"डायरी के पन्ने" नाटक में मुख्य पात्र वसुधा है, जो अपने घर के कामकाज और पारिवारिक जिम्मेदारियों पर विचार करती है। नाटक का पहला दृश्य एक सामान्य बैठक के कमरे में होता है, जहां वसुधा गुनगुनाते हुए सफाई कर रही है। वह याद करती है कि कैसे उसकी मां गांव में सुबह जल्दी आंगन बुहारती थीं, जबकि पुरुष घर के भीतर सोते रहते थे। वसुधा की बातें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि समाज में महिलाओं की जिम्मेदारियां कितनी अधिक हैं और कैसे उन्हें हर हाल में अपने काम पूरे करने होते हैं, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों। वसुधा यह भी सोचती है कि शहरों में आंगन नहीं होते, इसलिए अब बैठक ही काम करने का स्थान बन गया है। वह अपने अनुभवों को साझा करती है कि कैसे उसे हर जगह सफाई की आदत पड़ गई है और वह हमेशा बिखरे सामान को देखकर चिंतित रहती है। नाटक में वसुधा की भावनाएं और विचार समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके कामकाज के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। डायरी के पन्नें Sudarshan Vashishth द्वारा हिंदी नाटक 5.1k 3.1k Downloads 11k Views Writen by Sudarshan Vashishth Category नाटक पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण Diary ke Panne More Likes This माँ की चुप्पी - 1 द्वारा Anurag Kumar मेनका - भाग 2 द्वारा Raj Phulware पती पत्नी और वो - भाग 2 द्वारा Raj Phulware चंदेला - 2 द्वारा Raj Phulware BTS Femily Forever - 1 द्वारा Kaju मंदिर, मूर्ति, धर्म और शास्त्र — एक नई दृष्टि - 1 द्वारा Vedanta Two Agyat Agyani कृष्णा कैफ़े - भाग 1 द्वारा Raj Phulware अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी