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अंगूर खट्टे नहीं थे

अंगूर खट्टे नहीं थे

इन्द्रजीत कौर

लोमड़ी का ही राज था अतः नीति भी इसी की चलती थी यहाँ। कोई इसकी बात को टाल नहीं सकता था। यह भी कहा जा सकता था कि यहाँ की सारी राजनीति लोमड़ी के इर्द-गिर्द घूमती थी और पूरी की पूरी लोमड़ी राजनीति से सनी थी।

‘सुनो, थोड़ी दूर वाले टीले पर जो पेड़ है, उसके अंगूर बहूत मीठें हैं। चलो आज तोड़कर खातें हैं।’’ जैसे ही लोमड़ी ने यह बात सुबह- सुबह अपनी बहन को धीरे से कही, बगल से गुजरते एक मेमने ने सुन लिया। उसने यह खबर जाकर बाकी मेमनों, बकरियों, भेड़ों आदि को सुनाया। खुशियों की लहर दौड़ उठी। सबलोग एक दूसरे को ‘टीले के अंगूर मीठें हैं और आज टूटेंगें’ की सूचना दे रहे थे। जो एक बार सुन चुके थे वे भी हर बार बड़े चाव से यह खुश-खबरी सुन रहे थे।

कहीं न कहीं से इस खबर के फैलाव की जानकारी लोमड़ी को भी हो गयी थी।

शाम हो गयी।

लोमड़ी अपनी बहन और कुछ अन्य रिश्तेदारों के साथ अंगूर के पेड़ तक पहुंची। सारे जानवर वहां पहले से इकट्ठे हो गए थे। लोमड़ी को इस बात का अंदाजा लग गया था। उसने देखा कि सभी बड़े उत्साहित थे। कोई जमीन पर लोटता, कोई उछलकूद करता तो कोई तेजी से पूँछ हिलाता। सभी अपने मुँह में पत्ते लेकर आये थे ताकि मीठे अंगूर लें सकें।

लोमड़ी ने एक नजर सभी पर डाली फिर साथ खड़े रिश्तेदारों पर एक दृष्टि फेरी। बहन के कान में कुछ कहा और धीरे से मटकते हुए पेड़ के पास पहुँच गयी। उसने अत्यंत पवित्र दृष्टि गुच्छों पर डाली। मुँह में सूनामी की लहर आ गयी। हालाँकि बाकी जानवरों के मुँह भी खाली नहीं थे पर सामान्य सा भराव और सुनामी में फर्क तो होता ही है।

तो लोमड़ी ने गुच्छों को तोड़ने के लिए अपना मुँह ऊँचा किया। चारों तरफ देखा कि उसके प्रयास का प्रदर्शन ठीक से हो रहा है कि नहीं। इसके बाद उसने दोनों पैरों पर खड़े होकर तोड़ने की हल्की कोशिश की। अंगूर नहीं मिल पाए। हालाँकि उसके पास कई रास्ते थे पर कोई भी अन्य उपाय उसने नहीं किया। चारों तरफ देखकर उवाची, ‘’मित्रों अंगूर खट्टें हैं। मैं आपलोगों को नहीं दे सकती। मुझे आपके स्वास्थ्य की चिंता है। आप इसे खायेंगें तो दांत खट्टे हो जायेंगे फिर ठीक से खाना नहीं खा पाएंगे। सभी का शरीर कमजोर हो जायेगा। मैं आपको कमजोर और लाचार नहीं देख सकती। मैं फिर कहती हूँ कि अंगूर खट्टें हैं। मत खाइए। आप सभी स्वस्थ रहें, मेरी यही शुभकामना है।’’

जैसे ही लोमड़ी ने बात ख़त्म की, सारे जानवर नतमस्तक होकर अपने-अपने पत्ते उठाकर वापस चले गए। ‘अंगूर खट्टें हैं’, ‘खट्टे हैं ये’, ‘हाँ खट्टें हैं’, खट्टें अंगूर हैं’ कुछ इसी तरह के मिलते-जुलते शब्द सभी के मुँह से उदासी आवाज में सुनायी दे रहे थे। इसके बाद ‘अंगूर खट्टें हैं’ वाक्य इतना प्रसिद्द हो गया कि कुछ विरोधी प्रबुद्ध जनों ने लोमड़ी की अक्षमता के साथ इसे जोड़ दिया। इतना ही नहीं यह बात दंत कथाओं के रूप में किताबों तक पहुँच गया और मुहावरा–समूह का भी सदस्य बना।

