"बिराज बहू" शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय की एक कहानी है, जिसमें पन्द्रह महीनों के बाद एक परिवार की उदासी और शारदीय पूजा का आनंद न होने का वर्णन है। नीलाम्बर, एक दुःखी पिता, अपने छोटे भाई की विधवा बहू पूंटी का इंतज़ार कर रहा है, जो अपने पति और नौकर-चाकरों के साथ घर लौटने वाली है। लेकिन वह नहीं जानती कि उसके पति पीताम्बर की मृत्यु हो चुकी है। नीलाम्बर की आंखों में अपने भाई के प्रति करुणा है, और वह सोचता है कि पूंटी को अपने भाभी के कलंक के बारे में जानकर दुख होगा। कहानी में सुन्दरी, जो कि एक अन्य पात्र है, आत्मग्लानि में है और दो महीने बाद बताती है कि बिराज मरी नहीं, बल्कि राजेन्द्र बाबू के साथ भाग गई है। यह सुनकर नीलाम्बर को आंतरिक पीड़ा होती है, और वह अपनी छोटी बहू से यह बात छुपाने की कोशिश करता है। छोटी बहू कहती है कि उन्हें यह बताना नहीं चाहिए कि बिराज नदी में डूबकर मरी है। नीलाम्बर, जो अपनी बेटी के लिए चिंतित है, कहता है कि पाप छुपाने से बढ़ता है और वे अपने ही हैं, इसलिए उन्हें सच्चाई का बोझ नहीं बढ़ाना चाहिए। कहानी में पारिवारिक संबंध, दुःख, और सामाजिक कलंक की संवेदनशीलता को दर्शाया गया है। बिराज बहू - 12 Sarat Chandra Chattopadhyay द्वारा हिंदी सामाजिक कहानियां 24 5.1k Downloads 11.9k Views Writen by Sarat Chandra Chattopadhyay Category सामाजिक कहानियां पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण पन्द्रह माह बीत गए... शारदीय-पूजा के आनन्द का अभाव चारों ओर दिख रहा है। जल-थल-पवन और आकाश सब उदास-उदास। दिन का तीसरा पहर। नीलाम्बर एक कम्बल ओढ़े आसन पर बैठा था। शरीर दुबला, चेहरा पीला-पीला। सिर पर छोटी-छोटी जटाएं तथा आँखों में विश्वव्यापी करुणा और वैराग्य! महाभारत का ग्रन्थ बन्द करके भाई की विधवा बहू को पुकारा- “बेटी, मालूम होता है कि पूंटी आदि आज नहीं आएंगे।” छोटी बहू ने बिना किनारी की धोती पहन रखी थी। वह थोड़ी दूर बैठी। महाभारत सुन रही थी। समय का ध्यान करके वह बोली- “पिताजी! अभी समय है, वे आ सकते है।” Novels बिराज बहू हुगली जिले का सप्तग्राम-उसमें दो भाई नीलाम्बर व पीताम्बर रहते थे। नीलाम्बर मुर्दे जलाने, कीर्तन करने, ढोल बजाने और गांजे का दम भरने में बेजोड़ था। उस... More Likes This जिंदगी के रंग - 1 द्वारा Raman रुह... - भाग 8 द्वारा Komal Talati उज्जैन एक्सप्रेस - 1 द्वारा Lakhan Nagar माँ का आख़िरी खत - 1 द्वारा julfikar khan घात - भाग 1 द्वारा नंदलाल मणि त्रिपाठी सौंदर्य एक अभिशाप! - पार्ट 2 द्वारा Kaushik Dave चंदन के टीके पर सिंदूर की छाँह - 1 द्वारा Neelam Kulshreshtha अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी