अध्याय 4 की कहानी में लाला बदरीप्रसाद की उदारता और सज्जनता का वर्णन है। वे दीन-दुखियों की सहायता करते हैं और अपनी पड़ोसिन पूर्णा की मदद के लिए तैयार हैं, जो एक ब्राह्मणी और उनकी पुत्री की सहेली है। पूर्णा ने अपने कुछ गहने लाला जी के सामने रख दिए, यह कहते हुए कि वह अब उन्हें रखकर क्या करेगी। बदरीप्रसाद ने उसे समझाया कि यह उनका कर्तव्य है और उसे गहनों को अपने पास रखने के लिए कहा। षोडसी का उत्सव धूमधाम से मनाया गया, जिसमें ब्राह्मणों को भोजन कराया गया। रात को, प्रेमा ने लाला जी से पूछा कि क्या उन्होंने भोजन नहीं किया, और बातचीत के दौरान पता चला कि पूर्णा का कोई सहारा नहीं है। बदरीप्रसाद ने विचार किया कि पूर्णा को अपने घर में रखना ठीक रहेगा, ताकि वह अकेली न रहे। प्रेमा ने कहा कि अगर उनकी माँ मानें तो यह अच्छा होगा। बदरीप्रसाद सोचते हैं कि इस व्यवस्था से पूर्णा का खर्च भी कम होगा, लेकिन उन्हें अपनी जिंदगी की चिंता भी है। वे कमलाप्रसाद से सलाह लेते हैं, जो सोचते हैं कि उनकी माँ ऐसा नहीं मानेंगी। कहानी में परिवार और सामाजिक जिम्मेदारियों की भावना को दर्शाया गया है, साथ ही एक सज्जन व्यक्ति के कर्तव्यों को भी। प्रतिज्ञा अध्याय 4 Munshi Premchand द्वारा हिंदी लघुकथा 2.1k 3.3k Downloads 9.4k Views Writen by Munshi Premchand Category लघुकथा पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण प्रतिज्ञा उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट घुट कर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है। प्रतिज्ञा का नायक विधुर अमृतराय किसी विधवा से शादी करना चाहता है ताकि किसी नवयौवना का जीवन नष्ट न हो। ..। नायिका पूर्णा आश्रयहीन विधवा है। समाज के भूखे भेड़िये उसके संचय को तोड़ना चाहते हैं। उपन्यास में प्रेमचंद ने विधवा समस्या को नए रूप में प्रस्तुत किया है एवं विकल्प भी सुझाया है। अब दाननाद से फिर प्रेमा का विवाह तय होता है, दाननाद तो संकोच करते हैं कि मित्र से प्रेम करनेवाली युवती इस विवाह के लिए तयार नहीं होगी। पर अमृतराय के कारण दाननाद विवाह के लिए हॉ कहते हैं। दाननाद और प्रेमा का विवाह हो जाता है। लाला बदरीप्रसाद के पडोस वसन्तकुमार प्रवाह के बीच में जाकर डूब जाते हैं इसलिए पूर्णा विदवा बन जाती है। Novels प्रतिज्ञा प्रतिज्ञा उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट घुट कर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है। प्रतिज्ञा का नायक विधुर अमृतराय किसी वि... More Likes This यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (1) द्वारा Ramesh Desai मां... हमारे अस्तित्व की पहचान - 3 द्वारा Soni shakya शनिवार की शपथ द्वारा Dhaval Chauhan बड़े बॉस की बिदाई द्वारा Devendra Kumar Age Doesn't Matter in Love - 23 द्वारा Rubina Bagawan ब्रह्मचर्य की अग्निपरीक्षा - 1 द्वारा Bikash parajuli Trupti - 1 द्वारा sach tar अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी