Samay Jaal - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

समय जाल (भाग 1)

वैसे तो मैं अभी बहुत छोटा हूँ विज्ञान के उन जटिल एवं गणित के सिर घुमाने वाले फार्मूलों को समझने के लिए, जिन्हें मशहूर गड़ितज्ञओं ने कई साल पहले ही लिख दिया था, परंतु इतना तो अवश्य ही जानता हूँ कि महान गड़ितज्ञ और वैज्ञानिक "आइंस्टीन" की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी समय यात्रा को संभव सिद्ध करती है और भविष्य यात्रा संभव हो सकती है।


17 दिसंबर, 2018


रंजन चतुर्वेदी जी, एक ह्यूमन ब्रेन रिसर्चर थे महज 24 साल की उम्र है उनकी। हाल ही में उनकी एक किताब "हुमानोइड क्लोनिंग" भी प्रकाशित हुई है। उन्हें आज 17 दिसंबर 2018 को अपनी पुस्तक के लिए आफिस में सम्मानित किया जाना है।
सुबह का समय होता है जब रंजन इसके ऊपर विचार कर रहे थे और आफिस जाने के लिए तैयार भी हो रहे थे।
रंजन अपने पुराने मित्र सुब्रत को दूरभाष करते हैं:

रंजन : क्या मैं प्रो. सुब्रत विश्वकर्मा जी से बात कर रहा हूँ।
फ़ोन पर : अरे रंजन भैया आप, कुछ काम था क्या आपको....वो तो अभी घर पर नही हैं, गए हैं शिलांग की एक विश्वविद्यालय को अपना एनालिसिस सबमिट करने, परसो तक आ जाएंगे।
रंजन : जी शुक्रिया भाभी .... कोई खास काम नहीं था बस वही मेरी किताब को लेकर सुब्रत से बात करनी थी...... भाभी ये तो बताइए कि गुड़िया कैसी है अब तक तो बोलने और चलने भी लगी होगी।
फ़ोन पर :क्या बताये भैया, बहुत शरारती हो गयी है अभी आज सुबह ही एक कांच का फलदान तोड़ दिया इसने......वो छोड़िये पहले आप ये बताइये आप कबतक यो ही सारा काम खुद करेंगे आपकी दुल्हन कब आएगी।
रंजन : अरे भाभी आपभी क्या मजाक करती हैं, अच्छा खासा जी तो रहा हूं.........अच्छा भाभी .....सुब्रत आये तो कहियेगा मुझसे मिलने मेरे घर आ जायेगा........रखता हूँ भाभी आफिस जाने में देर हो चुकी है।

फोन रखकर रंजन ऑफिस की ओर निकल जाते हैं। आज का दिन रोज की तरह ना था बल्कि आज उन्हें उनकी पुस्तक के लिए सम्मानित किया जाना था और इसी लिए उनके ऑफिस में पहले से तैयारियां चल रही थी। सभी लोग रंजन को बधाइयां दे रहे थे उन्हें एक फूलों का गुलदस्ता ऑफिस की ओर से गिफ्ट किया गया। रंजन की खुशी का ठिकाना ना था वह भी लोगों की हंसी ठिठोली में शामिल हो गए। उस समय उनकी एक मित्र थी,  डॉ. हेलेन पेट्रिक, वो भी बधाई देने आई थीं। दरअसल, हेलेन एक अनाथ थीं जिन्हें एक क्रिस्चियन परिवार ने गोद लिया था और पढ़ा लिखा कर डॉक्टर बनाया था।

रंजन बहुत थक चुके थे और रोज शाम की तरह इस शाम भी थके-हारे गाड़ी चलाते हुए घर की ओर निकल पड़े। जिस रास्ते से वह रोज जाया करते थे वह आज शायद बंद था क्योंकि उस पर कुछ निर्माण कार्य हो रहा था। रंजन सोचते हैं,"सुबह तो कोई निर्माण कार्य नहीं हो रहा था पता नहीं कब यह रोड बंद कर दिया गया !" रंजन गाड़ी घुमा कर पीछे जाते हैं और चौराहे से दूसरा रास्ता पकड़ते हुए अपने घर की ओर बढ़ने लगते हैं। चलते-चलते रात के 10:30 हो चुके थे और रंजन बुरी तरह थक भी चुके थे। कुछ दूर उस रास्ते पर चलते हैं और उनका सामना धुंध और कोहरे से होता है। रंजन जैसे तैसे घर के पीछे वाली गली तक पहुंच जाते हैं। "रुको क्या यह मेरे ही घर के पीछे वाली गली है, कहीं मैं रास्ता तो नहीं भटक गया ? या फिर मुझे भ्रम हो रहा है !", रंजन खुद से पूछते हैं।

रंजन अपने घर की ओर बढ़ते हैं और अपना घर देखकर उनके तो मानो जैसे आंखो का पानी ही सूख जाता है। "अरे! यह मैं कहां गया यह तो मेरा घर है पर यह इतना छोटा कैसे हो गया और इसका रंग रूप भी बदला है.......", रंजन  विस्मय में चीखते हैं। थोड़ा घूर के देखने के बाद उन्हें पता चलता है कि यह तो उन्ही का घर है और यह जगह भी जानी पहचानी है, लेकिन उनके घर में से गैरेज तो गायब ही है!  यह कैसा खेल हो रहा है। रंजन थोड़ा चकित तो थे ही वह जांच के तौर पर घर का ताला खोलने का प्रयास करते हैं और ताला खुल भी जाता है। वे इस सबको  भ्रम मानकर घर के भीतर चले जाते हैं घर का पूरा नजारा तो एक दिन में ही बदल चुका था हर चीज अलग जगह पर रखी हुई थी और जैसे नई सी हो गई थी। रंजन को अपनी आंखों पर बिल्कुल यकीन नहीं हो रहा था और वह फौरन जाकर बिस्तर पर सो जाते हैं।



जारी रखा जाना है..........अगला भाग जल्द ही प्रकाशित होगा...

To Be Continued.......next part will be published soon...


रचना: Thoughtful Mind】

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