हालाँकि इस घटना के बाद भी लोमड़ी ने कुछ कारनामें किये थे पर अँधेरे में घटित होने के कारण वे इतिहास के प्रकाश में नहीं आ पाये। हुआ यूँ कि लोमड़ी उसी रात अपने समूह के साथ फिर पेड़ के पास आयी थी। चाँद-सितारों की थोड़ी-बहुत रोशनी में उसने अपनी बहन को जमीन पर बिठाया था। जैसे ही अंगूर तोड़ने के लिए उसके ऊपर चढ़ने लगी तो बगल में एक पतली सी बकरी टहलती हुई दिख पड़ी।

लोमड़ी ठिठक गयी। उसका मन किया कि बकरी को मार दे पर उसकी चीख बाकी जानवरों के कानों तक जा सकती थी अतः कुछ और उपाय पर विचार करने लगी। सोचन क्रिया में कुछ देर लीन रहने के बाद उसने धीमी आवाज में बकरी को समझाया, ‘देखो, मैं तोड़े गए गुच्छे में से कुछ अंगूर दूँगी। शर्त यह है कि तुम्हें भी कुछ काम करना पड़ेगा... काम यह है कि तुम जमीन पर बैठोगी और तुम्हारे ऊपर चढ़कर मैं अंगूर तोडूंगी।’ बकरी खुशी-खुशी राजी हो गयी और फुदकने लगी। वह अपने आपको बाकी सभी जानवरों से भाग्यशाली समझ रही थी। लोमड़ी ने बड़ा स्नेह दर्शाते हुये बकरी को नीचे बिठाया। भाव तो श्रद्धा का भी था पर मन में ही रखा। उसने बकरी के ऊपर अपनी बहन को भी बिठा दिया। खुद दोनों पर चढ़कर अंगूर तोड़ लिये। वह धीरे से नीचे उतरी कि बहन को चोट न पहुँचे पर उसकी बहन जोरों से कूदकर नीचे उतरी। अब बकरी की बारी थी, वह उठ नहीं पायी।

दोनों ने खूब जमकर मीठे अंगूर खाये और रिश्तेदारों को दिये।

अगली सुबह लोमड़ी ने भरे गले से सभी जानवरों से कहा, ‘बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि किसी बाहरी शिकारी ने कल रात हमारी साथी बकरी को मार दिया। कुछ बाहरी दुष्ट लोग अंगूरों को तोड़ रहे थे। बकरी ने देख लिया। उसे गुस्सा आया और विरोध किया। शिकारियों को बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने इसे मौत के घाट उतार दिया...।’

इतना कहते ही लोमड़ी ‘ऊँ- ऊँ’ की आवाज करके विलाप करने लगी। आँखों से झरना भी बहने लगा। इसे रोता देख सभी रोने लगे। चारों तरफ आवाजें तेज होने पर लोमड़ी ने सोचा कि अब वह चुप हो जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वह शांत हो गयी।

सहानुभूति की भारी लहर देखते हुए उसने थोड़ी देर बाद क्रांतिकारी आवाज में कहा, ‘बकरी की शहादत बेकार नहीं जाएगी। वह हमारे परिवार की हिस्सा थी। हम शिकारियों के खिलाफ आन्दोलन की घोषणा करते हैं।’ सभी ने समर्थन में अपनी आवाज ऊँची की और जोरों से शरीर को हिलाया।

अब लोमड़ी के नेतृत्व मे बकरी को न्याय दिलाने के लिये आन्दोलन होने लगा...कभी-कभार कोई पूछ बैठता कि ‘अंगूर मीठे रहें होंगे तभी शिकारियों ने तोड़ा होगा’ तो वह आन्दोलन और तेज कर देती।

कुछ दिनों बाद आरोपों से बचने के लिए लोमड़ी ने दो सदस्यों की एक जांच समीति बना ही दी। ये दो सदस्य वह खुद और उसकी बहन थी। कुछ दिनों बाद उसने घोषणा की, ‘अंगूर खट्टे ही थे। अगर कोई आपको कहता है कि अंगूर मीठे थे तो उससे सावधान रहिये। वह आपके स्वास्थ्य को खराब करना चाहता है। इतना ही नहीं वह हमारे मजबूत समूह को तोड़ना भी चाहता है। हमारी एकता को कोई भी बाहरी ताकत तोड़ नहीं सकती। हम एक हैं और एक रहेंगे।’ सभी जानवरों के आँखों में पानी भर आया। इन भावों को देखकर लोमड़ी उस रात आराम से सोयी। उसे पता था कि इस तरह न जाने कितने इतिहास बनें हैं और बनेंगे भी। वह आश्वस्त थी कि इस पवित्र परंपरा से उसकी प्रजाति कभी ख़त्म नहीं होगी, शरीर का आकार भले भिन्न हो जाय।

अब वह अंगूरों के नए गुच्छे आने के इन्तजार में है और दूसरी तरफ आन्दोलन भी तेज हो गया है।

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