फिलिंग फकीरा
रवि के गुप्ता
'भूख से कोई / तो कोई / खा-खा कर मर रहा है / और कोई सुखरोगी / तो कोई / दुख का भुक्तभोगी'। वाह! बहुत खूब लिखा है मित्र तुमने अपने फेसबुक के वॉल पर, दिल करता है कि इस पंक्ति पर पूरी कविता लिखूं और भेज दूं किसी न्यूज पेपर में छपने के लिए।
मोबाइल पर फिर कुछ घिन्न-विन्न की आवाज़ के साथ जवाब आया कि 'लिखो, लिखो और भेज दो छपने के लिए। कोई वामपंथी विचारों का संपादक तो जरूर प्रकाशित करेगा'। मन ही मन में मैं मुस्कुराते हुए खुद को बोला, छोङ भई कमेंट-समेंट करना। नहीं तो अगले दिन यह लाइन फेसबुक से सीधे मेरे जिंदगी में असर दिखाएगी. वामपंथी विचारधारा ना बाबा, ना।
पहले चलकर दुकान का शटर उठा दूं। मोबाइल का क्या, यह तो सांस बन गई है अब। ताला खुला। जिंदगी की खङबङाहट की तरह शटर ऊपर उठा। और शटर उठने के साथ ही चूहों की भागदौड़ चालू हो गई, कहीं - कहीं छिपने के लिए। चीनी, बिस्कुट, चना सब बिखरे पड़े थे बिल्कुल किसी सरकारी पार्किंग की तरह। तभी भागते हुए दो चूहे टकरा गए और एक तो गिर पड़ा लद से। इन सबकी जिंदगी भी हमलोगों के तरह ही भागमभाग और ठेलम-झेलम हो गई है।
फिर रोज की तरह बिखरे हुए सामानों की साफ-सफाई कर रेक में रखा। भले ही मेरा चेहरा उजङा चमन बन गया पर अब दुकान तैयार थी ग्राहकों के लिए।
बस अगरबत्ती लगाने ही वाला था कि पीछे से आवाज आई 'भैया कुछ दे दो'।
मन ही मन सोचा, चलो भगवन आज अच्छा दिन आ गया! दोपहर से पहले ही कोई ग्राहक तो आया, पहले सामान दे देता हूं फिर अगरबत्ती लगा दूंगा।
बिना पीछे मुङे ही बोला हाँ, भाई साहब क्या चाहिए? 'भैया, जो दिल करे दे दो'।
पलटकर देखा, मेरी तरसती-भूखी आंखों के सामने दो खाली तगङे हाथ भीख मांगने के लिए फैले हुए हैं। फैलाव देखकर मेरा मूड ही भरनाट हो गया। अरे भाई! अभी बोहनी नहीं हुई और तुम मुंह उठाकर बिना ब्रश किए मांगने चले आए।
'मालिक, हमारे सेठ, गुस्सा मत कीजिए लेकिन जरा महसूस किजिये, मैं भी तो अपनी रोजी-रोटी के लिए बोहनी करवाने ही आया हूँ। मुझे भी तो सुबह से शाम तक मांगना ही है। इसके सिवा दुसरा तो कोई रोजी रोजगार नहीं है हमारे पास'।
दिमाग में तर्क का तार खनका और बोला- ऐसा नहीं है। बहुत काम है दुनिया में, तुमसब मेहनत के डर से बस हाथ फैलाएं घुम रहे हो।
मालिक यदि मैं 'मेहनत से डरता तो शायद रोज गली-गली, शहर-नगर नहीं घूमता। बिना मेहनत के खाना भी नहीं मुंह तक पहुंचता है। पसीना बहाने से डरता तो शायद मैं भी किसी गिरोह में शामिल हो कर चोरी करता, रातोंरात अमीर बनने के लिए लोगों को लूटता। लेकिन मैं तो ईमानदारी से भीख मांग रहा हूँ'।
अरे! वाह भाषण से तो समझदार लगते हो फिर यह भीख मांगना क्यों?
'क्योंकि मालिक, इसमें जो भी मिलता है नगदी और तुरंत। लेकिन नौकरी में तो आराम से ज्यादा काम करने पर भी पैसे वक्त पर नहीं मिलते। कितनी कंपनियों ने तो बस काम कराया और सैलरी के नाम पर घर का रास्ता दिखा दिया। ऐसे में भीख से सुरक्षित रोजगार और क्या हो सकता है'।
पर भाई तुम कोई छोटा रोजगार कर सकते हो ना!
