विवरण
गोविंदाभाई झिंगोरानी रातोरात महान कैसे हो गए और नौसेना पुलिस में जेलर सेसाबुनों के आविष्कार कैसे हो गए, यह एक लंबी रहस्यभरी कहानी है.पर हां, इतना सच है कि जगतप्रिय साबुन फैक्टरी के बनाए तीनों साबुन पूर्णत: मौलिकएवं स्वदेशी हैं. और इनमें से खटमलों की गंध आने की जो बात कही जाती है. वह बिल्कुल सही है. यही वजह है, महासुगंध साबुन का प्रयोग बजाए मनुष्य, गड़रिए अपनी भेड़ों के वास्ते करते हैं. यदि गीता पर हाथ रख कर मनमयूर साबुनके बारे में कहा जाए, तो कहना पड़ेगा-इससे नहाने के बाद एक ऐसा चिड़चिड़ापनआदमी के ऊपर हमला करता है कि कुछ पूछो मत. असल में तो लोग अपनेआलसी मरियल कुत्तों को इस साबुन से नहला कर चुस्त बना रहे हैं.अत: गुणों की कसौटी पर उनके साबुनों की उपेक्षा तो हो ही नहीं सकती. परिणामस्वरूप साबुन बिक रहे हैं, पर............पर चौरासी वर्षीय गोविंद भाई झिंगोरानी ने आज से तीस वर्ष पहले एक सपनादेखा था-एक श्रेष्ठ साबुन के अविष्कार का एक अद्वितीय साबुन के खोजकर्ता केरूप में विश्वविख्यात होने का अखबारों, रेडियो,टेलिविजन में चर्चा का विषयबनने का...वह आज भी एक सपना ही है.रसायनशास्त्र से झिंगोरानी परिवार का कभी दूर का भी रिश्ता नहीं रहा. कार्बनिकपदार्थों के गुण-अवगुणों में भी गोविंदभाई झिंगोरानी ने कभी कोई दिलचस्पी नहींदिखायी. पर साबुन-उद्योग का भविष्य उन्हें और उनके योगदान को भूल जाए , ऐसा कभी मुमकिन नहीं हो सकता. यह स्वयं गोविन्द भाई का विश्वास है.कॉलेज की डिग्री नहीं तो क्या? रात-रात जाग कर कितने ही सफल-असफलप्रयोग किए हैं उन्होंने. दिमाग को ठंडा रखने के लिए महुए के तेल में कास्टिकसोडा और चंदन व पिपरमेंट के मिश्रण से उन्होंने एक लाजवाब साबुन बनानाचाहा था. काश, उनका यह प्रयोग सफल हो जाता!एक समुद्री घास, कॉड मछली के तेल और पेनिजोटिहाइड्राक्साइड को मिला करआंखों की तेज रोशनी के लिए उत्तम साबुन का सपना देखा था उन्होंने. पर न जानेक्यों, साबुन लगाते ही एक आदमी बेचारा अंधानुमा हो गया था.और अब उनके पास दो किताबें भेजी है, उनके पोते सुनील झिंगोरानी ने. म्युनिखसे लिखा है उसने कि इन किताबों में अच्छे साबुन बनाने की पचास विधियां मौजूदहै.उस रोज सारा दिन गोविंदा भाई स़िर्फ हंसते रहे थे, अपने नादान पोते पर, लो जबउनके सारे बाल सफेद हो गए, कमर झुक कर कमान हो गई, तब उनका पोता उन्हेंदीन-दुनिया का सबक सिखाने आया! हूं, साबुन बनाना सिखाने की किताब भेजीहै पोते ने.कुछ क्रोध और कुछ दुख से उसी रात उन्होंने किताबों को नीम की आग में जलाकर उसकी राख इकट्ठी की, फिर अधिक झाग के लिए दूध, नींबू, रीठे, अंडे कीजर्दी और बैंगन की जड़ों के रस से उन्होंने जो द्रव तैयार किया था, उसी में वहराख सत्तासी डिग्री के ताप पर धीरे-धीरे मिला दी. इसके बाद रंग, सुगंध और अन्यकुछ ज़रूरी पदार्थ भी पर्याप्त मात्रा में मिलाए.अगले दिन कुछ देर से ही नींद खुली. उस दिन गर्मी भी कुछ ज़्यादा ही थी. उठते हीसबसे पहले वे अपनी कथित प्रयोगशाला में गए और वहां कांच के बरतन में जमेपदार्थ, अर्थात साबुन को देखते ही उछल पड़े. सफेद और पीले रंग कीधारियोंवाला ऐसा सुंदर साबुन उनकी कल्पना के परे था. उसे मक्खन-सा मुलायमदेख गोविंदा भाई की प्रसन्नता का कोई ओर-छोर न था. बस अब साबुन काअंतिम परीक्षण, यानी प्रयोग ही शेष था. यद्यपि दूसरे साबुनों का प्रयोग सदैवउन्होंने पहली बार अपने झबरीले कुत्ते पर किया था, लेकिन इस अद्वितीय साबुनके साथ वे ऐसा न कर सके. चाकू से एक चकोर टुकड़ा काटा और तौलिया उठाकर ‘हरि ओम’ भजते हुए नल की ओर बढ़ गए.