Sapne Bunte huye - 2 book and story is written by Dr. Suryapal Singh in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Sapne Bunte huye - 2 is also popular in Poems in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
सपने बुनते हुए - 2
Dr. Suryapal Singh
द्वारा
हिंदी कविता
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विवरण
14. दिनकर उगाना हैगह्वर के भीतर का घना अंधियारा और जंगल की हूक किसने उगाई यहाँ? तुमने कहा था- हम दिनकर उगा रहे वंचक हो कह दूँ क्या? तुम्हारे इन तंत्रों के एक एक तार जो बिखरे पड़े हैं कैसे सह पाएँगे आग, एक युग की जीवन की?किसी देश की सम्पूर्ण पीढ़ी को तीन बन्दर समझना भ्रम है उन्होंने अभी तक तुम्हें ललकारा नहीं यही क्या कम है? यह जानकर कि मेरे ओंठ सिले हैं तुम्हें सुकून मिल सकता है किन्तु सिले हुए ओंठों की आग को दिनकर उगाना है। तुम्हारे द्वारा प्रसारित अँधियारे को हज़म कर जाना है। 15.
सपने बुनते हुएकभी सुना था उसने सपने मर जाने से मर जाता है समाज आज सपने बुनते हुए भावी समाज के वह बुदबुदाया'चोर को चोर कहना ही काफी नहीं है'दो...
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