जी! एक रोजगार था मालिक 'एक चौराहे पर ठेला लगाता था लेकिन वहां पर इतने बड़े-बड़े साहब चाय-पानी पीने लगे कि मेरी पूंजी मेरे ठेले के पहिये की तरह फुस्स हो गई'।
यह बात सुनकर हम मालिकाना ऊंचे लोगों को बुरी लगी तो एक डायलॉग एकाएक निकला कि, कहानी अच्छी कह लेते हो क्यों नहीं कोई फिल्म के लिए काम कर लेते हो।
मालिक 'हर गरीब की मजबूर कहानी अच्छी लगती है। लेकिन उस कहानी से गरीबों का नहीं अमीरों के घर भरते हैं'।
और उन्हीं से मांग कर तुम भी तो जी रहे हो ना.
'क्या करूँ मालिक, जिंदगी को खोने से बेहतर है कि मांग कर जीवन जी लूं। क्या पता जिंदगी दुबारा मिले ना मिले! लेकिन जो मिला है उसे क्यों खोना'।
भिखारी हो या उनके संघ के प्रवक्ता! तुम्हारे बातों में दम है, भले ही शरीर हिल रहा है तो क्या हुआ। तुम एक अच्छे वक्ता बन सकते हो। तुमने पढाई क्यों नहीं किया?
'पढाई तो मैं पीजी तक किया हूँ लेकिन विडंबना है कि मुझे चपरासी के काबिल भी नहीं समझा सरकार ने'।
इतना सुनने के बाद थोड़ी हमदर्दी का आना स्वाभाविक है। ठीक है घबराना नहीं, मैं तुम्हारी आवाज को सरकार तक पहुंचा दूंगा। रुको मैं अपने पत्रकार मित्र को बुलाता हूँ। जब बात पढाई और बेरोजगारी की है तो खबर बन ही जाएगी।
मालिक आपने शायद टीवी देखा नहीं होगा! ' मेरा दो-तीन इंटरव्यू टीवी पर आ चुका है। लेकिन यहाँ पर याद किसको रहता है। क्योंकि मेरे जैसे हर रोज कितने बेरोजगार युवा निकलते है यहाँ के बङे बङे शिक्षण संस्थानों से। परंतु ऊपरवालों को फुरसत कहां हैं? हमारे लिए और वह भी कितनो को याद रखें'।
ठीक है यह लो दो रुपये और आगे बढ़ते रहो, यही दुआ है।
'दुआ किसी की ना लगे/हम गरीबों को/वरना गरीबी ही बढेगी /गरीब को तो बढना ही है'। इतना कहकर वह भिखारी आगे बढ़ा।
मैंने झट से मोबाइल निकाला और फेसबुक पर उसकी बोली लाइन को पोस्ट कर दी। कुछ देर बाद ही लाइक्स और कमेंट्स की बाढ़ आ गई। समय गुजरता गया अपनी रफ्तार से।
कुछ सालों बाद, हर दिन की तरह कामकाज से राहत पाकर बाहर निकला तो देखा कि इतनी मशक्कत के बाद अब उस भिखारी को सामने वाले चौराहे पर जगह मिल गई थी पांच वाली पॉलीथिन बिछाने के लिए। सोचा कि फोटो खींच कर फेसबुक पर पोस्ट कर दूं, और साथ फिलिंग फकीरा भी जोड़ दूं। कुछ और ना सही बिचारे को लाइक्स-कमेंट्स तो मिल ही जाएगा!
आखिरकार फिलिंग फकीरा लिखकर पोस्ट कर दिया और निकल पड़ा घर की ओर। कुछ घंटों बाद दुकान की ओर लौटा तो देखा कि उसके मैले कटोरे में काफी नए सिक्के साफ झलक रहे हैं, हल्की लाइट में भी चकमक हो रहे थे।
देखते-देखते दुकान पर पहुंचकर मोबाइल निकाला और नोटिफिकेशन देखी, तसल्ली ना हुई तो टाइम लाइन पर जाकर उस पोस्ट को देखा ना लाइक्स ना कमेंट्स। झल्लाकर गल्ला खोला, उसके कटोरे से कई गुना ज्यादा पैसे पङे थे फिर भी भिखारी जैसा अहसास हो रहा था।
-रवि कुमार गुप्ता उर्फ रवि रणवीरा