यह कहानी इलाहाबाद से रांची के लिए चल रही एक तेज गति की खुली ट्रेन के संदर्भ में है। कहानी के पात्र पांडे जी हैं, जो खिड़की से बाहर का दृश्य देख रहे हैं। यह कहानी स्वाभिमान और आत्मसम्मान की भावना के साथ जुड़ी हुई है। स्वाभिमान - लघुकथा - 46 Surinder Kaur द्वारा हिंदी लघुकथा 1.1k Downloads 4.7k Views Writen by Surinder Kaur Category लघुकथा पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण इलाहाबाद से रांची के लिए खुली ट्रेन तेज गति से आगे की ओर भाग रही थी। खिड़की से बाहर देख रहे पांडे जी के दिमाग का पहिया बाहरी दृश्यों के साथ- साथ पीछे की ओर जाने लगा।सीट पर साथ में बैठी पत्नी से बोले-जानती हो! पिछले सप्ताह जब तुम्हें और मुन्ने को वापस लाने के लिए मैं इसी ट्रेन से इलाहाबाद आ रहा था तो ट्रेन में मैंने 10-11 वर्ष के एक बच्चे को भीख मांगते हुए देखा। More Likes This नौकरी द्वारा S Sinha रागिनी से राघवी (भाग 1) द्वारा Asfal Ashok अभिनेता मुन्नन द्वारा Devendra Kumar यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (1) द्वारा Ramesh Desai मां... हमारे अस्तित्व की पहचान - 3 द्वारा Soni shakya शनिवार की शपथ द्वारा Dhaval Chauhan बड़े बॉस की बिदाई द्वारा Devendra Kumar अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी