच ।" अपने चहकने पर वह स्वयं ही हैरान रह गईं " सो स्वीट ऑफ़ यू, आज बड़े रोमांटिक अंदाज़ में हैं जनाब। "

" कितने अरसे बाद आज तुम खुश दिख रही हो, कबसे तुम्हे मुस्कुराते हुए नही देखा। तुम्हारी दिन रात की टेंशन ने तो हमारी पर्सनल लाइफ को बिलकुल खत्म कर दिया है। " कार्तिक के स्वर में उलाहना साफ नजर आ रहा था। कावेरी का मन कचोट उठा।

" सो सॉरी डियर, मैं सचमुच पागल हो गई थी। कोशिश करूँगी कि अब शिकायत का मौका न दूँ ।"

" सब कुछ तो पा लिया है तुमने कावेरी, फिर ये अंधी दौड़ क्यों ? छोड़ दो ये सब, जितना काम आराम से कर सको उतना करो। मुझे मेरी पत्नी लौटा दो, प्लीज़। " कार्तिक का स्वर भावुक हो गया था।

" मैं बहुत शर्मिंदा हूँ, मुझे माफ़ कर दीजिए। न जाने कैसा जूनून सवार था मुझपर। पता नही क्या आक्रोश था ।" पति की बाँहों में बहुत दिनों बाद सुकून मिल रहा था।

तैयार होकर डाइनिंग रूम में आई तो देखा कार्तिक समाचार पत्र से चिपके हुए थे। उनके हाथ से पेपर छीनते हुए एक ओर रख दिया

" अब पेपर रखिये और शांति से नाश्ता कीजिये " कहते हुए सन्तरे की एक फांक पति के मुँह में डाल दी।

" आज तो इस बेचारे पति के भाग ही खुल गए। " कार्तिक शरारत से मुस्कुराए

" क्यों भला !"

" इतनी सक्सेसफुल बिज़नेस वुमेन ने इस अदना इंसान को अपने हाथ से खिलाया।

" दिस इज़ टू मच कार्तिक, सॉरी फील कर तो रही हूँ न ? इसका मतलब ये नही कि आपको मेरी टांग खींचने का मौका मिल गया। "

" गुड मॉर्निंग कावेरी, हाऊ आर यू ?" पीछे से आये इस परिचित स्वर ने उनदोनो की हँसी पर जैसे ब्रेक लगा दिए। पलटकर देखा तो रजनीगन्धा का बुके हाथ में लिए हुए यतीन खड़ा था।

" हैलो मिस्टर कार्तिक " यतीन के बढ़े हुए हाथ को देखकर चेहरे पर पल भर को आये अप्रिय भाव को कुशलता पूर्वक कार्तिक ने छुपा लिया, और बेमन से हाथ मिला लिया।

" आइये यतीन जी,प्लीज़ टेक अ सीट। "

यतीन तुरन्त एक कुर्सी खींचकर बैठ गया, कार्तिक के चेहरे के भाव बदल चुके थे, वातावरण में बोझिलता आ गई थी। कावेरी उसे देखे जा रही थी, चेहरे पर समझ न आने वाले भाव थे। कार्तिक की पेशानी पर बल पड़ गए, अपना नाश्ता यूँ ही छोड़कर वह उठ गए।

" एक्सक्यूज़ मी, आपलोग नाश्ता कीजिये मैं निकलता हूँ, मुझे लेट हो रहा है। "

" वेट कार्तिक, मेरा भी पेट भर गया।

" कैसी हो कावेरी ?"

उसने कोई जवाब न दिया। व्यस्तता दिखाते हुए उठ खड़ी हुई।

" जो भी कुछ हुआ उसे भूल जाओ, हम फिर से एक नई शुरुआत कर सकते हैं ।"

स्वर में चाशनी सी घोलते हुए वह बोला, आँखों में अब भी धूर्तता की चमक थी। इतने दिनों बाद हासिल हुए मिठास के पल विलीन होने लगे।

" तुम्हारे मनपसन्द रजनीगन्धा लेकर आया हूँ ।"

" झुमकी, इन फूलों को बाहर डाल दो, इनकी सड़ांध बर्दाश्त नही हो रही मुझे, और मेहमान को पानी वानी पूछ लेना। " कटुता से कहते हुए वह मुड़ी और इंतज़ार में खड़े कार्तिक की बांह में बांह डालते हुए बोली " चलिये आज कहीं लॉन्ग ड्राइव पर चलते हैं। मुझे आपके साथ बहुत सारे मीठे पल गुज़ारने हैं। "

समाप्त

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