Swabhiman - Laghukatha - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

स्वाभिमान - लघुकथा - 10

1 - रेड कारपेट

सुलझे विचारों वाली, तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी गीता को ग्रेजुएशन करते ही बैंक में नौकरी मिल गई। बैंक में भी वो अपने काम और व्यवहार के कारण सबकी प्रिय बन गई। न जाने कब उसे अपने सहकर्मी से प्रेम हुआ पता ही नहीं चला, दोनों ऑफिस के बाद कभी कभी मिल लिया करते थे। एक दिन बातों-बातों में नरेश बोला, “मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ, तुमसे दूरी बर्दाश्त नही होती मुझसे, मैंने अपने मम्मी-पापा से बात कर ली है, कोई ऐतराज नही है उन्हें हमारी शादी पर, इन्फेक्ट वो तो चाहते हैं कि तुम जल्दी से जल्दी हमारे घर आ जाओ।"

" सच...।"

“और सुनो मेरी मम्मी को तुम्हारे जॉब करने पर भी कोई प्रॉब्लम नही है पर...।”

“पर क्या! नरेश...।”

“क्या बोलूँ, वो बोल रही थी, वो कॉलेज में प्रिंसिपल,पापा का प्रेस, समाज में काफी नाम है हमारा, अंकल को बोलो न कि कबाड़ की ठेली लगाना बंद करें, इस उम्र में इतना काम...।”

साफ-साफ बोलो नरेश कबाड़ी समधी तुम्हारी मम्मी के स्टेटस से मैच नही होता, उसी कबाड़ की कमाई से मेरे पापा ने अपने परिवार का भरण पोषण किया है, तुम्हारी तरह रेड कारपेट की आदत नहीं है हमें। मुझे गर्व है अपने पिता के काम पर...और सुनो! पति तो मुझे आज नही तो कल मिल ही जायेगा, पर किसी को मेरे पिता के काम पर आपत्ति मुझे बर्दाश्त नही...।“

***

2 - सुरक्षित हूँ मैं

"सुनो! मेरा प्रोमोशन हो गया है " फोन पर गुंजन भानु को बोली।

"बधाई!!, देखो लकी हूँ मैं तुम्हारे लिए।“

"हाँ, पर एक और बात, प्रोमोशन के साथ मेरा ट्रांसफर भी हो गया है"।

"कहाँ ???"

"गोलाघाट नवोदय विद्यालय असम", गुंजन बोली।

"क्या??? नॉर्थ ईस्ट"

"येस! असम, आई एम टू एक्साइटेड, मेरा कब से मन था वहाँ जाने का।“

"पागल हो गई हो क्या? तुम नहीं जा रही हो, डोंट एक्सेप्ट प्रोमोशन ।"

"क्यूँ"

"बहुत दूर है यार, एंड इट्स नॉट... खान-पान सब अलग है वहाँ, तुम अकेली कैसे एडजस्ट।"

"क्या इट्स नॉट, अरे! वो मेरे ही देश में है, और पूरा देश मेरे लिए मेरा घर है, और हर लड़की अपने घर में एडजस्ट कर लेती है और सेफ है, आय एम गोइंग ... इस महीने दस को जॉइन करना है।"

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3 - विकलांग

आज सुबह से बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है,मोबाइल,लैंडलाइन सभी फोन की घंटी घनघना रही है...

शहर के सभी अख़बार गर्वित के गर्व भरे कारनामों से भरे पड़े हैं...

हो भी क्यों ना,काम ही ऐसा किया है गर्वित ने,स्पेशल ओलंपिक में,साइकिल स्पर्धा में रजत पदक हासिल कर देश का नाम रोशन किया है।

लता को याद है वो दिन जब,गर्वित हमउम्र बच्चो की तरह काम नहीं कर पाता था,लघुशंका, दीर्घशंका का अहसास ही नहीं था उसे, उस समय हर कोई उस पर हँसता था, मज़ाक बनाता था उसका, जो खुद को समझदार बताते थे उनका का तो कहना ही क्या...बेचारगी, दया दिखायी, जतलाई जाती थी उनकी तरफ से।

स्कूल वालों ने भी उसे दूसरे स्कूल में दाखिला करवाने को बोला, हर कोई उसका जानबूझकर या अनजाने में तिरस्कार करता रहा। गर्वित उनकी बातों को हँसकर टाल देता था। लता कुछ नहीं कर पाती थी।

“लता! तुम धन्य हो, जो तुमने आज गर्वित को इस मुकाम पर पहुँचाया,” बधाई के लड्डू खाने आई मिसेज शर्मा बोली।

“मैंने कुछ नहीं किया ,सब कुछ गर्वित की मेहनत का फल है,” गर्व से लता बोली।

“फिर भी यार, सच तो ये है कि गर्वित मानसिक रूप से विकलांग है...” ।

“छोड़ो मेरी महानता की गाथा, तुम मिठाई खाओ, कोई उस पर बेचारगी दिखाए, ये मुझे पहले भी पसंद नहीं था,और आज भी नहीं...हाँ एक और बात, मानसिक विकलांगता से ज्यादा विकलांग मानसिकता को सहारे की जरूरत है...” ।

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मौलिकता का प्रमाण पत्र

मैं, अनूपा हर्बोला, स्वप्रमाणित करती हूँ कि प्रविष्टि मे भेजी गई रचना नितांत मौलिक हैं| तथा मै प्रकाशित करने की अनुमति प्रदान करती हूँ. रचना के प्रकाशन से यदि कापीराईट का उल्लंघन होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी मेरी होगी।

अनूपा हर्बोला

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