"प्रतिज्ञा" के इस अध्याय में, काशी के आर्य-मंदिर में पंडित अमरनाथ का व्याख्यान हो रहा है, जिसे सुनने के लिए श्रोता एकत्रित हुए हैं। प्रोफेसर दाननाथ अपने मित्र अमृतराय के साथ व्याख्यान की आलोचना करते हैं और इसे रटी हुई स्पीच बताते हैं। दाननाथ अमरनाथ की बातों पर ध्यान नहीं देते और सभा से निकलने की इच्छा व्यक्त करते हैं। वक्ता अमरनाथ ने सभा में उपस्थित लोगों से पूछा कि कितने लोग पत्नी-वियोग का अनुभव रखते हैं और अबला महिलाओं के साथ अपने कर्तव्यों को निभाने का साहस रखते हैं। इस पर केवल एक ही हाथ उठता है, जो अमृतराय का है। सभा समाप्त होने के बाद, दाननाथ अमृतराय को समझाते हैं कि प्रेमा, जो उसकी मंगेतर है, उससे कितना प्रेम करती है। दाननाथ उसे याद दिलाते हैं कि यदि वह प्रेमा से विवाह नहीं करता, तो उसका जीवन नष्ट हो जाएगा। दाननाथ ने अमरनाथ के सिद्धांत पर भी सवाल उठाया और कहा कि समाज में सुधार लाने के लिए उन्हें अकेले नहीं चलना चाहिए। इस तरह, यह अध्याय दोस्ती, प्रेम और सामाजिक जिम्मेदारियों के बारे में बातचीत पर केंद्रित है। प्रतिज्ञा अध्याय 2 Munshi Premchand द्वारा हिंदी लघुकथा 2.6k 3.8k Downloads 12.6k Views Writen by Munshi Premchand Category लघुकथा पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण प्रतिज्ञा उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट घुट कर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है। प्रतिज्ञा का नायक विधुर अमृतराय किसी विधवा से शादी करना चाहता है ताकि किसी नवयौवना का जीवन नष्ट न हो। ..। नायिका पूर्णा आश्रयहीन विधवा है। समाज के भूखे भेड़िये उसके संचय को तोड़ना चाहते हैं। उपन्यास में प्रेमचंद ने विधवा समस्या को नए रूप में प्रस्तुत किया है एवं विकल्प भी सुझाया है। अमृतराय दो साल देशाटन करके वापस लौटते हैं तो लालाजी की दूसरी कन्या प्रेमा सयानी बन्कर दिखायी देती है। प्रेमा के परिचय से अमृतराय अपनी वेदना भूल जाते है और दोनों का परस्पर प्रेम होता है। लालाजी तो प्रेमा का विवह अमृतराय के दोस्त दाननाद से करना चाहते थे, पर अमृतराय से प्रमा का लगाव देखकर अपना निर्णय बद्ल्ते हैं। अमृतराय और प्रेमा का विवह होनेवाला ही है, पर एक घटना से सब कुछ बदल जाता है। Novels प्रतिज्ञा प्रतिज्ञा उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट घुट कर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है। प्रतिज्ञा का नायक विधुर अमृतराय किसी वि... More Likes This यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (1) द्वारा Ramesh Desai मां... हमारे अस्तित्व की पहचान - 3 द्वारा Soni shakya शनिवार की शपथ द्वारा Dhaval Chauhan बड़े बॉस की बिदाई द्वारा Devendra Kumar Age Doesn't Matter in Love - 23 द्वारा Rubina Bagawan ब्रह्मचर्य की अग्निपरीक्षा - 1 द्वारा Bikash parajuli Trupti - 1 द्वारा sach tar अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी