Dil ki dua books and stories free download online pdf in Hindi

दिल की दुआ

राहफकीर जुनूनी मिजाज में जंगल के भीतर इधर से उधर भटक रहा था| कठिनाइयों से उलझी इस जिंदगी में उसे एक ही खास और आदर्श नसीहत मिली थी,वह थी इस जीवन की उदेश्यपूर्ति करना,उसे सम्पूर्ण रूप से सार्थक सिद्ध करना|और वह इस मकसद को किसी भी कसर पर हरगिज नहीं छोड़ देना चाहता था|इसलिए तमाम कोशिशों से पछाड़ खाकर,मुसीबतों से सामना कर के वह फिर से अपने मकसद में लग जाता था|ये जुनून उसे तभी से लगा जब उसकी माशूका ने उसे यह कहकर अपने दिल से निकाल दिया कि तुम्हारे पास ऐसा क्या हैं, जिससे मैं अपनी पूरी ज़िंदगी ऐशोआराम में गुजार लूँ| ढ़ेर सारी दौलत,बहुमूल्य हीरों से सजे हार,नग-जड़ित गहनें यदि अपने खीसे में हो तो इधर आ निगाहों से निगाहें मिलाओ| वह एक पल के लिए सन्न रह गया था| अपनी जान से प्यारी माशूका भी उसे यह सजा देगी,उसे कदापि ये उम्मीद नही थी|लेकिन नियति ने यही स्वीकारा|दिल पर बड़ा आघात पहुंचा|वह खून के आँसू रोने लगा,तड़पने लगा|क्या यही मेरे सच्चे इश्क का अंजाम था|मुझे ऐसे बंधन में मत बांधों|मैंने ऐसी क्या बड़ी खता कर ली| या खुदा मुझे अपनी पनाह में ले ले|खुदा से लाखों गुहारों के बाद वह जंगल के भीतर आ गया था| तभी से वह दर्द का मारा,किस्मत से छ्ला हुआ भटकने लगा था |और आज तकरीबन बीस साल होने को आए हैं|वह इसी तरह आफत से घिरा हुआ भटक रहा था| दर्द की घूंट को राह का अमृत समझ कर पी रहा था| संघर्ष की इस दौड़ में हार का डर तनिक भी नही दिख रहा था|उसके मस्तक पर हिम्मत और पराक्रम की लकीरें साफ-साफ झलक रही थी|एक वीर यौद्धा की भांति जंगल की झाड़ियो को काटता हुआ लगातार अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ता जा रहा था|
साँझ निशा को निमंत्रण दे रही थी|बादल नभ में उसी तरह क्रीडा कर रहे थे मानो कई बच्चों की टोलिया एक-दूसरे से अठखेलिया कर रही है|कोई किसी को धक्का दे रहा है|कोई किसी पर रौब जमा रहा है|कोई पीछे से आकर दूसरे साथी की अपने हाथों से आँख छिपा रहा हैं|अहा! कितना मनोरंजक हैं|राहफकीर जंगल में अभी भी भटक रहा था|उसके पाँव अब थक चुके थे|उसका एक पल के लिए भी अब चलना मुश्किल था|तभी उसको एक विशाल,एक खूबसूरत झरना दिखाई पड़ता है|पहाड़ की उच्चाई से पानी मोतियों की लड़ियो की सदृश नीचे धरा पर गिर रहा था|यह दृश्य देखने में ही मनमोहक था|राह फकीर उसके पास खिंचकता हैं|नीचे बह रहे पानी में खुद को एकटक निहारता है|माशूका के छोड़ देने के बाद पहली बार वह खुद को देखता हैं| उसके हुलिये में कितना बदलाव हो गया था|आखिर बीस बरस हो गए हैं|अबतो बदलना स्वाभाविक ही था|यही सोचते-सोचते उसकी आँखों के सामने अपनी माशूका मलिका के साथ बीते पल मंडराने लगे|ख्वाबों में खो गया|एक रोज मलिका मंदिर के पास झील के किनारे खड़ी थी|शायद झील के झलकते पानी को देख रही थी|और वह वही मंदिर के पास खड़े दरख़्त के पीछे छिपकर बार-बार उसे देख रहा था|सहसा उस दरख़्त की सूखी डाली का मोटा टुकड़ा गिरता है|बिलकुल उसके पीछे ही|खुदा का शुक्रिया उसके ऊपर नहीं गिरा | अन्यथा वह आज जीवन से हाथ धो बैठता|ओंधे मुँह जमीन चाटता कोई पानी भी नही आकर देता|डाली टूटने की आवाज सुन मलिका पीछे जोहती है,तो देखती है एक हष्टपुष्ट नोजवान खड़ा है|डर से कांप रहा हैं|वह उसके पास जाती है|और विनोद से बोलती है- यहाँ इस दरख़्त के पास क्या कर रहे थे|ये डाली कैसे टूटी?(टूटी डाली जमीन पर देखके कहा) क्या तुम इस दरख़्त से गिरो हो?

नहीं- वह भय को उतारते हुये कहता हैं|

‘तो फिर’ –मलिका उसकी आंखो की तरफ झाँककर कहती है|

वह यकायक मलिका के आँखों में देखने लगता हैं उसमें छिपे हुये प्रेम को तलाशने लगता हैं|पर वह वही खड़ा रह जाता हैं मलिका कब उसके पास से चली जाती है| उसे पता भी नही चलता|बस दो पल गुजर पाये|इन्हीं दो पलों के सहारे वह हुस्न की रानी मलिका के पास अपने इश्क का इजहार करने जाता हैं|पर वह उसे बाहर लताड़ देती है|उसने कभी नहीं सोचा था वह जितनी बाहर से सुंदर हैं,उतनी ही दिल से बदसूरत हैं,एक अश्वेत दाग हैं|उसे कभी नही देखेगा वह|वह बेवफा है,मक्कार है,झूठी है|मेरे पास धन नही था तो क्या|एक पवित्र दिल तो था|

तभी झील में एक पत्थर गिरा|छ्पाक!,उसी के साथ राहफकीर की नींद उड़ती हैं|वह देखता हैं|एक समय के लिए वह सोचता हैं,वह कहाँ है|फिर वही झरने में अपनी शक्ल देखने लगता हैं|आसपास दृश्यों को देखने लगता हैं| उसे वही झरने के पीछे एक संकरा मार्ग दिखाई देता है|फुर्ती से उसकी उसकी ओर झपटता हैं|यहाँ के दृश्य देख वह हतप्रभ रह जाता हैं|ये जंगल का सबसे सुंदर भाग था|उसे यहाँ एक कुटिया दिख जाती हैं|वह उसकी ओर बढ़ता हैं,कुटिया के इर्द-गिर्द झाँकता हैं तब पता होता है कि यह कुटिया तो खाली हैं|

रात हो चली थी |आसमान में कुछ तारे संगीत छेड़ रहे थे |जिसे सभी तारे ध्यान से सुन रहे थे |राहफकीर दिन भर का थकाहारा कुटिया में गहरी नींद में सो रहा था|सहसा उसके कानो को एक आवाज बेंधती हैं|वह अचानक नींद से जाग जाता है|उसे पता नही चला ये कैसी आवाज है जिसने उसको इतनी गहरी नींद से भी जगा दिया|वह कुटिया के बाहर निकलता हैं|उसे फिर से वही आवाज सुनाई देती हैं|दर्दभरीआवाज,असहाय रुदन मानो कोई असीम वेदनाओ की मार से तड़प रहा हो|वह उस आवाज के निकट जाता है|आश्चर्यचकित हो जाता हैं|और वही चक्कर खाकर गिर जाता है|होश आता है तब वह उस औरत की तरफ देखता हैं|जिसकी आवाज ही राहफकीर के कानो को चोट पहुंचा रही थी|वह कोई और ही नहीं थी हुस्न की रानी मलिका ही थी जिसकी बेहद दर्दनाक हालत हो गयी थी|उसे देखे तो किसकी क्षणभर भी उसकी तरफ निगाहें नही टीके| पर राहफकीर उसे देखता ही रहा|उसका प्रेम पुनः स्फुटित होने लगा|यह देखकर मलिका चोंक गयी|सोचने लगी मुझे धन के लालच में आकर इसे नहीं नकारना चाहिए|मैं गलत थी|ये मुझे बेपनाह इश्क करता हैं|कहाँ मैं धन गहनों के लोभ मैं उस शैतान के हाथों में आ गई| जिसने मुझे आज इतना दर्द दिया है|मुझे जंजीरों में कैद कर दिया|राहफकीर ने तुरंत मलिका को आजाद किया|दोनों वापस घर की तरफ लौटने लगे| उसे जीवन मकसद मिल गया था|एक नई ज़िंदगी मिल गयी थी|बीच में वही झरना आया|जिसमें दोनों ने स्नान किया|खुदा के करिश्मे से मलिका को पुनः पहले जैसा रूप मिल गया था|और राहफकीर को अपनी माशूका, हुस्न की रानी मलिका|जो बरसों से उसके “दिल की दुआ” थी|
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'सर्वाधिकार सुरक्षित'
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लेखक- परमार प्रकाश
गाँव- करवाड़ा
तहसील- रानीवाड़ा
जिला- जालोर
राजस्थान(भारत) 343040


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