सार्वजनिक नल में नहाना जैसेउनका जुनून था.नल के इर्द-गिर्द गोविंदा भाई को अक्सर ही कुछ बच्चे मिल जाते थे. और उसवक्त भी गोविंदा भाई को पानी भर कर देने के लिए दो लड़के-कालू और हेम मिलगए. वे बाल्टी भर-भर कर उनकी तांबई देह पर पानी उंडेलने लगे और गोविंदा भाईबड़े अभिमान के साथ अपने सिर पर साबुन रगड़ने लगे.चार बार रगड़ने पर ही एक प्यारी-सी खुशबू के साथ साबुन ने इतना ढेर साराझाग दिया कि कालू और हेम चौंक पड़े. साबुन तो साबुन, शैंपू से भी इतना झागसंभव न था. सचमुच यह एक उत्तम साबुन था.‘‘मेरी खोपड़ी में पानी डालो रे भाई!’’साबुन का आनंद लेते हुए गोविंदा भाई बोले. कालू ने फौरन दो बाल्टी पानी उनके सिर पर उंडेल दी और इसी बीच मौका देखहेम ने साबुन को चुपके-उठा कर अपनी जेब में डाल लिया. कालू ने भी मुस्कराकरहेम के इस कार्य की सराहना की.‘‘ अरे पानी! और पानी!’’दोनों ने देखा, सिर पर पहले तरह ही झाग मौजूद था. हेम ने दोनों बाल्टियों सेपानी उंड़ेला उनके ऊपर. लेकिन यह क्या? झाग के धुलते ही फिर से नए झाग कासफेद सुगंधित पहाड़ वहां मौजूद था. अब नल के नीचे बैठ गए, गोविंदा भाई. परकोई फायदा नहीं! सिर से झाग के खत्म होने के कोई लक्षण नहीं दिखाईदिए.नल से पानी भरने आए और लोग भी चौंक कर देखने लगे कि सनकी बूढ़े नेसिर पर यह क्या लगा लिया?और सच कहा जाए, तो स्वयं गोविंदा भाई भी घबरा उठे यह क्या हो गया? दसमिनट से भी ज़्यादा हो गए साबुन लगाए, पर झाग बढ़ता ही जा रहा है प्रतिपल. इधर बात एक कान से दूसरे कान होते हुए पूरे मोहल्ले में फैल गई. नल के चारोंओर तमाशाई भीड़ जमा होने लगी.आधा घंटा बीत गया था. ठीक इसी समय नल का पानी भी धोखा देकर एकाएकबंद हो गया. अब गोविंदा भाई और घबराए. सिर पर साबुनी झाग बढ़ना शुरू होगया. पहले दो इंच ऊंचा, फिर छह इंच ऊंचा और फिर एक फुट तक ऊंचा उठखड़ा हुआ. दयावान लोग अपने घरों से भरी बाल्टियां ला-लाकर उनके सिर पर खाली करनेलगे, लेकिन तब भी कोई लाभ नहीं हुआ. झाग का अंबार धुलते ही नया झागउसकी जगह उठ खड़ा होता. दो घंटे बीत गए इस तरह. लोगों के घरों का पानीखत्म हो गया. लेकिन झाग उनके सिर पर दो फुट की ऊंचाई तक पहुंच गया. गोविंदा भाई अब और न सह सके. वे बचाओ,मुझे बचाओ! चिल्लाने तथा जोर-जोर से दहाड़े मारने लगे.किसी अक्लमंद ने इसी बीच फायर ब्रिगेड को फ़ोन कर दिया. न जाने कहां सेअखबार का एक फोटोग्राफर भी आकर धड़धड़ उनका फोटो लेने लगा.गोविंदा भाई बेहोश होकर गिर पड़े. उनका चेहरा नीला पड़ गया था. फायरब्रिगेडवाले भी पसीने से तर थे.तभी भीड़ में से किसी ने सलाह दी कि गोविंदा भाई को गंजा कर दिया जाए. सलाह सबको पसंद आई. एक तमाशाई नाई ने फौरन अपनी मुफ़्त सेवा प्रस्तुतकी.और तुरंत ही सुखद आश्चर्य हुआ. बालों के कटते ही झाग का बनना बिल्कुल बंदहो गया. और साथ ही गोविंदा भाई झिंगोरानी को होश भी आ गया.दूसरी तरफ कालू और हेम में साबुन को ‘तू रख-तू रख’कह कर मारपीट की नौबतआ गई. कोई भी साबुन को अपने पास रखने को तैयार नहीं था.खैर, जहां तक हमारा ख्याल है, अगले दिन के अखबार में आविष्कारक गोविंदाभाई झिंगोरानी का फोटो और नाम अवश्य ही छपा होगा, लेकिन हमें मालूम नहींकि उन्होंने उसे पढ़ा भी होगा, या....!